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Ajab Gajab Facts in Hindi - कुछ अनोखी जानकारी

Ajab Gajab Facts in Hindi – कुछ अनोखी जानकारी –

Ajab Gajab Facts in Hindi – कुछ अनोखी जानकारी –

                                                                                                      वैसे तो आज कल गूगल का जमाना है लेकिन हम फिर भी बहुत सी जानकारी से  वाकिफ नहीं होते हैं, आज हम कुछ रोचक जानकारी के बारे में जानते हैं । चलिए बात करते हैं Ajab Gajab Facts in Hindi – कुछ अनोखी जानकारी वो भी अपनी हिंदी भाषा में ।

 Ajab Gajab Facts in Hindi

 

 कम्प्यूटर की-बोर्ड की सफाई कैसे करें –

                                                                                            कम्प्युटर की-बोर्ड पर काम करने के साथ ही उसकी सफाई का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है। अन्यथा, एक ही की-बोर्ड का अलगअलग लोगों द्वारा इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है, एहतियात के साथ अपनाएं कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना जरूरी है । आप फूड प्वाइजनिंग यानी खाने-पीने की चीजों में पाई जाने वाली गंदगी या गड़बड़ी का शिकार बन सकते हैं, जो कई बीमारियों का कारण बन सकती है। इसके लिए की-बोर्ड व माउस को नियमित रूप से साफ करें। इसकी सफाई के लिए अल्कोहल से भिगोएं किसी मुलायम कपड़े का उपयोग करें तो बेहतर होगा। इसके अलावा कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते समय इसके पास भोजन करने से बचें, क्योंकि वहां बची हुई भोजन सामग्री बैक्टीरिया को पनपने और विकसित होने में मदद करती है। Ajab Gajab Facts in Hindi

 बेल  के पेड़ का औशधीय इस्तेमाल  –

                                                                                     टेसी कुल के पेड़ बील/ बेल  को वनस्पति शास्त्र में ईगल मार्मेलोज के नाम से जाना जाता है। यह मध्यम आकार वाला पतझड़ी पेड़ है। इसका तना मोटा और छाल फटी हुई सी धूसर रंग की होती है। इसकी टहनियों में लंबे मजबूत और तीखे कांटे होते हैं। पत्तियां संयुक्त और एक डंठल में तीन-तीन के जोड़े में होती हैं। पत्तियों को मसलने पर विशेष प्रकार की गंध महसूस होती है। इसके फूल हरिताभ, सफेद और सुगंधित होते हैं। फल गोलाकार, चिकने व सख्त छिलके वाले होते हैं । यह दो प्रकार के होते हैं। जंगली बील में फल छोटा और कांटे अधिक होते लेकिन ग्राम्य बील में फल बड़ा और कांटे कम होते हैं।

                                         औषधीय गुणों के कारण भी यह एक महत्वपूर्ण पेड़ माना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में इसका कच्चा फल भारी, रुचिकारक, मलरोधक, पाचक, कड़वा, हल्का गर्म, कसैला व शूल, आमवात, संग्रहणी और कफ के अतिसार को दूर करने वाला होता है। इसका  पका  हुआ फल  दाह पैदा करने वाला, मधुर, भारी, कसैला, मलरोधक, कड़वा, गरम और वातकारक होने के अलावा मंदाग्नि को करता है। इसके फल की एक और विशेषता यह है कि जहां दूसरे सभी फल पकी हुई अवस्था में गुणकारी होते हैं वहां इसका कच्चा फल पके हुए फल से अधिक गुणकारी होता है। इसके पत्ते कफ, वात, आम, और शूल को नष्ट करने वाले होते हैं। इसकी जड़ त्रिदोष, वमन और शूल को नष्ट करने वाली व वायु, कफ और पित्त का शमन करने वाली होती  है। इसका कच्चा फल और अधपका संकोचक, पाचक, अग्निवर्धक और प्रवाहिका रोग की चमत्कारिक औषधि है।

