आत्महत्या कोई चुनता नहीं है। आत्मघाती विचार तब आते हैं जब दर्द हद से बढ़ जाता है और उससे लड़ने के साधन कम पड़ने लगते हैं। कहा जाता है कि संवेदनशील और भावुक लोगों में यह प्रवृत्ति अधिक होती है। अक्सर सुनने में आता है कि आत्महत्या करने के बारे में सोचने या फिर ऐसा कर बैठने वाला व्यक्ति कायर होता है और अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए वह ऐसा करता है। दरअसल आत्महत्या मरने का समीकरण इतना आसान नहीं है। मनोवैज्ञानिक पॉल जी क्विनेट अपनी किताब सुसाइडः द फॉरएवर डिसीज़न में कहते हैं शोध दर्शाते हैं कि अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार आत्महत्या करने पर गंभीर विचार किया है और लगभग हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी आत्महत्या करने के बारे में सोचता है। यानी मन में अपने जीवन को समाप्त करने का विचार आना असाधारण नहीं है। आज हम इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं कि आत्महत्या करने के कारण व लक्षण क्या हैं ? और आत्महत्या रोकने के लिए क्या करें ?
व्यक्ति आत्महत्या क्यों करता है ?
किसी व्यक्ति के दिमाग में आत्महत्या करने का विचार आता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह बुरा, सनकी या कमजोर है या वो कायर है । या फिर उसके भीतर कोई कमी है। इसका मतलब यह भी नहीं कि वह वाकई मरना चाहता है मतलब सिर्फ इतना है कि इस समय उसकी पीड़ा उसके भीतर की लड़ने की ताकत से कहीं अधिक है। उसके भीतर यह विचार आया है तो ज़ाहिर है कि अपने जीवन में इन दिनों वह काफी परेशान है, अपनी लड़ाई में थक गया है और अकेला महसूस कर रहा है। वह उस स्थिति में है जहां उसकी पीड़ा असहनीय हो गई है। दरअसल आत्महत्या या आत्मघाती विचार पीड़ा और उससे लड़ने के साधन के बीच के असंतुलन का परिणाम है।
वैज्ञानिक शोध दशति हैं कि लगभग 90 प्रतिशत आत्महता अपनी मृत्यु के समय पर मानसिक तौर पर वस्त होते हैं जिसकी मुख्य वजह है तनाव और अवसाद। लगातार तनाव से गुजरने के कारण व्यक्ति अवसाद के घेरे में प्रवेश कर जाता है जिस स्थिति में उसके मस्तिष्क में नकारात्मकता घर कर लेती है और अंतिम समाधान आत्महत्या ही नज़र आता है। इस स्थिति में पहुंचने की वजह कोई भी हो सकती है शारीरिक कष्ट, असफलता, भावनात्मक क्षति, अपराध, गुस्सा, आर्थिक नुकसान, विपरीत सामाजिक परिस्थितियां आदि ।
आत्महत्या करने वाले व्यक्ति में पाए जाने वाले लक्षण
यदि कोई व्यक्ति अपने साथी से साफ कहता है कि वह आत्महत्या करने की योजना बना रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह सनकी है। दरअसल यह मदद के लिए उसकी पुकार है। वह गंभीर समस्या से गुजर रहा है और समझ नहीं पा रहा कि उससे मुकाबला किस तरह से करे। वह आपके साथ अपनी मनःस्थिति इस आशा के साथ बांट रहा है कि शायद आप कुछ हल सुझा सकें जो इस समय खुद उसे नहीं सूझ रहा है। उसका यह संकेत इमोशनल ब्लैकमेल समझ कर सहज लेना खतरनाक हो सकता है।
