https://zindagiblog.com/zindagiblog.com
जिंदगी जीने के लिए ...
Milkha Singh a Flying Sikh

Milkha Singh a Flying Sikh – मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

Milkha Singh (मिलखा सिंह)  को फ्लाईंग सिख के नाम से जाना जाता है Milkha Singh a Flying Sikh , मिलखा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावकों में से रहे  हैं। मिल्खा सिंह ने  रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित  1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको “उड़न सिख-Flying Sikh” के नाम से भी जाना जाता था । 1960 में  रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान को ध्वस्त किया था दुर्भाग्य वश  स्वर्ण पदक से वे वंचित रह गए थे । इस दौड़ में   मिल्खा  सिंह ने  अंतर्राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया था ये  कीर्तिमान  लगभग 40 साल के बाद जाकर टूट पाया , उनका दुखद देहांत हो गया है। आज हम मिल्खा सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हैं :-

मिल्खा सिंह का जन्म व् शुरुआती जीवन –

मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के गोविन्दपुर ग्राम में एक सिख परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था  जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं। मिल्खा सिंह अपने माँ बाप की  15 संतानों में से एक थे। उनके कई भाई-बहन बचपन  में ही खत्म हो गए थे। भारत पाक के विभाजन के दौरान हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन को भी खो दिया था ।  वे शरणार्थी बन कर ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन तक ठहरे । कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में रहने लगे । मिल्खा सिंह  अपने भाई मलखान सिंह के कहने पर सन्न 1951 में  सेना में भर्ती हो गए  बचपन  में मिल्खा सिंह घर से स्कूल जाते वक्त और स्कूल से घर आते वक्त  10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी किया करते थे। सेना में  भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में वे छठे स्थान पर आये। इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुन लिया था।

मिल्खा सिंह का करियर – 

सेना में रहते ही मिल्खा सिंह ने  कड़ी मेहनत की और 200 मीटर  और 400 मीटर  में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की । उन्होंने सन 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिनअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण वह सफल नहीं हो सके लेकिन उसके बाद  400 मीटर प्रतियोगिता के उस समय के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीके भी बताये ।

 सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय रिकार्ड बनाया और उन्होंने एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया था । सन्न 1958 में उन्हें एक और  सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया था । इस प्रकार मिल्खा सिंह  राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बने थे । इसके बाद मिल्खा सिंह ने  सन 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में हराया जिसके बाद जनरल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को  ‘उड़न सिख – Flying Sikh ’ कह कर पुकारा था तब से ये उनका तखल्लुस Milkha Singh a Flying Sikh बन गया था ।

रोम ओलिंपिक 1960, में मिल्खा सिंह –

रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने के  कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के शिखर पर  थे और ऐसा  हर कोइ मान रहा था कि इन खेलों में मिल्खा स्वर्ण पदक जरूर हासिल करेंगे । रोम ओलम्पिक खेलों से  पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। रोम ओलम्पिक में 400 मीटर दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक का रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर वह चौथे स्थान के साथ स्वर्ण पदक से वंचित रह गए । इसी दौड़ में  250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें हमेशा रहा । मिल्खा सिंह को लगा  कि वह दौड़ में  अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद कायम नहीं रख पाएंगे और वह  पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें गंभीर रूप से भुगतना  पड़ा। और मिल्खा सिंह जैसा  धावक जिससे स्वर्ण पदक की आशा थी कांस्य पदक भी नहीं जीत पाया। मिल्खा सिंह को आज तक उस बात का अफसोश रहा है। इस असफलता से वह इतने निराश हुए कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का मन बना लिया पर लोगों के बहुत समझाने के बाद उन्होंने फिर से मैदान में वापसी की।

मिल्खा सिंह ने उसके  बाद सन्न 1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता । उसके बाद मिल्खा सिंह ने सन्न 1964 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया और उन्हें तीन स्पर्धाओं 400 मीटर, 4 X 100 मीटर रिले और 4 X 400 मीटर रिले में भाग लेने के लिए चुना गया था पर उन्होंने 4 X 400 मीटर रिले में ही  भाग लिया पर बदकिस्मती से वह  टीम फाइनल दौड़ के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पायी थी ।