                                          यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसका पका हुआ फल गर्म और खुश्क होता है और इसे पौष्टिक, संकोचक, मृदुविरेचक और हृदय व मस्तिष्क के लिए शक्तिवर्धक माना गया है। इसके पत्ते वर्ष भर भगवान शिव को चढ़ाए जाते हैं, लेकिन सावन के महीने में विशेष रूप से पत्ते चढ़ाने वालों की भीड़ लग जाती है। यह बाग़ बगीचों के अलावा घरों और मन्दिरों के अहातों व सड़क के किनारे खूब लगाया जाता है। Ajab Gajab Facts in Hindi

Ajab Gajab Facts in Hindi -

 

कैसे बना स्टेथेस्कोप (Stethoscope) –

                                                                                                  डॉक्टरी यंत्रों में स्टेथेस्कोप Stethoscope की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह एक ऐसा यंत्र है जिसका प्रयोग सभी डॉक्टरों द्वारा किया जाता है। इसका आविष्कार 1816 में फ्रांस के डॉक्टर आर.टी.एच. लेनिन ने किया था। शुरुआती दौर में लेनिन ने इसे लकड़ी से बनाया था। दिखने में इसका आकार बेलन के समान था। बेलन के आरपार एक छिद्र था, जिसका एक सिरा रोगी की छाती पर लगाया जाता था और दूसरा सिरा डॉक्टर के कान पर। शरीर में पैदा होने वाली ध्वनि तरंगों के आधार पर ही रोग का पता लगाया जाता था। डॉक्टर लेनिन ने बहुत से रोगियों पर इस यंत्र को आजमाया और उनके रोगों के अनुरूप ही उनका इलाज किया। इस यंत्र के जरिए उन्होंने जो परिणाम हासिल किए उन्हें 1819 में चिकित्सा की एक पुस्तिका में भी प्रकाशित करवाया। उसके बाद से समय-समय पर स्टेथेस्कोप की बनावट में काफी परिवर्तन किए गए। आधुनिक स्टेथेस्कोप में छाती व पीठ पर लगाने के लिए एक धातु का टुकड़ा होता है जिस पर एक डायफ्राम लगा होता है। इस टुकड़े से रबर की एक नली लगा दी जाती है और नली का दूसरा हिस्सा धातु की दूसरी नली से जोड़ दिया जाता है। धातु की नली के दो हिस्सों से रबर की दो नलियां लगा दी जाती हैं। इन नलियों को कानों में लगाया जाता है। डॉक्टर डायफ्राम को रोगी की छाती और पीठ पर रखते हैं और हृदय व फेफड़ों से पैदा होने वाली आवाज के जरिए रोगी की बीमारी का पता लगा लेते हैं।

