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कृतिम रक्त (Artificial Blood)

कृतिम रक्त (Artificial Blood) – सफेद खून के फायदे और नुक्सान

बीस वर्षीय बेस लिन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ 20 रही थी। सड़क दुर्घटना में लगी चोट के कारण उसे ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (टीबीआई) हो गई थी और उसे बचाने के लिए सर्जरी करना जरूरी था। चिकित्सकों ने उसकी मां से एफडीए से गैर मान्यताप्राप्त एक दवाई इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी। उनका कहना था कि इसके इस्तेमाल से उसके दिमाग के लिए आवश्यक ऑक्सीजन मिल पाएगी। लिन की मां ने चिकित्सकों के कहने पर कृत्रिम रक्त ‘ऑक्सीसाइट’ को इस्तेमाल करने की सहमति दे दी। यह वही कृत्रिम रक्त था जिसके तत्वों को वर्जिनिया कॉमनवेल्थ यूनिविर्सिटी के वैज्ञानिक ने जानवरों पर किए गए परीक्षण के दौरान दिमाग की क्षति से संबंधित करीबन आधे प्रभावों को नाकाम करने में सफल पाया था। आज हम इस लेख में कृतिम रक्त (Artificial Blood) के बारे में जानते हैं और  सफेद खून के फायदे और नुक्सान के बारे में भी जानते हैं।

कृतिम रक्त की खोज कब हुई ?

कृत्रिम रक्त (Artificial Blood) के परिवार में ऑक्सीसाइट सबसे नया उत्पाद है। इसे खोजने की शुरुआत 19वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में हो गई थी जब कि डॉक्टर रक्त की क्षति को पूरा करने के लिए दूध का इस्तेमाल किया करते थे। 1980 के प्रारंभ में जब एड्स खतरे के रूप में उभरा तो 19वीं सदी की इस आवश्यक खोज यानी कृत्रिम सब्स्टिट्यूट (विकल्प) की जरुरत महसूस हुई ताकि मूलभूत समस्याओं जैसे संक्रमित रक्त और सप्लाई की कमी को खत्म किया जा सके। लेकिन इसकी प्रथम पीढ़ी के खराब परिणामों ने कृत्रिम रक्त की पहली पीढ़ी के प्रति रोष भर दिया। जिसकी वजह से वैज्ञानिकों को मानव पर इसके परिणामों का अध्ययन रोकना पड़ा। हालांकि प्रयोग बंद नहीं हुए।

दो दशक और बिलियन डॉलर के खर्च के बाद शोधकर्ताओं ने जाना कि वास्तविक रक्त और कृत्रिम रक्त (Artificial Blood) में मूलभूत अंतर है। हमारी नसों में बहने वाला रक्त पोषक, हार्मोन और ऑक्सीजन की सप्लाई लाइन की तरह काम करता है। यहां तक कि संक्रमण से लड़ने और रक्त दबाव को नियमित करने के लिए भी दुगुनी गति से काम करता है। वहीं कृत्रिम रक्त सिर्फ एक उद्देश्य की पूर्ति करता है और वह है ऑक्सीजन का वितरण। यही कमी उसका गुण भी थी कि सामान्य रक्त की तुलना में ऑक्सीसाइट 50 प्रतिशत ऑक्सीजन को अवशोषित कर सकता है, जो ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी से ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए उपयोगी हो सकती है।

कृतिम खून (Artificial Blood) के फायदे

कृतिम रक्त (Artificial Blood) , रक्त की तुलना में  पचास गुना बेहतर ढंग से पूरे शरीर को आक्सीजन पहुंचता है। साथ ही यह सड़क हादशों में घायल लाखों जाने भी बचा सकता है। कृतिम खून के छोटे कण सूजी हुई, क्षति ग्रस्त वाहिकाओं में ऑक्सीजन ले जा सकते हैं, जहां लाल रक्त कोशिकाएं असफल होती हैं क्यूंकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऑक्सीजन न मिल पाना ही दिमाग की क्षति का मुख्य कारण होता है। यह दान किए रक्त को जमा करने से निजात देने के साथ ही ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी से ग्रस्त लोगों और सैनिको के इलाज के लिए उपयोगी हो सकती है।

