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4 लघु कहानियां

4 लघु कहानियां – 4 Short stories

4 लघु कहानियां 4  –  Short stories :–

                                                                                                     आज हम आपको 4 लघु कहानियां –  4 Short stories  सुनाते हैं, हो सकता है ये कहानीया आप ने कहीं से सुनी हों लेकिन आपको बड़ा  मजा आने वाला है ! मुझे आशा है कि आप  इन कहानियों को पूरा पढ़ेंगे  !

 

 

 

चोट
वृद्धाश्रम के बाहर एक कार आकर रूकी।

उसमें से एक युवक उतरा जिसनें
कार की डिक्की में से एक व्हील चेयर निकाली।

उसने कार का पिछला
दरवाजा खोलकर कुर्सी कार से सटा दी।

                         पिछली सीट पर बैठा एक वृद्ध धीरे-धीरे                       

खिसक कर किसी तरह कुर्सी पर बैठ गया।

यह वृद्ध उस युवक का पिता था।

फाटक से वृद्धाश्रम की इमारत कुछ दूरी पर थी 

इसलिए उस युवक ने व्हील चेयर को धक्का देना शुरू किया।

वह चलते-चलते रास्ते में लगे रंग बिरंगे फूलों को निहारता जा रहा था।

युवक के चेहरे पर किसी काम के पूरे हो जाने का
भाव और खुशी दोनों साफ दिखाई दे रहे थे।
जबकि उसके पिता की नजर कहीं खोई सी थी।

उनके चेहरे पर निराशा तैर रही थी।

अचानक रास्ते में पड़े पत्थर से उसयुवक को चोट लग गई।

पिता पलट कर देखते, तब तक वह कुर्सी छोड़ कर नीचे
बैठ गया और करहाने लगा।

पिता अपनी चिंता छोड़ जैसे तैसे युवक के पास पहुंचे
उनकी नजर खून से लथपथ पैर पर गई।

उन्होंने झुक कर बेटे के कंधे पर हाथ रखते हुए,

चिंतित स्वर में पूछा बेटे कहीं
चोट तो नहीं लगी ?

 

बर्तन

एक वृद्ध आदमी था।

उम्र ने उसके शरीर को जर्जर बना दिया था।

उसके हाथ कांपते, आंखों
से धुंधला नजर आता और चलते समय कदम
डगमगाते थे।

जब वह खाना खाने बैठता तो

खाना फर्श पर गिर जाता।

जब वह दूध पीने के लिए गिलास हाथ में लेता

तो वह उसके हाथ से छूट जाता।

उसके बेटे-बहू को इस सब से बेहद

परेशानी होती।

आखिर रोज-रोज की गंदगी से तंगआकर उन्होंने

उसके लिए कमरे के कोने में अलग मेज लगा दी

और रोज-रोज बर्तन न टूटें इसलिए उसे

लकड़ी के बर्तन में खाना परोसना शुरु कर दिया।

अब वृद्ध व्यक्ति रोज अपनी मेज पर अकेले

खाना खाता। दिन गुजरते रहे।

एक दिन उसका पोता लकड़ी के

टुकड़ों से खेल रहा था। जब बच्चे के पिता ने
उससे पूछा कि वह क्या कर रहा है,

तो उसने कहा कि वह आपके और अपनी माँ के लिए
खाने के बर्तन तैयार कर रहा है।

उसी दिन कमरे के कोने से छोटी मेज हटा दी गई ।

 

 

खिड़की

गंभीर रूप से बीमार दो व्यक्ति अस्पताल के
एक ही कमरे में साथ-साथ भी थे।

उनमें से एक को फेफड़ों से पानी निकालने के लिए

दिन में एक घंटा बैठने की इज़ाज़त थी।

उसका पलंग खिड़की के पास था।

जबकि दूसरा पूरे दिन पीठ के सहारे लेटा रहता था।

वे दोनों पत्नी, परिवार, घर, नौकरी, सेना में अपना
सहयोग और छुट्टियों के बारे में बातें करते थे।
खिड़की के पास वाला व्यक्ति हर दोपहर अपने साथी

के लिए बाहर के दृश्यों का वर्णन किया करता था।

दूसरा बाहरी दुनिया की गतिविधियों और रंगों की बातें सुनकर

अपनी आंखें बंद कर के उन दृश्यों की कल्पना करता था।

एक दोपहर जब खिड़की के पास वाला व्यक्ति बाहर
से गुजरने वाली परेड का वर्णन कर रहा था तो
दूसरे के दिमाग में ख्याल आया कि ऐसा क्यों
है कि अकेला यही सब कुछ देखकर खुश होता है

और मैं कुछ भी नहीं देख सकता ?

