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घुटनो के दर्द (ऑस्टियो आर्थराइटिस) के कारण और बचाव के उपाय

घुटनो के दर्द (ऑस्टियो आर्थराइटिस) के कारण और बचाव के उपाय – Knee pain (osteoarthritis) causes and prevention measures

घुटनो के दर्द (ऑस्टियो आर्थराइटिस) के कारण और बचाव के उपाय –

Knee pain (osteoarthritis) causes and prevention measures 

ऑस्टियो आर्थराइटिस क्या है :-

                          जो रोग केवल वात दोष के विकृत होने से होते हैं उन्हें वात व्याधि कहते हैं,  वात व्याधियों के स्थान अंग विशेष या सर्वांग या कोष्ठ या दूषित धातु हो सकते हैं । वात व्याधि के अंतर्गत वृहद संधिवात या ऑस्टियो आर्थराइटिस आता है । उम्र बढ़ने के साथ-साथ जिस तरह अन्य अंगों में कमजोरी आती है, उसी तरह अस्थियों के जोड़ों में भी कमजोरी आने लगती है अर्थात कार्टिलेज और हड्डियों के सिरों में तथा उनके बीच की श्लेष्म कला में क्षीणता के लक्षण आने लगते हैं लेकिन किसी-किसी वृद्ध व्यक्ति की अनेक या किसी एक संधि में क्षीणता के ये लक्षण विशेष रूप से दिखाई पड़ते हैं । यह कभी-कभी विशेष जोड़ों में भी दिखाई देते हैं जैसे  घुटनों, कमर, पीठ, पैर के अंगूठे आदि में होने वाला यह रोग ऑस्टियो आर्थराइटिस या वृहद संधिवात  होता है । घुटनो के दर्द (ऑस्टियो आर्थराइटिस) के कारण और बचाव के उपाय

ऑस्टियो आर्थराइटिस होने  के  कारण :-

                                                                 इस  रोग में जोड़ों के बीच की सतह क्षतिग्रस्त हो जाती है । 50-60 वर्ष के व्यक्तियों विशेषकर पुरुषों की जिस संधि पर गलत तरीके से भार पड़ता है या जिस पर किसी प्रकार की चोट अधिक लगती है । उनमें वृद्धि व क्षति में से जब क्षति की प्रक्रिया अधिक हो जाती है, तब यह रोग होता है । इसके अतिरिक्त धातु क्षय, आमरसोत्पत्ति, पंचकर्म का व्यतिकर्म, मार्गावरोध, वातवर्धक आहार विहार आदि कारण भी इस रोग के लिए उत्तरदायी होते हैं।

ऑस्टियो आर्थराइटिस होने  के लक्षण :-

                                                         कभी-कभी सामान्य लक्षणों के उभरने के कारण इस रोग का पता ही नहीं चल पाता है । इस रोग के अंदर सूजन नहीं होती परंतु उनमें क्षीणता अवश्य होती है, जो बहुत धीरे-धीरे बढ़ती है । पहले रोगी की एक संधि जैसे कमर या जांघ की संधि में जकड़न के लक्षण प्रकट होते हैं, जो बहुत देर तक बैठ कर उठने के बाद या सोकर उठने के बाद विशेष रूप से महसूस होता है। थोड़ी देर चलने के बाद यह जकड़न कम होने लगती है । इनमें थोड़े दिनों बाट दर्द महसूस होने लगता है, जो चलने फिरने तथा ठंड लगने से बढ़ जाता है । दर्द जोड़ों के आस-पास होता है या नर्वरुट्स के द्वारा जोड़ से दूर तक फ़ैल जाता है, लेकिन आराम करने से ठीक हो जाता है । इस रोग में भिन्न-भिन्न संधियों में भिन्न-भिन्न लक्षण दिखाई देते हैं । जो इस प्रकार से हैं :-

1-  कूल्हे की संधियों में आर्थराइटिस –

                                                       कूल्हे की संधियों में जब यह रोग होता है, तो रोगी लंगड़ा कर चलने लगता है । यह अपने शरीर के भार को स्वस्थ कूल्हे की ओर रखता है ।  इसका दर्द रोगी  को आगे या पीछे की ओर प्रतीत होता है । इस प्रकार कूल्हे के जोड़ में, कमर की कशेरुकाओं में यह रोग हो, तो गृध्रसी (साइटिका) इसका एक लक्षण हो सकता है ।

2-  जांघों का ऑस्टियो आर्थराइटिस –

                                                            जब  जांघों के जोड़ों में यह रोग हो, तो इससे चलने-फिरने में दर्द बढ़ता है ।

3- पीठ का ऑस्टियो आर्थराइटिस –

                                                          जब यह रोग रीढ़ की हड्डी, विशेषकर गर्दन तथा कमर की कशेरुकाओं में होता है तो इसे स्पाण्डिलाइसिस कहते हैं ।

4- घुटने का ऑस्टियो आर्थराइटिस –

                                                      इस रोग में घुटने अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि शरीर का भार घुटने पर ही अधिक होता है । इस रोग में घुटने के आगे वाले भाग में भयंकर   दर्द  होता है । गंभीर रोग के मामले में कई बार घुटना बाहर की ओर भी मुड़ जाता है । तथा घुटने में से कट- कट की आवाज आने लगती है । अक्सर घुटनों में  असहनीय  दर्द रहता है ।।

 

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