हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables) – सात्विक एवं पौस्टिक भोजन एवं बनाने की विधि –
बड़ी प्रसिद्द एक कहावत है, जैसा अन्न वैसा मन, यदि हम शुध्द, सात्विक एवं पौस्टिक भोजन को खाते हैं तो तन के साथ साथ हमारा मन भी स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है । हमारे अनेक प्रकार की प्रकृतिक रूप से उगी जंगली वनस्पतियां पायीं जाती हैं, किन्तु हम लोग उनसे वाकिफ न होने के कारण उनका उपयोग नहीं कर पाते। यदि हम उन्हें अपने आहार में शामिल कर लें तो हम उनके पौस्टिक गुणों का लाभ उठा सकते हैं। आज मैं आपको कुछ ऐसी ही जंगली वनस्पतियों के बारे में बता रहा हूँ जिन्हे आप हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables) की तरह प्रयोग कर स्वस्थ रह सकते हैं । चलिए जानते हैं सात्विक एवं पौस्टिक भोजन एवं बनाने की विधि ।
ग्वारपाठा (घृत कुमारी) Aloe Vera –
ग्वारपाठे को संस्कृत में धृत कुमारी और अंग्रेजी मे एलोवेरा कहते हैं। यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके सेवन से मल शुद्धि होती है और शरीर में जमा रोग जनक तत्व बाहर निकल जाते हैं, इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा सप्त धातुओं की शुद्धि होती है। खांसी, श्वास, क्षय, उदर रोग, वात व्याधि, मंदाग्नि, कब्ज, तिल्ली और लीवर के रोग, अम्ल पित्त तथा कृमि रोग नष्ट हो जाते हैं। यह दो प्रकार का होता है, मीठा और कडवा । इनकी पत्तियों के किनारे पर कांटे होते हैं । इन दोनों की ही सब्जियां बनती हैं । ग्वारपाठा खाने के फायदे बहुत ही फायदे होते हैं । हम ग्वार पाठा को हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables) की तरह प्रयोग कर सकते हैं ।
मीठा ग्वार पाठा-
मीठे ग्वार पाठे की पत्तियां दल में पतली और कम गूदे वाली होती हैं तथा स्वाद में कडवी नहीं होती।
सब्जी बनाने की विधि –
इसकी पत्ती के हरे रंग के दोनों किनारों के कांटे चाकू से हटा दें । उसे पानी में अच्छी तरह से धो लें। उसके बाद चाकू से उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर हींग, जीरे एवं सौंफ के साथ छौंक दें । हल्दी, नमक, मिर्च और अमचूर डालकर उसे अच्छी तरह भून लें । यदि अमचूर नहीं खाते हैं तो नींबू का रस डाल दें । पानी नहीं डालें । सब्जी तैयार है । टुकड़े आलू की तरह सीझते नहीं हैं अतः खाते समय कचर-कचर की आवाज का एहसास कराएंगे ।
कड़वा ग्वार पाठा-
कडवे ग्वार पाठे की पत्तियां दल में मोटी, अधिक गूदे वाली तथा स्वाद में बहुत कडवी होती हैं ।
सब्जी बनाने की विधि –
इसकी पत्तियों के किनारे के कांटे चाकू से हटा दें । चार-चार अंगुल के टुकड़े कर उन्हें अच्छी तरह पानी से धो लें और फिर उसका गूदा निकाल लें । गूदे को नमक के पानी में दस-पंद्रह मिनट तक डालकर निकाल लें । गूदा यदि बड़ा है तो उसके टुकड़े करके हींग, जीरा और सौंफ के साथ छौंक दें । हल्दी, नमक और अमचूर डाल दें। अच्छी तरह भून लें । स्वाद में यह करेले की सब्जी जैसा कड़वाहट देगा, किंतु यह बहुत गुणकारी होता है ।
