आज हम जानते हैं कि भृगु संहिता क्या है? और क्या भृगु संहिता भविष्य वाचने वाली किताब है । क्या कोई किताब ऐसी हो सकती है जिसमें यह भी लिखा हो कि फला देश सुनने वाला किस वक्त आएगा और उसके साथ कितने लोग होंगे? आईये जानते हैं –
भृगु संहिता का इतिहास
भृगु संहिता के बारे में पर्याप्त अनुमान, दंतकथाएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं, उनमें एक यह है कि महर्षि भृगु ने ब्राह्मणों के जीवन यापन के लिए इसे तैयार किया था। ज्योतिष महर्षि भृगु की देन कही जाती है। एक कथा के मुताबिक भृगु विष्णु से मिलने पहुंचे तो वे निद्रा में तल्लीन थे। अपनी अवमानना से क्रोधित ऋषि ने लात मारी। विष्णु ने विनम्रता पूर्वक पूछा कि उनके वज्र समान वक्ष से ऋषि प्रवर के कोमल चरणों में चोट तो नहीं लगी? इस विनम्रता से भृगु पिघल गए किंतु विष्णु पत्नी लक्ष्मी के इस शाप से कि इस कृत्य की वजह से ब्राह्मणों के कुल में वे कभी नहीं जाएंगी, भृगु ने एक संहिता की रचना की।
इस संहिता में हर प्राणी का भूत-भविष्य-वर्तमान था। भृगु संहिता की यह आदि-प्रति ऋषियों से होती हुई बाद के वंशों तक पहुंची। इसकी भोज पत्र पर प्रतियां उपलब्ध थीं। कालांतर में ये पन्ने लुप्त होते गए। फिलहाल देश में दो स्थानों पर मूल प्रतियां होने का दावा किया जाता है एक पंजाब के होशियारपुर और दूसरा राजस्थान के कारोई (भीलवाड़ा) में । इन प्रतियों में ग्रहों, लग्नों तथा घरों की कुल संभव स्थितियों के गणितीय गुणकों में तैयार तमाम कुंडलियां मौजूद हैं। कहा जाता है कि भविष्य जानने वाले का समय भी इसमें लिखित है और उसके आने की स्थितियां भी।
आजकल बाजार में दो-तीन हजार रुपए में भृगु संहिता नामक किताब उपलब्ध है। इसे यह आभास देने के लिए कि हस्त लिखित प्रति मूल रूप में है, कंपोज कराने के बजाय हाथ से लिखकर प्रिंट कराया गया है। पारंपरिक ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांतों (जैसे ग्रहों की स्थिति, लग्न की विशेषता आदि पर आधारित भविष्य गणना) के आधार पर इनमें फल लिखे गए हैं जो सामान्य ज्योतिषी भी कुंडली के आधार पर बता सकते हैं। कुछ संस्करणों में तीन हजार के आस-पास कुंडलीयां भी प्रकाशित हैं । (भृगु संहिता क्या है?)
राजस्थान के कारोई में भृगु संहिता
वह जून की एक दोपहर थी। भीलवाड़ा से उदयपुर रोड पर गंगापुर तहसील के कारोई गांव में मुख्य सड़क से सटे एक मकान पर आने-जाने वालों को एक बुजुर्ग ग्रामीण पानी पिला रहा था। भीतर चारपाई पर कुछ लोग प्रतीक्षा में बैठे हुए थे। एक दुमंजिला मकान। उस मकान से पहले एक गली में भी भृगु संहिता का बोर्ड लगा हुआ है। हालांकि जहां बोर्ड नहीं है, वह ‘असली भृगु संहिता वाचक’ का मकान है। ग्रेनाइट पर लिखा है पंडित नाथूलाल व्यास। वे ऊपर के कमरे में बैठकर किसी को उसका हाल बता रहे हैं। इंतजार करने वालों में सुबह साढ़े तीन बजे से आकर बैठे कुछ लोग भी हैं। सड़क के सामने की ओर एक गेस्ट हाउस भी खुल गया है।
