प्रसवोपरांत शिशु को गोद में लेकर वक्ष से लगाने की आतुरता वात्सल्य का आधार होती है। बच्चे के कोमल अधरों के स्पर्श से उत्पन्न संवेदना मां की पीयूष ग्रंथि तक पहुंचती है। वहां से स्रावित हार्मोन स्तन में दुग्धउत्पादन और प्रवाह करते हैं। दूध पीने को जितना आतुर शिशु रहता है उससे कहीं ज्यादा आतुर दूध पिलाने को मां रहती है। यह है वात्सल्य । बच्चे की चाह में स्तन में झरता दूध इसके साक्ष्य हैं। स्तनपान और दूध का रिश्ता मात्र शिशु के पोषण के लिए नहीं वरन मां के प्रगाढ़ लगाव का आधार होता है। कोख और दूध का रिश्ता विलक्षण होता है। अवचेतन अधिक, चेतन कम और बुद्धिपरक तो न्यूनतम । इस लेख में हम बात करते हैं कि वातसल्य का चिकित्सा विज्ञान क्या है और प्रेगनेंसी के नौ महीने का सफर कैसा होता है ।
जीवन चक्र की रचना
हजार बिंदुओं में से कोई एक, शेष विरल तरल, रसायन और हार्मोन के स्रोत मात्र में बदलकर, दुनिया में नए शिशु को लाने का कारण बनता है। निषेचन की इस प्रक्रिया का बड़ा यक्ष प्रश्न है, प्रकृति के सर्वव्यापी शाश्वत नियम के विरुद्ध माता का, विषम गुणसूत्र वाले युग्म (फर्टिलाइज ओवम) को स्वीकार करना । प्रकृति का नियम है कि कोई भी जीव चाहे अपने गुणसूत्रों से भिन्न अंग, अवयव या अणु को स्वीकार नहीं करता, वह रोगाणु हो या रासायनिक अणु। हर एक जीव के शरीर में अति सूक्ष्म रक्षा संस्थान होता है जो विषम गुणसूत्र वाले भाग को नष्ट कर बाहर फेंक देता है। जीवन रक्षा के लिए आवश्यक भी है। फिर क्या है जो गर्भाशय विषम गुण सूत्र वाले युग्म को, जिसमें आधे गुण सूत्र पिता के हैं, को स्वीकार करने के अनुकूल बनाता है?
यह एक विलक्षण रासायनिक प्रक्रिया है। युग्म अति सूक्ष्म होता है, मात्र कुछ कोशिकाओं का पुंज माता के चेतन मन युग्म से में इसका किसी प्रकार का बोध नहीं होता, लेकिन संचालित रसायनों से भ्रूण, गर्भपथ और माता के शरीर से, अवचेतन में व्यापक और सतत संवाद स्थापित करता है। डिम्ब वाहिनी से चलकर गर्भाशय में आता युग्म यह विलक्षण संवाद स्थापित करता है। गर्भाशय को स्वीकार करने के अनुकूल ही नहीं बनाता वरन उसे अपेक्षारत बनाता है। मातृत्व मानसिक चेतना से उत्पन्न भाव नहीं, अवचेतन में रासायनिक अनुभूति आधारित सहजवृत्ति (इन्स्टिंक्ट) है। संतति उत्पत्ति से प्रकृति में निरंतरता और शाश्वतता का आधार । वातसल्य का चिकित्सा विज्ञान
भ्रूण के प्रति ममता का आधार
गर्भाशय में विकसित होते और पनपते भ्रूण के प्रति ममता का आधार भी व्यापक रासायनिक संवाद और अवचेतन से होती अनुभूति ही है। गर्भस्थ शिशु के आंवल (प्लेसेन्टा) से संचारित हार्मोंस तो माता के अंतः स्रावी ग्रंथि संस्थान को एक प्रकार से अपने पक्ष में कर लेते हैं। आंवल गर्भस्थ शिशु के फेफड़ों और गुर्दे का काम है। गर्भस्थ शिशु की आवश्यकता, पोषण व अन्य, पर माता के शरीर से पहले शिशु का अधिकार हो जाता है। गर्भस्थ शिशु के आवरण आदि से भी सतत संवाद होता है। इन रासायनिक संवेदनाओं के फलस्वरूप, शिशु का पोषण और रक्षण, अवचेतन के प्रमुख भाव होते हैं मातृत्व के आधार हैं ।
