अगर आप सोचते हैं कि धरती इतनी गर्म हो जाएगी कि डायनासोर युग में पाई जाने वाली दुर्लभ नन्ही चिड़िया आपके घर में अपना घोंसला बनाएगी या फिर आप मानते हैं कि एक दिन आपके चारों ओर इतनी बर्फ होगी कि आप उस पर आइस स्कूटर चलाएंगे तो आप सही भी हो सकते हैं और गलत भी । आज कल चारो तरफ ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा होती है लेकिन आपने ग्लोबल कूलिंग के बारे में बहुत कम सुना होगा । इस लेख के माध्यम से हम आते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग क्या है ? – What is global warming and global cooling in Hindi ?
ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग का सिंद्दांत
हाथ पैरों को गलाने वाली ठंड में 30 लाख लोगों के सामने एक बार ओबामा ने कहा था ”हालांकि हमारी सरकार ग्लोबल वॉर्मिंग के सिद्धांत को समर्थन देती है, लेकिन आलोचक मानते हैं कि यह सिद्धांत, तथ्यों का गलत विवरण है और दुनिया ग्लोबल कूलिंग के मुहाने पर खड़ी है।” इन शब्दों के साथ मीडिया, शोधकर्ता, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद्, ओशनोग्राफर, भौतिकशास्त्री आदि के बीच एक बार फिर ग्लोबल वॉर्मिंग और ग्लोबल कूलिंग व धरती के भविष्य का सवाल उलझ गया। ओबामा पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने अपनी बात में ग्लोबल वॉर्मिंग की जगह ग्लोबल कूलिंग का जिक्र किया था । ओबामा के पहले और बाद में भी कई लोग इस पर चर्चा कर चुके हैं । कूलिंग की इस चर्चा ने उस पर पड़ी धूल को हटाने का काम किया है और एक बार फिर इस पक्ष के समर्थकों में ऊर्जा भर दी है।
दरअसल दुनिया भर में तीन खेमे हैं, जो जलवायु बदलाव पर चिंतन कर रहे हैं। एक पक्ष के लोग कहते हैं, दुनिया गर्म हो रही है और इस तपन को रोकने के लिए अगले 50 सालों में 25 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को मिटाना होगा। दूसरा पक्ष कहता है, कि मौसम इतिहास के रेखाचित्र देखने से भी यह बात मालूम पड़ती है कि जलवायु कभी स्थिर नहीं रही है । ग्लोबल वॉर्मिंग और ग्लोबल कूलिंग सदियों से प्राकृतिक रूप से घटने वाली घटनाएं हैं और वर्तमान संकट इस बात का है कि धरती अगले 50 सालों में ग्लोबल कूलिंग का अनुभव करेगी। तीसरा पक्ष, दोनों संभावनाओं पर सहमति जाहिर करता है और आने वाले समय के लिए खुद को तैयार रखने का पक्षधर है।
हिमयुग
इस बात की पूरी संभावना है कि इन तीनों पक्षों और उनके मत के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हों, जबकि तीसरे पक्ष को छोड़कर बाकी दोनों पक्ष काफी दिनों से अस्तित्व में हैं । सही मायने में ग्लोबल कूलिंग ग्लोबल वॉर्मिंग से भी पुरानी है। हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग के कहीं अधिक चेतावनी देने वाले सुझावों और मीडिया में लगातार बने रहने के कारण ग्लोबल कूलिंग दबकर रह गई है, जबकि 1940 से 970 के दशक तक यह सबसे बड़ी चिंता का विषय थी। 15 नवम्बर 1969 में साइंस न्यूज में मीटिरलॉजिस्ट डॉ. जे. मूरे मिशेल जूनियर ने ग्लोबल कूलिंग पर चिंता जताते हुए कहा था सभ्यता कि ”धरती ठंडी हो रही है, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन ठंड़े होने की यह प्रक्रिया कितनी लंबी चलेगी यह सवाल हमारी सबसे मुश्किल समस्याओं में से एक एक है।” उनकी राय में अगर पृथ्वी की ठंडी होने की प्रक्रिया 200 से 300 वर्षों तक जारी रही तो धरती हिम युग में पहुंच जाएगी ।
इंटरनेशनल वाइल्ड लाइफ मैग्जीन में प्रकाशित एक लेख में न्यू साइंटिस्ट के पूर्व संपादक निगेल क्लैडेर ने तो यहां तक कहा था कि ‘ग्लोबल कूलिंग परमाणु युद्ध की घटना से बड़ी है क्योंकि यह मानव जाति की मृत्यु और मानवता के लिए ‘ फिर 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में एक दुखद है। हास्यास्पद घटना घटित हुई। तापमान की गिरावट की गति धीमी हो गई और वह विराम के स्तर तक पहुंच गया। इसी के साथ 1970 से 1980 के बीच ग्राउंड बेस रिकॉर्डिंग स्टेशन ने छोटे स्तर पर ही सही लेकिन करीबी-सतह के तापमानों में बढ़ोतरी का अध्ययन करना शुरू कर दिया। ग्लोबल कूलिंग का डर अचानक ग्लोबल वॉर्मिंग में बदल गया। वह भी इस घोषणा के साथ कि मानवजनित पर्यावरणीय प्रदूषण ने ग्रीनहाउस प्रभाव को अनियंत्रित कर दिया है। किसी भी पक्ष के बारे में अपनी राय बनाने से पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि दोनों सिद्धांत क्या कहते हैं। (ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग क्या है ?)
