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 मुल्ला नसरुद्दीन कौन था ?

 मुल्ला नसरुद्दीन कौन था ? – Who was mulla nasruddin?

 मुल्ला नसरुद्दीन कौन था ? – Who was mulla nasruddin?

                                                                                           नसरुद्दीन के व्यंग्य, उसका ओड़ा हुआ अनाड़ीपन और उसकी करतूतों में झलकने वाली गहरी समझ को देखकर एक पुलक सी उठती है। भीतर कहीं महसूस होता है, यह नाम किसी का भी हो सकता है. आपका, मेरा, अपने पड़ोसी का, दरवेशों का मुखिया और परिपूर्ण सदुरु। अब सवाल उठता है कि मुल्ला नसरुद्दीन कौन था ? – Who was mulla nasruddin? चलिए आज हम मुल्ला नसरुद्दीन को अलग नजर से देखते हैं :-

 

जीवन परिचय – 

                            मुल्ला नसरुद्दीन होजा तुर्की (और संभवत, सभी इस्लामी देशों का) सबसे प्रसिद्द हास्य चरित्र है । तुर्की भाषा में होजा शब्द का अर्थ है शिक्षक या स्कॉलर । मुल्ला नसरुद्दीन चतुराई और वाक पटुता के किस्से यतार्थ के करीब लगते हैं  यह वास्तविकता पर आधारित हैं। कहा जाता है कि उसका जन्म वर्ष १२०८ में तुर्की के होरतो नामक एक गाँव में हुआ था और वर्ष १२३७ में वह अक्सेहिर नामक मध्यकालीन नगर में बस गए जहाँ हिजरी वर्ष ६८३ (ईसवी १२८५) में उसकी मृत्यु हो गई। मुल्ला नसरुद्दीन के इर्दगिर्द लगभग ३५० कथाएँ और प्रसंग घुमते हैं जिनमें से बहुतों की सत्यता संदिग्ध है।

                                   कई देश मुल्ला नसरुद्दीन को पैदा करने का दावा करते हैं। टर्की में तो उसकी कब्र तक बनी है, और हर साल वहां नसरुद्दीन उत्सव मनाया जाता है। उस उत्सव में मुल्ला नसरुद्दीन जैसी पोशाक पहनकर लोग उसके किस्सों को अभिनीत करते हैं। एस्कि शहर उसका जन्म गांव बताया जाता है।

                                  ग्रीक लोग नसरुद्दीन के किस्सों को अपनी लोककथा का हिस्सा बनाते हैं। मध्य युग में नसरुद्दीन के किस्सों का उपयोग तानाशाह अधिकारियों का मजाक उड़ाने के लिए किया जाता था। उसके बाद मुल्ला नसरुद्दीन सोवियत यूनियन का लोक नायक बना। एक फिल्म में उसे देश के दुष्ट पूंजीवादी शासकों के ऊपर बाजी मारते हुए दिखाया गया था। मुल्ला नसरुद्दीन मध्यपूर्व और उसके आसपास बसने वाली मनुष्य जाति के सामूहिक अवचेतन का हिस्सा बन गया। कभी वह बहुत बुद्धू बनकर सामने आता है तो कभी बहुत बुद्धिमान। उसके पास कई रहस्यों का भंडार है सूफी दरवेश उसका उपयोग मनुष्य के मन के अजीबो-गरीब पहलुओं को उजागर करने के लिए करते हैं।

                                    विद्वानों की कलम की बहुत सी स्याही नसरुद्दीन को कागज पर उतारने पर खर्च हुई है। जबकि नसरुद्दीन के पास उनके लिए कोई वक्त नहीं था। सूफी, जो कि विश्वास रखते हैं कि गहरी अंतः प्रज्ञा ज्ञान की पथ प्रदर्शक है, वे इन कहानियों को ध्यान विधियों की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे साधकों से कहते हैं कि इनमें कुछ मनपसंद कहानियों को चुनकर उन पर मनन करो और उन्हें जज्ब करो। इस तरह उच्चतर प्रज्ञा में तुम्हारा प्रवेश होगा। मुल्ला नसरुद्दीन को ऐतिहासिक व्यक्ति मानने की गलती न करें तो ही इसके मिथक को समझा जा सकता है। मुल्ला नसरुद्दीन की लोकप्रियता का राज यही है कि वह हर इंसान के भीतर बसता है। वह मानवीय मन का ही एक साकार रूप है।

 

