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Cesarean delivery का  काला कारोबार

Cesarean delivery का काला कारोबार – सिजेरियन डिलीवरी चिकित्सा विज्ञान का सिंड्रोम

क कहावत प्रचलित हो गयी है, लोग आम कहते हैं कि सिजेरियन से प्रसव की दर उतनी ही अधिक होगी जितने अधिक स्त्री रोग विशेषज्ञ होंगे। इसे चिकित्सा विज्ञान में एक सिंड्रोम की संज्ञा दी गई है। इस लेख में हम जानेंगे कि Cesarean delivery का  काला कारोबार कैसा और इसका जाल कैसे फैला हुआ  है। 

सिजेरियन डिलीवरी का काला कारोबार

एक सर्वेक्षण के अनुसार स्वाभाविक प्रसव और सिजेरियन का अनुपात 1970 में जहां 20:1 था वह 80 के दशक में 10:1 हो गया। 90 के दशक में यह अनुपात उत्तरोत्तर तेजी से घटकर अब 3:1 हो गया अर्थात् हर 4 प्रसव में से एक सिजेरियन द्वारा होता है । सिजेरियन ऑपरेशन उन परिस्थितियों में किया जाता है जहां या तो स्वाभाविक प्रसव संभव ही न हो या स्वाभाविक प्रसव से मां या बच्चे के जीवन को खतरा हो । अर्थात् सिजेरियन की अनिवार्यता मां या बच्चे की जीवन रक्षा के लिए की जाती है। तो क्या पहले जब सिजेरियन कम किए जाते थे तब हर 3 प्रसव में से एक में मां या बच्चे की मौत हो जाती थी? क्या प्रसव से जुड़ी मातृ मृत्यु दर व नवजात शिशु मृत्यु दर में उसी उत्तरोत्तर घटते अनुपात में कमी आई है जिस अनुपात से सिजेरियन बढ़े हैं?  इस प्रकार के कई यक्ष प्र्शन्न हैं जिनका उत्तर हम ढूंढ़ने कि कोशिश करेंगे।

यह कहा जाता है कि सिजेरियन की बढ़ती दर का कारण है आज की महिलाओं में दर्द को सहन करने की घटती क्षमता है । दर्द से शीघ्र निजात पाने के लिए महिलाएं ही सिजेरियन चाहती हैं और डॉक्टर करते हैं। अर्थात् मांग पर सिजेरियन शल्य क्रिया के रूप में उभरी है। इसलिए नहीं कि यह चिकित्सकीय आवश्यकता है। मांग पर शल्य क्रिया ही प्रजनन स्वास्थ्य में अभिशाप बनी है। गर्भ संबंधित महिला मृत्यु में प्रसव जनित मृत्यु की जगह गर्भपात जनित ने ले ली है। इसे आधुनिक चिकित्सा की उपलब्धि प्रसव जनित मृत्यु दर में कमी के आधार पर बताया जाता है।

जनसंख्या प्रबंधन की आड़ में गर्भपात को प्रजनन स्वास्थ्य प्रबंधन की प्रमुख विधा का रूप दिया गया है। चालीस लाख गर्भपात हर साल देश में हो रहे हैं, अधिकांश विधि विपरीत एवं असुरक्षित स्त्री रोग विशेषज्ञों ने जैसे हर स्त्री रोग को बड़ी चतुराई के साथ गर्भाशय निकालने की मांग में परिवर्तित कर दिया है। आज जितने गर्भाशय निकाले जाते हैं, पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। कहते हैं महिला चिकित्सक आज कल गर्भाशयों की खेती करती हैं। एक निजी अस्पताल के प्रजनन स्वास्थ्य विभाग में प्रतिवर्ष जहां 1500 प्रसव होते हैं वहां 400 से अधिक गर्भाशय निकाले जाते हैं। गर्भाशय निकालने की संख्या ही नहीं बढ़ी है वरन् गर्भाशय निकालने की औसत उम्र भी उत्तरोत्तर घट रही है।

मातृत्व सुख

मैं आ रहा हूं मां, इन नौ महीनों का अनुभव हर स्त्री के लिए अलग होता है और एक जैसा भी बच्चा अपनी मां से बात करता है और मां भी बच्चे को जवाब देती है। जीवन में मातृत्व सुख एक स्त्री के लिए ईश्वरीय वरदान है। मातृत्व सुख ही स्त्री को संपूर्ण स्त्री का दर्जा देता है। इस सुख को हासिल कर वह अपने आपको सबसे भाग्यशाली मानती है। इस सुख के लिए स्त्री अपनी आंखों में न जाने कितने ही सपने बुनती है। नौ महीने तक बच्चे को अपने भीतर रखने की कल्पना से वह रोमांचित हो उठती है। इन नौ महीनों में मां और बच्चे के बीच गहरा सामंजस्य होता है । मां उसकी आवाज़ और जरूरतों को समझ लेती है, उसकी अठखेलियों को महसूस करती है। इन नौ महीनों का अनुभव हर स्त्री के लिए अलग होता है और एक जैसा भी। बच्चा अपनी मां से बात करता है और मां भी बच्चे का जवाब देती है। दोनों के बीच चलने वाले इस संवाद की भाषा या तो मां समझती है या फिर उसके भीतर पल रहा उसी का अंश ! इन अद्भुत नौ महीनों का अनुभव एक मां की कलम से इस प्रकार से ब्यान किया गया है :-