ग्लोबल कूलिंग विश्लेषकों का तर्क
वह समूह जिसने ग्लोबल कूलिंग का सुझाव दिया उसकी राय में आने वाले दशकों में तापमान नीचे जाएगा, वह भी इस स्तर तक कि पृथ्वी नए आइस ऐज में पहुंच जाएगी। यह सुझाव पृथ्वी के ठंडे होने के सिद्धान्त मिलानकोविट्च साइकल से संबंधित है, जो गर्म और ठंडी अवधि का अनुक्रमण करता है जो कि 1,00,000 वर्षों में समाप्त हो सकती है और जिससे छोटे मौसम परिवर्तन होते हैं
जो धरती को बर्फ की चादर में समेट लेंगे। यह सिद्धान्त ग्लोबल वॉर्मिंग के उस सामान्य और स्थापित विश्लेषण का विरोध करता है, जिसके मुताबिक वातावरण में कार्बन की बढ़ती मात्रा से ग्लोबल वॉर्मिंग की स्थिति उत्पत्र होती है और इसका मुख्य कारण मनुष्य का लालच है।
यह पक्ष कहता है कि पृथ्वी में सभी की जरूरतों को पूरा करने की पर्याप्त क्षमता है, लेकिन व्यक्ति के लालच को पूरा करने की ताकत उसमें नहीं है। स्थिति भविष्य सूचक है और इसका एक सामान्य प्रभाव है, जलवायु परिवर्तन। हर व्यक्ति यही सोचता है कि जलवायु परिवर्तन उसका जीवन खत्म होने के बाद इस दुनिया को प्रभावित करेगा। आपके पूर्वज और उनके पूर्वज ऐसा ही सोचते थे और आपके बच्चे भी भविष्य में यही सोचेंगे। फर्क केवल इतना है कि हमारे पूर्वजों ने जो सोचा उसकी तुलना में हमारी आने वाली पीढ़ी इस विषय पर कहीं अधिक पछतावे के साथ सोचेगी।
ग्लोबल वॉर्मिंग विश्लेषकों का तर्क
ग्लोबल वॉर्मिंग विश्लेषक मानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को अनदेखा करना किसी भी कारण को अनदेखा करने की चरम स्थिति है। वे कहते हैं ”आप इस बात को मानने से कैसे इनकार कर सकते हैं कि हमारे चारों ओर कार्बन डाइऑक्साइड नहीं है और वह हमारे सम्पूर्ण जीवन चक्र को बदल रही है।” वे अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं कि ”इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगले 80 वर्षों में 13 डिग्री तक तापमान में बढ़ोतरी होगी और यह पैटर्न में बदलाव की शुरुआत करेगा। इसका मतलब है, हम ज्यादा सूखा, बाढ़, तूफान और अन्य मौसम संबंधी असंभावित घटनाओं के लिए तैयार रहें।”
कुल मिलाकर जहां वॉर्मिंग का सिद्धान्त सीधे कार्बन डाइऑक्साइड के अनुपात से संबंधित है, वहीं कूलिंग का सिद्धान्त पृथ्वी के अक्षीय झुकाव परिक्रमण पथ की आकृति और अक्षीय दिशा में प्राकृतिक परिवर्तनों के बारे में बात करता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ‘ जिओलॉजिस्ट थिंक दी वर्ल्ड मे बी फ्रोजन अप अगेन’ शीर्ष के साथ 24 फरवरी, 1895 को प्रकाशित लेख में भी यह बह अपने चरम पर थी। अखबार ने छठे पन्ने पर ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे के बारे में नहीं बल्कि नए आइस एज (हिम युग) के बारे में अपने पाठकों को चेतावनी दी थी। उसके बाद सितम्बर 1923, जनवरी 1939, जून 1974 व् अप्रैल 2001 में प्रकाशित लेखों में भू-वैज्ञानिकों द्वारा धरती के हिम युग में पहुंचने की चिंताओं को जाहिर करना इस सिद्धांत की प्रामाणिकता को जाहिर करता है।
विभिन्न विभिन्न मत