मुल्ला नसरुद्दीन के किस्से या लतीफे :-

                                                                            मुल्ला नसरुद्दीन के लतीफों को समझने के लिए कोई बड़ी दार्शनिक विद्वता नहीं चाहिए। एक ही बात आवश्यक है अपने आप पर हंसने की क्षमता। कई लोग कहते हैं, मैंने सीखना चाहा लेकिन यहां मुझे सिर्फ पागलपन मिला। फिर भी वे कहीं और गहरी समझ को खोजेंगे तो नहीं पाएंगे। पेश हैं नसरुद्दीन के कुछ किस्से जो एक सूफी किताब में से लिए गए हैं :-

नसरुद्दीन और ज्ञानी :-

                               दरबार में नसरुद्दीन के खिलाफ मुकदमा चल रहा था। दार्शनिक, तर्कशास्त्री और कानून के विद्वानों को नसरुद्दीन की जांच करने के लिए बुलाया गया था। मामला संगीन था, क्योंकि नसरुद्दीन ने कबूल किया था कि वह गांव-गांव घूमकर कहता था कि तथा कथित ज्ञानी लोग अज्ञानी, अनिश्चय में जीने वाले और संभ्रमित होते हैं। उस पर इल्जाम लगाया गया कि वह राज्य की सुरक्षा का सम्मान नहीं कर रहा है। सम्राट ने कहा, ‘तुम पहले बोलो।’ मुल्ला ने कहा, ‘पहले कागज और कलम ले आओ।’ कागज और कलम मंगवाए गए। इनमें से सात लोगों को ये दे दो और उनसे कहो कि वे सब एक सवाल का जवाब लिखें,  ‘रोटी क्या है?’ उन सबने अपने-अपने कागज पर लिखा। वे कागज सम्राट को दिए गए और उसने उन्हें पढ़कर सुनाया गया पहले ने लिखा, ‘रोटी एक भोजन है। दूसरे ने लिखा, ‘वह आटा और पानी है।’ तीसरा,  ‘खुदा की भेंट है।’ चौथा, ‘सिका हुआ आटा है।’ पांचवां, ‘आप किस चीज को रोटी कहते हैं इस पर निर्भर है।’ छठा] ‘एक पोषक तत्व।’ और सातवें ने लिखा,  ‘कोई नहीं जानता कि रोटी क्या है।’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘जब वे सब मिलकर यह तय कर पाएंगे कि रोटी क्या है ? तब बाकी चीजों के बारे में निर्णय कैसे  ले सकेंगे, जैसे मैं सही हूं या गलत क्या आप किसी की जांच परख या मूल्यांकन करने का काम ऐसे लोगों को सौंप सकते हैं? क्या यह अजीब नहीं है कि उस चीज के बारे में एक मत नहीं हो सकते जिसे वे रोज खाते हैं, और फिर भी मुझे काफिर सिद्ध करने में सभी राजी हो गए हैं ? उनकी राय का क्या मूल्य है?”

 

 

तस्करी :-

               नसरुद्दीन गधे पर बैठकर पर्शिया से ग्रीस बार-बार जाता था। और हर बार वह घास की गठरियां ले जाता था। सरहद के संतरी घास को उघाड़ कर बारीकी से छानबीन करते लेकिन उसमें कुछ भी नहीं मिलता। लौटते समय वह खाली हाथ लौटता। संतरी पूछते, ‘तुम क्या ले जा रहे हो नसरुद्दीन ?’ ‘मैं एक तस्कर हूं। नसरुद्दीन कहता ! ‘नसरुद्दीन की अमीरी बढ़ती गई और वह ईजिप्त जाकर बस गया। वर्षों बाद कस्टम का एक अधिकारी उसे मिला और उसने पूछा, ‘मुल्ला, अब जबकि तुम ग्रीस और पर्शिया के इलाके से बाहर हो, इतनी शान औ शौकत से रह रहे हो, तुम क्या चुराकर ले जाते थे जिसे हम कभी पकड़ नहीं पाए ?’ ‘गधे, नसरुद्दीन ने कहा।

मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं :-

                                               एक दिन लोग दौड़ते हुए मुल्ला नसरुद्दीन के पास आए। उन्होंने हांफते हुए कहा, ‘मुल्ला, तुम्हारी सास नदी में गिर गई। और वहां बहाव तेज है, वह समुंदर में बह जाएगी। पलक झपकते नसरुद्दीन नदी में कूद पड़ा और बहाव से उलटे तैरने लगा। लोग चिल्लाए, ‘नहीं, नहीं, नीचे की ओर। व्यक्ति यहां से
नीचे की ओर ही जा सकता है।’ मुल्ला ने कहा, ‘सुनो ! मैं अपनी सास को अच्छी तरह से जानता हूं। अगर हर कोई नीचे की ओर बहता हो तो मेरी सास को ऊपर की ओर ही खोजना पड़ेगा ।’

 

मुल्ला का प्रवचन :-

                             एक बार कुछ लोगों ने मुल्ला नसरुद्दीन को प्रवचन देने के लिए बुलाया । मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ कर बोले , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”  “नहीं ” बैठे हुए लोगों ने एक स्वर में जवाब दिया। यह सुन कर  मुल्ला नाराज़ हो गए , और बोले “जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है ।” और ऐसा कह कर वहां से चले गए !