दिन गुजरते गए।

एक रात खिड़की के पास वाले व्यक्ति

की तबियत बहुत बिगड़ी। वो मदद के लिए चिल्ला रहा था।

लेकिन उसके साथ वाला व्यक्ति चुपचाप

उसे धुंधली रोशनी में देखता रहा।

उसने उसकी मदद करने की कोई कोशिश नहीं की।

पांच मिनट बाद शांति हो गई। उसकी मृत्यु हो चुकी थी।

सुबह जब नर्स आई तो उसका मृत शरीर पाकर दुखी हुई।

उसने अस्पताल के नौकर को बुलाया और बिना शोर
और खलबली के शव को ले जाने को कहा।
मौका पाकर दूसरे व्यक्ति ने नर्स को उसका
पलंग खिड़की के पास लगा देने को कहा।

नर्स ने उसे खिड़की के पास खिसका दिया।

उसे आराम में छोड़कर वह चली गई।

नर्स के जाने के बाद दर्द के साथ धीरे-धीरे कोहनी का
सहारा लेकर वह व्यक्ति खुद को उठाने की
कोशिश करने लगा।

वो बहुत खुशी महसूस कर रहा था कि अब वो

उन दृश्यों का मजा ले सकेगा।

उसने दृश्य देखने के लिए खिड़की से
बाहर देखा तो सामने सिर्फ एक दीवार थी।

 

दरार

एक पनहरा (पानी भरने वाला) था। उसके पास दो बड़े मटके थे,

जिन्हें वो एक लकड़ी के दोनों छोरों पर लटकाकर उसे गर्दन के पीछे टांगता था।

इनमें से एक मटका फूटा हुआ था और एक साबुत था।
वह मटकों को पूरा भरकर चलता, लेकिन नदी से मालिक के घर तक

पहुंचते-पहुंचते एक मटका आधा रह जाता था।

दो साल से यही सिलसिला जारी था। पनहरा अपने मालिक के

घर तक केवल डेढ़ मटका पानी ही पहुंचा पाता था।

जाहिर है, सही मटके को खुद पर घमंड हो गया कि उसे पूरी तरह सही बनाया गया है।

पुराने और टूटे हुए मटके को खुद पर शर्म आती थी कि वो जिस काम के लिए बनाया
गया है, वही काम सिर्फ आधा हो पाता है। अपने अन्दर के दोष के कारण वह दुखी रहता था।

आखिर एक दिन टूटे मटके ने शर्मिंदा होते हुए मालिक से अपने इस दोष के लिए माफी मांगी,

और कहा कि  ‘पिछले दो वर्षों से तुम मेरे कारण एक के बजाय आधा मटका पानी ही

पहुंचा पाते हो। मेहनत पूरी करते हो, लेकिन पूरी कीमत नहीं पाते।’

पनहरे ने कहा, ‘कल जब हम मालिक के घर चलें तो तुम रास्ते में खिलते

हुए फूलों को जरूर देखना।’

अगले दिन जब वह पहाड़ पर चढ़ा तो पुराने मटके ने गौर किया

कि रास्ते के किनारे खूबसूरत और जंगली फूल खिले हुए हैं।

मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते वो फिर निराश हो गया कि वो

अपने भार से आधा रह गया और दुबारा अपने दोष पर शर्म महसूस करने लगा।

पनहरा घड़े  से बोला ‘क्या तुमने गौर किया कि तुम्हारी ही तरफ फूल खिले हैं

न कि दूसरे पात्र की तरफ। मैं हमेशा तुम्हारी दरार के बारे में जानता था

और मैंने इसका फायदा उठाया । मैंने सड़क के किनारे पर फूलों के बीज डाल दिए थे,

जब हम रोज यहां से गुजरते थे तो तुम्हारा पानी उन बीजों पर गिरता था।
अब मैं इन फूलों को तोड़कर अपने मालिक की टेबल पर सजाऊंगा।

सच, तुम्हारी मदद के बिना ये फूल उस घर की शोभा कभी नहीं बढ़ा सकते थे।

 

 

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