फॉळून मैग्जीन में 1954 में प्रकाशित ‘क्लाइमेट-दी हीट मे ऑफ’, वॉशिंगटन पोस्ट का ‘कोल्डर विंटर्स हेल्ड डॉन ऑफ न्यू आइस ऐज’, लॉवेल पॉन्टे की किताब ‘दी कूलिंग’, लेखक जॉन क्रिस्टफर की ‘दी वर्ल्ड इन विंटर’ भी समय-समय पर ग्लोबल कूलिंग के पक्ष में अपनी बात रखते रहे हैं कि धरती गर्म नहीं बल्कि ठंडी होने की तरफ बढ़ रही है। 1975 में न्यूजवीक ने ‘ओमिनस साइन’ लेख प्रकाशित किया जिसमें लिखा था कि तापमान गिर रहा है और उसके एक वर्ष बाद नेशनल जिओग्राफिक ने दुनियाभर में ठंडे होने की प्रक्रिया की संभावना को सुझाया। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक स्टीफन श्नेइडर उन लेखों को याद करते हुए कहते हैं ‘मैं उन लोगों में से एक था जिन्होंने ग्लोबल कूलिंग के बारे में बात की।’
ग्लोबल वॉर्मिंग का भय इस स्तर पर फैलाया गया है कि 6 बिलियन की इन्सानी आबादी की जीवनशैली, ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा देने वाले कारकों की हिटलिस्ट में है। सरल शब्दों में कहें तो घर में बल्ब जलाने के लिए स्विच ऑन करने से लेकर हवाई सफर करना तक गुनाह है। ग्लोबल वॉर्मिंग के पक्षधरों का मानना है कि इनसान को इन सभी कामों में कंजूसी बरतनी चाहिए, वर्ना वह धरती से जीवन को खत्म करने के लिए जिम्मेदार होगा।
दूसरी ओर पृथ्वी के अंत के लिए वॉर्मिंग की जगह कूलिंग शब्द का इस्तेमाल करने वाले इस तथ्य को बड़े रोचक तरीके से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य कभी इतना शक्तिशाली नहीं हो सकता कि वह वातावरण को इतना बदल दे कि धरती का तापमान बढ़ जाए और छोटे महाद्वीप समुद्र के पानी में जलमग्न हो जाएं। वे मानते हैं कि इन्सान के हाथ में कुछ नहीं है और उसे इस दोष से मुक्त कर दिया जाए कि वह धरती का संतुलन बिगाड़ रहा है। कम से कम मनुष्य ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार नहीं है। उदाहरण के लिए गैलअप पोल ने पाया कि मीटिर लॉजिकल सोसाइटी और अमेरिकन जिओफिजिक्स सोसाइटी के केवल 17 प्रतिशत वैज्ञानिक सोचते हैं कि 20वीं सदी की ग्लोबल वॉर्मिंग, ग्रीनहाउस में गैस उत्सर्जन- यानी जैविक ईंधन की जलन से उत्पन्न हुए कार्बन का नतीजा है। 150 वर्षों में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड में हुई 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी (जो कि पर्यावणीय असंतुलन का कारण बनी है) में मानव जनित कार्बन डाइऑक्साइड का हिस्सा बहुत छोटा है, क्योंकि अधिकतम असंतुलन 1940 से पहले घटित हुआ था। यह मानव द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड से पहले का दौर था।
न्यूयॉर्क में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन क्लाइमेट चेंज में ग्लोबल वॉर्मिंग के अधिकतर दावे गलत दिखाई दिए। ग्लोबल वॉर्मिंग आधे सच से जन्मी है और धरती का तापमान बढ़ना केवल प्राकृतिक घटना है। ‘ग्लोबल वॉर्मिंगः वॉज इट एवर रिअली ए क्राइसिस?’ नाम की इस कॉन्फ्रेंस का दावा है कि जो लोग ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं, उन्होंने इस प्राकृतिक घटना को उन्होंने सही तरीके से प्रस्तुत भी नहीं किया है। मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में डाइनेमिक मीटिरलॉजी विशेषज्ञ डॉ. रिचर्ड लिंडज़ेन कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग की चेतावनी हमेशा ‘राजनीतिक’ ज्यादा रही है। जो भी बदलाव देखे गए हैं उसके संदर्भ में इस तथ्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि पृथ्वी हमेशा बदलती रहती है। इसमें मानवीय भूमिका के प्रमाण मुश्किल से ही मिलेंगे।’ (ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग क्या है ?)
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(ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल कूलिंग क्या है ?)