इन दिनों मोटापा हर आयु-वर्ग के लोगों के नाम पर गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है। ऐसे बहुत से कारक हैं जो शरीर में वात, पित्त और कफ को असंतुलित कर मोटापे की समस्या बढ़ाते हैं। यदि उम्र, देश, काल आदि को ध्यान में रखते हुए आहार में आवश्यक बदलाव किए जाएं तो इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। आयुर्वेद में ऐसे बहुत से उपाय बताये गए हैं जिन्हे अपना कर आप मोटापे से निजात पा सकते हैं। आज कल ये दो सवाल बहुत से लोगों की जुबान पर होते हैं कि मोटापा कैसे काम करें ? और पेट कम करने के घरेलू उपाय कौन-कौन से हैं।
मोटापा के प्रमुख कारण
आधुनिक काल में मोटापे की समस्या व्यापक हो गई है। हमारे आयुर्वेदिक प्राचीन काल में ही इस संबंध में गहन अध्ययन किया गया है। आयुर्वेद दुनिया चिकित्सा पद्धतियों की जननी है और हमें भारतीय होने के नाते अपने प्राचीन खजाने को पहचानना और उसका आदर करना चाहिए। चरक ने हमें सचेत करने के लिए इस बात का सार बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है कि यदि हम लापरवाही के चलते अपना वजन बढ़ने देते हैं तो अपने लिए समस्याओं की लंबी श्रृंखला को आमंत्रण देते हैं। मोटापे के अलग-अलग कारण हो सकते हैं जैसे कि एक ही जगह पर काफी देर तक बैठे रहना, गरिष्ठ, मीठा, ठंडा और वसा युक्त भोजन करना, दिन में सोना, प्रसन्न रहना,मानसिक कार्य कम करना और आनुवांशिक कमियां।
मोटापे के नुक्सान
इसी तरह इसके प्रभाव भी विभिन्न हैं। मोटे व्यक्ति में अन्य धातुओं की तुलना में वसा अत्यधिक होने के कारण उसकी जीवन-अवधि कम हो जाती है। शिथिलता एवं वसा की नरमी और भारी पन के कारण विभिन्न गति विधियों में अवरोध पैदा होता है। मोटापे के कारण यौन उत्सर्जन कम होने और वसा के कारण उसका मार्ग अवरुद्ध होने की वजह से यौन गति विधियों में कठिनाई आती है। धातुओं के असंतुलन के कारण कमज़ोरी आती है। वसा के दूषित होने और पसीने के कारण दुर्गंध आती है। कफ की प्रकृति रिसाव वाली होती है। इसकी अधिकता, भारीपन और शरीर की व्यायाम के प्रति असहनशीलता और कफ के मेद (एडिपोस टिश्यू) से संबंध के कारण अत्यधिक पसीना आता है। मोटे व्यक्ति के शरीर में अग्नि के बढ़ जाने और पेट में वायु की अधिकता हो जाने के भूख और प्यास दोनों ही बहुत ज्यादा लगते हैं। (मोटापा कैसे काम करें ?)
