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योग की चूनौती

योग की चूनौती – उष्ट्रासन (Ustrasana) करने की विधि

न-मस्तिष्क से युवा लोगों को योग ज़्यादा रोमांचक और चुनौती पूर्ण नहीं लगता है । वे इसे वृद्ध और कमज़ोर लोगों के विज्ञान के रूप में देखते हैं , लेकिन सच्चाई यह है कि योग  में सरलतम मुद्रा को भी अगर लंबे समय तक या कई बार लगातार किया जाए तो वह कमर तोड़ देने की हद तक कठिन साबित हो सकती है। इस लेख में जानते हैं कि योग की चूनौती क्या है और  उष्ट्रासन (Ustrasana) करने की विधि।

योग सरल नहीं है

एक उत्साही पर्वतारोही के अनुसार पहाड़ों  पर चढ़ने के उनके शौक के लिए  योग का नियमित अभ्यास उनकी पर्वतारोहण संबंधी क्षमता और शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि करेगा।  उनका कहना था कि वे जानते हैं कि योग सरल और सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन फिर भी किसी न किसी वजह के चलते वे उसका अभ्यास शुरू नहीं कर पा रहे हैं। जाहिर है, वे ऐसा कर भी नहीं सकते क्योंकि वे योग को सरल मान बैठे हैं और इसी सोच के चलते, उन्होंने कुछ झिझकते हुए पहाड़ों पर चढ़ाई के अपने शौक को योग से ज्यादा चुनौतीपूर्ण और दमखम वाला बताया था।

जिसने भी योग का गंभीरता पूर्वक अभ्यास किया है, वह जानता है कि यह केवल एक भ्रम है। योग में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की, खास तौर पर मज़बूती पसंद और शारीरिक रूप से उद्यमशील पश्चिम की रुचि जागी है क्योंकि यह एक परिश्रम साध्य विज्ञान है। अपने इसी पहलू के चलते यह शारीरिक क्षमता में भी वृद्धि करता है। दुर्भाग्य से भारत में किसी अबूझ कारण के चलते योग को वृद्ध और कमज़ोर लोगों के विज्ञान के रूप में देखा जाता है, इसलिए मन-मस्तिष्क से युवा लोगों को यह ज़्यादा रोमांचक और चुनौती पूर्ण नहीं लगता है ।

कितना कठिन है योग

योग में सरलतम मुद्रा को भी अगर लंबे समय तक या कई बार लगातार किया जाए तो वह कमर तोड़ देने की हद तक कठिन साबित हो सकती है। आगे की ओर झुकने की सरल मुद्रा पश्चिमोत्तनासन को ही ले लीजिए। जब आप योग की कक्षा में शामिल होते हैं तो आपसे आगे की ओर झुकने और अपने पैरों की उंगलियां छूने के लिए कहकर बाकी आप पर छोड़ दिया जाता है। लेकिन क्या यह मुद्रा केवल इतनी ही है?                                                                                              (योग की चूनौती)

पश्चिमोत्तनासन के इस शुरुआती हिस्से को आसानी से कर लेने वाले, योग के अभ्यस्त लोगों को भी यदि लंबे समय तक इस मुद्रा में रहने को कहा जाए तो यह उनके लिए बहुत कठिन होगा। तब आपकी मानसिक और शारीरिक शक्ति का असली परीक्षण होता है। योग की कठिनतम मुद्राओं का अभ्यास करने वाला व्यक्ति ही आगे झुके रहने की इस साधारण प्रक्रिया को एक मिनट से ज़्यादा के लिए कर सकता है। अगर इस अवधि को तीन मिनट तक बढ़ा दिया जाए तो यह साधारण मुद्रा और भी ज़्यादा थकाने वाली हो जाती है। आपका शरीर फर्श से चिपका रह जाएगा, सारी मांसपेशियां कांपने लगेंगी और श्वसन-क्रिया अनियमित हो जाएगी। आपको अत्यधिक मात्रा में पसीना आने लगेगा और जब आप इस मुद्रा से बाहर आराम की स्थिति में आएंगे तो तेज़ गति से हो रही ये सभी शारीरिक प्रतिक्रियाएं पहले से भी ज़्यादा दर्दनाक और थकाने वाली साबित होंगी। शारीरिक सामर्थ्य की बात की जाए तो योग इतना ही कठिन होता है।

योग लाभ दायक होता है

अब अगर आप एक कदम और उठाना तथा थोड़ा और साहसी बनना चाहते हैं तो उन मुद्राओं को आजमाएं जिनका उद्देश्य ही शारीरिक सामर्थ्य बढ़ाना है। तब आपको पता लगेगा कि योग वास्तव में कितना कठिन है। शारीरिक सामर्थ्य बढ़ाने वाले ऐसे कई आसन हैं। सरल लगने वाले भुजंगासन, धनु और अर्धवंद्रासन सहित शरीर को पीछे की ओर झुकाने वाले सभी आसन  वास्तव में चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। यहां तक कि संख्या बढ़ा देने पर सूर्य नमस्कार से भी हांफनी और पसीना आ सकता हैं, लेकिन तब आप बेहद ऊर्जावान और आनंदित भी अनुभव करेंगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि योग की कठिन बल-परीक्षा के बाद शरीर अच्छा महसूस करवाने वाले एंडॉर्फिन हॉर्मोन छोड़ता है।

योग, तन के साथ साथ मन को भी तंदरुस्त करता है

योग की मुद्राओं में दर्द को नज़रअंदाज़ करना सीख लेने पर मानसिक शक्ति में भी वृद्धि होती है। यही योग का वास्तविक मर्म है। पहले रोग दूर करना, फिर शरीर को मज़बूत बनाना। अधिकतर लोग खास तौर पर भारतीय, स्वास्थ्य निर्माण के लिए योग के अनुशासन पक्ष से अब भी जूझ रहे हैं। उनके पास शारीरिक सामर्थ्य बढ़ाने वाले योगासनों के लिए या तो समय नहीं है या फिर उनका इस ओर रूझान नहीं है। लेकिन योग के इन दोनों ही पक्षों(रोगों को दूर करना और शारीरिक रूप से बलिष्ठ बनाना)का एक ही लक्ष्य है।

योग का आध्यात्मिक पहलू

मृतशतकम् कहलाने वाले गीता के बारहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अपने उत्साही शिष्य (अर्जुन) से कहते हैं कि उन्हें वह भक्त सबसे ज्यादा प्रिय है जो सर्दी-गर्मी और प्रशंसा-निंदा के प्रति उदासीन रहता है, जितना मिल जाए उतने में संतुष्ट रहता है और सुख-दुःख के प्रति अनासक्ति का भाव रखता है। योग की शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि करने वाली मुद्राओं का असली उद्देश्य शारीरिक नहीं है। इसका आध्यात्मिक आधार था। श्री रमण महर्षि के बिना बेहोशी की दवा के हाथ का ऑपरेशन (कैंसर का) करवाने का दृष्टांत सर्वविदित है।

योग का वैराग्य संबंधी पहलू

योग का यह वैराग्य संबंधी पहलू ही ध्यान की विपश्यना शाखा का सार है। जब आप ध्यान करने के उद्देश्य से किसी भी ध्यान मुद्रा में बैठते हैं तो कुछ समय के लिए आपको कोई कठिनाई नहीं होती, बल्कि आप अच्छा महसूस करते हैं, लेकिन अगर आपको अधिक देर तक ऐसा करना पड़े तो पैरों में होने वाला तेज़ दर्द आपके ध्यान को पूरी तरह भंग कर सकता है, लेकिन जब आप स्वयं को इस दर्द से दूर करना सीखकर देह रहित होने का अनुभव पा लेते हैं, जो वह स्थिति है जब दर्द की मानसिक अनुभूति भी नहीं होती, तब योग के शारीरिक सामर्थ्य की वास्तविक परिभाषित रेखांकित होती है।                                                                                                    (योग की चूनौती)

उष्ट्रासन (Ustrasana) करने कि विधि

 सर्प्रथम आप घुटनों के बल बैठ जाएं। मेरूदंड सहित पूरे शरीर को सीधा रखें और अंदर की ओर सांस लें। धीरे-धीरे शरीर को पीछे की ओर झुकाते हुए दाएं हाथ को दाईं एडी से स्पर्श करें। पहले सांस बाहर छोड़ें, फिर अंदर की ओर खींचें। अब पहले की तरह ही पीछे की ओर झुकते हुए बाएं हाथ को बाईं एड़ी से स्पर्श करें। आपका सिर तनाव रहित मुद्रा में पीछे की ओर होना चाहिए। दोनों हाथ दोनों एडियों को थामे होने चाहिए। एक बार इस स्थिति में आ जाने के बाद अपने सीने को थोड़ा और पीछे झुकाने का प्रयास करें ताकि आप बिल्कुल सही मुद्रा में आ जाएं। सीना और पेट बाहर की ओर धकेलते हुए उन्हें सामने की दीवार के इतना पास ले जाने का प्रयास करें जैसे उसे छूना हो। सिर पहले की तरह ही तनाव रहित मुद्रा में पीछे की ओर रहना चाहिए। सामान्य रूप से सांस लेते रहें। कुछ सैकंड इसी स्थिति में रहें। शुरू-शुरू में थोड़े-थोड़े अंतराल पर यह आसन तीन बार करें। अभ्यास हो जाने पर आप इसे एक ही बार लंबे समय तक कर सकते हैं।                                                                                                                                           (योग की चूनौती)

उष्ट्रासन (Ustrasana) में सावधानियां

पीठ-दर्द में पीछे की ओर झुकने वाले आसन आरोग्य कर होते हैं लेकिन इन्हें किसी विशेषज्ञ के मार्ग दर्शन में चरण दर-चरण ही सीखें। जिन लोगों की गर्दन में दर्द रहता है उन्हें उसे पीछे की ओर ले जाने में तकलीफ होगी। ऐसी स्थिति में इस आसन को आधा ही करें। दोनों हाथों से एड़ी को स्पर्श करें, लेकिन सिर को पीछे की ओर ले जाने की बजाय बिल्कुल सीधे रहते हुए आगे की ओर देखें। घुटनों से जुड़ी कोई समस्या होने पर यह आसन न करें।                                                  (योग की चूनौती)

उष्ट्रासन (Ustrasana) करने के फायदे

यह आसन शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि करने वाला आसन है जो मन भी अच्छा करता है। श्वास संबंधी सभी बीमारियों में फायदा पहुंचाने वाला उष्ट्रासन पोस्वर भी सही करता है। इसके अलावा यह शरीर के चर्बी जमा करने वाले हिस्सों जैसे जांघ के पिछले हिस्से, पैरों और हाथ के अगले हिस्से की स्थूलता को भी कम करता है। त्वचा में कसावट लाने के साथ ही यह मधुमेह में भी फायदेमंद है क्योंकि यह पैंक्रियाज ग्रंथि पर दबाव बनाता है। प्रतिरक्षा क्षमता में वृद्धि करता है और थाइरॉइड ग्रंथि के असंतुलन को दूर करने के साथ ही आवाज़ भी मधुर बनाता है।

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