योग का वैज्ञानिक महत्व – Yoga , research in Hindi – की जब भी हम बात करते हैं तो विज्ञान की दृष्टि से योग के उपयोग के लिए अभी काफी कुछ खोजबीन करना बाकी है। आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम देशों में योग तेजी से वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में लोकप्रिय हो रहा है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर कॉम्प्लिमेंटरि एंड ऑल्टनेटिव मेडिसिन के एक सर्वे के अनुसार अट्ठारह साल से ऊपर की आयु के तनाव और उससे होने वाले रोगों के शिकार 2.8 प्रतिशत व्यक्ति योग का सहारा लेते हैं। इन रोगियों की संख्या 165 लाख से ज्यादा है। पश्चिम के गले सिर्फ विज्ञान की भाषा ही उतरती है, इसलिए योग का फलक और बड़ा करने के लिए उस भाषा पर जोर दिया जा रहा है। विज्ञान की कसौटी, उसका प्रमाण, उसकी चुनौतियां, टकराव और संघर्ष को उभारते प्रतिपादन योग को विद्या के तौर पर प्रतिष्ठित करते हैं या उत्पाद और तकनीक की तरह, कहना कठिन है। योग का वैज्ञानिक महत्व
स्वामी विवेकानंद ने करीब सवा सौ साल पहले भारतीय योगियों को नसीहत दी थी कि उनका आचरण और उन्हें स्वयं ही प्रमाण बनना चाहिए। इसके अलावा सारे प्रमाण अधूरे होंगे। अर्थात् उन्हें व्यावसायिकता से दूर रहना चाहिए। 1965 में प्रसिद्ध इतिहासकार अर्नाल्ड जे. टायनबी ने भी इसे अपने ढंग से कहा था कि इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय संस्कृति की उपेक्षा करना असंभव होगा। उसके शुद्धतम रूप को, योगी यतियों के मार्ग को नहीं उबारा जा सका तो पश्चिम अपने ढंग से उसका उपयोग करेगा। उसके परिणाम मनुष्य जाति के लिए अच्छे होंगे या बुरे, यह भविष्य ही बताएगा। वे बीसवीं शताब्दी में पश्चिम में पहुंचे बौद्ध धर्म के प्रभाव को रेखांकित करते हुए बोल रहे थे। बौद्ध धर्म के जेन., ध्यान, समाधि, निर्वाण जैसे पद उस समय अच्छी तरह स्थापित हो चुके थे। उसकी परिणति के उदाहरण से भी योग और विज्ञान के रिश्तों की पड़ताल करनी चाहिए। इस लेख के माध्यम से हम जानते हैं कि योग का वैज्ञानिक महत्व क्या है और योग पर कौन कौन से शोध कार्य अंतरास्ट्रीय स्तर पर किये गए हैं । पश्चिम जगत में अलग-अलग तरह से प्रयोग शालाओं में योग-ध्यान पर काफी पड़ताल हुई है। इसके कुछ नमूने यदि हम देखें तो बहुत सी बातें साफ हो जाएंगी । कुछ शोधों का उल्लेख हम इस लेख में कर रहे हैं । योग का वैज्ञानिक महत्व – Yoga , research in Hindi
जो लोग योग के दौरान ध्यान करते हैं, उनका दिमाग ध्यान न करने वालों की तुलना में बड़ा होता है। (मार्च, 2008 हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल) –
हॉर्वर्ड, येल और मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक दिमाग के स्कैन के दौरान पहली बार इस सच से रूबरू हुए कि ध्यान करने वालों के दिमाग का वह हिस्सा मोटा हो जाता है, जो जागरूकता और संवेदनशील अनुभवों पर प्रक्रिया करता है। हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल की मनौवैज्ञानिक और इस शोध की नेतृत्वकर्ता सारा लेज़र के अनुसार जिस तरह एक संगीतकार के दिमाग का संगीत से संबंधित हिस्सा बढ़ जाता है या जिस तरह कला बाज़ के दिमाग का दृश्य और प्रेरक हिस्सा बढ़ जाता है ठीक उसी तरह यह ध्यान करने वाले की स्थिति में भी होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वयस्क दिमाग की संरचना बार-बार अभ्यास की प्रतिक्रिया में बदल सकती है। दरअसल ध्यान के दौरान मुख्य लक्ष्य संवेदी अनुभव पर ध्यान केंद्रित करना होता है न कि संवेदी अनुभव के विचार पर। उदाहरण के लिए अगर आप एक आवाज सुनते हैं तो आप उस वक्त उसके बारे में सोचने की जगह उसे सुनते हैं या जब आपका पैर सो जाता है तो आप शारीरिक संवेदना महसूस करते हैं। अगर वहां कुछ भी न हो तो आप अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ध्यान करने के अभ्यस्त इन बातों के बारे में न सोचने या उन्हें बड़ा करके देखने के आदी हो जाते हैं, इस तरह उनके दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो जाता है, जो जागरूकता और संवेदी अनुभवों पर प्रतिक्रिया करता है। इस तरह आप अस्त-व्यस्त विचारों को अपनी चेतना पर शासन न करने देने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।
