योग के जरिए मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति सितारों की गति और चाल समझने लगता है। तब वह अपने भाग्य को नियंत्रित करने की अद्भुत शक्ति भी पा लेता है। यह बात अब योग से जुड़ी किंवदन्तियों का हिस्सा बन चुकी है। आगे हम जानते हैं कि योग का मस्तिष्क पर प्रभाव – Brain exercise in Hindi .
योग की शक्ति
कहा जाता है कि जब सद्गुरु स्वामी शिवानंद ने जब महा समाधि लेने का निश्चय किया तो उन्होंने अपनी मृत्यु से एक वर्ष पूर्व ही उसकी तारीख 14 जुलाई 1963 निश्चित कर ली थी। उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए यह तारीख इसलिए तय की क्योंकि उन्हें यह दिन शुभ लगा था । एक स्व-अनुभूत योगी होने के कारण उनके पास इच्छा मृत्यु की शक्ति थी। यह योग की वह शक्ति है जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। (योग का मस्तिष्क पर प्रभाव)
ऐसी ही एक और किंवदन्ती यह है कि जब जान योगी श्री रमन महर्षि ने महा समाधि ली थी, तब 14 अप्रैल 1950 के दिन जिस क्षण उनकी मृत्यु हुई, ठीक उसी क्षण यानी रात्रि के आठ बजकर सैतालीस मिनट पर आकाश में एक चमकदार उल्का पिंड गिरता हुआ दिखाई दिया था। उनके ऐसे बहुत से शिष्यों ने, जो उस समय वहां नहीं थे, आकाश में उल्का पिंड गिरने का समय नोट किया। उनका पूरा विश्वास था कि यह घटना उनके गुरु के देहावसान की सूचक थी ! याद रखें, उस समय संचार के जटिल साधन नहीं थे, लेकिन फिर भी उनके बहुत से शिष्यों ने एक साथ आकाश से गुज़रती उल्का को अपने गुरु की महा समाधि से जोड़कर देखा !
योगियों की इस शक्ति के विषय में पातंजलि का योगसूत्र बहुत दबा-छिपा संकेत देता है। छंदों के गूढ़ होने के कारण उनके रहस्यों को समझ पाना अक्सर मुश्किल हो जाता है। ऋषि पातंजलि अपने सूत्रों में मस्तिष्क-योग की बात भी करते हैं। यह योग की अत्यधिक उन्नत अवस्था है जो योगाभ्यास करने वाले बहुत से लोगों को है प्राप्त नहीं होती और इस तरह वे अष्टांग योग के आठ अंगों तक पहुंच ही नहीं पाते, लेकिन सभी यौगिक अभ्यासों का अंतिम उद्देश्य व्यक्ति को उसके सितारों और भाग्य पर ऐसे ही नियंत्रण की ओर ले जाना होना चाहिए।
यहां तक कि संशय वादियों को भी यह बात स्वीकार करनी होगी कि मस्तिष्क पर नियंत्रण वस्तुतः हमारे भाग्य को बदल सकता है या एक चोर को साधु बना सकता है, जैसा कि वाल्मीकि के साथ हुआ। पातंजलि सूत्र के विभूति पद नामक भाग के 27वें छंद में पातंजलि (जो आदिशेष के अवतार माने जाते हैं) कहते हैं, ‘भुवन्जानाम सूर्येसंयमत्’ अर्थात सूर्य पर ध्यान केंद्रित करके योगी सप्त भवनों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अगले छंद में वे विश्वास दिलाते हैं, ‘चंद्र ताराव्यूहजानाम’ जिसका अर्थ है कि चंद्रमा पर ध्यान केंद्रित करके योगी सितारों को नियंत्रित कर सकता है। 29वें छंद वे कहते हैं, ध्रुवे तद्गतिजानाम’ अर्थात् ध्रुव तारे पर ध्यान केंद्रित करने पर योगी अपना भाग्य जान लेता है। (योग का मस्तिष्क पर प्रभाव)
योग से मस्तिष्क में एकाग्रता आती है
आप इन छंदों को शब्दशः सही मान सकते हैं या यह समझ सकते हैं कि मस्तिष्क की एकाग्रता हमें अपने भाग्य का राजा बना सकती है। संयम योग से जुड़ी एक अवधारणा है, जिसका आशय योगाभ्यास के तीन चरण- धारणा, ध्यान और समाधि का संयोजन है। धारणा का आशय किसी भी वस्तु के प्रति एकाग्रचित्त होना है। योग का दूसरा चरण ध्यान है जहां यह एकाग्रता लंबे समय तक भंग नहीं होती और समाधि वह अंतिम चरण है जब धारणा और ध्यान से तीक्ष्ण हुआ मस्तिष्क दिव्य शक्ति के संग एकाकार हो जाता है। संयम में ये तीनों चरण मिलकर एक हो जाते हैं और ऐसे अखंडित संयम वाला व्यक्ति सचमुच अपना भाग्य नियंत्रित कर सकता है। (योग का मस्तिष्क पर प्रभाव)
