पैसे बचाने के आसान तरीके-Easy ways to save money.
महंगाई के इस दौर में हम जितना भी कमा लें वो भी कम लगता है , चाहे जिसकी जितनी कमाई हो महीने के अंत तक सब की जेब खाली ही होती है। ज्यादा कमाने से अच्छा है, ज्यादा बचाना । हम अगर सब मोर्चों पर थोड़ा-थोड़ा बचाएंगे तभी आगे बढ़ पाएंगे। चमकती दुकान का महंगा सामान आपको फंसाने की कोशिश है। सिर्फ खर्च में कटौती करने से काम नहीं चलेगा ज्यादा मेहनत करके आय को बढ़ाने की कोशिश करें और अतिरिक्त काम खोजने का प्रयास करें। अगर ओवर टाइम की सुविधा है तो उसके लिए भी प्रयत्न करें। बाज़ार नई-नई चीजों से अटा पड़ा है, उसे ग्राहक का इंतजार है। महंगाई ने आम आदमी की जेब में सेंध लगाने के लिए दांव लगा रखा है। समझदारी आपको दिखानी है, दुश्मन को कमजोर मत समझिए। रणनीति बनाइए और उसे अमल में लाईये । बाजी आपकी होगी। मॉल, सेल, छूट और डिस्काउंट सब बहाने हैं। बंद बोतलों में पानी बिक रहा है और ठंडी हवा में सब्जियां। सबकुछ बेचा जा रहा है। अमेरिका हल्ला कर रहा है कि खाने के लिए अनाज नहीं है और एक रेस्टोरेंट जोकर के हाथों हैमबर्गर-पिज्जा घर के दरवाजे पर मुफ्त में पहुंचा रहा है। आईये आज हम इस लेख के माध्यम से जानते हैं, पैसे बचाने के आसान तरीके -Easy ways to save money.
तकनीक के तमाशे से बचें –
हम जब भी कोई तकनीक से जुड़ी चीज खरीदने के लिए बाज़ार का रुख करते हैं तो हमारा प्रयास होता है कि हम सबसे बेहतर और नवीन तकनीक वाली चीज के लिए ही रूपये ख़र्च करें चाहे वो जायदा ही क्यों न हों । मोबाइल खरीदते वक्त खासकर हम इस चीज का ध्यान रखते हैं कि उसमें सभी नई तकनीकी सुविधाएं विद्यमान हो । कोई भी तकनीक खरीदते वक्त हमेशा ध्यान रखिए कि समय के साथ उसका अवमूल्यन या दाम गिरना तय है। याद कीजीये उव दिनों को जब कैमरा युक्त मोबाइल आये थे , उस वक्त कोई भी मोबाईल जिसमे कैमरा होता था 15 हजार से कम में नहीं आता था लेकिन आज कल मात्र 1000 रूपये में भी कैमरे वाला मोबाइल भी मिलने लगा है। अगर आप तकनीक खरीदना चाहते हैं तो सबसे बेहतर है इंतजार करना। इंतजार कीजिए जैसे ही थोड़ा समय गुजरेगा वह पहले से सस्ती होगी और आप कम पैसे खर्च करके उसका लुत्फ उठा सकेंगे। इसके अलावा इस तरह की चीजों में ज्यादा पैसा लगाना कभी फायदे का सौदा नहीं होता है। अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखें न कि दिखावे को। हमें यह याद रखना होगा कि तकनीक सिर्फ सुविधा के लिए जुटाई जाती है न कि फैशन के लिए। यह बाज़ार का खेल है और बाजार में हर चीज बिक रही है।
मॉल के मायाजाल से बचें –
एसी निल्सन द्वारा किए गए एक सर्वे ने आश्चर्यजनक तथ्य का खुलासा किया है कि 32 प्रतिशत भारतीय, मॉल में शॉपिंग सिर्फ मनोरंजन के लिए करते हैं, न कि आवश्यकता के लिए। इस सर्वे के अनुसार दुनिया के सबसे ज्यादा शॉपिंग के लती एशिया में ही पाए जाते हैं। एसी निल्सन के रिसर्च डायरेक्टर सारंग पांचाल कहते हैं कि कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता, भारतीय उपभोक्ता ने अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए कमर कस ली है। इस वजह से उनके कदम खुदब-खुद इन आधुनिक मॉलों की ओर बढ़ रहे हैं।
