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मैडम तुसाद संग्रहालय

मैडम तुसाद संग्रहालय – Madame Tussauds museum मैडम तुसाद कौन थी ?

मैडम तुसाद संग्रहालय (Madame Tussauds museum) में पिकासो मोजार्ट मौजूद हैं, तो मैरिलिन मुनरो, ऐश्वर्या ,अमिताभ, शहरूख और सचिन भी। इसमें हॉलीवुड के प्रख्यात निर्देशक एल्फ्रेड हिचकॉक हैं तो बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अली भी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री थैचर के साथ टोनी ब्लेयर और अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट व बिल क्लिंटन खड़े हैं। दुनियाभर के विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट हस्तियां नेल्सन मंडेला, गांधी, दलाई लामा, मोदी  यहां इकट्ठा हैं। यह नजारा है लंदन स्थित मैडम तुसाद संग्रहालय का। पिछले दो सौ वर्ष के अंतराल में लोकप्रिय रहे हॉलीवुड सितारे, बहुचर्चित राष्ट्रपति, दुनिया भर के प्रतिष्ठित अध्यात्म गुरु समेत विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट हस्तियां एक साथ मोम के पुतलों के रूप में खड़े दर्शकों में अपने असली होने का भ्रम बना रहे हैं। इन पुतलों की जीवंतता वर्षों से इन्हें विशिष्ट बनाए हुए है।

मैडम तुसाद का जीवन परिचय

मोम से रचे इस संसार का इतिहास उतना ही रोचक है जितने कि यहां खड़े पुतले। दुनिया की चर्चित हस्तियों को मोम के पुतलों में ढालने वाली मैरी ग्रोसहोल्ट्ज उर्फ मैडम तुसाद का जन्म 1761 में स्ट्रेसबर्ग में हुआ। उनके जन्म के  दो महीने बाद ही, सात वर्ष तक चले लंबे युद्ध के दौरान उनके सैनिक पिता की मृत्यु हो गई । मैरी को अपने पिता की सूरत याद न होना स्वाभविक था। परिस्थितिवश मां ने ही उसे पाला। वे डॉ. फिलिप कुर्टियस नाम के चिकित्सक के यहां हाउस-कीपर का काम संभालती थीं।

डॉ. कुर्टिसको मॉडलिंग मोम से संरचनात्मक आकार देने में निपुणता हासिल थी। यह एक ऐसा काम था जिसे आगे चलकर काफी सराहना भी मिली। मां के साथ मैरी का डॉ कुर्टियस के घर अक्सर आना-जाना रहता था। वह उन्हें डॉक्टर अंकल कहकर बुलाती व उनके इस काम को सुरुचि पूर्ण निहारा करती थी। वैक्स के काम के प्रति मैरी का उत्साह देखकर  डॉ. फिलिप ने उसका परिचय इस अनोखी दुनिया से कराया। उन्हें एहसास हुआ कि इस बच्ची में गजब की प्रतिभा है । बहुत छोटी उम्र से ही धीरे-धीरे उन्होंने उसे मोम की मूर्तिकला की तकनीकें सिखाईं। जल्दी ही वह उस दौर की जानी-मानी हस्तियों जैसे वॉल्टेयर और बेंजामिन फ्रैंकलिन के पुतले बनाने में माहिर हो गई।

मोम की इस कला के साथ अपना करिअर आगे  बढ़ाने के लिए 1765 में डॉ. फिलिप ने पेरिस की ओर रुख किया और वहां जाकर अपना काम शुरू किया। कुछ ही समय बाद मैरी और उसकी मां भी उनके पास पेरिस आ गए। 1970 में जब डॉ. फिलिप ने अपने बनाए मोम के पुतलों की पहली प्रदर्शनी लगाई तो उसे देखने के लिए उम्मीद से कहीं ज्यादा लोगों की भीड़ जमा हुई और सभी ने उसे भरपूर सराहा। 1778 में मैरी ने पहला मोम का पुतला बनाया। धीरे- धीरे डॉ. फिलिप के साथ जुड़ी मैरी के काम की शोहरत भी दूर-दूर तक पहुंच रही थी। जल्दी ही फ्रांस के राजा लुई xvi की बहन एलिजाबेथ ने मैरी को अपने महल में रहकर अपनी कला की शिक्षा आगे बढ़ाने के लिए आमंत्रित किया। नौ वर्ष के इस राजसी प्रवास के दौरान मैरी ने लुई xvI के परिवार के सभी सदस्यों के पुतले बनाए। इसी दौरान मैरी की मुलाकात नेपोलियन समेत फ्रांस के बहुत से चर्चित लोगों से भी हुई।