अमेरिका की संस्था यूथ सुसाइड नेशनल सेंटर (युवाओं की आत्महत्या से संबंधित राष्ट्रीय केन्द्र) की निदेशिका रहीं शारलोट रॉस को विश्वास है कि ”आत्महत्या मृत्यु का एक ऐसा कारण है जिसे रोका जा सकता है।” जो व्यक्ति अपनी जान लेने की सोच रहा हो उसमें अवसाद, चिंता, विद्वेष आदि अनेक ऐसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं जिनसे उसके आस पास के लोगों को चेतावनी मिलती है। इन लक्षणों को पहचानने की कला सीख ली जाए तो मरने को तत्पर व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। अधिकांश आत्महत्याएं अवसाद का परिणाम होती हैं। कुछ लक्षणों से वास्तविक अवसाद को सामान्य दुख के भाव से अलग पहचाना जा सकता है जैसे :-
- हर बात को नकारात्मक दृष्टि से ही देखना- अवसादग्रस्त व्यक्ति को पक्का विश्वास होता है कि जीवन कभी सुधर नहीं सकता।
- मित्रों और सामाजिक गतिविधियों से कतराना- अचानक लोगों से मिलना-जुलना बंद करके एकाकी हो जाना खतरे की निशानी है।
- दैनिक आचार व्यवहार में नाटकीय परिवर्तन- अच्छी नींद सोने वाला व्यक्ति अनिद्रा का शिकार हो जाए या फिर शांत व्यक्ति अत्यधिक सक्रिय हो जाए यानी यदि वह अपनी मूल प्रवृत्ति से बहुत अलग तरह पा व्यवहार करे तो समझ लें कि वह व्यक्ति अवसादग्रस्त है।
आत्महत्या के लिए प्रेरित व्यक्ति की ऐसे सहायता करें
हालांकि हर अवसादग्रस्त व्यक्ति में आत्महत्या की प्रवृत्ति नहीं होती। अधिक उम्र के वयस्क सोचते हैं कि उदासी के दिन बीत जाएंगे और वे पेशेवर चिकित्सकों की सहायता लेने के लिए भी तैयार रहते हैं, लेकिन किशोर अक्सर समझते बैठते हैं कि अवसाद का कोई अंत नहीं है । विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या की ओर प्रवृत्त व्यक्ति प्रायः अपने इरादे का स्पष्ट संकेत देते हैं। उदाहरण के लिए जिसने आत्महत्या करने का इरादा कर लिया हो, अपने परिवार जनों और मित्रों के बीच यह कहते हुए अपनी चीजें बांट सकता है ”अब मुझे इन चीजों की जरूरत नहीं पड़ेगी।” किसी मित्र या संबंधी की ओर से आत्महत्या के संकेत मिलने पर आप उसकी सहायता कर सकते हैं :-
१- उचित सलाह दीजिये
यदि किसी मित्र की मानसिक स्थिति बिगड़ जाए तो आप उससे कह सकते हैं ”मुझे मालूम है, तुम्हें बड़ी कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है, तुम शायद इस बारे में बात करना चाहते हो।” और कुछ नहीं तो इससे कम से कम यह हो सकता है कि वह किसी मनोचिकित्सक की सहायता लेने को तैयार हो जाए। अकारण सलाह मत दीजिए, न कोई समाधान ही सुझाइए। स्थिति की गंभीरता को हीन मत बनाइए।
भावनाओं के सहभागी बनिए
अक्सर नौजवान तुनकमिजाज होते हैं और अपने में खोए-खोए रहते हैं। एक मनोवैज्ञानिक सलाहकार कहते हैं ”सीधी बात करने के बजाय मैं अवसादग्रस्त व्यक्ति को यह मालूम होने देता हूं कि कभी-कभी मैं खुद भी अवसाद का अनुभव करता हूं और अच्छी तरह जानता हूं कि वह कैसा महसूस करता होगा। इस पर वे अक्सर चुप्पी साध लेते हैं । अपने अवसाद के अनुभवों का सहभागी बनाकर आप उस व्यक्ति विशेष को बता सकते हैं कि कभी-कभी अवसाद होना सामान्य है और ऐसा नहीं कि वे अकेले ही हताशा का अनुभव करते हैं कोई भी इस दौर से गुजर सकता है।