योग का अभ्यास गामा एमिनो ब्युट्रिक एसिड (गाबा) के स्तरों को बढ़ाता है। (मई, 2007, बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और मैकलिन हॉस्पिटल)-
इस शोध में मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपिक इमेजिंग का इस्तेमाल करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया योग का अभ्यास करने वाले समूह में गाबा के स्तर में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी थी। टीम के अनुसार, योग की वजह से योग करने वालों लोगो में अवसाद, चिंता, मिर्गी से जुड़े लक्षणों में राहत मिली थी ।
योग का वैज्ञानिक महत्व
योग सेहतमंद लोगों में स्वस्थ होने की अनुभूति को बढ़ाता है और मेटाबॉलिक सिन्ड्रॉम से बायोकेमिकल परिवर्तनों को उलट देता है (दिसम्बर, 200 7यूनिवर्सिटी ऑफ कार्लस्टेड, स्वीडन )-
वर्ष 2007 में स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ कार्लस्टेड में डॉ. एनेट कैलग्रेन और उनके सहयोगियों का शोध बॉयोमेड सेंट्रल कॉम्लिमेंटरि एंड ऑल्टॅनेटिव मेडिसिन में प्रकाशित हुआ था । शोध में 55 वयस्कों को सुदर्शन क्रिया का अभ्यास करने को कहा गया, जिसमें धीमी, सामान्य और तीव्र श्वसन क्रियाएं शामिल थीं। ये अभ्यास रोजाना एक घंटा, सप्ताह में 6 दिन और 6 सप्ताह तक करना था, जबकि दूसरे समूह को रोजाना 15 मिनट आमचेयर पर आराम करने की सलाह दी गई। शोध के अंत में सामने आया कि योग समूह में दूसरे समूह की तुलना में चिंता, तनाव और अवसाद की अनुभूति में काफी कमी आई और सकारात्मक नजरिए के स्तर उच्च हुए। ऐसा ही एक शोध पूर्व में बीकानेर में एसपी मेडिकल कॉलेज के डॉ. आर. पी. अग्रवाल और उनकी टीम ने किया था । योग और मेडिटेशन के फायदों को परखने के लिए 101 वयस्कों को शामिल किया गया, जिनमें मेटाबॉलिक सिन्ड्रॉम के लक्षण थे। अध्ययन में 55 वयस्कों को तीन महीने तक नियमित योग करवाया गया, शेष लोगों को अच्छी सार-संभाल दी गई। योग समूह में दूसरे समूह की तुलना में रक्तदाब, रक्त शर्करा और ट्राइग्लीसराइड के स्तर महत्वपूर्ण रूप से कम पाए गए थे ।
योग जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनता है (नवम्बर, 2007 एमोरी यूनिवर्सिटी)-
एमोरी यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता डॉ. बाबी खान और उनके सहयोगियों ने 19 हृदयाघात से पीड़ित रोगियों में 8 सप्ताह के योग कोर्स का अध्ययन यह देखने के लिए किया कि क्या इस तरह की प्रणाली सुरक्षित और फायदेमंद होती है? शोधकर्ताओं ने पाया कि योग थैरेपी ने जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया। रोगियों की एक्सरसाइज की क्षमता में बेहतरी विकसित की थी ।
जो लोग योग और ध्यान का अभ्यास सप्ताह में कम से कम तीन बार करते हैं, वे अपना रक्तदाब, नब्ज और दिल की बीमारियों के खतरे को घटा सकते हैं (नवंबर 2004 येल यूनिवर्स्टी स्कूल ऑफ मेडिसन)-
इस शोध के शोधकर्ता सतीश शिवाशंकरन के अनुसार योग सेहतमंद व दिल की बीमारी वाले रोगियों (दोनों) की दिल की सेहत में फायदा पहुंचाता है। अध्ययन में जिन लोगों ने 6 सप्ताह के योग ध्यान कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, उनकी रक्तवाहिका प्रक्रिया में 17 प्रतिशत सुधार पाया गया। शिवाशंकरन के अनुसार, तनाव धमनियों से संबंधित परेशानियों के जोखिम को बढ़ाता है। वहीं दूसरी ओर योग और ध्यान तनाव से मुक्त होने के तरीके के रूप में पहचाने जाते हैं। यह शोध अमेरिकन हॉर्ट एसोसिएशन के साइंटिफिकेशन सेशन (2004) के शुरुआती दिन प्रस्तुत किया गया। शोधकर्ताओं ने शोध की शुरुआत और समाप्ति पर रक्तदाब, नब्ज, बॉडी मास इंडेक्स और कोलेस्ट्रॉल स्तर की जांच की और अपने नतीजों में पाया कि इस दौरान रक्तदाब, नाड़ी स्पंदन और बीएमआई में सबसे ज्यादा सुधार हुआ था। इस संबंध में दो और रिसर्च काबिले तारीफ हैं –