बिमल राय पर डाक टिकट –

                                                                      बिमल राय को गुजरे जमाना हुआ, लेकिन उनकी चर्चा आज भी इस तरह होती है जैसे वे हमारे बीच मौजूद हों। फिल्म जगत में सब उन्हें प्यार से बिमल दा कहते थे। ये वो नाम है जो बेहतरीन सिनेमा का पर्याय बन गया है। शांत, लेकिन गुंजायमान आवाज में बोलती उनकी फिल्में इन्सानी जीवटता की गरिमा को सलाम करते हुए उसके हालात की गहराई को पूरी नाटकीयता, रूमानियत और करुणा के साथ बयान करती हैं। प्रतिभाशाली सिनेमेटोग्राफर से निर्देशक और फिर निर्माता बनने के राय के सफर की शुरुआत कलकत्ता के न्यू थियेटर्स से हुई। जल्द ही उन्होंने इतनी ख्याति अर्जित कर ली कि पी.सी. बरुआ ने अपनी कालजयी फिल्म मुक्ति के पोस्टरों में फिल्म के शानदार अभिनेताओं के साथ-साथ बतौर सिनेमेटोग्राफर बिमल राय के नाम का भी सगर्व उल्लेख किया। उनकी हिंदी फिल्म ‘हमराही’ दरअसल उन्हीं की बांग्ला फिल्म ‘उदयरे पाये’ का हिंदी संस्करण था। इस फिल्म ने प्रगतिशील आंदोलन के लिए शंखनाद का काम किया और उद्देश्य की तलाश में भटकती एक पूरी नस्ल (जिसमें सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन भी शामिल थे) के लिए आदर्श बन गई। इस फिल्म में सामाजिक और आर्थिक दमन के विभिन्न रूपों के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता पूरी शिद्दत के साथ जाहिर होती है और शोषण के खिलाफ उनके सैद्धांतिक संघर्ष का बिगुल बजाती है। बॉम्बे टॉकीज की ‘दो बीघा जमीन’, ‘देवदास’ और ‘बंदिनी’ को तो कभी नहीं भुलाया जा सकता। ये फिल्में राय की सजीव विरासत हैं जिसमें उनका अनूठा निजी दर्शन आज भी हमसे उसी ताजा आवाज में गुफ्तगू करता है जो एक सच्चे कलाकार की कृति को सदा-सर्वदा और सभी के लिए प्रासंगिक बनाकर सच्चे अर्थों में कालजयी बनाता है। डाक विभाग ने बिमल दा को उनके निधन (1966) के 41 साल बाद याद किया और इस डाक टिकट के माध्यम से उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है।

न बिकी पुस्तकों का भविष्य –

                                       क्या आप विश्वास करेंगे कि ब्रिटेन में प्रकाशकों को प्रायः अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकें स्वयं ही नष्ट करनी पड़ती हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च पडते हैं। इस प्रक्रिया में वही पुस्तकें नष्ट की जाती हैं, जो पुस्तके विक्रेताओं के यहां से प्रकाशकों के पास वापस भेजी जाती हैं। प्रेस से प्रकाशक के गोदाम और वहां से विक्रेता तक और फिर वहा से वापस गोदाम तक आने की प्रक्रिया में ये अजिल्द पुस्तकें खराब हो जाती हैं। इतना ही नहीं, प्रकाशक को अपने नए प्रकाशनों के लिए भी में स्थान बनाना पड़ता है। ऐसी पुस्तकों की अंतिम परिणति लुगदी बनाकर नष्ट कर देना ही होती है। ऐसा करने के लिए ब्रिटेन के प्रकाशकों ने ‘बुक इंडस्ट्री कम्युनिकेशन’ संस्था से अनुबंध किया है। संस्था यह काम लिवरपूल स्थित जेल के कैदियों से करवाना पसंद करती है। लुगदी बनाने की प्रक्रिया में पुस्तकों को नष्ट करने के पहले उनमें करते हैं। ताकि वे बिक्री योग्य न रह जाएं ।

                                      छेद करने का काम ‘स्पेशल मीडिया सॉल्युशस’ नामक कंपनी को सौंपा गया है। यह कंपनी जेल के कैदियों के लिए काम की करती है। इसके लिए कैदियों को पारिश्रमिक मिलता है। पर कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशन व्यवसाय में इस बात को लेकर कुछ क्षोभ रहा कि पुस्तकों में छेद करने का यह काम लिंकनशार स्थित नार्थ सी बैंक की जेल को क्यों नहीं दिया गया। ज्ञातव्य है कि प्रसिद्ध उपन्यास लेखक और पुस्तकों की बिक्री से करोडपति बने जेफी आर्चर को स्वयं अपने विरुद्ध में चले एक मुकदमे में झूठ बोलने व गवाहों को भड़काकर न्याय प्रक्रिया में विघ्न डालने के अभियोग में इसी जेल में कुछ वर्ष तक कैद रखा गया था। Ajab Gajab Facts in Hindi