अब यह मॉल छोटे शहरों में भी बढ़ते जा रहे हैं। भारतीय उपभोक्ता को मॉल संस्कृति लुभा रही है। रिटेल रिपोर्ट के भविष्य में भारत में मॉल्स की संख्या में अत्यधिक बढ़ोतरी होगी। मॉल संस्कृति सबसे ज्यादा नए मध्यम वर्ग को प्रभावित कर रही है। उपभोक्ता यहां खरीदारी करते वक्त यह भूल जाता है कि वह सामान के दाम के साथ- साथ उस ठंडी हवा के दाम भी चुका रहा है। जो इन मॉल्स को वातानुकूलित बनाए जाने में इस्तेमाल हो रही हैं। उसके बिल में उन चमकदार लाइटों के बिजली के बिल और उन चमचमाते चेहरों के दाम भी जुड़े हैं, जो हाथ बाये सहायता के लिए खड़े रहते हैं। किराना और ठेले वाले इन चीजों के दाम कतई नहीं वसूलते, उपभोक्ता इस तथ्य को बिसरा चुका है। इसलिए माल में घूमने जाते वक्त बिना जरूरत खरीददारी करने से बचें ।
सेल के खेल को समझें –
सेल और डिस्काउंट ऑफर कभी भी उपभोक्ताओं के लिए नहीं लाया जाता। यह बाज़ार है, यहां बिना फायदे के कोई चीज नहीं बेची जाती । इन छूटों के कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं। जैसे कंपनियां उत्पाद को विकसित करना चाहती है या अपने सालों से बचे हुए माल को निकाल देना चाहती है या फिर खासकर भारत के संबंध में वह ऐसा उत्पाद भी हो सकता है जो यूरोपीय बाजार में नकार दिया गया है। जनरल मोटर्स के एक डिस्काउंट ऑफर से उसकी बाज़ार भागीदारी एक महीने में 25.8 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई थी । इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि छूट से वास्तविक तौर पर किसे लाभ मिलने वाला है।
इसी तरह का एक और उदाहरण बिग बाज़ार का सबसे सस्ते तीन दिन ऑफर है। इस ऑफर ने तीन दिन में उनकी ब्रिकी में लगभग चार प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी। कोई भी कंपनी ज्यादा लंबे समय तक उत्पाद में अपना पैसा फंसाए नहीं रखती। उसका मुख्य उद्देश्य उससे पैसा कमाने का होता है और वह थोडे कम मुनाफे के साथ उसे आपको सौंप देती है ताकि बाज़ार में उसके उत्पाद की मांग बनी रहे । सेल और डिस्काउंट ऑफर एक तरह के छदम मांग को पैदा कर देते हैं। ये ऑफर उपभोक्ता के लालच की नींव पर खड़े होते हैं। यह पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप उससे कितना प्रभावित होते हैं और कितना बच पाते हैं । अमेरिकी लेखक लोगन स्मिथ का कहना है कि खरीदारी का मतलब होता है कि एक शानदार सड़क से गुजरते हुए मैं उन चीजों के बारे में सोच रहा हूं ,जिनकी मुझे कोई जरूरत नहीं है। इसलिए हमेशा सेल के चककर में पढ़कर बिना मतलब खरीददारी करके अपना पैसा बर्बाद करें ।
खरीददारी और समझदारी के फर्क को समझें –
बहुत सारे लोग खरीददारी को महज तफरी समझते हैं और इसे मनोरंजन का साधन भर मानते हैं, लेकिन सही मायनों में बेहतरीन चीज तक पहुंच पाना जहां आप अपने निवेश के बदले सही चीज पा सकें, होशियारी से भरा काम है। मसलन आप एक रेफ्रिजरेटर खरीदने जा रहे हैं और आप एक पसंद भी कर लेते हैं। आपका मन का आधार क्या होता है, आपने उसे इसलिए पसंद किया क्योंकि उसका रंग स्टील ग्रे है या फिर नया शाइन ब्लैक आपकी आखों को लुभा रहा है। आप कभी उसकी शानदार डिजाइनिंग में खो रहे होते हैं तो कभी सैल्समैन की लच्छेदार बातों से आपका मन बदल जाता है।
किसी भी चीज और खासकर इलेक्ट्रॉनिक चीज को खरीदने से पहले उसकी अच्छी जानकारी होना या फिर अच्छा जानकार आपके साथ होना चाहिए। ऐसी कोई भी चीज खरीदने से पहले प्राथमिकताएं निर्धारित कीजिए। उसकी एक सूची बनाइए। आप जो फ्रिज खरीदने जा रहे हैं वह बिजली की कितनी खपत करता है, आखिर में बिजली का बिल आपको ही भरना है। अपने बजट को निर्धारित कीजिए। बजट इस तरह निर्धारित हो कि आप थोड़ा सिस्टम ऑटोमैटिक या सेमी ऑटोमेटिक है। उसमें खानों की संख्या कितनी है। इसके लिए आप इंटरनेट की मदद लेकर तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं | www.compareindia.com और www.dealtime.com जैसी बहुत सारी वेबसाइट्स ऐसी सुविधा उपलब्ध करवाती हैं। इसी तरह वाशिंग मशीन खरीदते वक्त उसका वाशिंग मैथड और मोटर की क्षमता के बारे में जानना ज्यादा जरूरी है। इस तरह आप अपने बजट में बेहतर सामान अपने घर लेकर आ रहे हैं, जो लंबे समय तक आपका साथ देने वाला है। इस तरीके से भी आप अपना बहुत सा पैसा बचा सकते हैं।
खर्च करने के मनोविज्ञान को समझें –
खर्च को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला – जरूरत, दूसरा – इच्छा। इन दोनों के बीच के अंतर को समझकर अच्छी बचत की जा सकती है। जरूरत वह होती है जो आपके लिए आवश्यक होती है इसलिए खाना, किराया, बिजली और मूलभूत आवश्यकताएं जरूरत होती हैं। आप उन पर पैसा इसलिए खर्च करते हैं क्योंकि आपके पास कोई विकल्प नहीं होता। वास्तव में पैसा किसी ऐसे क्षेत्र में खर्च करना जहाँ आपके पास कोई विकल्प नहीं है, वह जरूरत है। इच्छा वह है जिसकी आपको आवश्यक रूप से जरूरत नहीं है बल्कि वह आपकी अभिलाषा है। मान लीजिए आप एक नई कार चाहते हैं, हालांकि आपकी वर्तमान कार एकदम सही सलामत है और आपको नई कार की जरूरत नहीं है। यह इच्छा है। इसी तरह अगर आप एक चॉकलेट खाना चाह रहे हैं जबकि आपको वजन घटाने की जरूरत है तो यह भी इच्छा है।
मनोविज्ञान का उपयोग अक्सर विज्ञापन कंपनियों द्वारा लोगों को जरूरत और इच्छा के बीच भ्रमित करने के लिए होता है। विज्ञापन किसी भी ऑफर की हर वस्तु को खरीद लेने के लिए ग्राहकों को टार्गेट बनाते हैं। चाकू का एक सेट खरीदिए और दूसरा सेट मुफ्त, रुकिए अभी खत्म नहीं हुआ है, आप अपना ऑर्डर 15 मिनट में बुक कराइए और नाइफ शॉर्पनर भी मुफ्त पाइए। अभी कॉल कीजिए। ऐसे में हमें चाकू के दो सेट और नाइफ शॉर्पनर की जरूरत न हो तो भी विज्ञापन उस चीज की जरूरत महसूस करवा देता है। यह मोलभाव की हमारी प्रकृति को भुनाते हुए चतुराई पूर्वक बिक्री को बढ़ा देता है। उससे पहले कि हम यह सोचकर उस विज्ञापन को नकार दें कि अभी हमें उस चीज की जरूरत नहीं है उस ऑफर को कई बार दोहरा दिया जाता है और उस संदेश पर जोर दिया जाता है। अभी फोन करें, अभी फोन करें। इसके अलावा किसी भी शॉपिंग मॉल के करीब से निकल जाएं इस तरह के ऑफर से आए अपरिचित नहीं होंगे। एक जीस खरीदें और दूसरी आधी कीमत पर पाएं। आज की खरीद पर 10 प्रतिशत की छूट पाएं, लेकिन यह ऑफर केवल आज के लिए। कुछ अतिरिक्त पैसे देकर अपने फूड ऑर्डर को दोगुना पाएं। 2,000 रुपए की खरीद पर आपको 10 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इसके अलावा भी हजारों इस तरह के ऑफर होंगे, जो हमें अपने आसपास मिल जाते हैं। यहां जरूरत और इच्छा में अंतर समझने की जरूरत है। यहां मनोविज्ञान एक शक्तिशाली उपकरण/साधन की तरह काम करता है जिसका उद्देश्य आपकी जेब से पैसा निकलवाना होता है।
बचत करने के 21 फार्मूले –
बी बचत करने के कई तरीके हैं जिनमें से 21 फार्मूलों पर हम आज चर्चा करते हैं ।
- रोजमर्रा में काम आने वाली चीजों की सूची बनाएं। इसमें किसी भी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए (कभी-कभार खाई जाने वाली आइसक्रीम को भी इस सूची में शामिल करें।) गैरजरूरी और जिसका इस्तेमाल बहुत कम किया जाता हो ऐसी चीजों की भी सूची बनाएं। अब दोनों सूचियों को मिलाकर देखें। दोनों सूचियों में आने वाली समान हों ऐसी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दें। अगर संभव न हो तो कम से कम गैरजरूरी चीजों के उपयोग पर कटौती करना शुरू कर दें।
- जरूरत होने पर ही एसी, फ्रिज, लाइट आदि चीजों का उपयोग करें या फिर कम करने का प्रयास करें। इससे बिजली के बिल में कुछ तो कटौती होगी।
- कहीं भी जाने के लिए रिक्शा या टैक्सी के बजाय बस या ट्रेन से जाएं और ज्यादा दूर न जाना हो तो पैदल ही जाएं।
- महंगाई को ध्यान में रखते हुए दिन के खर्चों में संभव होने पर कटौती करें। चाय, सिगरेट, ठंडे पेय, पान वगैरह की आदतों को कम या फिर बंद ही कर दें।
- थिएटर में फिल्म देखने के बजाय घर में ही टीवी लगाकर उसका लुत्फ उठाएं।
- वे चीजें न खरीदें, जिन्हें सिर्फ शौक के लिए खरीदा जाता है।
- घूमने जाने के विचार को टालें और जाना ही है तो ऑफ सीजन का प्लान बनाएं।
- राशन के सामान में ऐसी चीजें न खरीदें जिसका इस्तेमाल बहुत कम होता हो।
- घर में पार्टियां बंद करें, त्योहारों की सजावट और भोज टाल दें।
- घर के सदस्यों का जन्मदिन और शादी की वर्षगांठ को सादे तरीके से मनाएं।
- कार पूल या स्कूटर का उपयोग करें।
- अगर मोबाइल है तो लैंडलाइन फोन का उपयोग न करें।
- रोजमर्रा की चीजों के दाम लगातार बढ़ते रहने से कई जरूरी चीजों को ज्यादा मात्रा में लेकर रख लें।
- बच्चों पर होने वाले फालतू खर्चों और उनकी जिद को पूरा न करें। बच्चों को प्यार से समझाकर उनका ध्यान बंटा दें
- अनावश्यक मसालेदार पत्रिकाओं , रिचार्ज प्लान जैसे खर्च को सीमित करें।
- फास्ट फूड के इलाकों में जाना कम कर दें। छुट्टी के दिन होटल में जाकर खाना खाना हर बार जरूरी नहीं है।
- अगर बच्चों को आप खुद पढ़ा सकते हैं तो ट्यूशन न लगवाएं।
- जूते, कपड़ों जैसी चीजों की खरीदारी कम करें यानी कि हर त्योहारी शॉपिंग पर अंकुश लगाएं। शौक और दिखावे के लिए की जाने वाली शॉपिंग न करें।
- अगर आपके घर में कोई चीज खराब हो गई है तो नई लेने के बजाए उसे ठीक करके काम चलाएं।
- कॉस्मेटिक खर्च में कमी करें।
- ऐसे साधनो में निवेश करें, जिससे कि मुद्रास्फीति से लड़ने में आसानी हो।
“और अंत में, सादगी भरा जीवन कोई गाली नहीं है।”
शॉपिंग का वास्तविक मजा का ताल्लुक दिमाग से होता है –