मोटापे को कम करने के नुस्खे
हम आगे वजन को नियंत्रण में रखने और उसे घटाने के कुछ सरल नुस्खे जानते हैं यदि आप युवा और थोड़े से मोटे हैं तो हो सकता है कि इन कारकों से बचकर ही आप अत्यधिक वजन की अपनी समस्या को सुलझा लें।
1- आर्गेनिक तरीके से उगाया भोजन करें
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग खाद्य पदार्थों के आधार भूत संतुलन को बदल देता है। ऐसी भोज्य सामग्री का उपभोग करने पर हम प्रत्येक भोज्य पदार्थ के साथ अत्यधिक मात्रा में नाइट्रेट ग्रहण करते हैं जिससे शरीर में वात और पित्त असंतुलित हो जाते हैं। यह असंतुलन शरीर के थर्मोडायनेमिक सिस्टम को असंतुलित कर देता है। अत्यधिक प्यास लगना, भूख का असंतुलित होना, अत्यधिक भोजन करना और पेट फूलना इसके लक्षण हैं। तब शरीर में पानी ठहरने लगता है और धीरे-धीरे वजन बढ़ने लगता है। बचाव के लिए ऑर्गेनिक तरीके से उगाया भोजन ही करें।
2- डिब्बा बंद व बासी भोजन न करें हमेशा ताजा भोझन ही करें
इस तरह के भोज्य पदार्थ भी उर्वरकों के प्रयोग से तैयार खाद्य सामग्री जैसा ही प्रभाव हमारे शरीर पर डालते हैं। कीटनाशक और अन्य रसायन शरीर की पाचक अग्नि को अव्यवस्थित कर तरल पदार्थों का अंतर्ग्रहण बढ़ा देते हैं। वे शरीर को थुल-थुल बना देते हैं। प्रोसेस्ड और प्रिज़र्ल्ड भोज्य पदार्थों में प्रिजर्वेटिव और रंगों के रूप में निश्चित मात्रा में रसायन पाए जाते हैं जिनका संबंध प्राकृतिक भोजन से नहीं होता और जो जैविक-तंत्र के प्रतिकूल होते हैं। वे अक्सर वात-पित्त को असंतुलित और रक्त को अशुद्ध कर देते हैं।
बाद में यह धीरे-धीरे शरीर के जल-तंत्र (वात और कफ) को भी प्रभावित करता है। यदि इस तरह के भोज्य पदार्थ अत्यधिक मात्रा में खाए जाएं तो ये अंततः शरीर की तीनों तरह की ऊर्जा को अव्यवस्थित कर देते हैं और शरीर को भारी और थुलथुल बनाने के साथ कई बीमारियां भी उत्पन्न कर देते हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उगाए गए प्रिज़र्ल्ड और प्रोसेस्ड भोज्य पदार्थों में प्राण ऊर्जा या ब्रह्माण्ड के प्राण तत्व की कमी रहती है, इसलिए वे शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि नहीं करते और वह आंतरिक संतुष्टि नहीं देते जो भोजन करने के बाद महसूस होनी चाहिए। (मोटापा कैसे काम करें ?)
मैंने इस विषय पर अब तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है लेकिन फिर भी आम तौर पर देखा है कि इस तरह का भोजन उस मानसिक शांति के साथ भूख शांत नहीं करता जिस तरह ऑर्गेनिक तरीके से उगाया गया ताज़ा भोजन करता है। इसलिए व्यक्ति आवश्यकता से अधिक खा लेता है। भोजन से S फैक्टर गायब हो चुका है। S फैक्टर यानी संतोष या संतुष्टि जो हमें भोजन करने के बाद मिलती है। इस प्रकार प्रकृति के प्रतिकूल और प्राण ऊर्जा की कमी भोज्य पदार्थ खाने से रसायनों के साइड इफेक्ट के अलावा वजन बढ़ने का अतिरिक्त खतरा भी बना रहता है। इनसे बचने के लिए ताज़ा चीजें खाएं और ऐसा भोजन कभी न करें जिसे खाने से कई घंटे पहले पकाया गया हो और जो बासी हो। बाज़ार में तैयार मिलने वाला भोजन कभी न खरीदें। ऐसे भोजन में अक्सर प्रिज़र्वेटिव का प्रयोग होता है।
3- खुद को छोटे स्थान तक सिमित न रखें, नियमित रूप से टहलें
आयुर्वेद की दृष्टि में व्यायाम के जरिए कैलोरी घटाना ही वजन संतुलन के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरे शब्दों में, आपको स्वयं को घर या ऑफिस जैसे छोटे स्थान तक सीमित नहीं रखना चाहिए। अधिकतर महिलाएं कहती हैं कि घर के काम और बच्चों की देखभाल के चलते घर पर ही उनकी अच्छी-खासी कसरत हो जाती है। आयुर्वेद की दृष्टि से, शरीर कोई यंत्र नहीं है और उसकी गति शीलता को बनाए रखने के लिए स्थान बहुत महत्व पूर्ण है। दिन में कम से कम एक बार टहलने का नियम बना लें। खास तौर से यदि आपकी दिन चर्या घर तक ही सीमित है।
4- रात्रि भोजन के बाद तुरंत सो जाना
बहुत से लोग सोचते हैं कि रात का भोजन जल्दी कर लेना स्वास्थ्य के लिए बेहतर रहता है, लेकिन देर से सोने पर उन्हें भूख लग जाती है और वे खाने और सोने के बीच अल्पाहार ले लेते हैं। यह आदत न केवल मोटापा बढ़ाने वाली है बल्कि आम तौर पर भी आपकी सेहत के लिए खराब होती है। रात होने के साथ-साथ आपके शरीर के ऊर्जा स्रोत धीरे धीरे बंद होने लगते हैं। सोने से कुछ देर पहले भोजन करने पर आप अपने पाचन-तंत्र पर उस समय कार्य भार थोप देते हैं जब वह पहले से ही आंशिक रूप से आराम करने की स्थिति में होता है। इसलिए आप रात के खाने का समय घड़ी के हिसाब से नहीं बल्कि अपनी सोने संबंधी आदतों के अनुसार तय करें। आपको सोने के कम से कम 2 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। भोजन के बाद टहलने जाना बेहद ज़रूरी है। नाश्ते और रात के खाने के बीच 12 घंटे का अंतर जरूर रखें। (मोटापा कैसे काम करें ?)
