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बोनस और स्टॉक सिपल्ट और शेयर बाईबैक

बोनस और स्टॉक सिपल्ट और शेयर बाईबैक – Bonuses And Stocks Simples and Share Buybacks

ज हम बोनस और स्टॉक सिपल्ट और शेयर बाईबैक ( Bonuses And  Stocks Simples and Share Buybacks) का मतलब विस्तार से जानते हैं । सामान्य तौर पर निवेशक पूंजी लाभ की संभावनाओं के कारण इक्विटी में निवेश करते हैं। कम जोखिम वाले फिक्स्ड इन्कम के रास्ते निवेश करने के बजाय वे इक्विटी में निवेश करने का अतिरिक्त जोखिम उठाते हैं। इसके पीछे मुख्य प्रेरणा उनके निवेशों की कीमत में होने वाली वृद्धि होती है। हालांकि पूंजी फायदों के अलावा इक्विटी उपकरण निवेशकों को कुछ अन्य फायदे भी दे सकते हैं जैसे बोनस, स्टॉक स्पिलिट (शेयरहोल्डर की इक्विटी में परिवर्तन किए बिना कॉर्पोरेशन के शेष शेयरों की संख्या में बढ़ोतरी करना) और शेयर बाइबैक। आइए निवेशकों के लिए इनकी महत्ता और प्रत्येक के टैक्स पहलुओं केबारे में बात करते हैं।

बोनस शेयर

बोनस शेयर वे शेयर होते हैं जो किसी कंपनी के शेयर होल्डर को कंपनी के संचय के एक हिस्से का पूंजीकरण करके फ्री ऑफ कॉस्ट जारी किए जाते हैं। शेयर की कुल संख्या में कितनी भी बढ़ोतरी हुई हो, शेयर होल्डर के आनुपातिक स्वामित्व में कोई अंतर नहीं आता है । साथ ही बोनस के बाद बोनस इश्यू के अनुपात में बोनस शेयर की कीमत कम होनी  चाहिए, जिससे कि शेयर होल्डर की व्यक्तिगत संपत्ति में कोई अंतर नहीं आता। हालांकि अक्सर बोनस कंपनी द्वारा दिया गया शक्तिशाली संकेत समझा जाता है और शेयरों की निरंतर मांग कीमतों के बढ़ने का कारण बनती है। जहां तक कर की बात है, क्योंकि बोनस शेयर को प्राप्त करने के लिए किसी भी रकम का भुगतान नहीं होता इसे पूंजी लाभ की गणना करते वक्त शून्य कीमत पर आंका जाना चाहिए। वास्तविक रूप से प्राप्त किए गए शेयर अधिग्रहण के समय अदा की गई कीमत पर आंके जाने जारी एक रहेंगे। एक इत्तिफाकन फायदा यह है कि जब वास्तविक शेयरों की बाजारी कीमत बोनस के कारण गिरती है तो वास्तविक शेयरों पर वैचारिक हानि के स्पष्टीकरण का अवसर बढ़ सकता है।

स्टॉक, सिपल्ट

भारतीय संदर्भ में स्टॉक सिपल्ट एक नया संयोजन है। यह महत्वपूर्ण है कि निवेशक उन कारणों को समझें  जिनसे कंपनी उनके शेयर स्पिलिट कर सकती और एक स्टॉक स्पिलिट किस प्रकार बोनस इश्यू से भित्र है। स्टॉक स्पिलिट में कंपनी की पूंजी समान रहती है वहीं बोनस इश्यू में पूंजी बढ़ती है और संचय में कमी आती है। हालांकि दोनों कामों में (स्टॉक स्पिलिट कंपनी की कुल कीमत अप्रभावित रहती है।

दो   फॉर एक स्टॉक स्पिलिट इसका विशिष्ट उदाहरण है । मान लेते हैं, एक कंपनी एक महीने में 2 फॉर 1 स्टॉक स्पिलिट की घोषणा करती है। इसका मतलब उस तारीख से एक महीने तक कंपनी शेयरों का लेन-देन पूर्व दिन से आधी कीमत पर करेगी। अंततः आपके पास वास्तविक शेयरों से दोगुनी संख्या के शेयर होंगे और बदले में कंपनी के पास बकाया शेयरों के दोगुने शेयर होंगे।