1- अगस्त, 2001 में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन के न्यूरोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर स्टीवन पैसिया इस बात का अध्ययन कर रहे थे कि तनाव में कमी लोगों को गंभीर दौरों की बीमारी में राहत पहुंचाती है या नहीं। उन्होंने पाया कि गोग, से मिर्गी के मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया, जबकि दिमाग के इस रोग को दूर करने के लिए चिकित्सकीय और सर्जरी के माध्यमों को अपनाने के बाद भी, 20 प्रतिशत मरीज दौरों का अनुभव (आधुनिकतम इलाज पद्धति अपनाने वाले) करते हैं।
2- 1990 में ऑर्निश का लोकप्रिय अध्ययन आया जिसमें हृदय रोग (कोरोनरी हार्ट डिजीज) से पीड़ित 94 मरीजों को शामिल किया गया। इनमें से 53 लोगों को योग, समूह का सहयोग और शाकाहारी भोजन जिसमें वसा अत्यधिक कम मात्रा (रोजमर्रा की कैलोरी का 10 प्रतिशत) में आदि अपनी जीवनशैली में शामिल करने को कहा गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस समूह में कोलेस्ट्रॉल परिवर्तन ठीक उसी प्रकार था, जैसा कि कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवाएं लाती हैं। 1998 में ऑर्निश का एक नया शोध अमेरिकन जर्नल ऑफ कॉर्डियोलॉजी में छपा जिसमें बताया गया कि 80 प्रतिशत मरीजों ने जीवनशैली परिवर्तनों को अपनाया था, जिनकी वजह से वे बाईपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी से बच गए थे। ऑर्निश के अनुसार, योग और ध्यान को अपनी जीवनशैली में शामिल करना भी सुधार के साथ उतना ही जुड़ा था, जितना कि खुराक के नियम।
शरीर का अपना असीमित विवेक होता है और ध्यान सहजता की स्थिति में इसका विकास करता है (1970, हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल)-
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के माइंड बॉडी मेडिकल इंस्टीट्यूट के डॉ. हर्बर्ट बेन्सन ने ध्यान में व्यस्त लोगों का अध्ययन किया और उन्होंने जिस शारीरिक परिवर्तन का अवलोकन किया उसे ‘रिलेक्सेशन रिस्पॉन्स’ कहा। रिलेक्सेशन रिस्पॉन्स ने उपापचयी दर, हृदय दर, रक्त दाब, श्वास दर और मांसपेशीय तनाव को कम किया। इस अवस्था में पैरासिम्पैथेटिक (सहानुकम्पी) तंत्रिका तंत्र प्रभावी हो जाता है और पाचन, वृद्धि, मरम्मत और प्रतिरोधक प्रतिक्रियाओं को नियोजित और निर्देशित करता है। रिलेक्सेशन की अवस्था में शरीर अपनी ऊर्जा और संसाधनों का इस्तेमाल उपचार करने में कर सकता है। बेन्सन के अध्ययनों के अनुसार, लसीका गतिविधि को बढ़ावा देने के साथ-साथ योग दिमागी गतिविधि को धीमा करता है, दिल की धड़कन और रक्तदाब में कमी लाता है। बेन्सन ने अपने शोध में यह भी पाया कि किसी भी दोहराई या लगातार की जाने वाली प्रक्रिया जैसे ओम का उच्चारण, सांस या अपनी किसी शारीरिक गति पर ध्यान केंद्रित करके अन्य सभी विचारों से मुक्त होकर आप आराम या सहजता की मुद्रा की रचना करते हैं। यह प्रतिक्रिया भय की वजह से उत्पन्न फाइट या फ्लाइट रिस्पॉन्स पर विपरीत प्रभाव को प्रेरित करती है। अध्ययन में यह भी मालूम हुआ कि रिलेक्सेशन रिस्पॉन्स उस हिस्से में तीन मिनट में शरीर की ऑक्सीजन खपत को 17 प्रतिशत तक कम करके नकारात्मक तनाव प्रभावों को उलट देता है, इसलिए कई अस्पताल अब दिल के रोगों से ग्रस्त लोगों को इलाज के लिए योग कक्षाएं भी उपलब्ध करवाते हैं।
नियमित योग करने वाले महिला और पुरुषों का वजन उन लोगों की तुलना में 3 पौंड कम था, जो योग नहीं करते। (जुलाई, 2005 फ्रेड हचिसन कैंसर रिसर्च सेंटर वॉशिंगटन)-
