मुँह का आधा भाग टेढा (विकृत) होना ही अर्दित (चेहरे का लकवा) कहलाता हैं। प्रकुपित वायु मुख प्रदेश में स्थान संश्रय कर अर्थात ठहर कर अर्दित रोग को उत्पन्न करती है। सामान्यतः अर्दित (लकवे) में मुख का आधा भाग ही प्रभावित होता हैं जिससे एक तरफ की आंख, कान, नाक, मस्तक, होंठ, जबड़ा तथा दांतों में विशेष विकृति होती है। इस लेख के माध्यम से हम आज जानते हैं कि चेहरे का लकवा – Facial paralysis in Hindi क्या है? और इसका इलाज किया है ? –
चेहरे का लकवा होने के प्रमुख कारण
अधिक जोर से बोलना, अधिक कठोर पदार्थ खाना, जोर से हंसना, जम्भाई लेना, शक्ति से अधिक वजन उठाना, मुंह टेढ़ा करके छींकना, मुंह को विकृत करके अलग-अलग हाव-भाव बनाना, उबड़-खाबड़ जगह पर सोना आदि कारणों के साथ वायु को बढ़ाने वाले आहार-विहार का सेवन करने से प्रकुपित वायु का स्थान संश्रय मुख प्रदेश में हो जाता हैं। यह प्रकुपित वायु सिर, नाक, होंठ, जबड़ा, ललाट, आंखों आदि अंगों की संधियों को पीड़ित करके अर्दित को उत्पन्न करती है।
आधुनिक मतानुसार इसे फेशियल पैरालाइसिस (Facial paralysis) कहते है। यह चेहरे की मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली सातवीं शीर्षण्य नाड़ी (Facial Nerve) की विकृति से होता है। इस नर्व में विक्षत (Lesion) स्थल में विभित्रता के अनुसार आर्दित के प्रकार एवं लक्षणों में भी विभित्रता होती हैं। चेहरे का लकवा मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –
1- पूर्व रूप का लकवा
इसमें घात के वास्तविक लक्षण उत्पन्न होने के पूर्व कान के नीचे की तरफ दर्द तथा स्पर्श असह्यता होती है। सारा शरीर रोमांचित एवं कंपयुक्त होता है। आंखे मलिन रहती है, डकारे अधिक आती हैं, चेहरे की त्वचा सुत्र रहती है तथा गले व जबड़े में जकड़ाहट होती है। इसके पश्चात एका एक चेहरे के आधे भाग का घात प्रारंभ हो जाता है।
पूर्व रूप का लकवा के लक्षण
इसमें रोगी के आधे मुख की समस्त चेष्टाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे आधा चेहरा भावहीन तथा क्रिया शून्य हो जाता है । रोगी से आंखें बंद करवाने पर विकृत आधे तरफ की पलक बंद नहीं हो पाती तथा नेत्रगोलक ऊपर की ओर घूम जाता है। भौंहों को ऊपर उठाने पर मात्र एक ही भौंह उठती है तथा इसी ओर के माथे पर सलवट नहीं पड़ती। भोजन करने या कोई पेय पदार्थ पीने पर पीड़ित भाग को क्रिया शून्यता के कारण उस तरफ से अन्न या पेय पदार्थ बाहर निकल जाता है। एक तरफ को आंख में स्तब्धता होती है, आंखों से प्रायः आंसू बहते हैं तथा आंखें लाल रहती हैं। आवाज साफ नहीं निकलती, विशेष कर होंठों की सहायता से बोले जाने वाले शब्द अस्पष्ट होते हैं। मुख का पीड़ित भाग, स्वस्थ भाग की तरफ खिंचा हुआ लगता है। एक तरफ के मुख का कोना हमेशा खुला रहता है, रोगी मुंह से सीटी नहीं बजा सकता । उसकी गर्दन दूसरी ओर मुड़ जाती है, सिर कांपता है तथा विकृत भाग में पीड़ा होती है।
यदि विक्षत, उष्णीषक (Pons) से नाड़ी सूत्र निकलने के बाद ही हो, तो श्रुति नाडौ (Auditory Nerve) प्रभावित होती है जिससे बधिरता भी हो सकती है, किंतु स्वाद की अनुभूति पूर्ववत हो रहती है। Auditory tube में विक्षत होने से मुख की संपूर्ण पेशियों के घात के साथ स्वाट का वहन करने वाली नाड़ी भी प्रभावित हो जाती है । फलतः जीभ के अग्र भाग से स्वाद को अनुभूति नहीं होती। यदि यह विक्षत कपाल के बाहर हो, तो रोग सौम्य स्वरूप का होता है और जल्दी ठीक हो जाता है।
असाध्य अर्दित (लकवे) के लक्षण
जो रोगी अत्यंत दुर्बल हो, पलकें न झपका सके, बिलकुल बोल न सके या अस्पष्ट बोले, अर्दित तीन वर्ष पुराना हो या जिसकी नाक, आंख और मुख से निरंतर साव निकले तथा रोगी कंपवात से भी पीड़ित हो, तो ऐसा रोग या चेहरे का लकवा अर्दित असाध्य होता है।
चेहरे का लकवा में रखे जाने वाली सावधानियां
क्या करें
हल्के, जल्दा हजम होने वाले पदार्थ जैसे जौ या गेहूं की चपाती, मूंग तुअर की दाल, कम मात्रा में पुराने चावल का भात, पालक, पपीता, परवल, मेथी, सेब, मौसंबी, गाय का दूध आदि ऐसे पदार्थों का रोगी को सेवन करवाना हितकर रहता है । विशेष रूप से ध्यान रखें के रोगी को इन नियमों का कडाई से पालन करते हुए रोग निवारण तक औषधियां का सेवन कराएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि रोगी को कब्ज न रहे ।
क्या न करें
देर से पचने वाले पदार्थ, उड़द, चना, मटर, खटाई, सेम, अरबी, फूल गोभी, आलू तथा दूसरे कंद, मिर्च मसाले दार, नशीले, ठंडे तथा फ्रिज में रखे पदार्थ, भैंस का दूध, तंबाकू आदि ऐसे पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
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