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25 Facts About Time Zones

25 Facts About Time Zones – Greenwich Mean time क्या है ?

25 Facts About Time Zones – Greenwich Mean time क्या है ?

प्रैल 2006 में श्रीलंका ने अपनी घड़ी को आधा घंटा पीछे कर दिया था , तो सभी के दिमाग में यह प्रश्न आया था  कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस छोटे देश को एक बार फिर से प्रमाणित समय को पुनर्व्यस्थित करने के लिए जीएमटी को + 6 से घटाकर + 5.30 करना पड़ा । तब  यह  दलील दी गई कि जीएमटी + 6 को मानने से अंतरराष्ट्रीय परिवहन, बैंकिंग और दूरसंचार में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं और श्रीलंका अपने समय को अंतरराष्ट्रीय समय से सही-सही मिलान नहीं कर पा रहा था। दरअसल यह पूरा मसला प्रमाणिक समय, ग्रीनविच मीन टाइम, देशान्तर और टाइम जोन का है और इसी आधार पर एक देश के समय को जानकर हम दूसरे देश का समय ज्ञात कर सकते हैं। आइए जानते हैं  25 Facts About Time Zones  और  Greenwich Mean time क्या है ?

 

25 Facts About Time Zones

1- किसी देश के मानक समय का निर्धारण  –

किसी भी देश के समय निर्धारण के लिए सबसे पहले उसका स्थानीय समय (लोकल टाइम) और फिर प्रमाणिक समय (स्टैंडर्ड टाइम) का निर्धारण करना बहुत जरूरी है। इसके अलावा कुछ और बातों का पता लगाना होता है, जैसे उस देश का मानक समय कितने देशान्तर पर मापा जाता है। वह स्थान ग्रीनविच समय से कितने घंटे आगे या पीछे है। यानी पूर्व में है या पश्चिम में। यदि किसी शहर का स्थानीय समय निकालना है, तो यह देखना कि वह कितने देशान्तर पर स्थित है, क्योंकि गणना में प्रत्येक देश या शहर का स्थानीय समय अलग -अलग हो सकता है।

2- दुनियां के सभी हिस्सों में अलग अलग समय –

दरअसल यह सारा खेल पृथ्वी के घूमने के साथ समय बदलने का है। लोग यही सोचते हैं कि पूरी दुनिया में एक समान समय क्यों नहीं होता ? जैसा हम जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की परिक्रमा करते वक्त 24 घंटे में एक बार घूमती है। उसी परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी के एक हिस्से में सूर्य के प्रकाश के कारण दिन होता और दूसरे हिस्से में अंधेरा । उदाहरण के लिए दुनिया की प्रत्येक घड़ी शाम के 3 बजना दिखाए तो उसी समय ऐसे कई देश होंगे, जहां सूर्योदय हो रहा होगा और अन्य जगहों पर रात हो रही होगी। ऐसी स्थिति में दैनिक चक्र तो निश्चित ही नहीं हो पाएगा। इसी निर्धारण के लिए ग्रीनविच मीन टाइम और टाइम जोन की कल्पना की गई और सभी देशों के लिए समय निर्धारित किया गया।

3- टाइम जोन क्या है ? किसी भी देश के समय के निर्धारण में इसकी भूमिका  –

1884 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में पूरी दुनिया को 24 समय क्षेत्रों में बांटा गया। इसके अनुसार प्रत्येक क्षेत्र एक घंटे का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक समय क्षेत्र में 15 डिग्री की दूरी होती है। इस एक समय क्षेत्र को ही समय क्षेत्र या टाइम जोन कहते हैं। इंग्लैंड स्थित ग्रीनविच वह स्थान है, जिसे टाइम जोन का प्रारंभिक बिन्दु माना गया। बारह जोन ग्रीनविच के पश्चिम में और बारह जोन पूर्व में निर्धारित किए गए। प्रत्येक समय क्षेत्र में समय की गणना यूनिवर्सल टाइम के द्वारा की जाती है, इस समय को ग्रीनविच मीन टाइम के तौर पर भी जानते हैं। समय को 12वें जोन की 180वें याम्योत्तर रेखा यानी अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा (इंटरनेशनल डेट लाइन) से बांटा गया है। इस लाइन के पूर्वी ओर के जोनों को ‘-‘ के साथ एक से बारह तक की संख्या दी गई है, जिनसे ग्रीनविच समय प्राप्त करने के लिए घटाए जाने वाले घंटों की संख्या का पता चलता है। वहीं पश्चिम की ओर के जोनों को ‘+’ के साथ एक से बारह तक की संख्या दी गई है, जिनसे ग्रीनविच समय प्राप्त करने के लिए जोडे जाने वाले घंटों की संख्या का पता चलती  है।

 4- ग्रीनविच मीन टाइम क्या है ? ग्रीनविच को ही समय मापने  के लिए चुने जाने का कारण  –

