उसने अपने देश को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने की अपनी सनक पूरी करने की खातिर न केवल शहर खाली करवाए, बल्कि स्कूल-कॉलेज भी बंद करवाए, सभी को एकदम काला लिबास पहनने व ‘ब्रदर्स’ के रूप में रहने पर मजबूर किया, अपने शासन काल में लाखों निर्दोषों और मासूमों को मौत के घाट उतार दिया। बचपन में बौद्ध मठ में एक आम भिक्षु की तरह रहकर बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर 1950 में पेरिस में रेडियो इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरी की पढ़ाई करने वाला सोलाथ सार, कंबोडिया पहुंचकर भूगोल, इतिहास और नीति शास्त्र का पाठ पढ़ाने वाला अध्यापक किस तरह इतना बर्बर और निरंकुश तानाशाह ‘पोलपॉट’ बना, यह एक लंबी कहानी है। साथ ही दुनिया में इस तथ्य को बहुत ही कम लोग जानते हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वह महात्मा गांधी के दर्शन से बहुत प्रभावित हुआ था और उनका काफी सम्मान करता था। दुनिया के क्रूर तानाशाहों की सूची में एक नाम है ‘पोलपॉट’। दुनिया उसे एक सनकी और खतरनाक तानाशाह पोल पॉट (Pol pat, a cynical and dangerous dictator) के रूप में जानती है ।
पोल पॉट का जन्म व प्रारम्भिक जीवन
फ्रांस के उपनिवेश कंबोडिया की राजधानी नोमपेन्ह से 130 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित कोमयोंग थाम नामक स्थान पर एक किसान परिवार में 25, मई 1928 को एक बच्चे का जन्म हुआ हुआ जिसका नाम रखा गया ‘सोलाथ सार’। यह बालक जब चलने-फिरने लायक हुआ, तब उसके माता-पिता ने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा के लिए उसे बौद्ध मठ भेज दिया। वहां उसने बाकायदा बौद्ध भिक्षु की तरह रहते हुए बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और अपना अध्ययन पूरा किया। उसकी इच्छा इंजीनियर बनने की थी। इसे देखते हुए उसके परिवार ने इंजीनियर बनने के लिए उसे पेरिस भेजना चाहा। बौद्ध मठ से आने के बाद और परिवार के राजशाही से मधुर संबंधों के कारण उसे सरकारी वजीफा मिला और जिसके परिणाम स्वरूप सोलाथ सार रेडियो इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरी की पढ़ाई के लिए पेरिस चला गया।
सोलाथ सार पढ़ाई में वह बहुत तेज तो नहीं था, लेकिन उसमें यह विशेषता थी कि जिसको उसने एक बार पढ़ लिया, देख लिया, उसे वह कभी भूलता नहीं था। यह विशेषता उसमें हमेशा बनी रही। पेरिस प्रवास के दौरान उसमें एक जबर्दस्त बदलाव आया । कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव में आकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के मकसद से पेरिस आए सोलाथ सार का मन पढ़ाई से उचट गया। उसके मन में समाज को बदलने के लिए रक्त रंजित क्रांति का अंकुर यहीं से फूटा। पेरिस में रहते हुए उसे कम्युनिस्ट सेल गठित करने में कामयाबी मिली, कंबोडिया से पढ़ने आए युवकों से उसके संपर्क बढ़ने लगे और वे उसके प्रभाव में आने लगे, तब उसे खूनी क्रांति के जरिये समाज को बदलने का अपना सपना पूरा होता नजर आया। उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपना सपना साकार करने के लिए कंबोडिया लौट आया। (एक सनकी और खतरनाक तानाशाह पोल पॉट)