                                     यदि नार्थ सी बैंक के को पुस्तकों में छेद करने का काम सौंपा जाता तो सभावना थी कि किसी समय वहा जेफ्री आर्चर स्वयं अपनी पुस्तकों में छेद कर रहे होते। उपन्यास लेखक जेफ्री आर्चर में रहते हुए ही अपनी दर्जनों पुस्तकों के पूर्व प्रकाशक हार्पर कालिन्स से नाता तोड़ लिया। उन्होंने अपनी नई पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक मैकमिलन अनुबंध  कर लिया। कारण चाहे जो भी रहा हो, पर इतना तो निश्चित ही है कि जेल में रहते हुए भी उनकी प्रसिद्धि बढ़ी ही। अन्यथा क्या कारण है कि प्रकाशन जगत में हुई चर्चा के अनुसार आर्चर ने अपनी जेल डायरी’ और नए उपन्यास के लिए मैकमिलन से बीस लाख पाउंड से भी अधिक का अनुबंध किया था। जेल से रिहा होने के बाद आर्चर की जेल डायरी’ जब प्रकाशित हुई तो उनके प्रिय पाठकों ने उसे हाथों-हाथ लिया और प्रकाशक के लिए वह घाटे का सौदा नहीं रहा ।

आप कितने आलसी हैं ? –

आप कितने आलसी हैं इस बात को अब एक साधारण परीक्षण से बाहर जान लिया जाएगा। यह परीक्षण जल्द ही पता लगा लेता है कि बिस्तर से जल्दी बाहर  न आ पाना आपका आलसी पन है  या फिर यह आपके जीन में ही शामिल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हममें से कुछ लोग उल्लू की तरह होते हैं- रात को देर तक जागना और दिन में देर तक सोना, जबकि कुछ लोग सुबह जल्दी उठ जाते हैं। वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण प्रक्रिया तैयार की है। व्यक्ति के गाल के अंदर की कोशिकाओं का इसमें प्रयोग किया जाता है और यह बता देती है कि आदमी कितना बड़ा आलसी है। इस परीक्षण का फायदा उन कर्मठ लोगों को होगा, जो अपने वरिष्ठों को अपने मेहनतकश होने का प्रमाण देना चाहते हैं। अब उनके पास इस बात को साबित करने के लिए एक जेनेटिक रिपोर्ट है। स्वानसी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन ने इस प्रक्रिया को खोजा है। Ajab Gajab Facts in Hindi

अगरबत्ती – तनावमुक्त करने वाली खुशबू –

                                                                                                       भारतीय पूजा पद्धति और धार्मिक अनुष्ठानों में अगरबत्ती का प्रयोग आम है। माना जाता है कि इसकी खुशबू से आत्मा को सुख का एहसास होता है और शांति मिलती है, लेकिन इसकी खुशबू का प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं है। जैव विज्ञानियों के अनुसार अगरबत्ती चिंता और तनाव को कम करने में काफी सहायता कर सकती है। एक नए शोध के अनुसार जलता हुआ लोबान दिमाग के उन हिस्सों को सक्रिय कर देता है, जो तनाव और चिंता को कम करने में सहायता प्रदान करता है। अगरबत्ती जलाने का मतलब है कि हम अपनी नाक के नीचे तनाव की दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं। लोबान या अगरबत्ती में उपस्थित रसायन एसिटेट दिमाग में टीआरपीवी3 नाम का एक प्रोटीन का उत्पादन शुरू कर देता है, जो स्तनधारियों में तनाव कम करने की दिशा में काम करता है। इस शोध ने तनाव की दवा जीवनशैली में से ही खोजने की कोशिश की है।

समझदारी की उम्र क्या है ?