पहली बार योग के वजन घटाने की क्षमता पर किए गए फ्रेड हचिसन कैंसर रिसर्च सेंटर, वॉशिंगटन के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में पाया कि 45 से 55 वर्ष की उम्र के लोगों में एक साल में एक पौंड वजन बढ़ जाता है, जिसका कारण अनियमित भोजन और शारीरिक श्रम की कमी होती है। शोध के प्रमुख और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ. पी.एच. एलन आर. क्रिस्टल के अनुसार योग आपको अपने शरीर के प्रति कहीं ज्यादा सजग बना देता है, इसलिए जब आप पर्याप्त भोजन लेते हैं, आपको महसूस होता है कि आपका पेट भर गया है और यह आपको अतिरिक्त आहार लेने से बड़ी आसानी से रोक देता है। साथ ही यह हमें आंतरिक रूप से कहीं अधिक सक्षम, नियंत्रित और विचारशील बनाता है ताकि हम बाहरी उद्दीपकों से आसानी से प्रभावित न हों पाएं।
योग का वैज्ञानिक महत्व
जिन महिलाओं में स्तन कैंसर का इलाज चल रहा था, उन्होंने योग का अभ्यास करने पर बेहतर महसूस किया (जुलाई, 2006 यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सास)-
यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सास एम डी एंडरसन कैंसर सेंटर ने उन 61 महिलाओं पर शोध किया, जिन्होंने स्तन कैंसर की सर्जरी करवाई थी। इन महिलाओं को 6 हफ्ते से रेडिएशन इलाज दिया जा रहा था। शोध के दौरान 30 महिलाओं का एक समूह बनाया गया, जिन्हें हफ्ते में दो बार योग कक्षाएं लेनी होती थीं। शेष को ऐसा नहीं करना होता था। 6 सप्ताह की समाप्ति पर शोध में भाग लेने वाली महिलाओं ने एक विस्तृत प्रश्नावली को भरा। उनके स्कोर एक स्केल में परिवर्तित किए गए, जिसकी शृंखला 0 से 100 थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि योग समूह हर क्षेत्र में लगातार उच्च स्कोर प्राप्त कर रहा था। इस समूह के लोगों का कहना था कि उनका स्वास्थ्य बेहतर था, वे कम थके हुए थे और उनकी नींद में भी कम व्यवधान आ रहे थे ।
योग दिमागी तरंगों में परिवर्तन करता है (2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉसिन)-
दिमाग एक इलेक्ट्रोकेमिकल अंग है जो कि काम करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी का इस्तेमाल करता है। फलस्वरूप होने वाली विद्युत गतिविधि दिमागी तंरगों के रूप में प्रकट होती है। इन तरंगों की चार श्रेणियां होती हैं। 2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉसिन के तंत्रिका वैज्ञानिक रिचर्ड डेविडसन ने बौद्ध साधुओं के द्वारा किए जाने वाले ध्यान पर अध्ययन के दौरान पाया कि मेडिटेशन के दौरान इन तंरगों में निम्न तरीके से परिवर्तन होता है :-
1- बीटा – 13-30 चक्र प्रति सैकंड। जागरूकता, बहिर्मुखता, एकाग्रता, तार्किक सोच, सक्रिय वार्तालाप में वृद्धि।
2- अल्फा – 7-13 चक्र प्रति सैकंड। विश्राम समय, ध्यान, उत्तेजना हीनता, सम्मोहन । थीटा : 4-7 चक्र प्रति सैकंड। दिवा स्वप्न, सपने देखना, रचनात्मकता, अतिसंवेदनशील पहलू, शरीर के परे अनुभव, अतिइंद्रिय बोध ।
3- डेल्टा – 1.5-4 या कम चक्र प्रति सैकंड । गहरी स्वप्नहीन नींद। ध्यान के दौरान नहीं होती बल्कि समन्वय उत्पन्न विभिन्न तरंगें इस बात का प्रमाण हैं कि यह प्रक्रिया अर्थहीन यह शरीर के उस हिस्से को सक्रिय बनाती है, जो अन्य हिस्सों से बिठाकर काम करता है यानि कि दिमाग। कुल मिलाकर एक विचारयुक्त ध्यान और संबंधित तकनीक का उद्देश्य अंतदृष्टि को जागृत करने के लिए जागरूकता को प्रशिक्षित करना है। अगर इसे अटेंशन डेफिशिट डिसऑर्डर के विपरीत समझें तो इसका अर्थ है, कहीं अधिक लचीली जागरूकता के साथ स्थिति के प्रति कहीं ज्यादा आसानी से जागरूक होना, भावनात्मक और मुश्किल परिस्थितियों में आसानी से आशावादी बनना और सकारात्मक व रचनात्मक प्रतिक्रिया की स्थिति प्राप्त करना ।
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