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पोषण के लिए क्या जरूरी है ?

पोषण के लिए क्या जरूरी है ? – अच्छी सेहत के लिए क्या खाएं ?

मारा दिमाग एक सक्रिय मशीन की तरह काम करता है।  हालांकि शरीर का मात्र दो या तीन प्रतिशत वजन ही इसके हिस्से में आता है, लेकिन यह हमारे शरीर की 20 प्रतिशत ऊर्जा का इस्तेमाल करता है। इतनी ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए हमें पर्याप्त पोषक भोजन चाहिए, लेकिन पिछले 30 सालों में हमारे खाने-पीने की आदतों में आए नाटकीय बदलाव ने पोषण को आहार से दूर कर दिया है। ‘सहूलियत वाले भोजन ने फ्रोजन, माइक्रोवेव्ड और जंक फूड को हमारी जिंदगी में शामिल कर दिया है। व्यायाम की कमी ने लाइफ स्टाइल डिजीज़ यानी आधुनिक जीवनशैली के कारण पैदा हुए रोगों को जीवन का हिस्सा बना दिया है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार लगातार वजन बढ़ने की गंभीर समस्या जिसका औपचारिक नाम मोटापा है, ने स्वास्थ्य बजट का अकेले 6 प्रतिशत हिस्सा अपने कब्जे में कर रखा है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अस्वस्थ्य आहार इससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। इस कारण से तन और मन दोनों के स्वस्थ रहने के लिए संतुलित व् पोषक खुराक व् पेय पदार्थ जरूरी है । आगे हम बात करते हैं कि पोषण के लिए क्या जरूरी है ? और अच्छी सेहत के लिए क्या खाएं ? 

स्वस्थ के लिए क्या खाएं

पहली बात तो आहार के बारे में यह समझने की है कि जो लोग स्वाद के लिए खाते हैं वे एक प्रकार से आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या शब्द तो बहुत कड़ा है परंतु इससे भी कड़ा कोई शब्द स्वाद के कारण खाने वालों के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। वास्तव में शरीर रक्षा के लिए ही आहार लेना चाहिए। शास्त्रों में एक सूत्र आया है कि ‘प्रातः कर दर्शनम्। विनोबाजी ने एक नया सूत्र दिया है और वह है ‘प्रातः मल दर्शनम्’ हाथ भी देखना चाहिए और सवेरे-सवेरे ही मल भी देखना चाहिए।                                             (पोषण के लिए क्या जरूरी है ?)

हाथ तो दिनभर किए जाने वाले हमारे कर्म की दृष्टि से देखना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि इन हाथों से हमें करने योग्य कर्म करना है और सवेरे-सवेरे मल इस कारण देखना चाहिए कि उससे पता लगे कि हमें क्या चीज पची और क्या नहीं पची। यह ज्ञान केवल मल ही कराता है। अच्छा यह है कि डॉक्टर हमसे कहे कि आपका मल जांचना है, हम ही उसको देखें और समझें कि हमने अमुक वस्तु गलत, अधिक मात्रा में या अधिक मसाले के साथ खाई है और उसका परित्याग कर दें या उसके स्थान पर कोई दूसरी वस्तु ले लें, जैसे तैयार नाश्ते की जगह अर्थात् सफेद डबल रोटी की जगह आटे की डबल रोटी लें अथवा मैदे के बिस्कुट न खाकर आटे के बिस्कुट बनवा लें और वे मर्यादा में खाएं । वे बहुत स्वादिष्ट लगते हैं और स्वास्थ्य भी देते हैं।

वास्तव में स्वस्थ का अर्थ अपने में स्थित है अर्थात् हम वह खाएं जिससे हमें न तो पेट दर्द हो, न अपच हो, अपच यानी कब्ज हो और न कोई रोग लगे। स्वस्थ अर्थात् अपने में स्थित । अस्वस्थता का दूसरा पहलू यह है कि वह पर निर्भरता भी लाती है। स्वस्थ रहने के लिए सबसे आवश्यक तो हमारा भोजन है और फिर हमारा काम और उसके साथ हमारे खड़े होने, बैठने और चलने का ढंग । गीता में पूछा गया है कि स्वस्थ व्यक्ति कैसे चलता है, कैसे बोलता है और उसकी क्या परिभाषा है, कैसे बैठता है यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे बैठने, चलने, बोलने और काम करने का ढंग हमारे स्वास्थ्य का पैमाना है। मसाले खाने वाले व्यक्ति हर वस्तु में मसाले खाते हैं। यहां तक कि चाय का भी मसाला आता है ।