मैडम तुसाद का संघर्ष का दौर

मैरी महल से लौटी तब फ्रांस में क्रांति का दौर था। उसे क्रांति में मरे लोगों के पुतले बनाने को कहा गया। इनमें फ्रांस के राजा लुई XVI व उनकी पत्नी भी शामिल थे। खुद मैरी भी क्रांति से अछूती नहीं रह पाई थीं । 1794 में उसे भी जेल जाना पड़ा था । यहां उसे मिलने वाली यातानाओं का आलम यह था कि वह करीब-करीब फांसी के तख्ते तक पहुंच चुकी थी। इस तैयारी में उसके बाल तक काट दिए गए। भाग्य वश वह यहां से बच निकली। जेल से वापस आने के बाद जो काम उसे मिला वह वीभत्स था। डेथ मास्क बनाने के लिए उसे क्रांति में मारे गए लोगों के मृत शरीरों के ढेर में, धड़ से अलग हुए वे सिर खोजने थे जिन्हें वह पहचानती थी। इस दौरान उसने उस समय के मुख्य क्रांतिकारी रोबेसपेयरका डेथ मास्क बनाया, जो आज भी मैडम तुसाद संग्रहालय में सिथित है। फ्रांस की क्रांति खत्म होने के कगार पर थी जब 1794 में अपना सारा वैक्स वर्क का संग्रह मैरी के लिए छोड़, डॉ. फिलिप दुनिया से चले गए। उनकी मृत्यु के बाद मैरी मोम के इस काम को आगे बढ़ाती रही। उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन दिनों मोम के बने पुतलों के प्रति लोगों की दीवानगी ठीक वैसी थी जैसी कि आज सिनेमा और टीवी के प्रति है। लोग चर्चित लोगों के नाम तो जानते थे, लेकिन वे दिखते कैसे हैं इसे लेकर उनमें हमेशा जिज्ञासा बनी रहती थी। ऐसे समय वे पैसा खर्च कर इन लोगों के मोम के पुतलों को देखने के लिए उतावले रहते थे।

मैडम तुसाद संग्रहालय

 

मैरी से मैडम तुसाद बनने का सफर

1795 में मैरी ने फ्रेंच इंजीनियर फ्रेंकोइस तुसाद से शादी की और लोग उन्हें मैडम तुसाद के नाम से जानने लगे। वे एक बेटी और दो बेटों की मां भी बनीं हालांकि उन्होंने बेटी को खो दिया। शादी, फिर बच्चे और परिवार के बीच उनका मोम के पुतले बनाने का काम जारी रहा। मुश्किलों का दौर अभी भी बरकरार था। फ्रांस की क्रांति के बाद चल रही आर्थिक मंदी के चलते मैडम तुसाद की प्रदर्शनी भी संघर्ष रत थी। ऐसे में उन्होंने अपना शो लंदन ले जाने का निश्चय किया। 1802 में अपने पति और छोटे बेटे को छोड़कर, बड़े बेटे के साथ वे लंदन चली आईं। यहां आकर उनके शो को सफलता मिलने लगी।

अगले 33 वर्ष उन्होंने अपने शो समेत ब्रिटिश आइल्स की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने अपने इस चलते-फिरते शो में ब्रिटिश किरदार जैसे राजा जॉर्ज IV के पुतलों के साथ नेपोलियन का डेथ मास्क भी प्रदर्शित किया। 1822 में मैडम तुसाद शो को दुर्घटना का सामना करना पड़ा। तमाम पुतलों को लेकर आयरलैंड पार कर रहे जहाज को समुद्री तूफान से जूझना पड़ा। दुर्घटना में बहुत से पुतले क्षतिग्रस्त हुए हालांकि भाग्यवश कुछ पुतले बच गए। जगह-जगह घूमने के बाद 1835 में मैडम तुसाद 74 साल की हुईं तो उन्होंने अपने शो को एक जगह स्थापित करना तय किया। उन्होंने बेकर स्ट्रीट, लंदन में जो कि वर्तमान स्थान के करीब है, अपनी प्रदर्शनी लगाई और स्थायी तौर पर वहीं बस गईं। सन्न  1884 में मैडम तुसाद संग्रहालय का स्थान परिवर्तन कर दिया गया  और वह मेरिलबोन रोड पर खोला गया, जहाँ वह आज भी सिथित है। मैडम तुसाद ने सन 1842 में अपना खुद का पोट्रेट बनाया जो आज लन्दन के मैडम तुसाद संग्रहालय के मुख्य द्वार पर मेहमानों का स्वागत करता है। मैडम तुसाद का निधन सन्न 1850 में हुआ था। अपनी 89 वर्ष की लम्बी आयु में मेडम तुसाड ने अनेक चुनोतीयों का डटकर मुकाबला किया। उन्होने अपने जीवन में वो स्थान हासिल किया जो बहुत कम लोग कर पाते हैं।

