जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ? – How to bring change in life in Hindi?
जिंदगी में परिस्तितियों के कारण अचानक ही सही पर हमारे जीवन में अनेक बदलाव आते हैं इनमे से कुछ बदलाव बिना बताये आते हैं और कुछ समय के साथ साथ अपने आप ही आने लगते हैं । इनमें से कुछ बदलावों के लिए हम तैयार रहते हैं लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे बदलाव हमारे जीवन में बिना बताये ही आ जाते हैं, जिसके लिए हम बिलकुल भी तैयार नहीं होते । हमें अपने आप को समय के अनुसार बदलने की जरूरत होती है, लेकिन हम मानव स्वभाव के कारण अपने आप को बदलने के लिए तैयार नहीं होते परन्तु जीवन में हमेशा हमें बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए । इस संसार में हर चीज समयनुसार बदलती है या कहिये अपने आप को अपडेट करती है । जो समय के अनुसार बदलता नहीं है या अपने आप को अपडेट नहीं करता वो दौड़ में पीछे छूट जाता है । आइए जानते है कि जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?
हम बदलाव के लिए तैयार क्यों नहीं होते ? –
एक कहावत है ”जो बदलेगा, वह जीतेगा'” यह नारा तमाम सुधार वादियों में लोकप्रिय है। किंतु वे ये भी कहते हैं, जो दृढ़ रहेगा, वही जिएगा । जब हम मुक्त होने की बात करते हैं तो बदलाव का स्वागत करते हैं । मुक्त होने की बात सोचते ही बदलाव का भय लगता है । यह भय दूर हो गया तो आप सातवें आसमान में मुक्ति का आनंद महसूस करेंगे ।
विज्ञान की दृष्टि से समझें तो हमारा मस्तिष्क अपने आसपास के परिवेश में कमियों को पहचानने के लिए संचालित होता है। वह अपेक्षाओं और वास्तविकता में फर्क को समझता है। जब कभी कोई कमी पहचान ली जाती है तो मस्तिष्क में फियर सर्किटरी (डर की परिधि) प्रेरित होती है। दिमाग का यह हिस्सा हमारी सोच पर नियंत्रण रखता है। हम भावुक हो जाते हैं और भावावेश में प्रतिक्रिया करते हैं। इसलिए किसी भी व्यवहार को बदलने की कोशिश जैसे ही शुरू होती है दिमाग यह संदेश भेजना शुरू करता है कि कुछ गड़बड़ है इसलिए उच्च सोचने की क्षमता घट जाती है। बदलाव असहजता और तनाव के रूप में सामने आता है।
शोध का एक रोचक पहलू यह भी है कि किसी भी प्रक्रिया या समस्या पर ध्यान केंद्रित करने पर व्यक्ति में नए न्यूरल कनेक्शन विकसित होते हैं। जिन्हें मजबूत किए जाने पर वे व्यक्ति की चेतना का हिस्सा बन जाते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी समस्या पर ध्यान देता है तो उसके कारण के लिए उसमें नए कनेक्शन विकसित होंगे। हालांकि वे वास्तविक हो सकते और वे बदलाव को सहारा देंगे।
साउथइस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ लिस के द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार कुछ बदलावों के साथ सामंजस्य बिठाना बहुत मुश्किल होता है । किसी दोस्त की मौत, बच्चे का जन्म या उसकी मृत्यु, किसी रिश्ते का टूटना या जुड़ना कुछ ऐसे बदलाव हैं जिनके लिए काफी सामंजस्य बिठाना पड़ता है। मनोचिकित्सक रिचर्ड रहे के अनुसार, जीवन अब उतना साधारण नहीं है जैसा यह पहले होता था। आज की जिंदगी बेहद तनावयुक्त है। रिचर्ड के शोध के आधार पर आधारित इस नए शोध में 1306 व्यस्कों का ऑनलाइन सर्वे किया गया था ।
बदलाव जरूरी हैं –
कभी जिंदगी बदलेगी, कभी हम बदलेंगे । हम इसे रोक नहीं सकते, क्योंकि अगर बदलाव ही नहीं होगा तो ज़िंदगी अपने मायने खो देगी। चूंकि इसके बिना ज़िंदगी नहीं चलती तो फिर क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि बदलावों के पिटारे में मीठी यादों की गिनती ज्यादा हो । रुटीन की ज़िंदगी अगर बोझिल हो गई है तो आपको एक बदलाव की जरूरत है। आपकी दिन चर्या से भी पता लगाया जा सकता है कि आपको किस तरह का बदलाव चाहिए ?