पोल पॉट का राजनैतिक जीवन
सोलाथ सार ने कंबोडिया पहुंचकर छात्रों को भूगोल, इतिहास और नीति शास्त्र पढ़ाना शुरू कर दिया । उसकी भाषण देने की कला से नौजवान बेहद प्रभावित होने लगे। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे पेरिस से अध्ययन पूरा कर लौटे कंबोडियाई नौजवानों ने पूरा सहयोग दिया। सोलाथ सार ने ‘खमेर रूज’ नामक भूमिगत कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया। 1953 में कंबोडिया आजाद हुआ और वहां के राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक ने देश की सत्ता संभाली। सोलाथ सार ने अब जंगलों को अपना बसेरा बनाया और अपने संगठन को मजबूत बनाने में जी-जान से जुट गया। 1963 में सोलाथ सारअपनी पार्टी का महासचिव बन गया ।
पोल पॉट का कम्बोडिया की सत्ता पर काबिज होना
1970 में अमेरिका और दक्षिण वियतनाम के समर्थन से जनरल लोन नोल ने राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक को अपदस्थ कर कंबोडिया में अपनी सरकार बनाई तब सोलाथ सार बौखला उठा। उस समय सोलाथ सार का एकमात्र उद्देश्य अपने देश को अमेरिका और दक्षिण वियतनाम के चंगुल से बचाना था। वह इन दोनों देशों से जबर्दस्त घृणा करता था। इस बीच सोलाथ सार अपनी ताकत बढ़ाने में दिन-रात लगा रहा और 1975 में वह लोन नोल को हटाकर कंबोडिया का सर्वे सर्वा बन बैठा।
‘सोलाथ सार’ से ‘पोल पॉट’
यही वह समय था जब कंबोडिया में शोषण और दमन का दौर शुरू हुआ। सत्ता पर काबिज होते ही सोलाथ सार को नाम रखने की सनक सूझी जो दुनिया में सबसे अलग और अनोखा हो। वह खुद को सबसे बड़ा क्रांतिकारी सिद्ध करना चाहता था, इसीलिए उसने एक अनोखे नाम की तलाश शुरू की, जो ‘पोलपॉट’ पर जाकर खत्म हुई। इसके साथ ही ‘सोलाथ सार’ पीछे छूट गया और ‘पोलपॉट’ का अवतरण हुआ जो आगे चलकर शोषण, दमन और क्रूरता का प्रतीक बन गया।
कंबोडिया में शोषण और दमन का दौर
‘पोलपॉट’ ने अपनी सरकार में इयेंग सेटी को विदेश सचिव, सोन सेन व उसकी पत्नी युन याथ सहित 11 पुरुष और 2 महिलाओं को मंत्री पद दिए। इसके बाद पहला फरमान जारी किया कि सभी लोग, भले वह भिक्षु ही क्यों न हों फार्मों पर काम करें, काला लिबास पहनें और ‘ब्रदर्स’ के रूप में रहें। सारा देश उसे ‘ब्रदर नंबर वन’ कहे। भले वह बचपन में बौद्ध मठ में रहा, वहीं दीक्षा ली, प्रारंभिक शिक्षा भी उसने मठ में ही ग्रहण की, लेकिन इस सबके बावजूद उसे मठों और भिक्षुओं से अत्यधिक घृणा थी।
इसे घृणा कहें या सनक कि उसने सैकड़ों चश्मा पहनने वालों की हत्या करवा दी क्योंकि वे बौद्धिकों की तरह लगते थे, जो उसे बौद्ध भिक्षु की ही तरह नापसंद थे। वह पूरे देश को गांवों और फार्मों के रूप में बदलना चाहता था। अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने के लिए उसने शहरों को खाली करवाया, स्कूल-कॉलेज बंद करवा दिए ताकि सभी लोग फार्मों पर काम करें और उन्नति के पथ पर बढ़ते हुए उसका देश स्वर्ग से भी सुंदर बन सके। (एक सनकी और खतरनाक तानाशाह पोल पॉट)