मैडम तुसाद संग्रहालय

मेडम तुसाद संग्रहालय

लंदन सिथित मेडम तुसाद संग्रहालय केवल ऐतिहासिक पुतलों के लिए ही विख्यात नहीं है, बल्कि यहां पर रात्रि में होने वाली कुछ खास तरह की पार्टियां भी आयोजित की जाती हैं। इनमें मेहमान कॉकटेल पार्टी, फिल्म, खेल का आनंद तो उठाते ही हैं साथ ही गार्डन पार्टी के अंदर आने वाली प्रसिद्ध हस्तियों को भी देख सकते हैं और उनके साथ अपनी तस्वीरें भी खिंचवा सकते हैं। यहां आए पर्यटक के लिए गार्डन पार्टी में बिताई शाम उसके जीवन की यादगार स्मृति बन जाती है। लंदन प्लेनेटेरियम में किसी भी नए उत्पाद को जारी करने और उसके प्रदर्शन की भी व्यवस्था है, जिसके लिए कुछ निर्धारित शुल्क देना पड़ता है। हर साल दो मिलियन से अधिक लोग इस संग्रहालय को देखते हैं। मोम से बने पुतले ऐतिहासिक रूप से महत्व तो रखते ही हैं आज हॉलीवुड के जाने माने अभिनेता और अभिनेत्रियों के पुतले भी यहां पर लगाए जा रहे हैं।

मैडम तुसाद संग्रहालय में समय के साथ आए दिन बदलाव होते रहते हैं, जिसका असर यहां बढ़ती हुई पर्यटकों की भीड़ में नजर आता है। आज इस संग्रहालय का मुख्य आकर्षण स्पिरिट ऑफ लंदन, टाइम ट्रैवल राइड, स्पेनिंग द हिस्ट्री ऑफ ब्रिटेन ,कैपिटल सिटी फ्रॉम एलिजाबेथ टाइम्स टू द प्रजेंट डे और न्यू चैम्बर्स ऑफ हॉरर हैं। 85 हजार स्कवायर फीट क्षेत्र में फैला यह वैक्स संग्रहालय, अपने भीतर कई रोचक विषय समेटे है। इनमें कला के बेजोड़ नमूने, शोध, मॉडर्न आर्ट पर आधारित सामग्री से लेकर ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह भी मौजूद है। संग्रहालय सामान्य रूप से जनता के लिए खुला रहता है और क्यूरेटर की देख-रेख में ही संचालित होता है। इसमें प्रवेश के लिए शुल्क भी लगता है। कुछ खास दिन छोड़कर,संग्रहालय 24 घंटे खुला रहता है। संग्रहालय में पुतलों की देख-रेख के लिए दो टीमों का गठन किया गया है। यह टीम सवेरे साढ़े सात बजे यहां का निरीक्षण करती है। एक टीम पुतलों पर पड़ी धूल मिट्टी को देखती है और दूसरी क्षतिग्रस्त बाल व अंगुलियों की मरम्मत करती है।

रहस्य भरा महल चेम्बर्स ऑफ हॉरर

संग्रहालय स्थित चेंबर ऑफ हॉरर, शुरुआती दिनों में द सेपरेट रूम कहलाता था। ऐसा इसलिए कि कमजोर दिल की महिलाओं के लिए इसे बहुत डरावना माना जाता था। इसे देखने के लिए लोगों को अतिरिक्त पैसे देने होते थे, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाता था। यह प्रावधान अब भी लागू है। आज भी इस कमरे में छोटे बच्चों का प्रवेश वर्जित है। 1846 में ब्रिटेन की पंच मैग्जीन ने इसके बारे में विस्तार पूर्वक छापा था , जिसके बाद इसका नाम बदलकर चेम्बर्स ऑफ हॉरर कर दिया गया।