कारोई गांव की खासियत एक ही है कि भृगु संहिता। इसके चलते सुबह से शाम तक जाने-माने लोगों की लाइन लगी मिलती है। पहले पंडितजी का घर गांव में भीतर की तरफ था, आने वालों की मुश्किलें आसान करने के लिए अब वे गांव से बाहर सड़क के किनारे मकान बनाकर रहने लगे। अब यही जगह मुख्य कारोई ग्राम हो गई लगती है। फिल्मी गीत बज रहे हैं, ट्रैक्टर आ-जा रहे हैं। लालबत्ती की एक सरकारी गाड़ी बाहर है। पड़ोस की जिस बोर्ड वाली गली का जिक्र हमने शुरू में किया है, इन्हीं व्यास जी के भाई-भतीजों का खोला गया केन्द्र है। वहां भी कुछ लोग आते जाते हैं, लेकिन कहा जाता है कि जब यहां प्रतीक्षा लंबी हो जाती है तो जिज्ञासु वहां का चक्कर लगा लेते हैं। ‘वहां कर्मकांड की सलाहें भी मिलती हैं, यहां कर्मकांड नहीं कराए जाते है ।
कौड़ियाला घाट गुरुद्वारा – Kaudiyala Ghat gurdwara , ਗੁਰੁਦ੍ਵਾਰਾ ਕੌੜੀਯਾਲਾ ਘਾਟ ਸਾਹਿਬ
होशियारपुर भृगु संहिता का तीर्थ
पंजाब के होशियारपुर कस्बे को दूसरे शब्दों में भृगु तीर्थ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जालंधर से कोई 40 किलोमीटर दूर बसे इस शहर में हम देखें तो एक पूरा मोहल्ला ही भृगु संहिता के भविष्य फल बांचने वालों का है। रेल मंडी मौहल्ले में चार केन्द्र आसपास बसे हैं। स्वर्गीय पं. देसराज जी ने सैकड़ों साल पहले महर्षि भृगु द्वारा रचित दुर्लभ ग्रंथों को संरक्षित किया और अब उनके पुत्र-पौत्र ग्रंथों का पठन कर भविष्य फल बताते हैं। स्व. अमृत आनंदजी की पत्नी पं. स्नेह अमृत आनंद-रामबाग स्थित सुंदर सदन में भृगु सिद्धपीठ में बैठकर देश-विदेश से आने वाले जातकों के भविष्य का कथन करती हैं। पास में ही स्व. डॉ. रामकुमार की पत्नी का केन्द्र है। स्व. जनार्दन देव के पुत्र पं. रामानुज भी अलग केन्द्र चलाते हैं।
मोहल्ले के शुरू में भृगु धाम के एक बड़े हाल में भृगुजी के बड़े आकार के फोटो के सामने भृगु ग्रंथ प्रेमी शिष्य पर्व काल में भृगुजी द्वारा दिए गए जाप का वाचन करते हैं। गोकुल नगर में पं. महाशिवजी के केन्द्र में पंडित जी बड़े ही सहज भाव से संहिता के पन्ने देखकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद जन्मकुंडली की तलाश में जुट जाते हैं। पं. लालदेव शर्मा का केन्द्र दीपनगर फगवाड़ा रास्ते पर है जहां भृगु तथा रावण संहिता का कथन प्राप्त कर सकते हैं। इन केन्द्रों पर जरूरी नहीं कि आपकी कुंडली आसानी से मिल जाए।
पं. श्यामाचरण जी के पास ‘अक्षय पत्र’ नाम का अलग सा पन्ना है जो आकार में पोस्टकार्ड से थोड़ा बड़ा है। पत्र संस्कृत भाषा में है जिसे पंडितजी सरल हिंदी में पढ़कर सुनाते हैं। भृगु संहिता के बारे में लिखे वृत्तांत के बारे में पंडितजी बोलते हैं भृगुजी ने शुक्र को बताया कि हे पुत्र, ‘अक्षय ग्रंथ की जो रचना मैंने की वह दिव्य दृष्टि से की गई। यह ग्रंथ अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण हुआ। इसमें कई फल संस्कृत भाषा में रचित किए गए और कई सांकेतिक भाषा में। जब मेरे वाचक फल पत्रों को पठन करते हैं तो मेरी आत्मा उनमें आ जाती है। उस समय भाषा चाहे कुछ भी हो, वह मेरे वाचकों के लिए कठिन नहीं रह जाती। कई बार तो मैं फल-पत्रों की भाषा को बदल देता हूं और दूसरे प्राणियों के लिए और रचित कर देता हूं, इसलिए इस संबंध में मेरे भक्तों या अन्य प्राणियों को संदेह नहीं करना चाहिए।’ (भृगु संहिता क्या है?)