“मैं एक मां जब भी उन दिनों को याद करती हूं, जब मेरा अंश जो आज मेरे सामने तुतलाती जबान को संभालता हुआ अपनी बात को रखता है। उसके पहले नौ महीने कितने अलग थे। उसकी भाषा सिर्फ मैं समझती थी, भला प्यार को भी किसी ज़बान की जरूरत होती है।”                                                               Cesarean delivery का  काला कारोबार

प्रसव का अनूठा सफर

अपने भीतर पल रही एक नई ज़िंदगी का ख्याल ही स्त्री के जीवन में नई उमंग और आशाओं का संचार करने लगता है। वह अपने शरीर में होने वाले बदलावों को महसूस करती है और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए अच्छे विचारों और अच्छे संस्कारों की नींव रखने में अपना ज्यादातर वक्त गुजारती है। जैसे-जैसे शरीर में बदलाव होते जाते हैं वैसे-वैसे ही मां और बच्चे में गहरा और मजबूत रिश्ता कायम होता जाता है। और यूं ही बीतता है- उसका दूसरा और तीसरा महीना। अब बारी आती है उन नन्हें-नन्हें पैरों की चुलबुलाहट को महसूस करने की। चौथे महीने वह अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर गौर करती है। उसे बच्चे की धड़कन का एहसास एक संगीत की तरह लगने लगता है। मानो किसी ने कोई मीठी धुन छेड़ दी हो। धड़कन द्वारा वह अपनी मां से कहता है कि मैं आ गया / गई हूं। उसकी अठखेलियां जब मां को गुदगुदाती हैं तो लगता है कि तन में एक नई लहर दौड़ रही है।

हर दिन एक नया बदलाव, एक नई चहल-पहल मातृत्व सुख में बढ़ोतरी करते जाते हैं। मां अपनी इस अवस्था के एक एक पल का भरपूर आनंद उठाती है। पांचवें महीने में गर्भस्थ शिशु धीरे-धीरे हिलना-डुलना शुरू कर देता है। उसकी पूरी दुनिया  मां की कोख होती है। उस दौरान मां अच्छा संगीत सुनती है, अच्छी किताबें-कहानियां पढ़ती है और अच्छे-अच्छे विचार अपने दिमाग में लाती है ताकि बच्चे में भी उन सारे गुणों का विकास हो । छठा महीना मां के लिए उसकी अठखेलियों का आनंद लेने वाला महीना होता है। जैसा कि पांचवें महीने से शिशु का हिलना-डुलना शुरू हो जाता है। वह अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पैर मारकर मां के शरीर में एक रोमांचक अनुभूति कराता है जैसे कि कुछ सीखने की कोशिश कर रहा हो । वह हाथ-पैर चलाता है जैसे कि मां को अपने होने का एहसास करा रहा हो।                                                                             Cesarean delivery का  काला कारोबार

अब बारी आती है सातवें महीने की। बच्चा अपनी दिनचर्या मुताबिक अपने आपको सक्रिय रखता है। इस वक्त मां को थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। जैसे-जैसे दिन-ब-दिन गुजरते हैं वैसे-वैसे बच्चे का आकार भी बढ़ता जाता है। एक औरत के लिए मातृत्व सुख अद्भुत व अलौकिक होता है। बच्चे का स्पर्श अब साफ तौर पर दिखाई देता है- आठवें और नौवें महीने में। यह समय गर्भवती स्त्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। इन दो महीनों दौरान बच्चा अपनी हरकतों में ज्यादा सक्रिय रहता । वह बाहर आने का रास्ता बनाने में जाता है। वह अपनी हरकतों द्वारा मां को जताता है कि अब वक्त हो चुका है- दुनिया में का। मां इस संकेत को समझ कर उत्साहित रहती है। वह बेसब्री से उस दिन का इंतजार लगती है जब बच्चा उसकी गोद में आएगा। वह मन ही मन उसे रोते-हंसते सुनने लगती । अंततः वह जीवन और मृत्यु के संघर्ष से गुजरकर अपने भीतर पल रहे उस नवजीवन को देती है। वह क्षण अद्वितीय होता है जब मां प्रसव के बाद पहली बार अपने बच्चे का देखती है। उस पल वह दुनिया की सबसे ज्यादा खुश स्त्री होती है ।।

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