पहले खुद को बदलो हालात अपने आप बदल जायेंगे –
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश यादव अपने अस्पताल में दो दिन की छुट्टी रखते हैं, ऐसा वे इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि काम के अलावा भी इन्सान को अपने आपको कुछ समय देना चाहिए जिसमें कि वह अपने मन मुताबिक अपनी रुचि का काम कर सके, कहीं बाहर जा सके या अपने परिवार के साथ वक्त बिता सके। सप्ताह में ये दो दिन का अवकाश उन्हें और उनके स्टाफ को एक नई ऊर्जा देता है और वे अपने काम को और भी बेहतर ढंग से कर पाते हैं ।
डॉ. राकेश कहते हैं, बदलाव की प्रक्रिया बहुत पुरानी है। अगर व्यक्ति की सवयं की बात की जाए तो एक ही तरह का जीवन जीते-जीते वह ऊब जाता है। चाहे वह गृहिणी हो या कामकाजी लोग । बदलाव के पीछे उनका मूल उद्देश्य होता है आराम और जिंदगी के प्रति रोचकता को बनाए रखना । यदि आप नाश्ते में रोज आमलेट खाते हैं और वही आमलेट आपको दस दिन तक बदल-बदल कर दिया जाए तो दसवें दिन आप कहेंगे कुछ और नहीं है नाश्ते में। उसी रुचि को पैदा करने का काम बदलाव करता है अन्यथा काम करने की क्षमता में कमी आ जाती है ।
अगर नई ऊर्जा के साथ कोई काम करता है तो उसके बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। लगातार एक सा काम करने पर आपका शरीर मशीन की तरह हो जाता है। सुबह उठे रोजाना की तरह सब व्यवस्थित किया और सब चीजें उसी तरह अपने आप होने लगती हैं। यहां तक कि आपको याद ही नहीं रहता कि आपने पांच दिन पहले क्या अलग काम किया था। आपकी जिंदगी मशीन हो जाती है। आप गाड़ी चलाकर दफ्तर के लिए निकलते हैं और रास्ते में आपके दिमाग में कई तरह के विचार घूमते रहते हैं, लेकिन उसके बाद भी आप सही जगह पहुंचकर गाड़ी स्टैंड पर लगाकर अन्दर चले जाते हैं। बदलाव न मिलने से व्यक्ति अपनी सृजनशीलता और रचनात्मका का इस्तेमाल करना बंद कर देता है ।
बेहतर बनने के लिए बदलाव जरूरी –
बदलाव हमारे लिए बहुत जरूरी है और वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि हर पांच साल बाद व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है। जिस तरह मोबाइल को चलाने के लिए चार्जर और टीवी को चलाने के लिए रिमोट कंट्रोल की जरूरत होती है उसी प्रकार ईश्वर ने मनुष्य के विकास के लिए उसे विवेक दिया है जिसका सही इस्तेमाल करते हुए उसे अपने आप में बदलाव लाना चाहिए । वैसे यह बदलाव दूसरों को देखकर भी होता है। जब हम सामने वाले से बेहतर दिखना या करना चाहते हैं ।
कुछ लोग खुद को बदलना तो चाहते हैं, लेकिन किन्हीं कारणों से वे अपनी इच्छाओं को दबा देते हैं, जो कि उचित नहीं है, क्योंकि बदलाव सिर्फ हमारे लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी बेहतर हो सकता है । खासतौर पर उन लोगों के लिए जो हमसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। बदलाव हमें अपनी पिछली स्थिति के बारे में भी अवगत कराता है और उसके आधार पर ही हम आगे आने वाला बदलाव कर सकते हैं । यदि बदलाव से हमारे जीवन में सकारात्मक तरंगे प्रवाहित हो रही हैं तो उस बदलाव की प्रक्रिया में देर नहीं लगाना चाहिए । यदि नकारात्मक तरंगें हों तो उन्हें पालने की बजाय नष्ट कर देना चाहिए ।
प्रकृति भी बदलाव करती हैं –