टीबीआई रोगी की याद्दाश्त को नुकसान पहंचा सकती है, उसे अंधा कर सकती है, यहां तक कि असमय मौत भी दे सकती है। वार सिग्रेचर के नाम से पहचाने जाने वाली इसी बीमारी के लिए सब्स्टिट्यूट रक्त की जरूरत तीव्रता से महसूस की गई। जिसमें आम रक्त की तुलना में ऑक्सीजन को 50 गुना ज्यादा अवशोषित करने की क्षमता थी। वर्जिनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी के चिकित्सकों के अनुसार अगर हम इसे एफडीए मान्यता प्राप्त करवाने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो इसका इस्तेमाल ट्रॉमैटिक इंजरी के अलावा कई दूसरी बीमारियों जैसे स्ट्रोक, हार्ट-अटैक, सिकल सेल एनिमिया यहां तक कि कॉर्ड इंजरी को ठीक करने में किया जा सकता है।कृतिम रक्त (Artificial Blood)

कृतिम खून (Artificial Blood) के नुकसान

स्पाइनल हालांकि ब्रूस स्वीकार करते हैं कि इसमें उपलब्ध शुद्ध ऑक्सीजन हमारी रक्त वाहिकाओं में मुक्त मूलक का विकास करते हैं, जो ऊतकों और झिल्लियों को क्षति पहुंचा सकता है। इसके अलावा कुछ अन्य कुप्रभाव भी हैं, जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता। जैसा कि पूर्व में पीएफसी शोधों में पाया गया कि रोगियों को यकृत में कम समय की सूजन से गुजरना पड़ा। कुछ रोगियों में बिंबाणु की संख्या में कमी पाई गई, जिससे रक्त की थक्का जमाने की प्रक्रिया में रुकावट पैदा हो सकती है और कुछ लोगों में फ्लू के प्रभाव भी दिखे। बकौल ब्रूस “लेकिन इसमें कोई नई बात नहीं है। हर दवाई में कुछ न कुछ विषैला पदार्थ होता है, जिनके कुप्रभाव पड़ते हैं।सफेद रक्त के साथ भी कुछ ऐसा ही है।”

इसके अलावा ऑक्सीसाइट से फेज 2 में इलाज किए गए आठ मरीजों में से मात्र एक की मृत्यु हुई और जीवित रोगियों में ठीक होने की क्षमता बेहतर रही। वहीं बेस लिन के मामले में असाधारण रूप से दुर्घटना के दो हफ्तों बाद उसके अंदर पुनः चेतना आ गई। उसने अपने लकवा ग्रस्त दाहिने हिस्से को भी बेहतर पाया और अनुमान से कम समय में ही वापस ठीक होने लगी। अब उसके पूरी तरह बेहतर हो जाने की उम्मीद है। इन परिणामों के बाद से चिकित्सा के क्षेत्र में नई संभावनाओं को लेकर बड़े स्तर पर ऑक्सीसाइट के इलाज की योजना बनाने की तैयारी चल रही है। हो सकता है कि अगले साल तक ऑक्सीजन थैरेपी अस्पतालों के एमरजेंसी वॉर्ड में इस्तेमाल होने लगे।        कृतिम रक्त (Artificial Blood)

