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जिंदगी जीने के लिए ...
ग्लेन कजिंघम

ग्लेन कजिंघम, कभी कभी झूठ , बीज – Glenn cunningham , Sometimes lies, seeds

ग्लेन कजिंघम, कभी कभी झूठ , बीज –

Glenn cunningham , Sometimes, Sometimes lies, seeds :-

परीक्षा और जीत

                               सर्दी के दिनों में अंगीठी जलाने के प्रयास में दो छोटे बच्चों ने मिट्टी के तेल के स्थान पर पेट्रोल डाल दिया। आग भड़की, एक तो तत्काल मर गया। दूसरा महीनों अस्पताल में रहने के बाद कुरूप और अपंग हो गया उसके दोनों पैर लकड़ी की तरह सूख गए। पहिए दार कुर्सी के सहारे घर लौटा तो किसी को आशा न थी कि वह कभी चल सकेगा। पर लड़के ने हिम्मत नहीं छोड़ी। आज की तुलना में अधिक जल्दी स्थिति प्राप्त करने के लिए वह निरंतर प्रयास करता रहा। निराश या खिन्न होने के स्थान पर उसने प्रतिकूलता को चुनौती के रूप में लिया और उसे अनुकूलता में बदलने के लिए अपने कौशल और पौरुष को दांव पर लगाता रहा। उसने बैसाखी के सहारे न केवल चलने वरन दौड़ने में सफलता पाई और कई पुरस्कार जीते। इस विपन्नता के बीच भी उसने पढ़ाई जारी रखी। एम.ए. पीएचडी. उत्तीर्ण की और विश्वविद्यालय में निदेशक के पद पर आसीन हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध में वह मोर्चे पर भी गया और जहां लड़ा  और सफल भी रहा। रिटायर होने पर उसने अपनी पूंजी से अपने जैसे अपंगों को स्वावलंबन देने वाला आश्रम खोला, जिसमें इन दिनों आठ हजार अपंगों के लिए पढ़ने, रहने और कमाने का प्रबंध है। अमेरिका के संकल्पवान साहसी ग्लेन कजिंघम का नाम बड़ी श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। कठिनाइयों से जूझने के लिए उसका जीवन वृत्तांत पढ़ने-सुनने का परामर्श दिया जाता है।

सबक :- जीवन की बड़ी से बड़ी परीक्षा संकल्प से जीती जा सकती है।

कभी-कभी झूठ

                                             भी धर्मों और संत-महात्माओं द्वारा सत्य बोलने का उपदेश दिया गया है। हमारे शास्त्रों में भी कहा है – ‘सत्यं वद, धर्म चर‘। अर्थात  सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो। धर्मराज युधिष्ठिर तक झूठ बोलने से नहीं बचे। आदमी के झूठ बोलने की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। यदि मां-बाप खुद झूट बोलते हैं या बच्चों को झूठ बोलने के लिए कहते-उकसाते हैं, तो बच्चे भी झूठ बोलने लगते हैं। धीरे-धीरे झूठ बोलना उनकी आदत बन जाती है ! मनो वैज्ञानिकों का कहना है कि आदतन बोला गया झूठ एक रोग है। यह स्थिति मस्तिष्क की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होती है। व्यक्ति को स्वयं यह पता नहीं होता कि वह झूठ बोल रहा है या सच ? झूठ के अनेक प्रकार हैं। कुछ झूठ ऐसे हैं, जो एक सीमा तक क्षम्य और उचित कहे जा सकते हैं, तो दूसरी ओर ऐसे झूठ हैं, जो सर्वथा त्याज्य और अहितकर हैं। शादी-ब्याह तय करते वक्त शिक्षा, आमदनी, हैसियत आदि के बारे में झूठ बोल देना कोई विशेष बात नहीं मानी जाती। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपने एक निबंध ‘जीने की कला’ में लिखा है, ‘एक निर्दोष के प्राण बचाने वाला असत्य उसकी हिंसा का कारण बनने वाले सत्य से श्रेष्ठ ही रहेगा।’ झूठ बोलने की आदत बना लेना किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। क्लास नहीं लेनी तो सिरदर्द बता कर उसे छोड़ दिया, दफ्तर जाने का मन नहीं है तो बीमारी की अर्जी लिखवा दी, समय पर किसी से न मिले तो कोई झूठी मजबूरी गढ़ दी। इस तरह के झूठ नैतिकता के विरुद्ध हैं और इनके कारण दूसरों के काम का हर्ज भी होता है। कहावत प्रसिद्ध है कि,झूठ के पांव नहीं होते। बात सही भी है। झूठ अधिक दिन तक नहीं चल सकता। प्रायः कभी न कभी उजागर हो ही जाता है। झूठ बोलने से सामान्यतया किसी न किसी की हानि होती ही है, या दोनों की हो। अत: उचित यही है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यतया झूठ न बोला जाए, क्योंकि झूठ बोलने वाला व्यक्ति अधिक समय तक किसी का विश्वासपात्र बनकर नहीं रह सकता और विश्वास ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।

बीज

                                    सुदूर पूर्व का एक राजा जब वृद्ध हो गया तो उसे अपने उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी। एक दिन उसने राज्य के सभी नौजवानों को महल में इकट्ठा किया। उन्हें एक-एक बीज देकर कहा कि वह चाहता है कि सभी नौजवान उन्हें बोएं और ठीक एक साल बाद बीज से उगे पौधे को लेकर आएं। तब वह अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करेगा। सभी युवक बीज लेकर घर आ गए और पूरी शिद्दत से उसकी देखभाल में जुट गए। इन्हीं में लिंग नामक एक नौजवान भी था। वह भी खुशी-खुशी बीज को खाद-पानी देता रहा। तीन हफ्ते बीत गए। सभी युवक अपने नन्हे पौधे को लेकर इठला रहे थे लेकिन लिंग के बीज से अंकुर भी नहीं फूटा था। तीन हफ्ते, चार हफ्ते…. इसी तरह छह हफ्ते बीत गए। लिंग मायूस हो गया। आखिर वह दिन भी आ गया जब सबको राजा के सामने उपस्थित होना था। सबके गमलों से रंग-बिरंगे खूबसूरत फूल लहलहा रहे थे, लेकिन लिंग का गमला खाली था। उसे लगा उसने बीज बर्बाद कर दिया है और अब राजा उसे मौत की सजा सुनाने वाला है। तभी राजा ने लिंग को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। राजा ने बताया कि सालभर पहले उसने सबको उबले हुए बीज बांटे थे यानी उनका अंकुरण असंभव था।
सबक :- ईमानदारी से चालाकी भी मात खा जाती है।

 

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