                              वहां पर बैठे लोगों  को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज कर बुलाया । इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?” “हाँ ” वहां लोगों ने कोरस में उत्तर दिया । “बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ?” और ऐसा कहते हुए मुल्ला वहां से निकल गए । अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे और उन्होंने एक बार फिर से मुल्ला को आमंत्रित किया। इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?” इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया। “ ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें।” उसके बाद फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया !

 

खाने की चीज और पढ़ने की चीज :-

                                                       नसरुद्दीन ने बाजार से एक कलेजा खरीदा और वह उसे ले जा रहा था। दूसरे हाथ में उसे पकाने की विधि लिखा हुआ कागज था जिसे एक मित्र के पास से लाया था। अचानक एक चील ने झपट्टा मारा और उसके हाथ से कलेजा लेकर उड़ गई । नसरुद्दीन ने चिल्लाकर कहा, ‘अरे मूरख ! मांस ले गई तो ले जा, लेकिन उसे बनाने की विधि तो मेरे पास ही है ।’

 

मुल्ला और पड़ोसी :-

एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के घर गद्दा लेने के लिए  पहुंचा ! मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले , पडोसी बोला  “ मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो ?, मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ! ” मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहता था, पर साफ़ -साफ़ मना करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , “ मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी और  को दे दिया है !” मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ में गद्दा बोलने लगा ! पडोसी चौंकते हुए बोला “ लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है !” मुल्ला तुरंत बिना घबराये बोला   “ तुम किस पर यकीन करते हो,  गधे पर या अपने मुल्ला पर ?” पडोसी चुप–चाप वहां से वापस चला गया !  मुल्ला नसरुद्दीन कौन था ?

 

ओशो की नजर में मुल्ला नसरुद्दीन :-

ओशो अक्सर अपने प्रवचनों में मुल्ला नसरूद्दीन का जिक्र किया करते थे, ओशो, बुक्स आई हैव लव्ड में मुल्ला के बारे में लिखते हैं कि  ” मुल्ला नसरुद्दीन काल्पनिक चरित्र नहीं है। वह सूफी था और उसकी मजार अभी तक है। लेकिन वह ऐसा आदमी था कि अपनी कब्र में जाकर भी उसने मजाक करना न छोड़ा। उसने वसीयत बनवाई कि उसकी कब्र का पत्थर मात्र एक दरवाजा हो, जिस पर ताला लगा हो और चाबियां समुंदर में फेंक दी हों। अब यह अजीब है। लोग उसकी कब्र देखने जाते हैं और उस दरवाजे के चारों ओर घूमते हैं, क्योंकि दीवारें हैं ही नहीं, सिर्फ द्वार खड़ा है बिना दीवारों के और द्वार पर ताला पड़ा है। मुल्ला नसरुद्दीन कब्र में पड़ा हंसता होगा। मैंने नसरुद्दीन से जितना प्रेम किया है उतना किसी से नहीं किया होगा। वह उन लोगों में से है जिन्होंने धर्म और हास्य को एक किया। नहीं तो वे हमेशा एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए खड़े हैं। नसरुद्दीन ने उनकी पुरानी शत्रुता छोड़ने के लिए उन्हें विवश किया। जब धर्म और हास्य मिलते हैं, जब ध्यान हंसता है और हंसना ध्यान बन जाता है तब चमत्कार घटता है-चमत्कारों का चमत्कार। “

 

 मुल्ला नसरुद्दीन के किस्सों का संदेश :–                                               

                                                                         मुल्ला नसरुद्दीन के किस्सों में सीखने के लिए कुछ ना कुछ जरूर होता है लेकिन वो उपदेश के रूप में नहीं होते। उनकी हास्यास्पद हरकतें होती हैं जो आखिर में कोई ना कोई संदेश देती हैं। वैसे भी व्यंग्य में कहीं हुई बात ही लोगों के याद रहती है। ओशो अक्सर अपनी बातों में मुल्ला नसरुद्दीन के किस्सों का जिक्र करते थे। मुल्ला नसरुद्दीन  हंसी-हंसी में बड़ी बात कह देते थे।

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