                                                                अगर आप सोचते हैं कि सिर्फ युवा ही दिमाग दौड़ा सकते हैं तो आप गलत हैं। हाल में हुए एक अध्ययन में यह साबित हुआ है कि उम्र के साथ दिमाग की क्षमता भी बढ़ती जाती है। यूरोप के एक अनुसंधान दल ने इस विषय पर शोध किया कि उम्र के साथ दिमाग की क्षमता पर क्या असर पड़ता है। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती हैं और व्यक्ति बूढा होता है वैसे-वैसे ही दिमाग के काम करने की क्षमता भी बढ़ती जाती है। इस दल के अगुआ प्रोफेसर लार्स लारसन कहते हैं- सामान्य तौर पर माना जाता है कि बुढापे के साथ दिमाग कमजोर होता जाता है। अनुसंधान ने इस धारणा को बदल दिया है। अनुसंधानकर्ताओं ने 4,300 लोगों को इंटेलीजेंस टेस्ट से गुजारा। तब यह सभी लोग बीस वर्ष के थे। इसके ठीक बीस वर्ष बाद उन्हें दुबारा इसी इंटेलीजेंस टेस्ट से गुजारा गया। चालीस साल के प्रौढ़ों का प्रदर्शन बीस साल के युवाओं से बेहतर था।

आस्था का पासपोर्ट ( पासपोर्ट बाबा )-

                                               ईश्वर, आस्था और विश्वास किसी प्रमाण की दरकार नहीं करता, वह तो बस दिल में जगह बना लेता है। यही विश्वास पत्थर को ईश्वर में बदलता है। जमशेदपुर में एक ऐसी ही जगह है जहां पर आस्था की डोर से बंधकर देश के विभिन्न कोनों से लोग अपनी एक खास इच्छा लेकर आते हैं। पासपोर्ट बाबा की मजार वह जगह है जहां उन लोगों का तांता लगा रहता है, जो विदेश जाना चाहते हैं। यहां आने वाले सवाली अपने पासपोर्ट की एक प्रति मजार से सटे पेड़ पर बांधते हैं और अपनी इच्छा पूरी होने की दुआ करते हैं। सूफी संत हजरत मिस्कीन शाह की यह मजार पासपोर्ट बाबा की मजार के नाम से मशहूर हो गई है। इस मजार के संरक्षक पीर मोहम्मद कहते हैं कि यहां आने वाले लोगों में सबसे ज्यादा तादाद उन लोगों की है, जो नौकरी के लिए खाड़ी देश या यूरोप जाना चाहते हैं। इस मजार के बारे में मशहूर है कि अब तक सैकड़ों लोगों की दुआ कबूल हो चुकी है।

कुछ और अजब गजब तथ्य –

  • अमेरिकी जल सेना द्वारा खराब हो चुके कृत्रिम उपग्रह को मार गिराने के  लिए दागी जाने वाली मिसाइल का खर्च 60 मिलियन डॉलर है।
  • एक सिक्के इकट्ठा करने वाले शौकीन ने हाल में अपने संकलन में से एक अमेरिकी सिक्के की नीलामी के दौरान 10.7 मिलियन डॉलर की राशि प्राप्त की है।
  • 2008 में भारत की तरह चीन में भी मुद्रास्फीति की दर 7.1 प्रतिशत तक बढ़ गई थी । यह पिछले 11 वर्षों के दौरान सर्वाधिक उच्च दर रही।
  • 58 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि महंगाई की वजह से आय घट गई है, जबकि 44 प्रतिशत के अनुसार महंगाई से उनकी आय पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।
  • 13 प्रतिशत लोग घर बनाने को सबसे बड़ी आर्थिक परेशानी मानते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस साल आधारभूत खाद्यान्नों की कीमत में 49 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
  • अमेरिका की उधार देनदारियों के 46,700 मामलों मे धोखाधड़ी पाई गई। उधार लेते समय दी गई गलत जानकारियों की वजह से बैंकों की एक  बिलियन से भी ज्यादा राशि इब गई है।
  • चीन अपने ऊर्जा स्रोतों की हालत सुधारने के लिए उन पर प्रतिमाह एक बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है।

                                                                                                मुझे आशा है कि आपको उक्त लेख Ajab Gajab Facts in Hindi  काफी पसंद आया होगा ।।

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