5- संतुलित आहार ही लें
कफ और वात की अधिकता वाले आहार और रस (पित्त तत्व वाले) की कमी वाले पोषक तत्वों का उपभोग करने से वजन बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, असंतुलित आहार के कारण शरीर की तीनों मुख्य ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है। कफ दो भारी तत्व, जल और पृथ्वी संबंधी ऊर्जा है, वात का संबंध शरीर में सर्वत्र पाए करने वाले जाने वाले और आयतन को प्रदर्शित वायु और अंतरिक्ष तत्व से है जबकि पित्त शरीर की ऊष्मा-गतिकी (थर्मोडायनेमिक्स) नियमन करते हुए इन दोनों के मध्य संतुलन स्थापित करने वाला कारक होता है।
6- गुणवत्ता युक्त व संतुष्टी प्रदान करने वाला भोजन करें
भोजन भूख शांत करने और पोषण प्रदान करने के अलावा हमें कुछ छिपी हुई ऊर्जा भी देता है जिसे मैं भोजन में उपस्थित प्राण’ कह सकते हैं । भोजन में छिपी हुई ऊर्जा या प्राण तत्व की मात्रा, भोजन कहां और कैसे उगाया गया है, पनपते हुए पौधों का प्रकृति के अन्य सजीव तत्व वर्षा, धूप, हवा और अन्य पर्यावरणीय कारकों के साथ कैसा संवाद रहा है, आदि के आधार पर कम या ज्यादा होती है।
इसके अलावा, विभिन्न बीजों का मसालों के रूप में प्रयोग भोजन में इसकी मात्रा बढ़ाता है। बीजों में पौधों के रूप में विकसित होने की क्षमता और ढेर सारी प्राण ऊर्जा होती है। भोजन हमें पोषण प्रदान करता है और क्षुधा शांत करता है, जबकि उसमें स्थित प्राण ऊर्जा हमें छिपी हुई ऊर्जा और संतोष की अनुभूति देती है। भोजन में प्राण ऊर्जा न होने पर हम स्वयं को संतुष्ट या ऊर्जावान महसूस नहीं करते और खाते चले जाते हैं जिससे गुज़रते वक्त के साथ वजन बढ़ने की समस्या पैदा हो जाती है। इसलिए ‘S’ कारक में बढ़ोतरी के लिए गुणवत्ता युक्त भोजन खरीदना, उसे जड़ी-बूटियों और मसालों से बेहतर बनाना और बहुत प्यार से पकाना बेहद ज़रूरी होता है। अपने भोजन में ‘S’ कारक बढ़ाने के लिए विभिन्न तरह के उत्पादों और मसालों का इस्तेमाल करें। इसके अलावा सलाद और दूसरे व्यंजनों में तिल, कद्दू, सूर्यमुखी और ऐसे ही अन्य बीजों को शामिल करने पर विचार करें।
7- उम्र, स्थान व मौसम के अनुसार भोजन लें
आयुर्वेदिक भोजन संस्कृति में काल और देश दो बेहद महत्वपूर्ण कारक हैं। काल का अर्थ हमारी उम्र तथा दिन और वर्ष का समय है, जबकि देश से आशय भौगोलिक स्थिति और पर्यावरण है। आयुर्वेदिक जीवनशैली अपनाने के लिए व्यक्ति को देश और काल के अनुसार जीना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, यदि आप दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं तो वहां भोजन अलग तरह का होगा जबकि ठंडे देशों में जाने पर आपको अपने पोषण में बदलाव लाना होगा। ठंडे देशों में आपको गर्म देशों के अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा वसा और प्रोटीन । यदि आप गर्म देशों में भी ऐसा ही आहार लेंगे तो आपका वजन बढ़ जायेगा क्यूंकि गर्मी के कारण वहां शरीर का थर्मोडायनेमिक सिस्टम अलग तरह से काम करता है।