अब प्रश्न उठता है कि यदि निवेशक की संपत्ति में कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर फिर कोई भी कंपनी स्टॉक स्पिलिट क्यों घोषित करती है? इसका प्राथमिक कारण शेयरों को अधिक वहनीय बनाते हुए उन्हें अतिरिक्त लिक्विडिटी प्रदान करना होता है।

जहां तक स्टॉक स्पिलिट्स के कर निहितार्थ की बात है, दरअसल ये कर को प्रभावित नहीं करते। एक बोनस इश्यू की तरह स्टॉक स्पिलिट में भी कर निष्प्रभाव होता है। हालांकि जब शेयर बेचे जाते हैं तो पूंजी फायदों पर लागू होने वाला कर बोनस इश्यू पर लागू होने वाले कर से भिन्न है। यहां पर शेयरों की वास्तविक कीमत कम करनी होगी। उदाहरण के लिए अगर 100 शेयरों की कीमत 150 रुपए प्रत्येक शेयर की लागत से 1,50,000 रुपए है तो स्पिलिट के बाद 200 शेयरों की कीमत 75 रुपए प्रति शेयर की लागत तक घट जाएगी और इस प्रकार कुल लागत स्थिर यानी 1,50,000 रुपए रहेगी।             (बोनस और स्टॉक सिपल्ट और शेयर बाईबैक)

शेयर बाइबैक

शेयर बाइबैक भी नया संयोजन हैं। रिलायंस, सीमेंस और इंफोसिस उन कंपनियों के उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने शेयर वापस खरीदे हैं। दरअसल बाइबैक कॉर्पोरेट के पास उपलब्ध एक वित्तीय उपकरण है जो पूंजी ढांचे में लचीलापन लाता है। इस स्थिति में बाइक कंपनी को उच्च डेट-इक्विटी अनुपात बरकरार रखने की अनुमति देता है। यह सभी संभावित अधिनिकरणों से रक्षा का भी उपकरण है। सामान्य तौर पर कंपनियां बाइबैक तब काम में लेती हैं जब वे स्वयं के शेयरों को कम कीमत का महसूस करने लगती हैं या फिर जब उनके पास बकाया नकद होता है जिसके लिए तैयार पूंजी निवेश की जरूरत नहीं होती है। स्टॉक बाइबैक आय के अवकुशलन से भी बचाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बाइबैक प्रति शेयर कमाई को बढ़ा सकता है या फिर इसके विपरीत ईपीएस डाईल्यूशन से भी बचा सकता है, जो कि स्टॉक ऑप्शन ग्रांट्स के कारण हो सकता है। इतना ही नहीं, बाइबैक लाभांश के भुगतान के विकल्प के रूप में भी काम करता है।

यह बाइबैक के कर निहितार्थ के महत्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान आकर्षित करता है। यहां सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात यह है कि बाइबैक पर खर्च होने वाली राशि लाभांश है या यह शेयर के स्थानांतरण पर होने वाला कंसिडरेशन (किसी सेवा को पाने के पहले ही शुल्क देना)? यदि यह लाभांश पर विचार के लिए है तो किसी भी तरह से निवेशक के लिए कर योग्य नहीं होगा। इसके अलावा बाइबैक पर खर्च की गई राशि को किस सीमा तक लाभांश माना जाएगा? क्या संपूर्ण राशि या सिर्फ प्रत्यक्ष मूल्य पर खर्च की गई प्रीमियम राशि लाभांश है? अनारकली साराभाई बनाम सीआईटी (1997) के मामले के बाद 90 टैक्समैन 509 (एससी) ने यह सिद्धांत बनाया कि जिस कंपनी ने शेयर जारी किए हों उसके द्वारा शेयरों का मुआवजा शेयर होल्डर द्वारा कंपनी को शेयर की बिक्री के बराबर होता है। फाइनेंस एक्ट 1999 ने सारे भ्रम खत्म करने के लिए इसे दोहराया है। अब यदि कोई कंपनी अपने शेयर खुद खरीदती है तो शेयर होल्डर को प्राप्त होने वाले कंसीडरेशन और अधिग्रहण की कीमत का अंतर पूंजी लाभ माना जाएगा। इसके अलावा इसे लाभांश के रूप में नहीं माना जाएगा।क्योंकि लाभांश की परिभाषा में कंपनी द्वारा अपने ही शेयर खरीदने के लिए किया गया भुगतान शामिल नहीं होता है ।।

मुझे उम्मीद है अब आप बोनस और स्टॉक सिपल्ट और शेयर बाईबैक के बारे में अच्छे से समझ गए होंगे ।

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