कृतिम खून के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्टॉकहोम में कैरोलिंस्का अस्पताल के वैज्ञानिकों के अनुसार  दरअसल कृतिम खून  एक पाउडर होता है जिसे हम  वर्षों तक सहेज कर रख सकते हैं।
  • कृतिम खून में सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये होती है कि इसमें ज़रूरतमंद मरीज के ख़ून का वर्ग क्या है, ये पता करने का कोई झंझट नहीं रहता है। इस तरह कृतिम खून से हर ज़रूरतमंद को तुरंत ही ये ख़ून दिया जा सकता है।
  • कृतिम खून को मानव शरीर से  दान में लिए  गए असली ख़ून से बनाया जा सकता है वहीं पर असली ख़ून को ज़्यादा से ज़्यादा सिर्फ़ बयालीस दिनों तक ही रख सकते हैं ।
  •  प्रमुख फ़िज़ीशियन डॉक्टर पियरे लाफ़ोली कहते हैं  कि अगर इस कृत्रिम ख़ून को मरीज को चढ़ाने की अनुमति मिल जाती है तो इससे स्वास्थ्य के क्षेत्र में  ज़बरदस्त परिवर्तन आ सकता है और ये इस क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति होगी । डॉक्टर पियरे लाफ़ोली ने आगे कहा कि  “अगर ये खून वास्तव में कारगर साबित होता है, तो मानव के लिए यह एक बहुत बड़ा क़दम होगा, ये बिल्कुल चाँद पर कदम  रखने जैसा होगा।”
  • कृतिम खून को जब ज़रूरत हो तो खून के पाउडर को घोलकर तरल बनाया जा सकता है और उसे  तुरंत मानव शरीर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • डॉक्टर लाफ़ोली कहते हैं  कि हम किसी दुर्घटना के बाद लगने वाले समय को भी कृत्रिम ख़ून  इस्तेमाल कर के बचा सकते हैं । डाक्टर लाफोली के अनुसार हम किसी मरीज को ख़ून देने से पहले जो समय खून का  वर्ग पता करने में लगता है उस समय को इससे बचाया जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम रक्त के मामले में ये भी देखने में आया है, कि ये रक्त  असली रक्त  के मुक़ाबले कहीं अच्छी तरह से ऑक्सीजन को शरीर के अंदर ले जा सकता है।
  • कृत्रिम रक्त से मरीज के शरीर को होने वाले नुकसान भी कम हो जाएँगे और मरीज को दिल का दौरा पड़ने जैसे हालातों में इस कृत्रिम रक्त का काफ़ी फ़ायदा देखने को मिलेगा। इस संबंध में  डॉक्टर लाफ़ोली कहते हैं कि, “गंभीर परिस्थितियों में तो समय ही सब कुछ होता है, क्योंकि ऐसे में हमें एक घंटे के भीतर ही सब कुछ करना होता है।” उन्होंने आगे ये भी  कहा कि , “यही वजह है कि मेरे ख़्याल से मरीजों  के इलाज के लिए ये कृत्रिम रक्त भविष्य में  बहुत अहम भूमिका अदा कर सकता है।”
  • कृत्रिम रक्त को अमरीका के वैज्ञानिकों  ने ही  विकसित किया है और अमरीका के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम रक्त  को  विकसित करने का तरीक़ा गुप्त ही रखा गया है।
  • मानव रचित इस कृत्रिम खून का सबसे पहले 8 मरीज़ों पर अमेरिका के  कैरोलिंस्का अस्पताल में  परीक्षण किया गया था ।
  • कृत्रिम रक्त  के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफ़ेसर बेंग्ट फ़ैगरेल इस पर विशवास दिलाते हुए कहते हैं कि, “ऐसे कोई संकेत नहीं हैं, कि कृत्रिम रक्त ख़ून का इस्तेमाल ख़ारिज भविष्य में खारिज कर  दिया जाए।”
  • प्रोफ़ेसर  फ़ैगरेल के अनुसार  ” कृत्रिम रक्त एक अणु जैसा होता है, जिसे मरीज के शरीर का प्रतिरोधी तंत्र ख़ुशी-ख़ुशी से स्वीकार कर लेता है।”
  • प्रोफ़ेसर  फ़ैगरेल ने बताया  कि मरीज़ों को दिया जाने वाला मानव निर्मित  कृत्रिम खून मानव के खून की लाल  कोशिकाओं से बना हुआ होता है।

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