दरअसल चेंबर ऑफ हॉरर की नींव 1793 में मैडम तुसाद के गुरु डॉ. कर्टियस ने कैवर्न ऑफ ग्रेट थीव्स के रूप में डाली थी। वर्तमान प्रारूप में, इस कमरे की गैलरी में प्रवेश करने के साथ ही पिछले पांच दशक के कुख्यात अपराधियों के भयावह पुतले  नजर आते हैं कांप सकती है। यहां दिखाए गए दृश्य 15वीं शताब्दी के इतिहास से जुड़े अपराधी और उसे दिए जाने वाले दंड की प्रक्रिया से जुड़े हैं। इस सदी में पूर्वी यूरोप के वैलाशिया पर राज करने वाला राजा लेद अपराधियों को तड़पा-तड़पा कर दंड देने का आदी था। उसका दंड देने का तरीका इतना खतरनाक था कि लोग उसे ड्रेकुला कहते थे। वह छह साल में 40 हजार से 1,00,000 तक बच्चे, आदमी और महिलाओं को मार चुका था।

ड्रेकुला का दंड देने का पसंदीदा तरीका सरिए चुभो-चुभो कर मारना था। उसके आदमी एक चक्र पर अपराधियों को टांग देते थे और डंडों से मार-मारकर चक्र को धीरे-धीरे चलाते थे। 18 वीं शताब्दी के यूरोप में जगह-जगह पर चक्र के ऊपर एक पिंजरा लटका दिया जाता था, जिसके अंदर अपराधियों को रखा जाता, उन्हें वहां तब तक लटकाया जाता था जब तक कि भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर वे दम न तोड़ दें। यह तरीका लोगों को नसीहत देने के लिए इस्तेमाल होता था। मैडम तुसाद ने इन्हीं अत्याचारों को चेम्बर ऑफ हॉरर में अपने पुतलों के माध्यम से दिखाया है। इन्हें देखकर बरबस ही उस दौर को महसूस किया जा सकता है।

इस गैलरी को लेकर लोगों में इतना खौफ रहा है कि इस पर शर्त लगाई जाती रही है कि कौन उसमें एक रात गुजार सकता है। 1850 में चार्ल्स डिकन्स ने एक झूठी अफवाह चलाई जिसमें कहा गया कि जो व्यक्ति एक रात इस चेम्बर में बिताएगा उसे नकद इनाम दिया जाएगा। दरअसल अब तक सिर्फ दो लोगों ने यहां रात बिताई है। 1996 में पत्रकार फ्रैंक बैरेट पहला आम आदमी था जिसने पूरी रात उस कमरे में बिताई और बाद में यह कबूल किया कि वह बुरी तरह डर गया था। बाद में बीबीसी के एक और पत्रकार ने यहां रात बिताने की कोशिश की, लेकिन उसे रात 11 बजे ही खराब हालत में पाया गया।

मैडम तुसाद संग्रहालय

मोम के पुतले कैसे बनाये जाते हैं ?

मेडम तुसाद संग्राहलय में मौजूद इन पुतलों को बनाने के लिए साधारण  मोमबत्तियां बनाने के लिए काम में लिया जाने वाला मोम इस्तेमाल किया जाता है। हाथ व सिर बनाने के लिए मोम में प्लास्टिक के साथ एक खाश तरह की मिट्टी मिलाकर मिश्रण बनाया जाता है। जिससे कि अंगुलियों को सहारा मिल सके और वे टूटे नहीं। पुतलों को बनाने के लिए मोम को पिघलाया जाता है। पुतलों को बनाने के लिए मोम को पिघलाया जाता है। पुतला  बनाने के लिए शुरू में शरीर चमड़े और लकड़ी के फ्रेम पर बनाए जाते थे और हाथ-पैर लकड़ी के बने होते थे हालांकि आजकल इनमें फाइबर गिलास का इस्तेमाल किया जाता है।

