इयूलर ने 18 वीं सदी में जब कागज पर अंकों का खाका खींचा तब उसे एहसास नहीं हुआ होगा कि उसकी इस उलझन के दीवाने 21 वीं सदी में भी होंगे जिनकी तादाद हजारों-लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों- अरबों में होगी। आज के जमानें में सुडोकू खेल मात्र न होकर बहुत कुछ बन गया है। कम्प्यूटर के जमाने में सुडोकू और अधिक प्रसिद्द हुआ है। आज कल बड़ी से बड़ी प्रतियोगिताएं भी सुडोकू के माधय्म से होती हैं । आगे हम सुडोकू (Sudoku) के बारे में विस्तार से जानते हैं ।
सुडोकू क्या होता है ?
सुडोकु (Sudoku या Su Doku) एक खेल होता है जो वर्ग पहेली, पहेलियों या शतरंज की पहेलियों की तरह अखबार या किसी पत्रिका में में छपा होता है। एक शाब्दिक वर्ग पहेली की तरह ही सुडोकु में एक वर्ग के अन्दर 9×9 के या 6×6 के खाने बने हुए होते हैं। जिसका उद्देश्य एक पंक्ति या स्तंभ (आड़ी या खड़ी लाइन) में 9 से 9 या 1 से 6 तक के अंकों को इस तरह भरना होता है, कि कोई अंक एक पंक्ति में दुबारा ना आये और ना ही 3×3 के वर्ग में ही दुबारा से आये।
जापानी में सुडोकु का अर्थ होता है “अकेला अंक” इस खेल का आकर्षण यह होता है कि इस खेल के नियम बहुत आसान होने पर भी इसे पूरा करना मुश्किल हो जाता है। आमतौर पर 9×9 के खानों में कुछ अंक पहले से ही दिये रहते हैं। इसमें खेलने वाले का काम होता है बाकी खाली खानों को भरना, इस तरह से कि कोई अंक एक पंक्ति या ३x३ के खानों में वह अंक दुबारा ना आये।
सुडोकू कैसे खेला जाता है ?
सुडोकू (Sudoku) के लिए क्रॉसवर्ड की तरह भाषा के ज्ञान या सामान्य ज्ञान की जरूरत नहीं है, न ही इस पहेली को भरने वालों को गणित में पारंगत होना चाहिए। इसमें न जोड़ना है, न घटाना, न गुणा करना है और न भाग देना है। यहां तक कि यह भी नहीं सोचना पड़ता कि दो और दो चार होते हैं। लेकिन फिर भी इसे भरने के लिए कलम उठाते ही यह पहेली घंटों उलझा सकती है, जिससे धड़कनें बढ़ सकती हैं और आखिर में व्यक्ति दिमागी ऊहापोह के बाद खुद को तरो ताजा महसूस करता है। अंकों को तर्क के आधार पर उपयुक्त जगह देने का यह खेल है ही सुडोकू कहलाता है । पहेली को सुलझाने के लिए 81 खानों ( 9-9 के ढांचे) के प्रत्येक कॉलम, प्रत्येक पंक्ति और प्रत्येक 3×3 के वर्ग को 1 से 9 अंक से भरना होता है। सुनने में यह बहुत आसान लगता है, लेकिन है मुश्किल काम क्योंकि ऐसा करते समय नौ वर्गों में कहीं से भी 1 से 9 अंक का दोहराव नहीं होना चाहिए।
सुडोकू कहां से आया ?
