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बात वही- अंदाज नया

बात वही- अंदाज नया – Same thing – style new in Hindi short story

 बात वही- अंदाज नया  Same thing – style new (Hindi short story)

बात वही – अंदाज नया –

                                     एक  भिखारी सड़क के किनारे बैठे भीख मांग रहा था । उसने अपने पीछे एक बोर्ड लगवा रखा था । बोर्ड पर लिखा था  ‘मैं अंधा हूं, कृपया मेरी मदद  कीजिए ।’ दिन ढलने को था पर उसके कटोरे में चंद सिक्को के अलावा कुछ भी इकट्ठा नहीं हो पाया । दूर खड़ा एक नौजवान काफी देर से उस असहाय की बेचैनी देख रहा था। उसने चाक उठाया और बोर्ड पर लिखा वाक्य बदल दिया। कुछ घंटों में ही उस भिखारी का कटोरा सिक्कों से भर गया । क्या आप जानना चाहेंगे उस युवक ने बोर्ड पर क्या लिखा था ? उसने लिखा था, ‘दुनिया कितनी खूबसूरत है पर अफसोस मैं उसे नहीं देख सकता ।’ बात वही- अंदाज नया

थोड़ा लिया जाय ज्यादा दिया जाय  –

                                         परिवार में गृहस्वामी ने एक मेंढ़ा और गाय को पास-पास बांध रखा था। गाय के साथ उसका एक बछड़ा भी था। बछड़े ने देखा कि गृहस्वामी उसकी मां  (गाय को सूखी घास एवं मेढ़े को अच्छा खाना देता।) इस अन्याय को वह मन ही मन होते देखता। आखिर एक दिन उसने मां से पूछ ही लिया, ‘मां तुम गृहस्वामी को दूध भी देती हो और वह उस दूध को बेचकर धन भी कमाता है, पर फिर भी तुम्हें सूखी घास ही मिलती है और यह मेढ़ा तो खा-खा के मोटा ही होता है, कुछ देता भी नहीं, फिर इसे अच्छा खाना क्यों मिलता है।’ बेटे की बात सुनकर गाय ने कहा, ‘बेटा भला इसी में है कि थोड़ा लिया जाए और अधिक दिया जाए।’ मां की बात बेटे के गले नहीं उतरी। एक दिन उसने देखा कि गृहस्वामी एक बड़ा चाकू लेकर उनकी तरफ आ रहा है। बछड़ा यह देख डर गया और मां के नजदीक खिसक गया। मां ने सांत्वना भरे स्वर में कहा, ‘बेटा डरो मत ये चाक़ू तुम्हारे लिए नहीं है, यह  तो उसके लिए है जिसने फोकट का खाया है । बेटे को आज मां की बात ” भला इसी में है कि थोड़ा लिया जाय लेकिन अधिक दिया जाय ” का अर्थ समझ आ गया था ।

नगाड़ा तो बजाओ –

                                          चोरी करने की नीयत से कुछ चोर एक गांव में गए। जब वे गांव से गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि एक नट छलांग लगाकर रस्सी पर चढ़ गया और खेल दिखाने लगा। चोरों ने सोचा, इस नट को उड़ाकर ले जाना चाहिए। किसी दो मंजिले मकान पर वह आसानी से चढ सकेगा और अपना काम आसान कर देगा। उस नट को लेकर चोर-चोरी करने एक हवेली में गए। हवेली के पास खड़े होकर उन्होंने नट से कहा, तुम छलांग लगाकर पहली मंजिल पर पहुंच जाओ। नट ने चोरों का कहा अनसुना कर दिया। तभी एक चोर ने गुस्से से कहा ‘अबे तू जल्दी से कूद जा अपने पास वक्त बहुत कम है।’ नट उनकी जल्दबाजी पर खीझ उठा। उसने कहा, मैं कहां देरी कर रहा हूं, लेकिन पहले नगाड़ा तो बजाओ ।

सजा –

        एक हाईस्कूल के अध्यापक को बिना बती साइकिल चलाने के जुर्म में पकड़ लिया गया। उनकी कोर्ट में पेशी हुई। जब जज साहब को पता चला कि वे अध्यापक हैं तो बड़े खुश हुए। उन्होंने अध्यापक की ओर देखते हुए कहा, मेरी बड़ी पुरानी इच्छा थी की मैं किसी अध्यापक को यहां पर देखू। आज मेरी वर्षों पुरानी वह इच्छा पूरी हो गई है। और फिर यका यक जज साहब की मुद्रा गंभीर हो गई । वे अध्यापक को देखते हुए जोर से चिल्लाए, चलो यहां बैठकर पांच सौ बार लिखो मैं अब बिना बत्ती के साइकिल नहीं चलाऊंगा।