लोग स्वास्थ्य के लिए नहीं वे पढ़ी-लिखी घरेलू वृद्धाओं द्वारा लाड़-प्यार में संतान के भीतर डाली गई स्वाद की आदत के कारण खाते हैं। इस बात पर जोर देना बहुत आवश्यक है और इसे प्रतिदिन और प्रतिक्षण याद रखना चाहिए कि हमें स्वास्थ्य के लिए खाना है। आहार का सीधा-संबंध शरीर से है जिह्वा से नहीं। जिह्वा का प्रयोजन केवल यह बताना है कि अमुक वस्तु का अमुक स्वाद है, इससे अधिक कुछ नहीं। इस बात पर जितना बल दिया जाए उतना कम है कि जीभ और भोजन का संबंध ग्रहण अथवा अग्रहण करने से न होकर स्वीकार अथवा अस्वीकार करने से होता है।     

पोषण के लिए क्या जरूरी है ?                                                               (पोषण के लिए क्या जरूरी है ?)

नींबू पानी (शिकंजी)

एक वयस्क व्यक्ति के शरीर का 50 से 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना हुआ होता है। जितनी ज्यादा पानी की मात्रा में कमी होती है उतनी ही स्वास्थ्य संबंधी विपरीत स्थितियां बनती हैं। पानी की कमी से सरदर्द, थकान, बेचैनी, कब्ज और किडनी स्टोन तक की शिकायत हो सकती हैं। अतिरिक्त डिहाईड्रेशन जानलेवा हो सकता है। हम सादे पानी, फल, सब्जियों और पेय पदार्थ आदि से जल ग्रहण करते हैं। एक दिन में सात से आठ गिलास पानी पिया जाता है। पानी की कमी को दूर करने के साथ-साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतरी के लिए नींबू पानी (शिकंजी) और छाछ (लस्सी) जैसे पूर्वी देशों के विकल्प सर्वाधिक विश्वसनीय माने जाते हैं। जिन्हें दूध से एलर्जी होती है या दही नुकसान करता है उन्हें छाछ दी जा सकती है। आयुर्वेद में कल्प के तौर पर इसका उपयोग होता है। जिन्हें लेक्टोज पचाने में मुश्किल होती है वे छाछ के जरिये मदद पा सकते हैं। भारत के कुछ इलाकों जैसे राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में लस्सी सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है।

नींबू पानी के फायदे

जहां तक नींबू-पानी का सवाल है विटामिन सी की पूर्ति के लिए एलोपैथी में भी सीधे नींबू के सेवन की हिदायत दी गई है। तंत्रिका तंत्र पर इसके सकारात्मक प्रभाव के कारण व्यक्ति ताज़गी महसूस करता है। पीएच स्तर को संतुलित करके आंतों की स्थिति बेहतर करने में इसका योगदान है। त्वचा तथा सांस संबंधी बीमारियों में भी इसे बहुत उपयोगी पाया गया है।

100 ग्राम नींबू को यदि हम रासायनिक संरचना की दृष्टि से देखें तो उसमें 88 ग्राम पानी होता है, 30 कैलोरी मिलती है, 33 मि.ग्रा. कैल्शियम, 102 मि.ग्रा. पोटेशियम सहित फास्फोरस, सोडियम, जिंक, कॉपर, मैग्नीज, सैलेनियम आदि खनिज होते हैं। विटामिन सी से भरपूर है। 30 मि.ग्रा. एस्कॉर्बिक एसिड इसमें होता है। वसा की मात्रा नहीं के बराबर होती है और कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता। एमिनो एसिड जैसे ट्रिप्टोफैन, लाइसिन और मिथियोनाइन भी इसमें उपलब्ध होते हैं। प्रतिदिन एक गिलास नींबू-पानी यानि एक नींबू में 200 मि.ली. पानी मिलाकर सुबह पिया जाए तो पाचन तंत्र पूरी तरह नियमित हो सकता है। विटामिन सी की तमाम कमियों को पूरा करने के लिए एक ही नींबू काफी होता है।                  (पोषण के लिए क्या जरूरी है ?)