 इंग्लैंड स्थित ग्रीनविच को यूनिवर्सल टाइम निर्धारण के लिए इसलिए चुना गया, क्योंकि देशान्तर रेखाओं में शून्य डिग्री वाली देशान्तर रेखा इसी शहर से होकर गुजरती है, इसलिए ग्रीनविच स्थित स्थानीय समय को ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) कहते हैं, जिसका निर्धारण मध्याह्न में द रॉयल ऑब्जरवेट्री में किया जाता है। एक तरह से देखा जाए तो ग्रीनविच मीन समय सौर समय है। कह सकते हैं कि ग्रीनविच मीन टाइम वह औसत समय जो दोपहर से दोपहर पृथ्वी घूमने से लिया जाता है। जीएमटी को कई बार ग्रीनविच मध्याह्न समय से भी पुकारा जाता है, क्योंकि इसका मापन ग्रीनविच मध्याह्न रेखा से होता है, जो ग्रीनविच से होकर गुजरती है। दरअसल जीएमटी विश्व समय है और विश्व के प्रत्येक टाइम जोन का आधार है, जिससे समय का निर्धारण किया जाता है और यह टाइम जोन मैप का केंद्र है। जीएमटी से ही पूरे विश्व के सरकारी और वर्तमान समय मापे जाते हैं। हालांकि जीएमटी को एटामिक टाइम (यूटीसी) से बदला गया है, ताकि प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय टाइम जोन के लिए सही समय मापा जा सके । उदाहरण के लिए इंग्लैंड शिकागो का जीएमटी 6 है। यदि ग्रीनविच में समय 7 PM हो रहा है तो शिकागो में उस समय 1 PM (7-6=1) हो रहा होगा। ऐसा ही एक उदाहरण हम भारत को लेकर समझ सकते हैं भारत का समय जीएमटी से + 5.30 घंटे आगे है। यदि ग्रीनविच की घड़ी में समय 7 pm हो रहा होगा, तो भारत में (7+5.30=12.30) रात के 12 बजकर 30 मिनट हो रहे होंगे।

5- ‘+’ जीएमटी और ‘-‘जीएमटी का  तात्पर्य है । भारत के लिए +5.30 जीएमटी लिखने का मतलब  –

‘+’ का चिह्न ग्रीनविच मध्याह्न समय (जीएमटी) पर घंटेभर अधिक का तथा ”ग्रीनविच मध्याह्न समय (जीएमटी) पर घंटेभर कम को प्रदर्शित करता है, जबकि गर्मियों का समय +1 घंटे भर पर दिखाया जाता है। भारत का समय ग्रीनविच मीन टाइम से 5.30 घंटे आगे है इसीलिए भारतीय टीम को ग्रीनविच में +5-30 लिखतें हैं । 25 Facts About Time Zones

 

25 Facts About Time Zones

 

6- भारत का प्रामाणिक समय (स्टैंडर्ड टाइम) –

एक ही देश में वे सभी स्थान जो एक ही देशांतर रेखा पर स्थित हैं, उनका एक ही समय होता है। परंतु भिन्न-भिन्न देशांतर रेखाओं पर स्थित स्थानों में समय पृथक-पृथक होता है। यदि कोई व्यक्ति पूर्व से पश्चिम की यात्रा करता है तो उसे प्रति देशांतर अपनी घड़ी चार मिनट पीछे करनी पड़ेगी और यदि पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करता है तो उसे प्रति देशांतर घड़ी चार मिनट आगे करनी पड़ेगी। आज के समय में आवागमन, रेल, डाक व तार विभागों के कामों में उलझन से बचने के लिए एक समय का होना आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक देश में एक देशान्तर रेखा को प्रामाणिक (मानक) मध्याह्न रेखा मान लिया जाता है। और उस मध्याह्न रेखा का स्थानीय समय सारे देश के लिए प्रामाणिक समय माना जाता है।

हमारे देश में प्रामाणिक समय का निर्धारण 821/2 डिग्री पूर्वी देशान्तर के मध्याह्न समय (मीन टाइम) से किया जाता है,  यह देशान्तर इलाहाबाद से गुजरती है, इसलिए इलाहाबाद का स्थानीय समय भारतीय मानक समय है। यह समय ग्रीनविच मध्याह्न समय (जीएमटी) से +51/2 घंटे आगे है। वैसे तो पूरा समूचा देश एक ही समय को मानता है, हालांकि एक ही समय को मानने के अपने फायदे हैं, और कुछ नुकसान भी हैं । पूर्वी भारत में, जहां सूर्योदय दो घंटे जल्दी होता है और पश्चिम भारत में दो घंटे बाद । भारत के भागों में एक अन्य अस्थायी अनुरूपता पैदा इसलिए होती है, क्योंकि पूर्व में बांग्लादेश है, जिसका मानक समय जीएमटी +6 से निर्धारित होता है। असम से पश्चिमी बंगाल जाने के लिए आपको बांग्लादेश को पार करते समय घड़ी को आधा घंटा आगे और पीछे करना पड़ता है। भारत का टाइम जोन 1884 में स्थापित हुआ था , जब दो स्टैंडर्ड टाइम जोन थे पहला बांबे टाइम जोन और दूसरा कलकत्ता टाइम जोन ।

7- स्थानीय समय को मानक समय में बदलने की शुरुआत –

इसका श्रेय ब्रिटेन को जाता है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में संचार और आवागमन की बढ़ती सुविधाओं ने सभी जगह एक सामान समय के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटेन में 1840 के आसपास टेलीग्राफ, रेलवे और पोस्टऑफिस कंपनियां स्थानीय समय का उपयोग करने के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना कर रही थीं। इस समस्या से निबटने के लिए रेलवे के साथ अन्य संचार कंपनियां अपने कामकाज का समय ग्रीनविच स्थित ऑब्जरवेट्री के अनुसार करने लगीं। विश्व में पहले टाइम जोन की स्थापना ब्रिटिश रेलवे ने 1 दिसंबर 1847 को की थी। 1855 तक ग्रेट ब्रिटेन में 98 प्रतिशत लोग घड़ी का उपयोग जीएमटी के माध्यम से करने लगे थे। और 1880 तक पूरे ब्रिटेन में प्रमाणिक समय उपयोग होने लगा। बाद में न्यूजीलैंड मीन टाइम की स्थापना की गई। फिर 1884 के बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया जीएमटी से अपने समय का निर्धारण करने लगी। 25 Facts About Time Zones

8- कैलेंडर और कैलेंडरों के प्रकार  –

कैलेंडर बनाने के पीछे मनुष्य का उद्देश्य प्राकृतिक चक्रों से अपनी दिन चर्या और जीवन का तालमेल बैठाना था। प्रकृति में होने वाली विभिन्न घटनाएं हमेशा उसके कौतूहल का विषय बनी रहीं। जब उसने देखा कि आसमान में बार-बार होने वाले परिवर्तनों का पृथ्वी पर भी असर पड़ता है, जिससे उसका दैनिक जीवन प्रभावित होता है तो वह इस रहस्य को कुरेदने में जुट गया। इसके लिए उसने सूर्य, चंद्रमा आदि आकाशीय पिंडों को आधार बनाया। समय को समझने की कोशिश में वह उसके टुकड़े करता चला गया। नतीजतन सामने आए दिन, हफ्ते, महीने, साल और उन्हें एक साथ समेटने वाला कैलेंडर। इस तरह कैलेंडर मनुष्य और ब्रह्मांड के बीच की कड़ी बना। फ्रेज़र के अनुमान के अनुसार वर्तमान में दुनिया में करीब 40 कैलेंडर प्रचलन में हैं, जिन्हें गणना के लिहाज से तीन भागों में बांटा जा सकता है, सोलर, लूनर और लूनीसोलर कैलेंडर। सोलर कैलेंडर में सूर्य सम्पूर्ण गणना के केंद्र में होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलित ग्रिगोरियन कैलेंडर । इसी तरह चंद्रकलाओं पर आधारित कैलेंडर लूनर कैलेंडर कहलाता है जि उदाहरण है, हिजरी या इस्लामिक कैलेंडर जबकि सूर्य तथा चंद्रमा दोनों पर ही आधारित कैलेंडर को लूनीसोलर कैलेंडर कहा जाता है। हिब्रू और चीनी कैलेंडर इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। 25 Facts About Time Zones

9- सैकंड, मिनट और घंटे की शुरुआत, 60 सैकंड, मिनट और एक दिन के 24 घंटे कैसे बने ? –

ऐसा माना जाता है कि 300 से 100 ईसा पूर्व बेबिलोन सभ्यता के लोग खगोलीय गणना में साठ पद्धति (60 को आधार) का उपयोग करते थे। जिस तरह समय-समय पर लोगों द्वारा अलग-अलग संख्याओं को किसी गुणा या भाग के लिए आधार माना गया, उसी तरह ये लोग 60 का आधार मानते थे। इस पद्धति ने समय विभाजन को बहुत ही आसान बना दिया था। 60 ऐसा अंक था जो 2, 3, 4, 5, 6, 10 से विभाजित हो जाता है। आज हम इस पद्धति का उपयोग समय मापने में करते हैं। 1300 बीसीई में मिसवासी सूर्यघड़ी से दैनिक चक्र की व्याख्या करते थे। इसके अनुसार एक दिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच 10 घंटों का, दो घंटे की संध्या और रात 12 घंटे की होती थी। उनका कैलेंडर वर्ष 36 डिकेन में विभाजित था और प्रत्येक डिकेन दस दिन लंबा होता था और साथ में अतिरिक्त 5 दिन होते थे। कुल मिलाकर साल 365 दिन का होता था। इसी पद्धति का उपयोग आगे भी होता रहा और दिन 24 घंटे का निर्धारित किया गया।

10- स्थानीय समय –

पृथ्वी 360 डिग्री देशान्तरों में बंटी हुई है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण प्रत्येक देशान्तर रेखा बारी-बारी से सूर्य के सम्मुख आती-जाती है, इसलिए प्रत्येक देशान्तर रेखा पर मध्याह्न अलग-अलग होता है। मध्याह्न के समय सूर्य आकाश में सबसे ऊंचा होता है। कई स्थानों पर इस मध्याह्न सूर्य की सहायता से ही समय निश्चित किया जाता है। मध्याह्न समय जानने के लिए विशेष प्रकार से बनी हुई धूप घड़ी का प्रयोग किया जाता है। जब घड़ी मध्याह्न बताती है, तब लोग अपनी घड़ियों में 12 बजा लेते हैं। इस प्रकार मध्याह्न सूर्य की सहायता से जब किसी स्थान का समय निश्चित किया जाता है, तो वह उस स्थान का स्थानीय समय कहलाता है। यह समय ग्रीनविच के समय से प्रति डिग्री अक्षांश पर चार मिनट घटता-बढ़ता है।

11-  पूरी दुनिया में विगोरियन कैलेंडर लागू किये जाने का दिन –

अलग-अलग देशों ने ग्रिगोरियन कैलेंडर को अलग-अलग समय पर अपनाया। इटली, पॉलैंड, पुर्तगाल और स्पेन में नया कैलेंडर 15 अक्टूबर, 1582 से ही लागू कर दिया गया था, जबकि अन्य कैथोलिक देशों ने इसे कुछ समय बाद अपनाया। शुरू-शुरू में प्रोटेस्टेंट देश इस बदलाव के इच्छुक नहीं थे। इसी तरह ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च ने इसे 20वीं सदी की शुरुआत तक नहीं अपनाया था। धीरे-धीरे आम सहमति बनती गई और विभिन्न देश इसे अपनाते गए, लेकिन जिन देशों ने इसे जितनी देर से अपनाया उन्हें कैलेंडर में से उतने ही ज़्यादा दिन हटाने पड़े। 16वीं और 17वीं शदी  की शुरुआत में इसे अपनाने वाले देशों को 10,18वीं शादी  में अपनाने वालों को 11, 19वीं शदी  में अपनाने पर 12 और 20वीं शदी में अपनाने वालों को 13 दिन हटाने पड़े। ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों ने इसे 1752 में अपनाया। रूस ने इसे 1917 की क्रांति तक नहीं अपनाया था इसलिए वहां रुस की क्रांति की वर्षगांठ 7 नवंबर को मनाई जाती है, जबकि तब रूस में प्रचलित जूलियन कैलेंडर के हिसाब से रूस की क्रांति 25 अक्टूबर को हुई थी। ग्रिगोरियन कैलेंडर को पूरी दुनिया में पैठ बनाने में करीब तीन सदियां लग गईं। फिलहाल दुनिया के अधिकतर देश ग्रिगोरियन कैलेंडर को ही काम में लेते हैं, लेकिन स्थानीय रीति-रिवाजों की तिथि-निर्धारण के लिए उनके अपने कैलेंडर भी हैं।

 

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12 – सप्ताह में सात दिन ही क्यों होते हैं ? और सप्ताह का पहला दिन कौन सा है ? –

इस मामले में विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। कुछ का मानना है कि चंद्रमा के तकरीबन सात दिन के चार चक्रों से सप्ताह की अवधारणा पनपी तो कुछ इसे इंद्रधनुष के सात रंगों से जोड़कर देखते । बाइबल के शुरुआती पृष्ठों में दुनिया की रचना का उल्लेख है जिसके अनुसार ईश्वर ने छः दिन में दुनिया रची और सातवें दिन आराम किया। इस महत्वपूर्ण अवधि को सप्ताह कहा गया । बाइबल में ही सब्बाथ (शनिवार) को सप्ताह का आखिरी दिन बताया गया है, इसलिए यहूदी और ईसाई रविवार को सप्ताह का पहला दिन मानते हैं, लेकिन रूस में मंगलवार को सैकंड नाम से पुकारा जाता है, इसका मतलब है कि वहां सोमवार को पहला दिन माना जाता है। दूसरे कुछ देशों में भी सप्ताह की शुरुआत सोमवार से ही मानी जाती है। आई एस ओ 8601 (इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइज़ेशन) के अनुसार सप्ताह का पहला दिन सोमवार है। 25 Facts About Time Zones

13- अलग-अलग धर्म के लोगों का  एक विशेष दिन को ही सामूहिक प्रार्थना करने का कारण –

इसके पीछे बहुत ही दिलचस्प कहानी है। माना जाता है कि प्रभु यीशु का पुनर्जन्म रविवार को हुआ था, इसलिए ईसाई धर्म को मानने वाले अधिकतर लोग इसी दिन सामूहिक प्रार्थना करते हैं। इसी तरह यहूदी मानते हैं कि ईश्वर ने दुनिया की रचना करने के बाद सब्बाथ (शनिवार) को आराम किया था, इसलिए उन्होंने इस दिन को आराम और प्रार्थना के लिए चुना । मुस्लिम लोग शुक्रवार को सामूहिक नमाज़ इसलिए करते हैं क्योंकि कुरान में शुक्रवार को पवित्र दिन माना गया है और उसे दिनों का राजा माना गया है। साल में सिर्फ चार बार ऐसा होता है जब मध्याह्न सूर्य ठीक 12 बजे हमारे सिर के ऊपर होता है।

14-  ग्रीनविच मीन टाइम और किसी भी देश का स्थानीय समय मध्याह्न सूर्य यानी दोपहर के 12 बजे से नापा जाता है, तो क्या साल के 365 दिन सूर्य ठीक 12 बजे हमारे सिर के ऊपर होता है ? –

सिर्फ साल में चार बार ऐसा होता है जब मध्याह्न सूर्य ठीक 12 बजे हमारे सिर के ऊपर होता है। नहीं तो मध्याह्न 16 मिनट 18 सैकंड जल्दी या 14 मिनट 28 सैकंड देर से पहुंचता है। साल में सिर्फ चार दिन ऐसे होते हैं, जो परिशुद्ध रूप से 24 घंटे लंबे होते हैं, जिन्हें सूर्य के हिसाब से मापा जाता है। ये दिन 25 दिसंबर, 15 अप्रैल, 14 जून और 31 अगस्त हैं। शेष दिन मध्याह्न सूर्य के अनुसार लंबे और छोटे होते हैं।

15- जेट लैग और  रेडियो पर पिप की ध्वनि का मतलब –

जब आप एक देश से दूसरे देश की हवाई यात्रा के दौरान कई टाइम जोन को पार करते हैं, तो टाइम जोन में बदलते समय के कारण आपके शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक या सिरकाडियन रिम्स गड़बड़ा जाती है, जिसके कारण थकावट, स्थिति भांति का अहसास, और अनिंद्रा जैसी शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। कई घंटों तक वातानुकूलित वातावरण में रहने से डिहाइड्रेशन भी हो जाता है, जिससे सिर दर्द, त्वचा में रूखापन और सर्दी तक हो जाती है। इन सारी परेशानियों को हम जेट लैग कहते हैं। हममें से अधिकांश लोग आकाशवाणी पर समाचार प्रसारण के पहले सुनाई देने वाली आवाज पिप -पिप से परिचित ही होंगे। दरअसल यह आवाज मानक समय को सूचित करती है, जो प्रसारण समय के लिए तैयार की गई है।

16 – लीप ईयर और  इसकी गणना का ढंग –

निगोरियन कैलेंडर में वर्ष को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। पहला 365 दिन वाला कॉमन ईयर और दूसरा 366 दिन वाला लीप ईयर । लीप ईयर में 29 फरवरी को अतिरिक्त दिन के रूप में गिना जाता है। आमतौर पर हम उस वर्ष को लीप ईयर मान लेते हैं जिसका 4 से पूरा-पूरा भाग जाता हो लेकिन यह सही नहीं है। लीप ईयर का फॉर्मूला निम्न है :-

  • कोई वर्ष लीप ईयर होगा यदि उसका 4 से पूरा भाग जाता हो ।
  •  लेकिन उसका भाग 100 से पूरा-पूरा नहीं जाना चाहिए ।
  • यदि भाग 100 से भी पूरा जाता हो तो वह लीप ईयर तभी होगा जब उसका भाग 400 से भी पूरा जाए ।
  • यानी वर्ष 1600, 2000 और 2400 लीप ईयर हैं जबकि 1700, 1800, 1900,  2100 नहीं हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रिगोरियन कैलेंडर प्रति 400 वर्ष में 97 लीप ईयर मानता है।

17- क्या सप्ताह में शुरू से ही सात दिन होते थे ? –

इसका उत्तर है नहीं ।  पूर्व में प्राचीन मिस्र वासी सप्ताह में 10 दिन मानते थे, जबकि मध्य अमेरिका के माया कैलेंडर में 13 और 20 दिन का सप्ताह माना जाता था । सोवियत संघ में पहले-पहल 5 और 6 दिन का सप्ताह होता था। 1929-30 में वहां 5 दिन के सप्ताह की अवधारणा को स्वीकारा गया। मजे की बात यह है कि वहां हर कर्मचारी सप्ताह में एक दिन छुट्टी ले सकता था लेकिन इसके लिए कोई विशेष दिन तय नहीं था। 1 सितंबर, 1931 से सप्ताह में 6 दिन माने गए और महीने की 6, 12,  18,  24 और 30 तारीख आराम के लिए मुकर्रर की गई । फरवरी में 30 दिन नहीं होने के कारण 1 मार्च को छुट्टी का दिन माना जाता था । 31 दिन वाले महीने की गाज कर्मचारियों पर पड़ती थी क्योंकि तब 31 तारीख को अतिरिक्त कार्य दिवस माना जाता था। आखिरकार 26 जून, 1940 से सात दिन की अवधि को सप्ताह माना गया । वैसे यहूदी कैलेंडर में सप्ताह को सात दिन का माना गया था । यह अवधारणा पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक पूरे रोम में अपना ली गई । वर्तमान में ग्रिगोरियन, क्रिश्चियन, हिब्रू, इस्लामिक और पर्शियन कैलेंडर सप्ताह में सात दिन मानते हैं।

18 -अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा पार करते समय पूर्व से पश्चिम और पश्चिम पूर्व जाने के लिए एक दिन से जोड़ने और घटाने  का कारण –

 जैसा कि हम जानते हैं कि प्रति देशान्तर के पीछे चार मिनट के समय का अंतर पड़ता है। यदि 360 डिग्री देशान्तर पार किए जाएं तो 24 घंटों का अंतर पड़ेगा। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। हम यदि पूर्व से पश्चिम की यात्रा करें तो प्रति देशान्तर के बाद हमें अपनी घड़ी 4 मिनट पीछे करनी पड़ेगी। इसी प्रकार यदि हम पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करें तो हमारी यात्रा में 24 घंटे का अंतर पड़ जाएगा और पूर्व से पश्चिम की यात्रा में एक दिन घट जाएगा। पृथ्वी की यात्रा में एक दिन की गड़बड़ी को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते के अनुसार एक तिथि रेखा निश्चित कर ली गई है और उसी के ऊपर से सर्व प्रथम सूर्य का उदय होना मान लिया गया है। यह भी कल्पित रेखा है, जिसे पार करते समय लोग अपनी तिथि ठीक कर लेते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा 180 डिग्री देशान्तर रेखा में कुछ परिवर्तन कर इसके साथ-साथ खींची हुई मान ली गई है। इस तिथि रेखा की कल्पना से संसार की यात्रा में जो एक दिन की गड़बड़ी हो जाया करती थी, अब दूर हो गई। इस तिथि रेखा के दोनों ओर जो समय क्षेत्र स्थित हैं, उनके बीच सदा एक तिथि का अंतर रहता है। 25 Facts About Time Zones

पश्चिम में स्थित स्थानों की तिथि उनके पूर्व में स्थित स्थानों से एक दिन आगे रहती है। पश्चिम को जाता हुआ जहाज जब इस रेखा को पार करता है तो एक दिन छोड़ देता है, अर्थात कोई जहाज 2 मई शुक्रवार को इस रेखा को पार करता है, तो वह जहाज 3 मई शनिवार को छोड़ देगा और इस जहाज को लॉग-बुक में 2 मई शुक्रवार के बाद मई रविवार होगा। इसके विपरीत पूर्व की ओर जाते समय यदि कोई जहाज इस रेखा को पार करता है, तो एक दिन को दो बार गिनता है अर्थात दूसरे दिन भी पहले वाले दिन को ही गिनता है। उदाहरण के लिए जब कोई जहाज इस रेखा को 2 मई शुक्रवार को पार करता है, तो अगले दिन भी 2 मई शुक्रवार ही गिनेगा। इस बार जहाज की लॉग-बुक में 2 मई शुक्रवार प्रथम और मई शुक्रवार द्वितीय लिखा जाएगा। इस प्रकार यह सप्ताह आठ दिन का होगा। इस तिथि रेखा को पार करते समय न तो रविवार को ही छोड़ा जाता है और न दुबारा गिना जाता है। पश्चिम से पूर्व जाते समय जब कोई जहाज इस रेखा को रविवार को पार करता है, तो उसका अगला दिन रविवार न होकर सोमवार प्रथम होगा, उसके बाद सोमवार द्वितीय आएगा । जब कोई जहाज पूर्व से पश्चिम को जाते शनिवार को इस रेखा को पार करता है तो वह रविवार को न छोड़कर सोमवार को छोड़ेगा। 25 Facts About Time Zones

19- मेरिडियन लाइन और प्राइम मेरिडियन लाइन –

  • मेरिडियन रेखा उसे कहते हैं जो  उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बीच खींची गई काल्पनिक रेखा है । यह रेखा भूमध्य रेखा पर लम्ब डालकर खींची जाती है ।
  • प्राइम मेरिडियन वो रेखा है, जो  इंग्लैंड स्थित ग्रीनविच से गुजरती है और शून्य डिग्री की मेरिडियन (देशान्तर) रेखा है । ग्रीनविच से गुजरने के कारण इसे ग्रीनविच मेरिडियन के नाम से भी जाना जाता है। इसे प्राइम मेरिडियन रेखा कहते हैं।

20- वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलित कैलेंडर कौन सा है, उसके अस्तित्व में आने का कारण –

वर्तमान में ग्रिगोरियन कैलेंडर सर्वाधिक प्रचलित है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो, लेकिन मूलतः इसे ईसाइयों के प्रमुख त्योहार ईस्टर के आयोजन में होने वाली तिथि संबंधी गड़-बड़ी को दूर करने के लिए बनाया गया था। दरअसल, ईस्टर की तिथि तय नहीं थी बल्कि इसे आकाशीय पिंडों की गतिविधियों के आधार पर किसी दिन मनाया जाता था। उन दिनों प्रचलित जूलियन कैलेंडर की गणना के अनुसार ईस्टर बसंत में आता था, लेकिन कैलेंडर में गणना संबंधी त्रुटि के चलते ईस्टर की तिथि धीरे-धीरे सरकती जा रही थी। इससे बहुत से आयोजनों पर असर पड़ रहा था क्योंकि उनकी तिथियों का निर्धारण ईस्टर के आधार पर होता था। इसके अलावा जूलियन कैलेंडर में प्रति 1000 वर्षों में 7 दिन की त्रुटि हो जाती थी। इस समस्या से उबरने के लिए नेपल्स के फिजीशियन एलॉयसिअस लिलिअस द्वारा नया कैलेंडर प्रस्तावित किया गया। इसमें काउंसिल ऑफ ट्रेंट की सिफारिशों के अनुरूप सुधार किए गए थे। 24 फरवरी, 1582 को पोप ग्रिगोरी तेरहवें के राजकीय आदेश के साथ ही यह कैलेंडर औपचारिक तौर पर अपना लिया गया। पोप के नाम पर यह ग्रिगोरियन कैलेंडर कहलाया । गणना संबंधी त्रुटि को दूर करने के लिए नए कैलेंडर में 10 दिन हटाए गए यानी 4 अक्टूबर के बाद सीधे 15 अक्टूबर माना गया और तभी से इसे लागू भी माना गया । आज न केवल आधी से ज़्यादा दुनिया अपने रोज़मर्रा के कार्यों के लिए इस पर निर्भर है बल्कि रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्च भी अपने खास त्योहारों की गणना इसी के आधार पर करते हैं। 25 Facts About Time Zones

21- दिनों का नाम करण –

बेबिलोनिया वासियों ने दिनों को ग्रहों के नामों से संबोधित करने की प्रथा डाली थी जो काफी हद तक रोमन, जूलियन और ग्रिगोरियन कैलेंडर में भी बदस्तूर जारी रही। ग्रिगोरियन कैलेंडर में सैटर्डे, सनडे और मनडे का नाम सैटर्न, सन और मून पर रखा गया है जबकि अन्य चार दिनों के नाम एंग्लो-सैक्सन देवताओं, व्यू, वोडन, थोर और फ्रेया के नाम पर क्रमशः ट्यूसडे, वेडनसडे, थर्सड और फ्राइडे रखे गए हैं। हालांकि इन चार दिनों के नाम भी शुरू में रोमन देवताओं के नाम पर ही रखे गए थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी जगह एंग्लो-सैक्सन या नॉर्डिक देवताओं के नामों ने ले ली। यहूदी कैलेंडर में सब्बाथ को छोड़कर सप्ताह के दूसरे दिनों को अंकों से पुकारा जाता है। पुर्तगाली और रूसी भाषा में भी कमोबेश यही व्यवस्था है, जबकि अधिकतर लैटिन आधारित भाषाएं जैसे फ्रेंच और हिंदी सहित कुछ एशियाई भाषाएं सप्ताह के दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ती हैं।

22-  वीस (यूनान) में लीप ईयर निकालने का फॉर्मूला –

जब ग्रीस के रूढ़िवादी चर्च ने 1920 में ग्रिगोरियन कैलेंडर को अपनाया तो उसने लीप ईयर की गणना का अपना सूत्र ईजाद किया। उसने 400 से भाग वाले सूत्र को किनारे कर कहा कि जब किसी वर्ष को 900 से भाग देने पर शेष फल 200 या 600 आए तो वह लीप ईयर होगा। यानी 1900, 2100, 2200, 2300 आदि लीप ईयर नहीं होंगे जबकि 2000, 2400 और 2900 होंगे। मजे की बात यह है कि वर्ष 2800 तक यह फॉर्मूला सही पटरी पर रहेगा। यूनानियों की इस गणना का आधार था, प्रति 900 वर्ष में 218 लीप ईयर। इस फॉर्मूले के हिसाब से साल में 365.24222 दिन होते हैं जबकि ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार साल में 365.2425 दिन माने गए हैं। यह गणना ग्रिगोरियन कैलेंडर से ज़्यादा सटीक है, हालांकि इस सूत्र को आधिकारिक तौर पर ग्रीस में भी नहीं अपनाया गया है। 25 Facts About Time Zones

23- इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन (ISO) के अनुसार सही डेट फॉर्मेट –

ISO 8601 के अनुसार तारीख लिखने के तीन प्रारूप होते हैं, कैलेंडर डेट, ऑर्डिनल डेट और वीक डेट । कैलेंडर डेट में सबसे पहले वर्ष चार, फिर महीने के दो और अंत में तारीख के दो अंक लिखे जाते हैं। मसलन, 2 अगस्त 1953 को लिखा जाएगाः 19530802 या 1953-08-02। ऑर्डिनल डेट में पहले वर्ष के चार अंक और उसके बाद वर्ष में दिन विशेष की क्रम-संख्या लिखी जाती है। जैसे, 2 अगस्त, 1953 को लिखेंगे:1953214 या 1953-214। (वर्ष 1953 लीप ईयर नहीं था, इसलिए 2 अगस्त वर्ष का 214वां दिन हुआ।) वीक डेट लिखने के लिए सबसे पहले वर्ष के चार अंक, फिर 2 , उसके बाद वर्ष में सप्ताह की क्रम-संख्या और अंत में सप्ताह में दिन की क्रम-संख्या लिखी जाती है। यानी 2 अगस्त, 1953 के लिए 1953 2 317 लिखा जाएगा। 2 अगस्त, 1953 के 31वें हफ्ते का रविवार था। चूंकि आई.एस. ओ. के अनुसार सप्ताह का पहला दिन सोमवार है इसलिए रविवार की क्रम संख्या सात हुई। 25 Facts About Time Zones

24-  लीप ईयर का अतिरिक्त दिन 29 फरवरी –

अगर आपका जवाब ‘हां’ है तो आपको 100 में से 50 अंक ही मिलेंगे क्योंकि अंकों के हिसाब से 29 फरवरी लीप डे है, लेकिन त्योहारों और दावतों के आयोजन के लिहाज से नहीं। मसलन, संत लिएंडर संबंधी दावत का आयोजन कॉमन ईयर में 7 फरवरी जबकि लीप ईयर में 28 फरवरी को किया जाता है। हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि ग्रिगोरियन कैलेंडर बनाने का वास्वतिक उद्देश्य ईसाई त्योहारों और दावतों की तिथि का निर्धारण करना ही था। अब बहुत से देश 24 की जगह 29 फरवरी को लीप डे के रूप में अपना रहे हैं, लेकिन इसका असर स्वीडन और ऑस्ट्रिया जैसे देशों पर पड़ेगा जहां हर दिन को एक नाम से जोड़ा जाता है। कॉमन और लीप ईयर में फरवरी की तारीखों में परंपरागत संबंध है –

नॉन लीप ईयर लीप ईयर                  लीप ईयर

22 फरवरी                                     22 फरवरी

26 फरवरी                                     26 फरवरी

                                             24 फरवरी (अतिरिक्त दिन)

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24 फरवरी                                 25 फरवरी

25 फरवरी                                  26 फरवरी

26 फरवरी                                   27 फरवरी

27 फरवरी                                  28 फरवरी

28 फरवरी                                  29 फरवरी

25 – AD, BC, CE और BCE का मतलब, क्या 1 BC और AD 1 के बीच का समय 0 वर्ष होता है –

जीसस क्राइस्ट के जन्म से पहले के वर्षों को BC (ईसा पूर्व) से इंगित किया जाता है। यह अंगरेज़ी के बिफोर क्राइस्ट का संक्षिप्त रूप है। जबकि AD (ईसवी) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब है एनो डॉमिनी या इन द ईयर ऑफ लॉर्ड। इसका प्रयोग क्राइस्ट के जन्म के बाद के वर्षों के लिए किया जाता है। जो लोग जीसस क्राइस्ट का संदर्भ नहीं देना चाहते, वे इनके स्थान पर क्रमशः BCE (बिफोर द कॉमन एरा) और CE (कॉमन एरा या क्रिश्चियन एरा) इस्तेमाल करते हैं। 1BC और AD 1 के बीच का समय 0 वर्ष कतई नहीं कहा जा सकता क्योंकि इतिहास में ऐसा कोई वर्ष कभी रहा ही नहीं है ।  हालांकि आधुनिक काल में 0 वर्ष की अवधारणा बहुत लोकप्रिय है, लेकिन यह भ्रामक है। दरअसल 1 BC के तुरंत बाद AD 1 आता है। इनके बीच 0 जैसा कोई वर्ष नहीं है। इसका मतलब है कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म 10 BC और मृत्यु 10 AD में हुई तो उसकी उम्र 20 नहीं बल्कि 19 वर्ष थी ।।

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