आपको दिन और वर्ष के अनुसार भी पोषण में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है। बचपन में आप जिस गुणवत्ता व मात्रा में भोजन करते थे तो वही भोजन युवावस्था में भी खाना जारी रखेंगे तो आपका वजन बढ़ सकता है इसी तरह जब आप युवावस्था से वात की अधिकता वाली अधेड़ावस्था में कदम रखते हैं तो उसके अनुसार अपने भोजन में बदलाव नहीं लाते तो आपका वजन कुछ किलो बढ़ सकता है, आपको जिससे छुटकारा पाना मुश्किल हो सकता है। इससे बचने के लिए आप अपने पोषण को देश और काल के अनुसार बनाने का हर संभव प्रयत्न करें। मौसम के अनुसार अपना आहार बदलें, दिन के अनुसार अपना पोषण निश्चित करें और अपनी उम्र के अनुरूप खाएं। (मोटापा कैसे काम करें ?)
8- अत्यधिक न सोएं
छोटे बच्चों को खूब सोने की ज़रूरत होती है जबकि वयस्कों के लिए ज़्यादा से ज्यादा आठ घंटे की नींद पर्याप्त है। एक स्वस्थ वयस्क के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों जैसे बीमारी, अत्यधिक काम या यात्रा को छोड़कर, मैं सात घंटे से ज़्यादा सोने का सुझाव नहीं देता । आवश्यकता से अधिक नींद न केवल वजन बढ़ाती है बल्कि आपको आलसी और धीमा भी बनाती है। नींद वजन बढ़ाने वाले मुख्य कारकों में से एक है। इसके लिए नींद के घंटों को लेकर आप पूरी तरह अनुशासित रहें। भोजन के बाद उनींदा महसूस करना इस बात का संकेत है कि आपका पाचन तंत्र सही काम नहीं कर रहा है। सुबह देर तक सोते रहना और बिस्तर छोड़ने की इच्छा न होना कफ ऊर्जा के असंतुलन का सूचक है। दोनों ही मामलों में आपको पाचक अग्नि बढ़ाने की आवश्यकता होती है।
9- वजन कम करने के घरेलू उपाय आजमाएं
आप अपने भोजन में अदरक, लहसुन, अजवायन, जीरा और काली मिर्च की मात्रा बढ़ाएं। प्रतिदिन गुनगुने पानी में नींबू और अदरक का रस मिलाकर पिएं। सुबह कुल्ला करने व सौच जाने से पूर्व गुनगुने पानी में नीबूं का रस और शहद मिलाकर आराम आराम से पियें । साथ ही नियमित रूप से व्यायाम करें। (मोटापा कैसे काम करें ?)
मोटापे के 8 नुक्सान
सदियों पहले चरक ने लिखा था कि मोटे लोगों में ऐसे आठ कारक होते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं –
1- जीवन-अवधि घटना।
2- विभिन्न क्रियाकलापों में बाधा आना ।
3- यौन संबंधों में कठिनाई होना।
4- कमज़ोरी या दुर्बलता होना ।
5- दुर्गंध की समस्या होना ।
6- पसीना अधिक आना ।
7- भूख ज़्यादा लगना ।
8- अत्यधिक प्यास लगना।
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