चॉकलेट (Chocolate)

वर्तमान में जो चॉकलेट बनती है वह सामान्यतया कोको या कोको पदार्थ में कोको पेड़ का गाढ़ा दूध (कोको मक्खन)और चीनी मिला कर बनाई जाती है। 1879 में रोडोल्फ लिंड्ट ने कोको के फलों को कोको के गाढ़े दूध में मिलाया और उससे बने पदार्थ की यह विशेषता देखी कि यह साधारण तापमान पर ही पिघल जाती है। कोको मक्खन दिन प्रतिदिन महंगा होने लगा है इसलिए कंपनियां इसका विकल्प तलाश करने लगी हैं। अब इसके स्थान पर नारियल का तेल या पॉम आयल का उपयोग किया जाने लगा है। इन तेलों में भी कोको मक्खन की तरह ही साधारण तापमान पर पिघलने का गुण पैदा करने के लिए इनको कृत्रिम वसा के साथ मिलाकर रसायनिक । क्रिया की जाती है, जिसके बाद चॉकलेट सस्ती हो जाती है।

चॉकलेट के फायदे

चॉकलेट हमारे दिलो-दिमाग पर असर करती है। इसमें मौजूद थियोब्रोमीन उत्तेजना उत्पन्न करता है। इसमें ट्रिप्टोफिन होता है उपलब्ध रसायन को सिरोटोनिन में बदलता है। इसके अलावा चॉकलेट में पॉलीफिनोल्स होते हैं। खास तरह की रासायनिक क्रिया से यह तनाव कम करने व भूख मिटाने में उपयोगी होता है।

चॉकलेट के बारे में

  • क्रिस्टोफर कोलम्बस ने जब दुनिया की खोज की तो वे सबसे पहले यूरोप में चॉकलेट लेकर आए। 1879 में रोडोल्फ लिंड्ट कोको सक्खन मिलाकर इसमें साधारण तापमान पर पिघलने के गुण का पता लगाया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने सैनिकों में समूह भावना और उनके पोषण के लिए चॉकलेट्स का इतना ज्यादा उपयोग किया कि उन दिनों जहाज में कोको के फलों की ढुलाई के लिए स्थान सुरक्षित रखा जाता था।
  • इटली जैसे देश शुद्ध चॉकलेट्स ही बनाते हैं और इसके लिए सौ प्रतिशत कोको का मक्खन उपयोग करते हैं।
  • दुनियाभर में मीठे के विकल्प के तौर पर चॉकलेट सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसका कारोबार किसी मीठे उत्पाद से ज्यादा होता है।

मूंगफली के गुण काजू के मुकाबले ज्यादा होते हैं

अंजीर या मुनक्का पाचन तथा रस निर्माण में सहयोगी होते हैं, भीगे बादाम शक्तिवर्द्धक । लेकिन मात्रा अनियमित हो तो काजू जैसे मेवे कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं। चॉकलेट की लोकप्रियता के साथ-साथ मेवों को उसमें मिलाया जाने लगा है। चॉकलेट की जो किस्में उपलब्ध हैं वे अतिरिक्त वसा तथा कार्बोहाइड्रेट से युक्त मानी जाती हैं। इसे खाने से दंत क्षय तथा बैक्टीरिया संक्रमण की आशंकाएं बढ़ सकती हैं। चॉकलेट को शक्तिवर्द्धक मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है किंतु कई मामलों में यह तथ्य खरा नहीं उतरता। इसका बेहतर देशी विकल्प गुड़-मूंगफली होती है।

करेला (Bitter gourd)

यह बड़ी हास्यास्पद स्थिति है। वास्तव में हमें अलग-अलग सब्जी का स्वाद ही मालूम नहीं है अर्थात् हम यह नहीं जानते कि गोभी का स्वाद क्या होता है, गाजर का क्या और लौकी का क्या। यह हमें मसाले छोड़ देने पर पता लगेगा। दूसरी बात यह है कि वास्तव में सब्जी का अर्थ हरी है, सफेद या सूखी नहीं। आलू कोई सब्जी नहीं है। इसमें मशरूम एक अपवाद है। वह आमतौर पर सफेद होता है और खाद्य विशेषज्ञ उसे बहुत लाभदायक मानते हैं। दूसरा अपवाद फूलगोभी है जिसे कैंसर से बचने के लिए खाना चाहिए अथवा करेला है, परंतु इन पदार्थों को बिगाड़ कर क्यों खाया जाए। जैसे कि गोभी को गरम पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए वरना वह पेट में गड़बड़ पैदा करती है इस का कारण यह है कि उसमें लाखों छेद होते हैं जो नंगी आंखों से दिखाई तो नहीं पड़ते, परंतु गरम अथवा उबलते पानी से उसमें रहने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।                                                  (पोषण के लिए क्या जरूरी है ?)