मनोचिकित्सक से इलाज करवाने को प्रेरित करें
यदि अब भी ऐसा लगे कि उसकी प्रवृत्ति आत्महत्या करने की है तो किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से उसका संपर्क करा दीजिए। प्रयत्न तब तक मत छोड़िए, जब तक आत्महत्या का खतरा टल न जाए।
दिल कि बात जानने के लिए सीधे पूछ लीजिये
यदि आप अपने किसी साथी के व्यवहार या हावभाव में आत्मघात के संकेत देखकर उसे छुपाते हैं तो एक तरह से अपने साथी को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। संदेह की स्थिति में उस व्यक्ति से यह सीधे पूछ लेना हमेशा ठीक रहता है कि कहीं वह आत्महत्या करने की तो नहीं सोच रहा, बजाय यह आशा करने के कि समस्या अपने आप टल जाएगी। रॉस का कहना है : ‘यह डर कि आत्महत्या की बात करने से आत्महत्या होकर रहती है, उचित नहीं। यदि कोई व्यक्ति सचमुच आत्महत्या के बारे में नहीं सोच रहा हो, तो संभवतः आपके प्रयास देखकर वह इस बात से खुश होगा कि आपको उसकी चिंता तो है। और हो सकता है कि आपका इस विषय पर चर्चा करना उसे ठीक वही समाधान सुझा दे, जो वह चाहता है। “
आत्महत्या को रोकने के उपाय
इस स्थिति पर दो रास्तों से मुक्ति पाई जा सकती है। एक, दर्द को कम करने का रास्ता खोज लिया जाए या फिर लड़ने के साधनों में वृद्धि कर ली जाए। दोनों ही रास्तों पर चलना संभव है। याद रखिए संभव है। जब कभी भूले-भटके भी आत्महत्या का विचार मन में आए तो :-
- ध्यान रखिए आप पहले और असामान्य व्यक्ति नहीं, जिसके मन में यह विचार आया है। अक्सर लोग आपकी तरह महसूस करते हैं। तमाम खोजों और आंकड़ों के अनुसार बहुत अच्छी संभावना है कि आप जीवित रहेंगे।
- खुद से थोड़ी दूरी बनाइए। कोई कदम उठाने से पहले अपने आप को एक सप्ताह या कम से कम चौबीस घंटे का समय दीजिए। हमेशा याद रखिए, भावनाएं और क्रियान्वयन दो अलगअलग बाते हैं। सिर्फ इसलिए कि आप मरना चाहते हैं, आपको इसी समय मरने की जरूरत नहीं। आत्महत्या की इस भावना और कर्म के बीच फासला बढ़ाइए। भले ही चौबीस घंटे का।
- अक्सर लोग इसलिए आत्महत्या की ओर मुड़ते हैं, क्योंकि वे दर्द से मुक्ति चाहते हैं, परंतु याद रखिए दर्द से मुक्ति एक अनुभूति है जिसे महसूस करने के लिए जीवित रहना आवश्यक है। इस एहसास को आप मरणोपरांत कैसे महसूस कर सकते हैं? ज़ाहिर है कि आप जिस चाह में अपना जीवन समाप्त करने जा रहे हैं, दरअसल उसके लिए आपका जीवित होना अनिवार्य है।