इन पुतलों को मिट्टी के साथ बनाने में लगभग पचास गैलन पानी खर्च होता है। हर पुतला 33 पौंड का होता है। सिर बनाने में 4.5 किलो और हाथों के लिए 1.4 किलो मोम का प्रयोग किया जाता है। उन दिनों पूरा पुतला बनाने में लगभग 1,067 किलो मोम लगती थी, जो कि सोलह हजार मोमबत्तियों के बराबर होती थी। समय बीतने के साथ पुतला बनाने की पारंपरिक तकनीक में भी बदलाव आया है। आज बनने वाले पुतलों में विशेषज्ञ इंजीनियरों के साथ आधुनिक तकनीकी की मदद भी ली जाती है। नतीजा है पुतलों में स्पेशल इफेक्ट्स का भी शामिल होना। मोम के सिकुड़ने की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए पुतले को उसके सही आकार से दो प्रतिशत बड़ा बनाया जाता है।

संग्रहालय में खिड़कियां व रोशनदान नहीं हैं। यह सावधानी इसलिए जिससे कि मोम के ये पुतले प्रकाश के कारण पिघलें नहीं। एक पुतले को बनाने में लगभग छह महीने का समय लगता है। इनकी कीमत तीस हजार पौंड तक होती है। पुतला तैयार होने के बाद बालों को एक साथ न लगाकर एक-एक करके लगाया जाता है जिसमें पांच सप्ताह तक का समय लग जाता है। हर पुतले के बाल समय-समय पर धोए जाते हैं। पुतले के कपड़े व स्टाइल भी बदले जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अमूमन लोग अपने हेयर ड्रेसर के पास जाकर बाल कटवाते हैं और फैशन के अनुरूप कपड़े बदलते हैं। वर्षों से संग्रहालय में स्थित इन पुतलों की नियमित देख-रेख का ही नतीजा है कि इस म्यूजियम में पुतलों की  जीवंतता दुनियाभर के पर्यटकों को लगातार आकर्षित करती है। सन्न 1800 में बने पुराने पुतलों में से एक नेपोलियन के चेहरे पर अब भी उतनी ही चमक दिखाई देती है।

 

मेडम के बाद  तुसार म्यूजियम

पुतले तराशने का काम मैडम तुसाद के जीवन का अभिन्न अंग रहा। वे आजीवन इस के जरिए लोगों का मनोरंजन करती रहीं। अपनी मृत्यु से करीब आठ वर्ष पहले उन्होंने अपना पुतला बना कर संग्रहालय को प्रदान किया था । 16 अप्रैल, 1850 को 89 वर्ष की अवस्था में लंदन में ही उनका देहांत हो गया । उनके मरने के बाद उनके बेटे और पोते उनके इस काम को आगे बढ़ाते आए । 1884 में उन्होंने संग्रहालय को उसकी वर्तमान जगह पर स्थापित करने का फैसला लिया । तब से आज तक यह प्रदर्शनी यहीं है।

कला के इस अद्वितीय संग्रहालय को जैसे बार-बार किसी की नजर लग जाती है । 1925 एक बार फिर प्रदर्शनी को संकट का सामना करना पड़ा। इस बार विपदा आई संग्रहालय में शॉर्ट सर्किट से पैदा हुई आग से, इस दुर्घटना में करीब चार महत्वपूर्ण पुतले नष्ट हो गए थे, भाग्यवश कुछ सांचे बच गए जिनकी मदद से आगे चलकर नए पुतले बनाए जा सके। 1940 में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा पहली ही रात के हवाई आक्रमण ने 352 पुतलों के सर के सांचे क्षतिग्रस्त कर दिए गए । यह ऐसा नुकसान था जिसकी भरपाई असंभव थी। दिलचस्प है इस भारी क्षति के बीच उस समय हिटलर के सर को कुछ नहीं हुआ ।

समय बढ़ता रहा और इतिहास बनता गया। 1958 में पुराने बेकर स्ट्रीट बाजार प्लेनेटेरियम बनाया गया। आज संग्रहालय में रखा लुई XVI का पुतला सबसे पुराना है। हालांकि बीसवीं शताब्दी में इसमें परिवर्तन किया गया। मैडम तुसाद आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी कला आज भी इन मोम के सजीव दिखने वाले पुतलों में उन्हें जीवित रखे हुए हैं। लंदन के अलावा मैडम तुसाद संग्रहालय की शाखाएं आज न्यूयॉर्क, लॉस वेगास, हांगकांग, एमस्टरडेम, शंघाई और दिल्ली सहित कई मुल्कों  में भी मौजूद हैं।

