चेरापूंजी का नाम आपने स्कूल के दिनों में सुना और पड़ा ही होगा, चेरापूंजी को दुनिया का सबसे गीला स्थान जाना जाता है। भारत के मेघालय राज्य में सिथित चेरापूंजी में घूमने लायक बहुत से स्थान हैं। चेरापूंजी का मौसम साल भर घूमने लायक रहता है लेकिन मई से सितंबर के महीनों में होने वाली वर्षा इसे और भी आकर्षक बना देती है। चेरापूँजी के कारण पूरे विश्व में पृथ्वी का सबसे नम स्थान होने के कारण प्रसिद्द है। चेरापूँजी बरसात के दिनों में बहुत ही सम्मोहक होता है। लहरदार पहाड़, कई झरने, बांग्लादेश के मैदानों का पूरा दृश्य और स्थानीय जन-जातीय जीवनशैली की एक झलक चेरापूँजी की आपकी यात्रा को यादगार बना देते हैं। आगे विस्तार पूर्वक जानते हैं चेरापूंजी (Cherrapunji) के बारे में और जानते हैं कि हम मानसून मस्ती चेरापूंजी में कैसे कर सकते हैं ।
Cherrapunji
चेरापूंजी (Cherrapunji) का स्थानीय और आधिकारिक नाम सोहरा (Sohra) है, चेरपूंजी भारत के मेघालय राज्य के पूर्व खासी हिल्स ज़िले में स्थित एक बस्ती है। चेरापूंजी शिलांग से 53 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान दुनिया भर में मशहूर है। कुछ वर्ष पूर्व में सरकार ने इसका नाम चेरापूंजी से बदलकर सोहरा रख दिया है।
चेरापूंजी मशहूर क्यों है
मेघालय राज्य का चेरापूंजी धुंध भरी ऊंची वादियों, उफनती नदियों, घने बादलों और ढलानों (4500 फीट) के बीच खासी पहाड़ियों में बसा है। साल भर होने वाली बरसात की वजह से इस जगह का नाम बरसों पहले गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में पृथ्वी पर सबसे गीली जगह के रूप में दर्ज हुआ था । यहां की बारिश मिलीमीटर की बजाय फीट में रिकार्ड की जा सकती है। इस जगह की खास बात है कि भारत में यह एकमात्र जगह है जहां एक ही मौसम (मानसून) होता है। यहां कोई महीना बिना बारिश का नहीं होता। इस जगह की एक और खासियत है कि यहां पर बरसात अधिकतर रात को होती है जिससे बारिश के कारण दिन की गतिविधियां प्रभावित नहीं होती। चेरापूंजी (Cherrapunji)
चेरापूंजी में क्या खास है
चेरापूंजी की बरसात ही यहां का मुख्य आकर्षण है लेकिन इसके अलावा भी यहां बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। 1,035 फीट की ऊंचाई से गिरते मॉस्मई झरने का आकर्षण सहज ही मन को मोह लेता है। भारत के सबसे अधिक ऊंचाई से गिरने वाले झरनों में मॉस्मई चौथे स्थान पर आता है। खासी एकाश्मक भी इस जगह का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। जिसके करीब ही प्राचीन गुफाओं के नीचे संकरे रास्तों की खूबसूरत भूल-भुलैया स्थित है। यह जगह नए और अनुभवी अन्वेषण कर्ताओं के द्वारा जरूर घूमी जानी चाहिए। यहां का रामकृष्ण मिशन संस्थान देश भर में प्रसिद्ध है। सोहरा बाजार से 2 किमी दूर खूबसूरत झरना नोहकलिकाई स्थित है। यहां का प्राचीन चर्च प्रेसबाइटेरियन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। डेविड स्कॉट मैमोरियल नामक स्थल प्रमुख पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जाता है।
धुंध से घिरा नोह स्निथियांग झरना जिसे सेवन सिस्टर्स के नाम से भी पुकारा जाता है, काफी खूबसूरत है। यहां से 8 किमी आगे ऊंची पहाड़ी पर बना थंगकरंग पार्क है, जहां से बांग्लादेश के मैदानी क्षेत्र नजर आते हैं जिनका नजारा वाकई में अद्भुत होता है। इस पार्क से आप किनरेम झरने का मनोहारी दृश्य देख सकते हैं। यह झरना तीन स्तरों में बहता है। 1,000 फीट की ऊंचाई वाला यह झरना राज्य के सबसे ऊंचे झरनों में से एक है। कोह राम्हा नाम की एक अद्भुत चट्टान, जिसकी ऊंचाई 200 फीट है, का ऊपरी छोर ऐसे आकार में ढला है मानो कोई टोकरी रखी हो। इस दैत्याकार चट्टान के पास दो अन्य चट्टानें भी हैं जो दैत्य जोड़े के रूप में नजर आती हैं।