बदलाव जीवन में बहुत जरूरी है । पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों को भी बदलाव की जरूरत महसूस होती है । प्रकृति भी बदलाव चाहती है, लेकिन वह अपनी व्यवस्था खुद ही कर लेती है । जिस तरह मनुष्य को बदलाव नहीं मिलने से वह उग्र हो जाता है उसी तरह प्रकृति भी उग्र हो जाती है और पूरी दुनिया को विनाश व बाढ़ से प्रभावित कर देती है । पेड़- पौधे भले ही एक जगह डटे हों, लेकिन मौसम का प्रभाव उन पर भी पड़ता है और समय के साथ उनमें नई कोपलें फूटती हैं, फल और फूल लगते हैं और उन्हें पतझड़ का दौर भी देखना पड़ता है जो कि बदलाव का ही एक जीता-जागता रूप है।
इसी प्रकार पशु-पक्षी भी वातावरण और दाना-पानी की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित होते रहते हैं। पक्षी जहां एक बार अपना घोंसला बना लेते हैं वहां दुबारा कभी नहीं बनाते, क्योंकि उन्हें भी शान्ति और सुरक्षा की उतनी ही जरूरत होती है जितनी इन्सानों को । इंसानों को भी प्रकृति ने ही पैदा किया है। जिस प्रकार मां से सन्तान को लगाव होता है उसी प्रकार प्रकृति से मनुष्य को भी लगाव होता है । यही वजह है कि आदमी एक ही काम को करते-करते भले ही ऊब जाए, लेकिन वह प्राकृतिक सुंदरता से कभी नहीं ऊबता और आजीवन उसके मोहपाश में बंधा रहता है।
बदलाव सकारात्मक कामों के लिए किया जाएगा तो उसके बेहतर परिणाम मिलेंगे, नकारात्मक बदलाव आपके लिए घातक हो सकते हैं । यदि हम किसी पौधे को एक गमले से निकालकर दूसरे में लगाते हैं तो जरूरी नहीं है कि वह पौधा जीवित रहे, हो सकता है कि उसे सही वातावरण या उसके मुताबिक़ पोषण न मिले तो वह मर जाए । यह उदाहरण मनुष्य की प्रवृत्ति के साथ भी लागू हो सकता है । बदलाव होते रहने से हमारे दिमाग में नए विचारों का सृजन होता है और हम पहले से कुछ बेहतर कर पाते हैं।
आज लोगों के खान-पान, रहन-सहन और पहनावे में तेजी से बदलाव आता जा रहा है मानो एक दूसरे से बेहतर दिखने की एक होड़ सी मची हुई है । यह बदलाव आप बच्चों से लेकर बड़ों में भी महसूस करेंगे । जिन लोगों की ज़िंदगी बेहतर चल रही है वह भी कुछ और बेहतर चाहते हैं । हम में से कुछ ने अपने जीवन में काफी उतार चढ़ाव के दौर देखे होंगे , जो सोचा होगा वह जीवन में नहीं हुआ और जो नहीं सोचा वह हो गया । हमें पारिवारिक लोगों और दोस्तों का भरपूर साथ मिला । नौकरी पेशे में भी बहुत बदलाव आए होंगे । विभाग के प्रतिबन्धों के कारण जो काम किया उससे दस गुना अच्छा कर सकते थे, लेकिन हमें इसके लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिला और हम अपने आपमें बदलाव करते गए और खुद ही आगे बढ़ते रहे ।
बदलाव भी कई किसम के होते हैं एक वह जो हम करते हैं और दूसरा वह जो किसी प्रतिबंध के कारण कर पाना संभव नहीं होता । ऐसे में मन कुंठित हो जाता है और स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगता है । जब कभी हमारे सामने सामंजस्य बिठाने की बात आये और हमें लगे कि सामने वाला तो नहीं बदलेगा तो ऐसे में खुद को ही बदल लेना चाहिए, इस प्रतीक्षा में नहीं रहना चाइये कि सामने वाला कभी तो समझेगा ।