लेहसुआ (लिसोड़ा ) –
इसे बोलचाल की भाषा में लिसोड़ा कहते हैं। यह छोटा और बड़ा दो आकारों में मिलता है। इसका कच्चा फल शीतल, मधुर, कडवे, हल्के कसैले, वातवर्धक, पित्त को शांत करने वाले, रुचिकारक, ग्राही और रुधिर विकार, नेत्र विकार तथा कफ को नष्ट करने वाले होते हैं। कच्चे फलों की सब्जी बड़ी स्वादिष्ट, रुचिकारक और गुणकारी होती है।
सब्जी बनाने की विधि –
लेहसुआ की सब्जी बनाने के लिए अच्छे लिसोडे लेकर उन्हें पानी से अच्छी तरह धो लें और उन्हें पानी में उबाल लें । सीझने पर उन्हें उतार लें और पानी से बाहर निकाल कर उनके डंठल, उसके साथ लगी छतरीनुमा टोपी तथा अंदर की गुठली निकाल दें । एक कली कैरी लेकर चाकू से उसका छिलका उतार दें और बारीक कतर ले। इस कैरी को हींग, जीरा के साथ कड़ाही मे छौंक दें तथा उसमें हल्दी, नमक और मिर्च डालकर अच्छी तरह से भून लें। उसके बाद उसमें लिसोड़े डालकर उसे अच्छी तरह भून लें। थोड़ी चीनी डाल दें । पानी नहीं डालें । अब हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables)/सब्जी तैयार है ।
कैरी (आम का कच्चा फल ) –
आम के कच्चे फल को कैरी कहते हैं, आयुर्वेद में ये कसैला, खट्टा, रुचिकारक तथा अतिसार, मूत्र व्याधि और योनिरोग में लाभ पहुंचाने वाला माना गया है ।
सब्जी बनाने की विधि –
कैरी की सब्जी बनाने के लिए ताजा कैरी लेकर धो-पोंछकर चाकू से उसका छिल्का उतार दें। यदि कैरी बहुत कच्ची है तो बिना छीले भी बना ली जाती है। कैरी के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसे तेल में हींग, जीरा, सौंफ से छौंक दें। नमक, मिर्च और हल्दी अच्छी तरह मिलाकर उसे तश्तरी से ढंक दे। भाप से सीझने पर उसमें स्वाद के अनुसार गुड़ या चीनी डाल दें। तैयार है खट्टी-मीठी और स्वादिष्ट सब्जी। गर्मी में यह बहुत गुणकारी है।
कैरी की छाछ या पना –
कैरी की छाछ या पना बनाने के लिए कैरी को चूल्हे की गर्म राख, अथवा गैस पर बैंगन की तरह भून लें । यदि ऐसा न कर सकें तो पानी में उबाल लें । भूनने तथा उबालने के बाद छिलका उतारकर सादा पानी में इसे मथ लें । उसके बाद इसे छान लें और उसमें थोड़ा भुना जीरा, सूखा पिसा पोदीना तथा आवश्यकतानुसार नमक और मिर्च डाल दें। यदि इसमें मसाले वाली बूंदी डाल दी जाए तो यह स्वादिष्ट कैरी की छाछ का रायता बन जाता है। खट्टा मीठा बनाने के लिए इसमें थोड़ी चीनी डाल दें। यह शीतल पेय पदार्थ के रूप में भी काम लिया जा सकता है और भोजन के साथ भी उपयोग में ली जा सकती है ।
आंवला – (Gooseberry) –
आयुर्वेद में आंवले को रसायन, कल्याणकारी, अवस्था को कायम रखने वाला और माता के समान रक्षा करने वाला (धात्री) कहा गया है। आयुर्वेद में जितनी भी प्रभाव शाली और रसायन औषधियों का उल्लेख हुआ है उसमें हरड़ और आंवला इन दो को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है । महर्षि चरक ने तो यहां तक कहा है कि संसार के अंदर अवस्था स्थापक जितने द्रव्य हैं उनमें आंवला सबसे प्रधान है । महर्षि कहते हैं कि दीर्घायु, स्मरण शक्ति, बुद्धि, तंदुरुस्ती, यौवन, तेज, कांति, शरीर एवं इंद्रिय बल तथा वीर्य की पुष्टता ये सब रसायन के सेवन से प्राप्त होते हैं । ऐसे रसायनों में आंवला सर्व प्रधान है। आंवला में विटामिन ‘सी’ भरपूर मात्रा में होता है और किसी भी रूप में नष्ट नहीं होता। आंवला मुरब्बा और लौंजी दोनों ही रूपों में गुणकारी होता है। आंवला के फायदे बहुते हैं ।