चेरापूंजी के आसपास के स्थल
चेरापूंजी से कुछ किमी पहले स्थित डेथलेन झरना दर्शनीय है। यहां से 15 किमी दूर लेतकिन्स्यू में लिविंग रूट ब्रिज है जो लगभग 53 फीट लंबा है और 100 साल से भी अधिक पुराना है। पेड़ की शाखाओं से बना यह पुल छोटे झरने के ऊपर बना है। लेतकिन्स्यू के करीब ही स्थित टायरना गांव में अद्भुत डबल डेकर रूट ब्रिज भी एक मुख्य आकर्षण है। इसमें पेड़ की शाखाओं से ऊपर नीचे दो पुल बने हैं जो कि बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। चेरापूंजी (Cherrapunji)
चेरापूंजी का इतिहास
अंग्रेजों के खासी पहाड़ियों पर आने से इसे क्षेत्र की कार्यशैली बहुत ही प्रभावित हुई। सर्वप्रथम ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजनीतिक दूत डेविड स्कॉट 19 वीं सदी की शुरुआत में पूर्वी बंगाल से होते हुये चेरापूँजी में आये थे । स्कॉट के समय में आज का चेरापूँजी नामक स्थान चेरास्टेशन के रूप में जाना जाने लगा और अंग्रेजों ने चेरापूंजी को खासी और जैन्तिया पहाड़ियों का आधिकारिक तौर पर मुख्यालय बना दिया था । इसके पश्चात चेरापूंजी कुछ समय तक असम की राजधानी भी रहा और बाद में अंग्रेजों ने चेरापूंजी कि जगह शिलाँग को असम कि राजधानी बना दिया । वेल्श मिशन के आने के बाद ही सोहरा नामक स्थान में खास बदलाव हुये थे ।
विलियम कैरे की अगुवाई में विल्स मिशन के अन्तर्गत चेरापूँजी ने काफी तरक्की की थी । थॉमस जोन्स नाम के एक और समाज सेवी ने खासी तथा जैन्तिया पहाड़ियों के जन जातीय समूहों में खेती की तकनीक को विकसित किया था । पूर्वोत्तर भारत का पहला गिरजा घर चेरापूँजी में सन् 1820 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। अंग्रेजों ने चेरा के भौगोलिक लाभ को जल्द ही भाँप लिया। एक तो सिल्हट मैदानी भाग से नजदीकी तथा दूसरी ओर असम की पहाड़ियाँ, इसे एक आदर्श प्रशासनिक केन्द्र बनाती थीं। चेरापूंजी का सुहावना मौसम परिस्थितियों को और भी बेहतर बनाता देता था।
चेरापूंजी कैसे पहुंचें
चेरापूँजी शिलाँग से 55 किमी की दूरी पर सिथित है। शिलांग भारत के सभी बड़े शहरों के यातायात के साधनों से जुड़ा हुआ है। शिलाँग और चेरापूँजी के मध्य सड़क यातायात बहुत ही अच्छा है। शिलांग से चेरापूंजी तक पहुँचने में सड़क से दो घण्टे का समय लगता है। शिलांग से चेरापूंजी पहुंचने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध रहती हैं। यहाँ आप अपने व्यक्तिगत वाहनों के साथ-साथ सरकारी यातायात के साधनों से भी आराम से जा सकते हैं जो हमेशा उपलब्ध रहते हैं। चेरापूंजी (Cherrapunji)
चेरापूंजी जाने के लिए बजट
आप दिल्ली से चेरापूंजी तक 2,000 से 10,000 रुपए के बजट में आराम से घूमा कर आ सकते हैं। चेरापूंजी में अच्छे होटल कम बजट में आसानी से मिल जाते हैं ।
चेरापूंजी के मुख्य पर्यटक संबंधी संपर्क
1- डायरेक्टर ऑफ टूरिज्म, नॉकरेक बिल्डिंग, लोअर लैचुमियर, शिलांग793001 फोन 0364-2226054
2- एमटीडीसी लिमिटेड, आर्किड होटल, पोलो रोड़ शिलांग -793001 फोनः 0364-2224933
3- वेबसाइट – अगर आप चेरापूंजी घूमने जा रहे हैं तो आप चेरापूंजी के बारे में अधिक जानकारी अधिकृत वेबसाइट https://cherrapunjee.com पर जाकर कर सकते हैं ।
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