‘पोल पॉट’ की सनक
सत्ता हाथ में आते ही ‘पोलपॉट’ वर्ग शत्रु की परिभाषा ही भूल गया। विचारधारा केन्द्रित होने के परिणाम स्वरूप हालत यह हो गई कि उसे प्रत्येक व्यक्ति जो उसकी हां में हां नहीं मिलाता, विरोधी दिखाई देने लगा। ऐसे लोगों को सबक सिखाने की गरज से उसने ‘तुएल स्लैंग’ नामक पीड़क सेल बनवाया जिसमें उसने अपने विरोधियों और मासूमों को यातनाएं दीं। आज यह सेल अजायब घर में तब्दील कर दिया गया है । इस ‘तुएल स्लैग’ नामक पीड़क सेल में होने वाली हत्याओं, प्रताडना और अमानवीय बर्बर यातनाओं की भयावहता का खुलासा यहां कैद वॉन नाथ नामक उस चित्रकार ने किया है जिसे ‘पोलपॉट’ के चित्र बनाने के लिए चुन लिया गया था। इसी वजह से वह बच भी सका। आज उसी चित्रकार वॉन नाथ के बने चित्र अजायब घर की दीवारों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
‘पोलपॉट’ की सनक का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि वह अपने विरोधियों को मारने से पहले उन्हीं से उनकी कब्रे खुदवाता था और कब्रें खोदते समय ही उन पर कुल्हाड़े चलवाता था। उसके संगठन ‘खमेर रूज’ और उसने खमेर भाषा की इस कहावत को ‘ब्रह्म वाक्य’ की तरह कंठस्थ कर अपना मूलमंत्र माना। जिसका अर्थ होता था जिसे एक बार चुप करा दिया गया, समझो वह मर गया।’ खमेर रूज यानी लाल खमेरों के इस सैनिक दस्ते के मुखिया ने इसी कहावत को अपने विरोधियों से पीछा छुड़ाने के लिए अपना आदर्श माना। उसने अपने केवल पौने चार सालों के अल्प शासन काल में लाखों लोगों को मरवा दिया। कंबोडिया के संग्रहालय में रखे नरमुंड ‘पोलपॉट’ की निर्ममता के जीते-जागते सबूत हैं।
‘पोल पॉट’ की सत्ता का अंत
‘पोलपॉट’ की नीतियों के कारण देश अन्न उत्पादन में लगातार पिछड़ता गया, मुद्रा बाजार बंद करने की सनक के चलते कंबोडिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, वह गरीबी, भूखमरी का शिकार हो गया। 1979 के अंत तक पोलपॉट के तानाशाही शासन से कंबोडिया मुक्त हुआ और फिर एक बार वियतनाम के समर्थन से हुन सेन की कंबोडियाई पीपुल्स पार्टी का शासन कंबोडिया पर कायम हुआ। (एक सनकी और खतरनाक तानाशाह पोल पॉट)
पोलपॉट फिर से जंगलों में चला गया और वहीं से वह छापामार गुरिल्ला युद्ध का संचालन करता रहा। कंबोडिया पर भले ही 1993 तक हुनसेन की सरकार काबिज रही, लेकिन इस बीच उसे खमेर रूज के छापामार दस्तों के आतंक से बराबर दो-चार होना पड़ा। फिर कंबोडिया में हुए चुनावों में राजकुमार नरोत्तम सिहानुक के पुत्र रणरिद्ध को बहुमत हासिल हुआ और तब हुनसेन ने रणरिद्ध सिंहानुक के साथ सरकार बनाकर देश चलाने का निर्णय किया। समय के साथ-साथ खमेर रूज पर दबाव बढ़ता गया और ‘पोलपॉट’ की छापामार आतंकी गतिविधियों में कमी आने लगी।
‘पोलपॉट’ के जिद्दी और सनक भरे निर्णयों से आजिज आ चुके उसके कई समर्थक गुट उससे अलग होते चले गए। उसे सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उसके विदेश सचिव रहे इयेंग सेटी और उसके सबसे बड़े विश्वास पात्र ‘सोन सेन’ और उसकी पत्नी ‘युन याथ’ ने भी अपने हजारों समर्थकों के साथ ‘हुनसेन’ व सरकारी सेना से हाथ मिला लिया। अपना शासन छिन जाने पर भी ‘पोलपॉट’ उतना हताश नहीं हुआ जितना ‘सोन सेन’ व ‘युन याथ’ के साथ छोड़ने पर हुआ। इसे उसने अपनी पराजय माना और कुछ दिन बाद मौका मिलते ही ‘सोन सेन’ व ‘युन याथ’ को उनके नौ बच्चों सहित मौत के घाट उतार दिया।