कभी-कभी संहिता के पन्नों पर ‘विभूति’ का अवतरण होता है। । भृगुफल में गांवों के नाम अलग से होते हैं, जैसे होशियारपुर को चंचलपुरी कहा गया है। सुधापुरी यानी अमृतसर, कालिंदीपुर यानी मथुरा, अंबालिकापुरी यानी अंबाला, कपिस्थल यानी कैथल और कर्णपुरी यानी करनाल आदि। महर्षि अरविंद पूर्वजन्म में सत्यवान रह चुके हैं या गोरक्षनाथ की प्रेरणा करके स्वामी रामदेव रूप में आए हैं- इस किस्म की भविष्यवाणियां भी वहां सुनी जा सकती हैं।
एक अखबार नवीस को होशियारपुर के पंडित रीतेश शर्मा ने बताया था कि सात पीढ़ी पहले उनकी परदादी संस्कृत की विद्वान थीं। एक बार वह बाजार में कुछ सामान खरीदने गईं तो एक कागज में सामान लपेटकर दुकानदार ने दिया। उन्होंने गौर से देखा तो वह भृगु संहिता का पन्ना था। उस कागज में लिखे श्लोक ने इतना कौतूहल जगाया कि वे उस कबाड़ी के पास पहुंचीं जिसके पास ऐसे पन्ने टनों की मात्रा में थे। उन सब पर भृगु संहिता की जन्मकुंडलियां थीं। तब से लेकर उनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस खजाने को संभालती चली आ रही है।
इन जन्म कुंडलियों को नदियों की पहचान के हिसाब से सूचीबद्ध किया गया है। उसमें यूरोप को मनुदेश, अमेरिका को पाताल देश और मध्य-पूर्व देशों के लिए यवन प्रांत शब्द काम में लिए गए हैं, लेकिन विदेशी लोगों की कुंडली में उनकी जाति का उल्लेख नहीं किया गया है।
भृगु संहिता में फलवाचक की चतुराई
बीकानेर के ज्योतिर्विद पं. आचार्य राज कहते हैं है भृगु ऋषि ने दस हजार सूक्त लिखे थे जिनमें समस्त ब्रह्मांड की कुंडलियों का भविष्य फल कहा गया है। ये सूक्त संस्कृत में लिखे गए हैं जिन्हें अनुवादित कर लोग भविष्य फल वाचन का कार्य कर रहे हैं, लेकिन जयपुर में पं. सुरेश शास्त्री का कहना है कि संस्कृत में लिखे गए श्लोक का हिंदी में अनुवाद करने वालों की करामात ही है कि वे भविष्यफल सुनने आने वालों को किस सीमा तक प्रभावित कर पाते हैं। उन्होंने बताया कि हजारों साल पहले भृगु ऋषि ने जन्मकुंडली के सभी भावों में सभी ग्रहों की कल्पना कर प्राकृत कुंडलियों का निर्माण कर दिया था। उन्हीं कुंडलियों का भविष्यफल भी अपनी दिव्य शक्ति के बल पर लिख गए थे।
पं. शास्त्री की नजर में तो यह ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांतों का विवेचन है और इससे अलग ज्योतिष कुछ भी नहीं है। भृगु संहिता में वर्णित कुंडलियों में प्रत्येक से संबंधित 75 श्लोक लिखे हुए हैं, उन्हीं के आधार पर फलादेश का वाचन किया जाता है। इन कुंडलियों के पन्ने जिन लोगों के पास हैं, उन्होंने भी अपने हिसाब से उनका विवेचन कर रखा है यानी संस्कृत को सरल रूप में लिखा गया है और वाचक को उसे हिंदी में पढ़कर सुनाया जाता है, इसलिए जरूरी नहीं कि एक जन्म कुंडली दो जगहों पर मिल जाने के बाद उनका फलादेश एक जैसा ही हो। उन श्लोकों को ज्योतिषीय भाषा के रूप में सुनाना ही कुशलता साबित करता है।