अपने आप में एक किंवदन्ती बन चुके बी.के.एस. अयंगर अपनी किताब लाइट ऑन योग सूत्राज़ ऑफ पातंजलि में इन प्रसंगों की व्याख्या शरीर के भौतिक पक्षों के संदर्भ में करते हैं। उनका मानना है कि सूर्य सौर-चक्र, चंद्रमा ईडा नाड़ी (ठंडक पहुंचाने वाली नाड़ी जो सहानुकंपी तंत्रिका तंत्र से जैविक रूप से संबद्ध होती है। यह तंत्र शारीरिक चोटों, घाव आदि को दुरुस्त करने संबंधी व्यवस्था का हिस्सा है) और तारे हमारे विचारों की अस्थिर झिलमिलाहट को इंगित करते हैं। शारीरिक स्तर पर ध्रुव तारा तीसरी आंख के शक्तिशाली केंद्र, आज्ञा-चक्र के समान है और ब्रह्माण्डीय गोलक प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाने वाली आत्मिक सत्ता के सात चक्रों की ओर संकेत करते हैं। बहरहाल, उनके अनुसार इस प्रकार ध्यान केंद्रित करने का प्रभाव हमारे भाग्य पर भी पड़ता है। वे कहते हैं, वे ‘आज्ञा-चक्र पर संयम (गंभीर व अखंडित ) के ज़रिए योगी सितारों की चाल और दुनिया की विभिन्न घटनाओं पर उनके प्रभाव को समझने लगता है।’
योग और ध्यान
ध्यान करने के लिए सबसे सुरक्षित चक्रों में से एक है, हृदय चक्र (चौथा चक्र)। इसका संबंध घाव भरने और प्रेम से है। प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी ओशो ने भी अपनी किताब सीक्रेट्स ऑफ योग में यह कहते हुए इन छंदों की गहराई तक जाने का प्रयास किया है कि पातंजलि हमारे आंतरिक खगोलशास्त्र की बात कर रहे हैं। उनका मानना है कि जिस ध्रुव तारे का संदर्भ ऋषि पातंजलि ने दिया है वह वस्तुतः साक्षी है, जिसे हमारे प्राचीन ग्रंथों में अक्सर ‘दृष्टा ‘मनीषी’ नाम से पुकारा गया है। 28वें छंद में ओशो कहते हैं कि नाभि के दो इंच नीचे स्थित हर चक्र पर ध्यान केंद्रित करने पर मनुष्य में स्थित सूर्य और चंद्र तत्वों का संयोजन होता है ताकि हमारी भावनाएं (जो सूर्य के माध्यम से चित्रित होती हैं) हमारी ज्ञान-शक्ति (जो चंद्रमा के ज़रिए चित्रित होती है) से शांत हो सकें। (योग का मस्तिष्क पर प्रभाव)
एकाग्रता का अभ्यास कैसे करें
हर बार हम योगाभ्यास द्वारा अपनी भावनाओं को अपनी ज्ञान-शक्ति के ज़रिए रूपांतरित करना सीख लें तो अपने सभी सितारों को देख सकते हैं जो और कुछ नहीं, हमारे विभिन्न चक्र मात्र हैं। एक बार इन सितारों पर संयम कर लेने पर आपके सामने आपसे जुड़े रहस्य स्वतः ही खुलते जाएंगे पातंजलि सूत्र के इस भाग के साथ एक गंभीर चेतावनी भी है, साधना के दौरान मिलने वाली शक्तियों के कारण मनुष्य का ध्यान आध्यात्मिक मार्ग से नहीं भटकना चाहिए। योग में सर्वोच्च मानी जाने वाली वह महत्वाकांक्षा है, जीव और ब्रह्म का एकीकरण। आलथी-पालथी वाली किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठ जाएं। रीढ़ की हड्डी का तना होना अखंडित एकाग्रता का आश्वासन है, इसलिए बिल्कुल सीधे बैठे। हर बार सांस अंदर लेने और बाहर छोड़ने पर वक्षस्थल फैलता और सिकुड़ता है। वक्षस्थाल के उस हिस्से पर ध्यान केंद्रित करें जहां श्वास का अनुभव होता है। इस कोमल प्रक्रिया पर अपना ध्यान पूरी तरह केंद्रित करें। ध्यान भटकने पर उसे फिर से केंद्रित करने का प्रयास करें। करीब एक हफ्ते तक ऐसा केवल तीन मिनट के लिए करें। फिर धीरे-धीरे यह अवधि पांच, दस, पंद्रह और अंततः बीस मिनट तक बढ़ाएं ।।
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