‘पोल पॉट’ को सजा
एक न एक दिन हर तानाशाह का अंत होता ही है, ‘पोलपॉट’ भी इसका अपवाद नहीं बन सका। वह कैंसर और मलेरिया से पीड़ित था, सत्ता उसके हाथ से खिसक चुकी थी, वरिष्ठ और विश्वास पात्र साथी उसे छोड़कर जा चुके थे और हजारों छापा मारों द्वारा उसे छोड़ सरकारी सेना से जा मिलने से ‘पोलपॉट’ कमजोर हो टूट चुका था। इन्हीं हालातों में उसके सनकीपन और ऊल-जुलूल निर्णयों से तंग आकर 1997 में आखिर कार उसके ही साथियों ने उसे बंदी बना लिया और जिस जेल का निर्माण कभी उसने अपने विरोधियों को यातना देने के लिए बनवाया था, उसमें ही डाल दिया गया।
‘पोलपॉट’ को जब अदालत में लाया गया तो वह एकदम शांत था। वह सभी गवाहियों और अदालत के फैसलों को चुपचाप स्वीकार कर रहा था और जब अदालत उसे आजीवन कारावास की सजा सुना रही थी, अदालत के बाहर लोग चिल्ला-चिल्लाकर उसे अपराधों के लिए कोस रहे थे। जिन लाखों लोगों को उसने मौत के घाट उतार दिया था, उनके परिवार और सगे-संबंधी उसकी मौत की दुआ कर रहे थे। अदलात द्वारा उसे मौत की सजा सुनायी गई । (एक सनकी और खतरनाक तानाशाह पोल पॉट)
‘पोल पॉट’ का अंत
आजीवन कारावास की सजा दिए जाने के बाद भी उसके रहस्यमयी व्यक्तित्व से पूरा विश्व सदैव आतंकित रहता था, लेकिन पोलपॉट को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था और न ही उसने अपने अपराधों को अंत तक स्वीकार ही किया। अक्टूबर 1997 के आखिरी दिनों में हांगकांग की पत्रिका ‘फॉर इस्टर्न इकोनॉमिक रिव्यू को दिए साक्षात्कार में पोलपॉट ने बार-बार यह कहा कि चूंकि उसकी आत्मा पाक साफ है, इसीलिए उसे अपने किए पर कोई पछतावा, दुख या ग्लानि नहीं है। उसने यह स्वीकारा कि हो सकता है कि उससे कुछ गलतियां हुई हों, लेकिन अमेरिका और वियतनाम के चंगुल से देश को बचाने के लिए इसके सिवा उसके पास कोई चारा ही नहीं था।
साक्षात्कार के अंत में ‘पोलपॉट’ ने कहा कि पेरिस में इंजीनियरी की पढ़ाई के दौरान मैं महात्मा गांधी के दर्शन से काफी प्रभावित हुआ था और उनके लिए मेरे मन में काफी सम्मान है । अप्रैल, 1998 के पहले पखवाड़े में ‘पोलपॉट’ की कैंसर से मृत्यु हुई, तब भी किसी को यह विश्वास नहीं हुआ। कंबोडियाई तो लंबे असें तक इसी आशंका में जीते रहे कि कहीं ‘पोलपॉट’ फिर से जिंदा न हो जाए । एक इंजीनियर, अध्यापक जो लंबे समय तक विश्व मानचित्र पर अपनी छापामार गतिविधियों, आतंक, जुल्म, शोषण, दमन और एक निर्मम, सनकी और निरंकुश तानाशाह के रूप में कुख्यात रहा, ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर दुनिया में एक आंसू भी नहीं टपका और एक अंजान आदमी की तरह वह हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरे में खो गया ।।
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