करेले को अन्य सब्जियों की भांति खाना चाहिए। उसका स्वभाव है कि वह कड़वा होता है। प्रकृति ने ही उसे ऐसा बनाया है। उसके कड़वेपन को नमक, तेल, मिर्च एवं गरम मसाले इत्यादि से दूर करने का उपाय किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए, न उसे नमक लगाकर रखा जाए, न उसमें खटाई डाली जाए। खटाई की बात चली तो वास्तव में खटाई किसी खाने की वस्तु में न डाली जाए और उसे मीठे के साथ न लिया जाए। ध्यान रखना चाहिए इसके लिए किसी आहार विशेषज्ञ की पुस्तक पढ़ी जाए या उससे परामर्श लिया जाए।

स्वस्थ रहने के लिए ये भी करें

  • आप रोजाना एक फल अपने भोजन में शामिल कर लें। उसी मौसम का फल खाएं जो  महीनों से संरक्षित या दूसरे वातावरण से आयातित नहीं हो । मौसम तथा स्थान से फलों की गुणवत्ता बदल जाती है।
  • खाने को बिना ढके पकाने से उसके विटामिन सी नष्ट हो जाते हैं।
  • कटी हुई सब्जियों को ज्यादा समय तक पानी में रखने से उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
  • देर रात को भारी भोजन करने से अम्लता में बढ़ोतरी होने लगती है।
  • पकाने से पहले दाल, चावल को देर तक धोने से उनके पोषक तत्व और रेशे खत्म हो जाते हैं।
  • जब रायता बनाएं तो बूंदी नहीं, सब्जियों के टुकड़े इस्तेमाल करें। यह स्वास्थ्यकर होते हैं।                                                              (पोषण के लिए क्या जरूरी है ?)
  • भोजन छोड़ देने से कई बार वजन घटने की बजाय बढ़ भी सकता है जरुरत से ज्यादा डाइटिंग अंगों को हमेशा के लिए क्षति पहुंचा सकती है, साथ ही इससे कमजोर पेशियों को नुकसान भी हो सकता है। दिन में तीन बार कम मात्रा में खाना खाएं और बीच में कुछ फल और कम वसा वाला दही लें। कैलोरी कम करने का यह आसान तरीका होता है।
  • मक्खन बुरी चीज नहीं है, लेकिन कम मात्रा में इसे इस्तेमाल करना ठीक होगा। खाना पकाने में यह अपनी संतृप्त प्रकृति के कारण तेल की बजाय ज्यादा उपयोगी होता है।
  • मैग्नीशियम जो कि पेशियों और रक्त संचार के लिए बेहतर है, अस्थमा से भी बचाव कर सकता है। मैग्नीशियम के लिए फलियां, तोफू, बीज और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियां लीजिए।
  • संतरे के सौ मि.ली. जूस  में 36 कैलोरी, 8.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 39 मिता. विटामिन सी, 17 माइक्रोवाम कैरोटीन और 150 मि.वा. पोटेशियम होता है।
  • जब लोग दूसरों के साथ खाते हैं तो अकेले खाने के मुकाबले 44 प्रतिशत ज्यादा खाते हैं। साथ खाना आनंद तो देता है लेकिन वसा का स्तर बढ़ा देता है।
  • 100 ग्राम का आम74 कैलोरी, 18.9 ग्राम शर्करा (फ्रक्टोज), 2743 माइक्रोग्राम बीटा कैरोटिन और 100 ग्राम विटामिन सी देता है।
  • कच्ची सब्जियां जैसे गाजर या मूली पाचन में सहयोगी रेशे देती  हैं। पत्तेदार सब्जियों में लौह तत्व होता है। इन्हें कई प्राकृतित चिकित्सक रोग के हिसाब से खाने की सलाह देते है।
  • फ्रिज से एकदम निकाली हुई चीज या कढ़ाही से बहुत तेज गर्म निकाली हुई चीज को तत्काल उसी तापमान पर खाने की बजाय प्राकृतिक तापमान तक लाकर खाना उचित होता है।
  • ऐसा खाना जिसमें अम्लीयता “और स्टार्च वाले पदार्थ एक साथ हो, नहीं खाना चाहिए। अम्ल, स्टार्च के पाचन के लिए जरूरी क्षारीय माध्यम को उदासीन कर देता है।
  • लगभग 350 मि.ली. मात्रा का कोई भी कोल्ड ड्रिंक आपको 145 से 155 तक कैलोरी देता है और 35 से 40 ग्राम तक कार्बोहाइड्रेट। पोषक पदार्थों का इसमें कोई हिस्सा नहीं होता।
  • हर अंकुरित अन्न का एक स्वभाव है। मूग, मथा दाना, चना या गेहूं अलग-अलग शारीरिक कमियों को पूरा कर सकते हैं। प्रोटीन तो सबसे मिलता ही है

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