एक शोध के अनुसार जो लोग शॉपिंग का वास्तविक मजा उठाते हैं, वे शॉपिंग हाई ( खरीदारी उत्कृष्टता) को महसूस करते हैं बिल्कुल उसी तरह जैसे एक धावक अपनी क्षमताओं की सर्वश्रेष्ठता का आनंद उठाता है। एक शॉपिंग अनुभव के दौरान इसान का दिमाग डोपामाइन नाम के रसायन को मुक्त करता है, जो एक प्रकार का प्राकृतिक मैसेंजर है और दिमाग की सामान्य क्रियाओं के लिए जरूरी है। डोपामाइन खुशी और दर्द को अनुभव करने को धमता में भी भूमिका निभाता है। कई शोध बताते हैं कि शॉपिंग का सीधा असर दिमाग के खुशी वाले केंद्रों पर होता है। किसी अच्छे शॉपिंग स्टोर की ट्रिप दिमाग में डोपामाइन की बाढ ला देती है, जो कि बिल्कुल उसी अनुभव के समान होता है जैसा किसी ड्रग एडिक्शन से, शादी होने पर या प्लेन में पहली बार यात्रा करने पर महसूस होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब कभी किसी के साथ कुछ नया, रोमाचकारी या चुनौतीपूर्ण होता है तो डोपामाइन इसमें शामिल होता है। आपकी डिजाइनर ड्रेसेज से भरी रैक नई और अनूठी लगती है, जिसका अर्थ है कि आप शॉपिंग हाई की अवस्था में हैं ।
सबसे खुश कौन, खर्चीले व्यक्ति या कंजूस ?
कार्नेगी मैलन टाइटवैड स्पेंडशिफ्ट स्केल सर्वे में व्यवहार अर्थशास्त्रियों ने इस स्तर को नापने की कोशिश की कि किस खुशी को प्रभावित करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार :-
- खर्चीले लोग बिना विचार किए और नियंत्रण के बाहर इतनी खरीदारी करते हैं कि कई बार वे मुसीबत में भी पड़ जाते हैं ।
- कंजूस लोग किसी भी चीज पर खर्च करने से मना कर देते हैं और यहां तक कि वे उस सामान को भी नहीं खरीदते जिसकी उन्हें वाकई में जरूरत है।
- मितव्ययी लोग हमेशा अपने चेतन की परवाह करते हैं और किसी औसत व्यक्ति की तुलना में अपने वित्त को लेकर हमेशा सजग रहते हैं । वे हमेशा समझदारी के साथ खर्च करते है।
हालांकि खर्चीले लोग पैसा खर्च करना पसंद करते हैं, लेकिन जब वे ऐसा करते हैं तो खुश नहीं होते। सुनने में यह कुछ हास्यास्पद लगता है, लेकिन ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि खर्च से जुड़े थोड़ी उत्साह और उत्तेजना के बाद व्यक्ति की ग्लानि इतनी बढ़ने लगती है कि वह उसके मिजाज को खराब कर देती है तो क्या ऐसे में वे लोग खुश रहते हैं, जो पैसा खर्च करने से मना कर देते हैं और अपनी बचाने की प्रवृत्ति पर खुश होते हैं। इस मामले में यह आश्चर्यजनक है कि इन लोगों की हालत खर्चीले लोगों से कहीं अधिक दयनीय है।
कार्नेगी मैलन वैज्ञानिक के अनुसार, एक खर्चीला व्यक्ति खर्च करने के बाद तकलीफ में होता है, लेकिन कंजूस खर्च करने से पहले और खर्च करने के बाद दोनों वक्त तकलीफ में होता है। इस स्थिति में मितव्ययी लोग एक औसत व्यक्ति की तुलना में खुश रहते हैं क्योंकि वे पैसा बचाने खुशी को भी बरकरार रख पाते हैं और साथ ही अपना बजट भी बढ़ने नहीं देते। चूंकि वे सोच-समझकर खर्च करते हैं, इसलिए उन्हें बजट प्रतिबंधों और स्वयं को शॉपिंग से रोकने के लिए बाध्य नहीं होना इनमें से किसी भी श्रेणी में न आने वाले लोग ‘अविवादित’ समझे जाते हैं। वित्तीय अविवादित लोग वे होते हैं जो एक बीच के रास्ते का चुनाव कर लेते हैं और सहज व तनावहीन होकर बचत और खर्च करते लोग सबसे ज्यादा सुकून में रहते हैं और अपने पैसे के प्रबंधन को संतुलित और सार्थक बनाते हैं।।
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