मेडम तुसाद संग्रहालय में गिलोटीन मशीन

आज भी तुसाद संग्रहालय में डॉ. गिलोटीन की बनाई गिलोटीन मशीन को देखा जा सकता है, जिससे कभी लोगों के सिर काट दिए जाते थे। लुई XVI की पत्नी मैरी एन्टोनिटी का सिर भी इसी मशीन से काटा गया था। एक बार एक पर्यटक जब इस संग्रहालय में आया तो गिलोटीन मशीन को देखकर उत्सुकता वश उसने मशीन के अंदर अपनी गर्दन देदी । इसके बाद वह चिल्लाता रहा और लोगों से मदद की मुहर करता रहा। लोगों ने सोचा वह संग्रहालय के शो का एक हिस्सा है और किसी ने उसकी मदद नहीं की। बहुत समय तक वह इसी हाल में पड़ा रहा ।

मेडम तुसाद संग्रहालय में रखे हिटलर के पुतले की अंगुली बढ़ी

अप्रैल 1996 में तुसाद संग्रहालय में एक जबर्दस्त वाकया हुआ। एक कलाकार ने संग्रहालय पर दावा किया कि वहां रखे हिटलर के पुतले की अंगुली एक इंच से अधिक अपने आप बढ़ गई है। यह सुनकर लोग आश्चर्य चकित थे। सभी का मानना था कि पुतला हर समय कांच के पीछे रहता है ऐसे में उससे छेड़छाड़ करना असंभव है। इसके बाद यह देखने के लिए कि अंगुली बढ़ने के पीछे क्या रहस्य है, हिटलर के पुतले की एक इंच अंगुली और काट दी गई और अगले दो महीने उस पर नजर रखी गई। प्रासंगिक है कि पर्यटकों के क्रोध और गालियों से बचाने के लिए मैडम तुसाद संग्रहालय में रखे हिटलर के पुतले को कभी-कभी चेम्बर ऑफ हॉरर स्थानांतरित करना पड़ता है।

मेडम तुसाद संग्रहालय के भविष्य की योजना

संग्रहालय में किस नई हस्ती का पुतला लगाया जाएगा या पहले वाले किसी नए पुतले को ही वापस से बनाया जाएगा, इन सभी बातों पर विचार करने के लिए हर महीने एक बैठक का आयोजन किया जाता है। बैठक में आपसी सहमति से निर्णय लिया जाता है कि किस प्रसिद्ध व्यक्ति का पुतला बनने योग्य है और उसे क्यों लगाया जाए। मैडम तुसाद के समय ये पुतले उन्हीं लोगों के लगाए जाते थे जो वहां के जाने-माने कुलीन और संभ्रात वर्ग के हों। मसलन यदि मैडम तुसाद को किसी खिलाड़ी का पुतला बनाना होता था तो वह ऐसा खिलाड़ी चुनती थीं जिसे गोल्ड मैडल मिला हो, जबकि आज ऐसा कोई मापदंड नहीं है। हर वर्ष 12 से 20 के बीच नए पुतले बनाए जाते हैं। वर्तमान में चयन की प्रक्रिया में बदलाव आ गया है। अब ऑनलाइन चुनाव भी संभव हो गया है। हाल में संग्रहालय के अधिकारियों ने एक ऑनलाइन ओपिनियन पोल कराया जिसमें लोगों की राय थी कि अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या, शाहरुख, करण जौहर के बाद कई अन्य लोगों के पुतले लगाए  जाएँ जिनके लगाए जाने की तैयारी चल रही है।

मेडम तुसाद संग्रहालय दिल्ली

लन्दन के मैडम तुसाद म्यूजियम को देखने का सपना  सन्न 2017 में दिल्ली में साकार हो गया ।  कनॉट प्लेस के रीगल सिनेमा बिल्डिंग में मैडम तुसाद म्यूजियम खोला गया माह जून 2017   में शुरू हुए इस म्यूजियम में पहले 50 से अधिक विभिन्न क्षेत्रों की शख्सियतों के पुतले लगाये गए हैं । जिसमें अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, सचिन तेंदुलकर के मोम के पुतलों के आलावा देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का पुतला भी शामिल है । इस दौरान दर्शक न केवल इन पुतलों की न केवल फ़ोटो खींच सकते हैं बल्कि इन्हे छू भी सकते हैं । इसके टिकट शुल्क भी मनोरंजन की अन्य गतिविधियों के लगभग ना के बराबर ही हैं । कोरोना काल में दिल्ली सिथित मेडम तुसार संग्रालय बंद कर दिया गया है ।।

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