- कुछ लोग जीवन समाप्त करने के आपके इस विचार पर तीखी प्रतिक्रिया देंगे । दरअसल वे ऐसा डर या गुस्से के कारण कर रहे होते हैं। संभव है कि अपने इरादे के विपरीत वे अपनी पर बातों और विचारों के माध्यम से मदद करने के बजाय आपकी पीड़ा और बढ़ा दें। उनकी इस खराब प्रतिक्रिया के पीछे आप नहीं, उनका अपना डर है। उनके कारण अपनी तकलीफ और मत बढाईये । इन लोगों के अलावा ऐसे लोग भी हैं जो इस मुश्किल समय में बिना निर्णायक बने या बहस किए आपकी मदद कर सकते हैं। अपने आप को दिए चौबीस घंटे या एक सप्ताह में ऐसे किसी एक व्यक्ति को ढूंढ़ निकालिए। ऐसा जरूरी नहीं कि यह व्यक्ति आपका बहुत करीबी ही हो। अपने भीतर चल रहा पूरा अंतर्द्वद्व उसे बताइए। अपने संकट से अकेले जूझने का अतिरिक्त बोझ मत उठाइए। यहां तक पहुंचने की अपनी कहानी किसी को सुना देने से आप पर बना दबाव काफी हद तक कम हो जाएगा। हो सकता है कि ऐसा करने से आपको अपनी लड़ाई में वह अतिरिक्त साधन मिल जाए जो आपके संतुलन को वापस बना दे। याद रखिए मदद मांगने में कोई बुराई नहीं है और इसके लिए आप किसी संस्था की, मनोचिकित्सक की या फिर ऑनलाइन मदद भी ले सकते हैं।
- आत्महत्या की भावना अपनेआप में वेदनापूर्ण है। इसके शांत होने के बाद भी अपना ध्यान रखना जरूरी है। इसके लिए चिकित्सकीय मदद भी ली जा सकती है। आत्महत्या का विचार शुद्ध रूप से मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसका सफल हो जाना एक दुर्घटना से अधिक कुछ नहीं। यह एक क्षण में घटी दुर्घटना है। यदि समय रहते स्थिति को समझ कर संभाल दिया जाए तो इसे टाला जा सकता है। इसके बावजूद आत्महत्या को हीन मानते हुए आत्महंता को गुनहगार माना जाता है और आत्महत्या गुनाह। व्यक्ति का अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय दूसरे लोगों के लिए जो भी मायने रखे, यह व्यक्तिगत फैसला है जिस पर ‘गलत’ या ‘सही’ होने का उचित दावा करना मुश्किल है। जैसा कि अपनी किताब, पॉजिटिव एडिक्शन में मनोवैज्ञानिक विलियम ग्लॉसर कहते हैं, “हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि कभी भी दूसरे की पीड़ा खुद महसूस नहीं की जा सकती।” यदि कोई आत्महत्या करने में सफल होता है तो यह आत्महंता के साथ-साथ उसके परिवार और इर्द-गिर्द के समाज की असफलता दर्शाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जब कोई अपना जीवन स्वयं समाप्त कर लेता है तो यह उसकी अपने जीवन से निराशा की चरम अभिव्यक्ति है। यह लगातार नकारात्मक आत्मविश्लेषण, घटनाओं और निराशा की श्रृंखला का दुर्भाग्यपूर्ण, तीव्र, लेकिन सोचा समझा परिणाम है। जिसका सीधा संबंध पारस्परिक रिश्ते, राजनीति,अपराध आदि विषयों को लेकर सामाजिक अवधारणाओं और मानदंडों से है।
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपको ये लेख आत्महत्या करने के कारण व लक्षण क्या हैं ? – आत्महत्या रोकने के लिए क्या करें ? पसंद आया होगा, अगर आपको ये लेख पसंद आया है तो आप इसे शेयर करें और मुझे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताएं ताकि मैं आपके लिए निरंतर ऐसे और लेख लिख सकूँ ।
ये भी पढ़ें –
सांवलापन कैसे दूर करें ? – चेहरा साफ करने के लिए घरेलू उपाय –
पौस्टिक एवं संतुलित भोजन – स्वस्थ जीवन शैली में आहार की भूमिका
(आत्महत्या करने के कारण व लक्षण क्या हैं ?)