वैसे आधुनिक ज्योतिष शास्त्र आज भी इन्हीं सिद्धांतों के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। उन्होंने ज्योतिष सुनने आने वाले का नाम और दिन का उल्लेख करना भी फलवाचक की चतुराई ही बताया। आम आदमी को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं होता, इसलिए उसका अनुवाद भी वे अपने तरीके से बता देते हैं, जिससे जातक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। वर्षों तक एक ही विषय पर काम करते रहने से यह अभ्यास भी हो जाता है कि कौन सी कुंडली किस काल खंड में मिलेगी। पूर्व जन्म के बारे में एक किस्सा पं. आचार्य राज भी बताते हैं। उन्होंने बताया कि रामभक्त संत रामसुखदास जी महाराज को भी किसी साधु ने भृगु संहिता के आधार पर उनके जीवन के बारे में ने फलादेश सुनाया था।
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भृगु संहिता और रामसुखदास जी महाराज
रामसुखदास जी महाराज को यह साधु उनके युवा काल में हिमालय के भ्रमण के दौरान मिला था और उसने अपना हस्त लिखित पर्चा भी उनको दिया था। उस पर्चे के अनुसार रामसुखदास जी पूर्व जन्म में महाभारत काल के महान संत विदुर थे। यह बात महाराज ने अपने जीवन काल में किसी को नहीं बताई थी। उन्होंने अपना स्थायी निवास बीकानेर के निकट उदय रामसर ग्राम के एक रेतीले धोरे को बनाया था। बाद में हरिद्वार में भी आश्रम बनाया। (भृगु संहिता क्या है?)
उनके भविष्यफल में यह भी बताया गया था कि वे मृत्युलोक में रामायण और गीता पर प्रवचन देकर लोगों को समार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे। रामसुखदास जी की कोई जन्मकुंडली नहीं थी। पं. आचार्य राज ने हाथ के अंगूठे की छाप से जन्मलग्न निकाला और कुंडली बनाई। उस समय महाराज की उम्र कोई 70 वर्ष के करीब थी। पं. राज ने उन्हें बताया कि कुंडली के अनुसार उनके नाम से कई पुस्तकें प्रकाशित होंगी जिसमें गीता का सरल भाषा में विवेचन होगा। तब तक रामसुखदास जी की कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई थी। बाद में गीता प्रेस गोरखपुर से सैकड़ों पुस्तकें उनके नाम से प्रकाशित हुईं। पं. राज के अनुसार प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम ने भी होशियारपुर में भृगु संहिता की अपनी जन्मकुंडली का फलादेश सुना था। यही उनके जीवन में घटित भी हुआ था।
भृगु फल के पन्ने पर कथन की शैली कुछ इस तरह होती है – हे शुक्र, ‘इदम् जीवस्य जन्मम ज्येष्ठ मासे कृष्ण पक्षे अमावस्यां, बुधवासरे कृतिका नक्षत्रे … इयं जनम सतलज व्यास मध्ये मुकेरिया नगरे जन्मो भवः। हे शुक्र, इयं जीवस्य नाम निखिलो अस्ति, तस्य माता प्रवीण च पिता अनिलः अस्ति। हे शुक्र, इयं जीवः बाल्यावस्थायां दुःख सुख भुक्ता… पंचदश वर्षाणि… इयं जीवस्य जन्म फलम्… नामवाचक रूप बुधवासरे प्राप्तवान भवः …।’ इस भृगुफल का शास्त्री अर्थ निकालकर अपने हिसाब से बता सकते हैं। (भृगु संहिता क्या है?)
हालांकि प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह के बारे में उल्लेख मिलता है कि उन्हें एक भृगु शास्त्री ने पन्ना पढ़कर बताया था कि उनकी उम्र 1999 में समाप्त हो जाएगी, लेकिन सब जानते हैं कि भविष्यवाणी का क्या हुआ। यह और बात है कि उनके बारे में कुछ सामान्य है बातें सही बताई गई थीं। नास्त्रदेमस की भविष्य वाणियों के बारे में भी इसी तरह से कहा जाता है कि उसकी चतुष्पदियां गहन अर्थ रखती हैं। हिटलर के उदय को भी उससे जोड़ दिया गया था और प्रलय की तारीखों से भी। यानि जो कुछ लिखा गया है उससे अधिक महत्त्वपूर्ण यह भी है कि उसका विश्लेषण कैसे किया जाता है। अनुभव ही भृगु संहिता जैसे सत्यों का उद्घाटन कर सकते हैं ।।
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