सबसे पहले सुडोकु १९७० में न्युयार्क में छपने वाले एक अखबार में प्रकशित हुआ था। यह पहेली १९८४ में जापान में निकोली अखबार में शुरू हुई। २००५ में यह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो गया । आज के दौर में भारत में भी कई अखबारों में सुडोकू का प्रकाशन हो गया है। जापानी भाषा में अंक को ‘सु’ कहते हैं और ‘डोकू’ का मतलब होता है एक मात्र। बहर हाल नाम के कारण ही ऐसा माना जाता है कि यह पहेली जापान से आई है, लेकिन इसकी रचना 18वीं सदी के स्विस विद्वान की देन है।
महान गणितज्ञ और 1707 में बास्ले में जन्मे लियोनार्ड इयूलर सुडोकू (Sudoku) के जनक हैं। इयूलर ने इस लैटिन स्क्वॉयर को 1783 में ‘नोउवेउ एस्पीसे डे केरेस मेजिक्वेस’ जिसे अंग्रेजी में ‘ए न्यू काइंड ऑफ मेजिक स्क्वॉयर’ के नाम से प्रस्तुत किया। हालांकि उस समय यह वर्ग 9×9 के खाने में बंटा हुआ नहीं था। जिस सुडोकू को हम जानते हैं, वह सबसे पहले 1970 के अंत में गणित पहेली और तार्किक पहेलियां प्रकाशित करने वाली डेल मैग्जीन में प्रकाशित हुई। डेल ने इयूलर की पहेली को 9-9 के खंडों में बांट दिया, इसलिए यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सुडोकू का इतिहास जापान में शुरू न होकर उसका नाम जापान से शुरू हुआ। सांकेतिक शब्द सुडोकू को ट्रेडमार्क के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जबकि अन्य जापानी प्रकाशक ने इसे नंबर प्लेस के नाम से प्रकाशित करते थे। लोगों के बीच निकोली कंपनी द्वारा प्रकाशित अंकों की पहेलियां ज्यादा प्रचलित रहने के कारण यह सुडोकू के नाम से ज्यादा लोकप्रिय हुईं।
सुडोकू की लोकप्रियता
1986 में कुछ महत्वपूर्ण सुधारों के साथ ही सुडोकू (Sudoku) जापान की सबसे लोकप्रिय पहेली बन गई। जो जापानी वाक्यांश ‘सूजी वा दोकूशिन नी कागिरू’ पर आधारित थी। जिसका अर्थ है ‘अंक जो सिर्फ एक बार उपयोग में आए’ या ‘अंक अकेला होना चाहिए’। इस पहेली को प्रकाशित करने वाली जापान की एक कंपनी निकोली कंपनी लिमिटेड ने ‘सूजी वा दोकूशिन नी कागिरू’ के लिए आज दुनियाभर में कई ‘सुडोकू क्लब’ सक्रिय हैं। इसके अलावा सुडोकू चैट रूम, इसे खेलने से संबंधित किताबों, वीडियो, मोबाइल फोन गेम, कार्ड गेम, प्रतियोगिताएं, यहां तक कि सुडोकू गेम शो भी आयोजित किए जाने लगे हैं। इसका उदाहरण है, 2006 में इटली में आयोजित हुआ पहला विश्व सुडोकू चैम्पियनशिप। हाल में दूसरा चैम्पियनशिप प्राग में आयोजित किया गया। दुनिया भर के अखबारों में सुडोकू ने अपनी जगह बना ली है और उनमें नियमित कॉलम के रूप में प्रकाशित किया जाता है।
इसके अलावा सुडोकू से संबंधित सैकड़ों वेबसाइट ऑनलाइन गेम उपलब्ध करवाती है। सुडोकू सॉफ्टवेयर भी पीसी पर डाउनलोड किए जाने वाले खेलों में सबसे अधिक है। सुडोकू में एक नई परंपरा शामिल हो गई है, लोकप्रिय जिसमें अब अंकों की जगह सेलिब्रिटी के चेहरों का इस्तेमाल होने लगा है। हाल में दुनियाभर के मीडिया ने सुडोकू को 21वीं सदी का रुबिक क्यूब’ और ‘दुनिया की सबसे तेज बढ़ती पहेली’ के खिताब से नवाज़ा।
टाइम मैग्जीन में सुडोकू
2004 के अंत में हांगकांग के एक जज वायने गाउल्ड ने द टाइम मैग्जीन के संपादक को इस पहेली को प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। नवंबर 2004 में द टाइम ने पहला सुडोकू (Sudoku) गेम प्रकाशित किया गया था । लंदन टाइम्स में प्रकाशित यह पहेली बड़ी तेजी से पूरे ब्रिटेन और उससे जुड़े देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और यूरोप का जुनून बन गई। सुडोकू की लोकप्रियता को देखते हुए जल्दी ही द डेली मेल, डेली टेलीग्राफ ऑफ सिडनी, द डेली टेलीग्राफ, द इंडिपेंडेंस, द गार्डियन, द सन और द डेली मिरर ने भी इसे प्रकाशित करना शुरु कर दिया।
चैनल 4 में सुडोकू
जुलाई 2005 में चैनल 4 ने हर दिन ‘टेलीटेक्स सर्विस’ नाम से सुडोकू गेम की शुरुआत की। ‘स्काई वन’ ने दुनिया के सबसे बड़े ‘सुडोकू पज़ल’ बनाए।
सुडोकू से दिमागी कसरत
सरकार की सिफारिश पर ‘द टीचर मैग्जीन’ ने सुडोकू (Sudoku) को दिमाग की कसरत के रूप में प्रकाशित करना शुरू कर दिया। एल्जाइमर एसोसिएशन ऑफ कैलिफोर्निया ने किये गए एक शोध में पाया कि उस व्यक्ति के एल्जाइमर रोग से ग्रस्त होने की संभावना कम होती है, जो सुडोकू के माध्यम से अपने दिमाग को आम लोगों की तुलना में अधिक मानसिक उद्दीपन देते हैं। तंत्रिका वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार सुडोकू को हल करने की प्रक्रिया के द्वारा दिमागी कोशिकाएं मजबूत बनती हैं और उन्हें आवश्यक कसरत मिलती है, जिससे एल्जाइमर जैसे रोगों की गति मंद पड़ जाती है।
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