नुस्खा :-

                 राधा कृष्ण की  पत्नी मनीषा कई दिनों से अपने पति को उसके मालिक से कहकर वेतन बढ़वाने की बात कर रही थी। एक दिन मनीषा ने राधाकिशन से कहा, मुझे तो तुम्हारे कंजूस मालिक से वेतन बढ़वाने की केवल एक ही सूरत दिखाई देती है। राधाकिशन जिसके यह सब सुनते-सुनते कान पक गए थे पर वह अपने मालिक से भी डरता था और उससे ज्यादा अपनी बीवी से भी। वह कैसे उसने पूछा ?’ मनीषा ने कहा, उसकी भलमनसाहत को  उभारो और उसकी दयालुता पर दबाव डालो। उसे बताना तुम्हारे सात बच्चे हैं, एक बूढ़ी मां है, जिसकी तुम्हें रात को तीमारदारी करनी पड़ती है। वेतन कम होने के कारण तुम कोई नौकर भी नहीं रख सकते हो, इसलिए घर के काम में तुम्हें अपनी बीवी का हाथ भी बंटाना पड़ता है। राधाकिशन ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि वह आज जरूर अपने मालिक से इस बारे में बात करेगा। शाम को मनीषा ने दरवाजे पर ही राधाकिशन को रोकते हुए पूछा, क्यों मेरे नुस्खे ने कुछ रंग दिखाया? राधाकिशन ने कहा, हां मेरे मालिक ने मुझे नौकरी से निकाल दिया है। वह कहने लगे जब तुम घर पर इतना सारा काम करते हो और थक जाते हो तो मेरे यहां क्या काम करते होंगे । 

 

देरी का कारण –

                कालीचरण खाना खाने के लिए पड़ोस के एक होटल में गए। उन्होंने बैरे को बुलाकर खाने का ऑर्डर दिया और चैन से बैठकर खाने की प्रतीक्षा करने लगे। जब आधे घंटे तक खाना नहीं आया तो झल्लाकर उन्होंने बैरे को बुलाकर उसे डांटा, क्या बात है खाना तैयार होने में इतना समय कैसे लग रहा है? बैरे  ने मासूमियत से जवाब दिया, साहब खाना तो दो दिन पहले ही तैयार हो गया था, अभी तो सिर्फ गर्म हो रहा है।

पहचान –

                   किसी वीरान जंगल में लोहा, पारस और सोना-तीनों एक-दूसरे से कुछ दूरी पर पड़े थे। लोहा काफी समय तक पारस को देखता रहा फिर सोचने लगा यह तो महज एक पत्थर है, इसके पास जाने से मुझे क्या हासिल होगा? क्योंकि यह कांतिविहीत है। तभी उसने नज़र घुमाकर सोने की ओर देखा । उसकी आंखें सोने की चमक बधिया गई। उसने सोचा कितना वैभवशाली है। इसकी संगत से सम्भव है मैं भी आभावान हो जाऊं। यह सोचकर वह सोने के पास जाकर उसके सट कर पड़ गया। काफी समय व्यतीत हो गया, पर लोहे में कोई परिवर्तन नहीं आया। तब कुछ समय बाद पारस ने लोहे से कहा, ‘भाई! तुम बहुत दिनों से सोने के समीप रह चुके हो कुछ समय मेरे साथ भी रहकर देखो । हो सकता है तुम्हारे मन को कुछ शांति मिल सके।’ पारस से कहा, लोहा अन्यमनस्क-सा उठा और पारस के समीप जा पहुंचा किन्तु जैसे ही उसने पारस को छुआ वह स्वयं सोना हो गया तब लोहे ने गद-गद स्वर में कहा ‘आप तो विचित्र हैं बंधु! दूसरों को वैभव देते पर स्वयं पत्थर सरीखे होते हैं।’ पारस ने हंसकर उत्तर दिया ‘प्यारे दोस्त! दूसरों को वैभव प्रदान करना ही वैभवशालियों की एक मात्र पहचान है।’

दुर्घटना –

                   एक रोगी जब अस्पताल में आया तो उसके शरीर पर कई चोटें लगी हुई थीं, खून निकल रहा था। प्रवेश पत्र की पूर्ति करते हुए चिकित्सक ने पूछा क्या आप विवाहित हैं ? रोगी ने उत्तर दिया, हां लेकिन आज यह सब मेरी पत्नी ने नहीं किया आज तो मैं कार के नीचे आ गया था।।

 

दो कप चाय –

                                दर्शन शास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं, उन्होंने अपने साथ लाई एक कांच की बड़ी बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची, उन्होंने छात्रों से पूछा क्या बरनी पूरी भर गई ? हां, आवाज आई।  फिर प्रोफेसर साहब ने छोटेछोटे कंकड़ उसमें भरने शुरू किए , धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफी सारे कंकड़ उसमें जहां जगह खाली थी, समा गए, फिर से प्रोफेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फिर हां कहा । अब प्रोफेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया, वह रेत भी उस जार में जहां संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हंसे, फिर प्रोफेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ अब तो पूरी भर गई है सभी ने एक स्वर में कहा, प्रोफ़ेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोड़ी सी जगह में सोख ली गई । प्रोफेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरू किया “इस कांच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो, टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकड़ मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें मनमुटाव, झगड़े आदि  हैं, अब यदि तुमने कांच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकड़ों के लिए जगह ही नहीं बचती, या कंकड़ भर दिए होते तो गेंदे नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी, ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है, यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा, मन के सुख के लिए क्या जरूरी है यह तुम्हें तय करना है। बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फेंको, मेडिकल चेकअप करवाओ, टेबल टेनिस गेंदों की फिक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण हैं । पहले तय करो कि क्या जरूरी है, बाकी सब तो रेत है।” छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे, अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप’ क्या हैं ? प्रोफेसर मुस्कुराए, बोले, “मैं सोच ही रहा था कि अभी तक यह सवाल किसी ने क्यों नहीं किया, इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।”

 

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