प्रसव भी गर्भस्थ शिशु और माता के बीच रासायनिक संवाद के फलस्वरूप ही होता है। शिशु द्वारा स्रावित रसायन, जो गर्भाशय को शिशु के विकास के अनुरूप ढालता है, पूर्ण विकास पर गर्भस्थ शिशु गर्भाशय को अनुकूल बनाने वाले रसायन बनाना छोड़ देता है। फलस्वरूप गर्भाशय की सशक्त मांसपेशियां अपने प्राकृतिक स्वरूप में संकुचन करने की अवस्था में आ जाती हैं। प्रसव पीड़ा होती है। प्रसव पथ से गुजरते शिशु के प्रति मां का ध्यान अपनी पीड़ा से अधिक शिशु की संकटपथ से गुजरने की पीड़ा और उसकी सुरक्षा के प्रति होता है। चेतन और अवचेतन की यह विरल प्रक्रियाएं ममता का आधार होती हैं । वातसल्य का चिकित्सा विज्ञान
भ्रूण के नौ महीने का सफर
भ्रूण से लेकर बच्चे के जन्म तक का नौ महीने का सफर निम्न प्रकार से है :-
प्रथम महीना
आपके शिशु के आनुवंशिक गुण गर्भ धारण के समय ही तय हो चुके हैं। शिशु का लिंग भी पिता के शुक्राणु ने तय कर दिया है। दिमाग एवं तंत्रिकाएं बनने लगी हैं। हृदय एवं फेफड़े भी बनने लगे हैं। कान, नाक एवं आंख की जगह छोटे-छोटे बिंदु बन गए हैं। हाथ एवं पैर की कलियां निकल आई हैं। शिशु एक पानी भरी थैली (अम्नीओटिक फ्लूइड) में पनप रहा है। इस माह के अंत तक आपका शिशु करीब 1/4 से 1 इंच लम्बा होगा।
दूसरा महीना
आपके शिशु के विकास में यह महत्वपूर्ण महीना है। श्रवण एवं दृष्टि इंद्रियां विकास के बहुत ही अहम मुकाम पर हैं। चेहरे का नाक नक्शा बन रहा है। दिमाग का विकास दूसरे अवयवों के मुकाबले त्वरित होने से शिशु का सिर बड़ा है। कार्टीलेज त्वचा एवं स्नायु के बनने से शिशु आकार ग्रहण कर रहा है। नाल बन गई है। हाथ-पैर की अंगुलियों एवं नाखून बन आमाशय, यकृत, गुर्दे का विकास हो रहा है। हृदय धड़क रहा है। आप का वजन करीब 15 से 30 ग्राम और उसकी लंबाई करीब 21/4 इंच है ।
तीसरा महीना
आकार बहुत छोटा होने से शिशु की हलचल महसूस की जा सकती। कान, बाजू, हाथ, अंगुलियां, पैर पंजे तथा पैरों की उंगलियां इस महीने में विकसित होंगी। स्वाद कोशिकाएं बन रही है। गरदन अकार ले चुकी है। सर ऊपर रह सकता है। स्वक्रिया (Reflex) की वजह से आपका शिशु कोहनी से हाथ मोड़ सकता है, पैरों से लात मार सकता है तथा मुठी बना सकता है। उसका हृदय अब 120 से 160 बार प्रति मिनट धड़कता है। नाल द्वारा रक्त शिशु तक पहुंच रहा है। वह तकरीबन एक कप जितने एम्नीओटिक द्रव में है। शिशु के मुंह से शरीर में गया हुआ द्रव शिशु के गुर्दे वापस एम्नीओटिक थैली में डाल देते हैं। इस महीने के अंत तक आपके शिशु का वजन करीब 110 ग्राम और लंबाई करीब 21/4 ” इंच होगी।
चौथा महीना
यह महीना गर्भावस्था का अध्य बिंदु है। अब शिशु के हृदय की धड़कनें सुनी जा सकती हैं। इसके लिए फोटोस्कोप काम में लाया जाता है। इस महीने में आपका शिशु लंबाई और वजन में तेजी से विकास होता है। बाल उगने लगते हैं और उसके सिर पर दिखने लगते हैं। पूरे शरीर पर हल्के बाल होते हैं जिन्हें “लनुगी” कहा जाता है। भौहें और पलक के बाल (प्रथम) उगने लगे हैं। चमड़ी वसायुक्त होने लगी है। अब आपका शिशु एम्नीओटिक कोष में गतिशील रहने का आनंद ले रहा होता है। इस महीने एम्नीओटिक प्रवाहों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है और आप अपने शिशु की हलचल महसूस कर सकती हैं। इस महीने शिशु की लंबाई करीब 10 इंच एवं वजन करीब 3/4 पौण्ड हो जाता है।