मिल्खा सिंह द्वारा रोम ओलिंपिक में स्थापित राष्ट्रिय कीर्तिमान को धावक परमजीत सिंह ने सन 1998 में तोड़ा था । भारत के विभाजन के दौरान मिल्खा सिंह एक अनाथ और विस्थापित होने वाले व्यक्ति थे लेकिन बाद में वो अपने देश में एक खेल प्रतीक बन गए । सन्न  2008 में, पत्रकार रोहित बृजनाथ ने मिल्खा  सिंह को “भारत के अब तक के सबसे बेहतरीन एथलीट” के रूप में वर्णित कर सम्मानित  किया था ।

मिल्खा सिंह का खेल के बाद का जीवन –

सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद भारतीय सेना ने मिल्खा सिंह को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ के तौर पर पदोन्नति कर सम्मानित किया  था उसके  बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में ‘खेल निदेशक’ के पद पर नियुक्त किया था । इसी पद पर मिल्खा सिंह सन्न  1998 में सेवानिवृत्त हुए थे ।

खेलों में अत्यधिक योगदान के कारण भारत सरकार ने सन्न 1958 में  मिल्खा सिंह को पद्मश्री से सम्मानित किया था । उसके बाद भारत सरकार ने मिल्खा सिंह को सन्न 2001 में अर्जुन पुरष्कार देने का फैसला किया था परन्तु  मिल्खा सिंह ने भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले  ‘अर्जुन पुरस्कार’ को ठुकरा दिया था । मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में जीते सारे पदकों को राष्ट्र के नाम कर दिया। शुरू के दिनों में में उनके पदकों को दिल्ली के  जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में रखा गया था  लेकिन  बाद में उन पदकों को पटियाला  के एक खेल म्यूजियम में भेज  दिया गया। मिल्खा सिंह ने सन्न  2012 में  रोम ओलिंपिक के 400 मीटर दौड़ में पहने जूतों एक चैरिटी की नीलामी में दान कर दिया था ।

मिल्खा सिंह व् बालीवुड –

 मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर सन्न 2013 में अपनी आत्मकथा ‘The Race of My Life’ लिखी थी । बाद में इसी पुस्तक से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्माता निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक हिंदी  फिल्म बनायी थी जो बेहद हिट रही लोग इस फिल्म को आज भी याद करते हैं । इस फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने बहुत अच्छे ढंग से निभाया था ।

मिल्खा सिंह का निजी जीवन –

मिल्खा सिंह ने भारतीय महिला वॉलीबॉल की  पूर्व कप्तान निर्मल कौर से सन्न 1962 में विवाह किया था । निर्मल कौर से उनकी मुलाकात सन्न 1955 में श्री लंका में हुई थी । मिल्खा सिंह की  तीन बेटियां और एक बेटा है। मिल्खा सिंह का बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है। मिल्खा सिंह ने सन 1999 में  शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के सात वर्षीय पुत्र को गोद ले  लिया था । मिल्खा सिंह अपने अंतिम समय  तक  पंजाब की राजधानी  चंडीगढ़ शहर में रहते रहे l

मिल्खा सिंह की मृत्यु –

महान ऐथलीट मिल्खा सिंह  कोरोना से  संकर्मित हो गए थे । कोरोना वायरस से संक्रमित होने के करीब एक महीने बाद 91 वर्ष की आयु में  18 जून 2021 को इस महान धावक का निधन हो गया। सन्न 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स के चैंपियन और 1960 के ओलिंपियन, ने चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली। इससे पूर्व मिल्खा सिंह  20 मई 2021 को कोरोना वायरस की चपेट में आकर कोरोना पाजटिव हो गए थे। इससे पहले उनका पारिवारिक कुक  कोरोना का पॉजिटिव हो गया था जिसके बाद मिल्खा और उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह कोरोना पॉजीटिव हो गए थे । तबसे मिल्खा सिंह अस्पताल में ही भर्ती थे। हम इस महान धावक Milkha Singh a Flying Sikh को श्रदांजली देते हैं ।।

ये भी पढ़ें –

Biological clock in Human Body in Hindi – जैविक घड़ी किसे कहते हैं ?

How to manage Time in Hindi – 80:20 का सिंद्धांत

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *