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खेल का महत्व

खेल का महत्व – खेल के फायदे

कोई भी खेल हो वो हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है। ख़ास कर फिजिकल खेल मारे शरीर के साथ साथ दिल और दिमाग को भी तंदरुस्त रखने इ साथ साथ हमें नयी ऊर्जा और ताकत प्रदान करते हैं। इस लेख के माध्यम से हम जानते हैं कि हमारे जीवन में खेल का महत्व क्या है और खेल के फायदे क्या होते हैं

खेलों का आर्थिक योगदान

क्रिकेट अपने समाज में एक खेल भर नहीं है। यह सबसे बड़ी आधुनिक पपलू संस्कृति है। वही पापुलर राष्ट्र की भावना है। उसमें जीते तो लगता है कोई युद्ध जीत गए हैं।  उसमें हारते हैं तो लगता है सारा देश हार गया है। क्रिकेट देश है। क्रिकेट राष्ट्र है। हम सब उसमें रहते हैं। उसे न खेलकर भी हम सब उसे खेलते हैं। क्रिकेट अपना समय है। उसी से सबका समय तय होता है। इसमें बहुत पैसा है। इतना है कि उसे खरबों में ही गिना जा सकता है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड एक पूरा तंत्र है। सिर्फ खेल नहीं हैं, बल्कि जीवन शैली है। उसके खिलाड़ी हर पीढ़ी के युवाओं के आइकॉन हैं। उनके एक-एक बल्ले, एक-एक रन के बारे में बच्चे जानते हैं। उनका हिसाब रखते हैं।

क्रिकेट एक उद्योग है

क्रिकेट हमारी जनरल नॉलेज है। हमारी खुराक है। क्रिकेट हमारी कल्पना है। हमारी सांस्कृतिक संरचना है। बहुत पहले कुछ लोग समझते थे कि यह अंग्रेजों का दिया खेल है। अंग्रेजों ने इसे शुरू किया, लेकिन अपने समाज में जिस तरह हर नई चीज अपने देशकाल के अनुसार अपनी जरूरत के मुताबिक बदल ली जाती है, उसी तरह  क्रिकेट भी बदल गया। यह अब गोरे अमीरों का, लॉर्ड लोगों का, देसी राजाओं, जागीरदारों का खेल न  रहकर जन-जन का खेल बन गया है। आज अपने यहां यह ‘गली मोहल्ला क्रिकेट’ है तो टेस्ट मैच, डे और 20-ट्वेंटी भी है। करुणानिधि के तमिलनाडु में तो इसे पांच-पांच ओवर वाला तक बना डाल गया !                              खेल का महत्व

बड़ी पापुलर कल्चर एक उद्योग की तरह होती है। उसमें बहुत से पैसे बनते-बिगड़ते हैं। उसका एक प्रकार का स्टॉक होता है। भारत का क्रिकेट उद्योग आज दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट उद्योग है ।  अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संगठन तक इसे मानते हैं। आज के मीडिया ग्रुप में क्रिकेट मीडिया को चलाने वाली प्रक्रिया मानी जाती है। वह टीवी चैनल उद्योग को विज्ञापन/प्रायोजक देती है। उनकी अरबों की कमाई का साध्य बनती है। क्रिकेट को दिखाने वाले दो चैनल चौबीस घंटे वाले हैं। यह कोई मामूली नहीं।

पारंपरिक खेल के फायदे

अपने देश में परम्परागत खेल रहे हैं। हर इलाके में रहे हैं। बच्चों के खेल अलग रहे हैं, मगर भारत में बच्चों की ‘छुपम छुपाई, स्टापू, गुल्ली डंडा, कबड्डी, पतंगबाजी, रस्साकसी, कंचेबाजी और पता नहीं कितने प्रकार के खेल प्रचलित हैं। हर भाषा-संस्कृति में रहने वालों के बीच उनके अपने खेल  हैं और बहुत से अखिल भारतीय हैं। खेल मनोरंजन का ऐसा साध्य है, जो लोगों के अपने स्वभाव के एकदम नजदीक होते हैं। उनसे आनंद लेने के लिए उनमें अतिरिक्त निवेश नहीं करना पड़ता। उनमें से हर खेल मनुष्य के तन-मन के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होता है।

दिल और दिमाग की एक्सरसाइज

खेल दरअसल बॉडी, दिल-दिमाग-ताकत तीनों के परफेक्शन की अभिव्यक्ति है। इसे अर्जित किया जा सकता है। खेल वह सांस्कृतिक क्रिया होती है, जो खेल के बराबर का मैदान बनाती है और हर खेलने वाले को बराबर का बनाती है। यही हर खेल का सच्चा जनतंत्र है, जो आदमी अच्छा खिलाड़ी होता है, वह अच्छा जनतांत्रिक भी होता है। खेल खेलने वाले समाज अच्छे जनतंत्र होते हैं। महाकवि सूरदास ने अपने सूर सागर में कृष्ण और सुदामा के खेल का वर्णन किया है। कृष्ण गोप परिवार के हैं यानी धनाढ्य हैं। सुदामा गरीब परिवार के हैं। सुदामा से कृष्ण हार जाते हैं। सूरदास कहते हैं-‘खेलत में को काको गुसइयां…हरि हारे जीते श्रीदामा बरबस ही कत करत रिसैयां ।’ सुदामा जीते हैं। कृष्ण हारे हैं और खिसिया रहे हैं। खेल है तो स्पर्द्धा है। स्पर्द्धा है तो विराग है और जीत-हार है और सुख-दुख है और कई बार हारकर फिर जीतने का संकल्प भी है। अवसर भी है, इसलिए खेल एक अनंत जीवंत आशा भी है।              खेल का महत्व

खेल आशावादी बनाया करते हैं। क्रिकेट इस समूची सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रक्रिया का सकल परिणाम है। हर पापुलर कल्चर अति करती है। क्रिकेट भी करती है। उसने हर दूसरे खेल को किनारे कर दिया है। बात सही है, लेकिन यह क्रिकेट खेल का दोष नहीं है। उसके पापूलर कल्चर बन जाने की ताकत का परिणाम है। पापूलर कल्चर अपने अतिव्याप्तिकारी स्वभाव से बहुत सारी छोटी उपक्रियाओं को अपने में समो लेती है, लेकिन यह भी सच है कि यह एक व्यापक सार्वजनिक खेल भावना भी पैदा करती है। क्रिकेट के रस में सब रस रहते हैं। आज समाज में कुछ लोग कहते हैं कि मंदी से लड़ने का एक बड़ा तरीका क्रिकेट का हो सकता है। यह विचित्र लगता है। ऐसा होना संभव नहीं है। मगर ऐसा सोचा गया, इससे क्रिकेट की आर्थिक, सांस्कृतिक आंदोलनकारी ताकत का पता चलता है। क्रिकेट अब एक संपूर्ण खेल है, इसलिए वह जनतांत्रिक और सेकुलर है। हर तरह की घृणा के खिलाफ क्रिकेट एक सांस्कृतिक कार्रवाई है। ऐसे क्रिकेट की जय हो ।।

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