आंवले की लौंजी बनाने की विधि –
आवश्यकतानुसार आंवले लेकर पानी में उबाल लें। जब यह ठीक तरह से उबल जाता है तो इसकी कलियां स्वतः ही खिलने लगती उबलने पर इसे चलनी में रख दें ताकि पानी निकल जाए। आंवले की कलियां कर गुठली फेंक दें। कड़ाही में तेल गर्म कर हींग, जीरा, सौंफ अजवाइन के साथ छौंक दें। स्वाद के अनुसार नमक, मिर्च, हल्दी और चीनी डाल दें। खट-मीठी, स्वादिष्ट तथा गुणकारी लौंजी तैयार है ।
आंवलें का मुरब्बा बनाने की विधि –
आंवले का मुरब्बा भी बड़ा ही गुणकारी होता है , इसे बनाने के लिए सबसे पहले आंवलों को मात्रा अनुसार ले लें फिर उसमे किसी नोकदार चीज से छेद कर लें और नींबू के रस को पानी में घोल लें और आंवलों को सारी रात के लिए उसमें भिगो कर रख दें। उसके बाद आंवलों को अच्छे से धो लें दुबारा से फिर से एक बार और दोबारा धो लें । तीसरी बार फिर उन्हें अच्छी तरह से पानी से धो लें । फिर उनको निचोड़ लें और बचा हुआ नींबू का रस अच्छी तरह से निचुड़ने दें । पानी उबाल लें और इसमें आंवला को डालें । आंवलों को नरम होने तक पकाते रहें । उसके बाद पानी निकालकर आवलें अलग कर दें अब चीनी, नींबू का रस और मात्रा अनुसार पानी मिला कर उसे चाशनी के रूप में तैयार कर लें लेकिन ध्यान रहे, आपका मिक्सचर एक तार छोड़ने जैसा होना चाहिए । अब उसमें आंवला डाल दें और उबाल आने दें और धीमी आंच पर चार से पांच मिनट तक उसे पकने दें । ठंडा होने के बाद उसे टाइट डिब्बे में भर कर ढक्क्न अच्छी तरह से बंद कर दें । आप इसमें इलायची या अपनी पसंदीदा अन्य सामग्री भी डाल सकते हैं ।
सहजन –
आयुर्वेद में सहजन को स्वाद में चरपरा, तीक्ष्ण और स्वभाव से गरम, हल्का, अग्निदीपक, रुचिकारक, कड़वा तथा गुण की दृष्टि से मलरोधक, शुक्रवर्धक, हृदय और नेत्रों के लिए हितकारी, कफ, वात, सूजन, कृमि, अग्निमाध और विष तथा व्रण को दूर करने वाला माना गया है । इसके पत्ते शीतल, नेत्रों के लिए हितकारी, कामो द्दीपक और कृमिनाशक होते हैं। कोमल पत्तियों में विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होता है, इसलिए इसकी सब्जी बनाकर खाई जाती है। फूल भी बड़े गुणकारी होते हैं। ये स्वाद में चरपरे, स्वभाव से गरम और गुण की दृष्टि से तिल्ली की बढ़त को रोकने वाले, सूजन, स्नायु रोग और मांस पेशियों के रोग को दूर करने वाले होते हैं । इसके फलों और फूलों की सब्जी बनाई जाती है । सहजन का उपयोग करके हम कई रोगों से बच सकते हैं ।
सहजना के फूल की सब्जी बनाने की विधि –
ताजा खिले हुए फूल एवं पत्तियां चुनकर उन्हें नमक के पानी में अच्छी तरह धो लें। सादा पानी में उबाल कर अच्छी तरह किमोड हींग, जीरे से छौंक दें। यदि लहसुन, प्याज खाते हैं तो पहले प्याज, लहसुन, हींग, जीरा, मिर्च, हल्दी, धनिया पाउडर डालकर मसाले को अच्छी तरह से भून लें और जब मसाले में जाली पड़ने लगे तो उसमें निचुड़े हुए फूल डालकर नमक मिला लें तथा अच्छी तरह भून लें। पानी नहीं डालें।
सहजना की फलियों की सब्जी बनाने की विधि –
सहजना की ताजा कच्ची फलियों को साफ पानी से धो लें । चाकू से छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी में उबाल कर निचोड़ लें और हींग, जीरे से तेल में छौंक लें । यदि प्याज, लहसुन खाते हैं तो पहले हींग, जीरा, लहसुन, प्याज, हल्दी, मिर्च एवं धनिया डालकर मसाला अच्छी तरह से भून लें। जब जाला पड़ने लगे तो उबली-निचुड़ी फलियां डाल दें और नमक मिलाकर अच्छी तरह भून लें । पानी नहीं डालें। “
बहेड़ा (Terminalia beletica) –
काम्ब्रेटेसी कुल के पेड़ बहेड़ा को वनस्पति शास्त्र में (Terminalia beletica) के नाम से जाना जाता है। ये पश्चिमी राजस्थान के अत्यन्त शुष्क भागों को छोडकर भारत के अधिकांश पत झडी वनों में पाया जाता है। इसका पेड़ सौ फीट से भी ऊंचा चला जाता है। तना सीधा और काफी मोटा होता है। इसकी छाल करीब आधा इंच मोटी, धुंधले-सफेद और गाढ़े भूरे रंग की होती है । इसके पत्ते अण्डे के समान व कुछ चौड़े होते हैं । फरवरी-मार्च में इसके पत्ते पीले पड़कर झड़ जाते हैं और मार्च में नई पत्तियां आ जाती हैं। शीत काल के प्रारंभ में इसमें फल लगते हैं। गोल, हरे और गूदेदार फल सूखने पर धारीदार या हल्के पंचकोणीय दिखते हैं जिनमें एक बीज होता है। इसकी छाल से पीला रंग व बीजों से तेल निकाला जाता है।
आयुर्वेद की दृष्टि से ये एक महत्वपूर्ण पेड़ है। आयुर्वेद में इसे स्वाद की दृष्टि से चरपरा, कड़वा व कसैला माना गया है। ये नेत्रों के लिए हितकारी, केशवर्धक, कफ पित्त, नासा रोग, रुधिरदोष, कंठ रोग, खासी, कृमि व स्वर भेद को नष्ट करने वाला व सर्पदंश में भी उपयोगी माना गया है । स्पर्श में शीतल, ऊष्णवीर्य और हृदयरोग में लाभदायक है। इसके मगज का लेप या उसका तेल राजन, दाह और खुजली को कम करने के लिए लगाया जाता है । इसकी लकड़ी प्लाई काष्ट उद्योग, पैकिंग केस उद्योग और स्लेट फ्रेम व नाव आदि बनाने के काम आती है। इसके फल में टेनिन, बी-सिटोस्टेरॉल, गोलिक एसिड, इलेगिक एसिड, एथिलगैलेट, चेबुलेजिक एसिड, मैनिटात, ग्लुकोन कलेक्टोज, फ्रकटोज व रैमनोज रसायन पाए जाते हैं। टेनिन का इस्तेमाल रंग व स्याही बनाने के काम आता है । कृत्रिम उत्पादन की समस्त रोपण व मूलमुण्ड रोपण विधि से इसका उत्पादन किया जाता है । बहेड़ा के फायदे बहुत से होते हैं । इसे हम हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables) की तरह न भी सही लेकिन बहेड़ा का चूर्ण बनाकर प्रयोग कर सकते हैं ।
उपरोक्त लेख से हम जान गए होंगे कि हमारे जीवन में हर्बल शब्जियां (Herbal Vegetables) की क्या अहमियत है, अगर आपको ये लेख पसंद आया हो तो आप मुझे इस संबंध में सुझाव दे सकते हैं जिससे मैं और अच्छे लेख लिख सकूं ।
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