पांचवां महीना
शिशु की हलचल बढ़ रही है। आप उसके हाथ एवं पैरों का हिलना महसूस करेंगी। शिशु कुछ समय गतिशील होगा तो कुछ समय आरामशील । शिशु की त्वचा पर झुर्रियां हैं एवं त्वचा का रंग लाल है। त्वचा ज्यादा वसायुक्त बनती है। उसकी पलकें बंद हैं। नाखून बढ़ रहे हैं। इस महीने के अंत तक शिशु की लंबाई करीब 12 इंच एवं वजन करीब 550 ग्राम हो सकता है। वातसल्य का चिकित्सा विज्ञान
छठा महीना
अब शिशु इतना बड़ा है कि पेट पर हाथ रखने से उसकी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। उसकी त्वचा अभी भी झुर्री भरी एवं लाल है। अंगुलियों के निशान बनना शुरू हो गया है। आंखों का विकास लगभग हो चुका है। इस महीने उसकी पलकें खुल और बंद हो सकती हैं। आपका शिशु रो सकता है, लात मार सकता है और उसे हिचकी आ सकती है। अब बाहर की आवाज का असर आपके शिशु पर होता है। वह बाहर की आवाज सुनकर गतिशील हो सकता है या चुप हो सकता है। आप का शिशु इस माह के अंत तक करीब 15 इंच लंबा हो सकता है एवं इसका वजन करीब 1 किलो 250 ग्राम हो सकता है।
सातवां महीना
अब आप का शिशु 16 इंच लंबा है। लनुगी नामक मुलायम बारीक बाल से शिशु का शरीर आच्छादित है। दिमाग तथा तंत्रिका व्यवस्था त्वरित गति से विकसित होती है। यदि कोई आपके पेट पर कान रखे तो आपके शिशु की धड़कन उसे सुनाई दे सकती है। अब से जन्म तक लोहतत्व का संचय होता है। अंगुलियों की रेखाएं बन गई हैं। शिशु के जागने और सोने का समय निश्चित हो गया है। यहां तक कि वह अब अंगूठा चूसता है। इस महीने के अंत तक शिशु का वजन करीब 1.25 से 1.5 किलो होगा।
आठवां महीना
अब आपके शिशु का वजन करीब 2 किलो एवं लंबाई 18 इंच है। उसकी आंखें खुली हैं। त्वचा मुलायम व वसा के भरने से झुरियां खत्म हो गई हैं। शरीर के बाल धीमे-धीमे हट रहे हैं। जागने-सोने की खास आदत के साथ आपका शिशु सक्रिय है। प्रसव की स्थिति में वह स्थिर हो सकता है। अब वह इतना विकसित हो गया है कि यदि समय से पूर्व प्रसव हो जाए तो वह जीवित रह सकता है। इस महीने आपके शिशु का वजन करीब दो पौण्ड बढ़ता है। वातसल्य का चिकित्सा विज्ञान
नौवां महीना
आपके शिशु का वजन 3 से 3.5 किलो हो सकता है एवं लंबाई 20 इंच। उसकी आंखें गहरे कबूतरी रंग की हैं। जन्म पश्चात रंग बदल सकता है। अंगुलियों के नाखून पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हैं। इस महीने शिशु का सिर नीचे, पैर ऊपर होते हैं और वह प्रसव तक इसी स्थिति में रहता है। क्योंकि उसके पास हलचल के लिए कम जगह उपलब्ध है अब वह ज्यादा शांत रहता है। नींद व जागरूकता का समय अभी भी वही है। जन्म उपरांत वह अपने आप सांस ले सके एवं विकसित हो सके, इसकी पूर्व तैयारी के रूप में उसके अवयवों तथा विभिन्न प्रक्रियाओं का विकास जारी है। शिशु के इर्द-गिर्द करीब 1 क्वार्ट एम्नीओटिक प्रवाही है। इस महीने आपका शिशु लंबाई में करीब ढाई इंच एवं वजन में करीब 900 ग्राम बढ़ता है ।।
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