आज बदलाव का एक कारण दिखावा भी हो गया है । आदमी को चाहिए कि वह चादर देखकर ही अपने पांव पसारे । बदलाव आते रहना चाहिए बशर्ते कि वह सकारात्मक हो और इसका अच्छा परिणाम निकलकर सामने आए । इस बदलाव के चक्कर में हमसे कहीं न कहीं कोई चूक हुई हो तो हमें उस पर दुबारा विचार करना चाहिए कि हमारी योजना में तो कहीं कोई कमी नहीं रह गई है और हमें एक बार फिर से प्रयास करना चाहिए । जब तक सृष्टि है ये बदलाव का सिलसिला तो चलता रहेगा ये तभी खत्म होगा जब सब एक प्रवृति के हो जायेंगे ।
बदलाव दूरियों के लिए नहीं होते –
रोज -रोज वही काम सुबह उठो नाश्ता तैयार करो, लंच पैक करो, बच्चों को तैयार करो, पति की जरूरी चीजें उन्हें संभलवाओ आज कल की ग्रहणीयां रोजमर्रा के ये सभी काम करते-करते उकता चुकी होंगी । नीरस ज़िंदगी में बदलाव की ख्वाहिश में उन्हें अपनी जिंदगी को अपने मुताबिक ढालने के लिए प्रेरित करना होगा । ये परिवर्तन उनकी जिंदगी के बदलाव के लिए होगा । जिस तरह घर की रोटी रोज-रोज खाने से बोरियत महसूस होने लगती है, फिर चाहे एक दिन वह बाहर का खाना खा ले उसे कुछ चेंज मिल जाता है, उसी तरह यह मानव की प्रवृत्ति होती है जो निरन्तर बदलाव चाहती है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो बदलाव के बाद लोगों की कार्यक्षमता में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है । दफ्तर से छुट्टी लेकर जब हम कुछ दिनों के अवकाश पर जाते हैं और फिर वहां से लौटकर आते हैं तो हममें नई ताजगी और स्फूर्ति का संचार होता है और कुछ दिन हम तरोताजा रहते हैं । दफ्तर में लगातार काम करते हुए अपने कुलीग के केबिन में बैठकर कुछ देर उससे बतियाते हैं तो भी दिमाग फ्रेश हो जाता है । इसी तरह ज्यादातर गृहिणियां इस समस्या से ग्रसित रहती हैं कि पूरे सप्ताह एक जैसी दिनचर्या उसमें कोई छुट्टी या बदलाव नहीं । छुट्टी के दिन तो उनका काम भी दुगना हो जाता है । ऐसे में उनके व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन आने लगता है और उसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है ।
बदलाव हमारे और परिवार की भलाई के लिए हो रहा हो तो उसका स्वागत है और हर आदमी में इस बात की समझ होनी चाहिए कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत है । आज बदलाव ने रिश्तों पर भी असर डाला है । पति-पत्नी, माता-पिता, मां-बेटे के रिश्तों में भी स्वार्थ की बू आने लगी है और एक दूसरे के प्रति सम्मान, प्यार और त्याग की भावना में भी बदलाव आया है । बदलाव मानव की एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, लेकिन आज बदलाव की आड़ में बहुत से ऐसे काम हो रहे हैं, जो समाज के लिए अहितकर हैं । जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार बदलाव भी सकारात्मक के साथ नकारात्मक हो सकते हैं । अपने आपको आधुनिक दिखाने के लिए भी लोग बदलाव चाहते हैं चाहे वह उसकी जीवनशैली के मुताबिक हो या न हो। जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?
आज समाज में जागरूकता के कारण बहुत से बदलाव आ गए हैं । लड़कियां आत्मनिर्भर और पुरुषों के बराबर सक्षम हो गई हैं जिसके कारण तलाक और घर टूटने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है । मुझे लगता है यह बदलाव सही नहीं है दोनों को एक दूसरे के साथ आपसी तालमेल बनाकर चलना चाहिए और अपने आपको परखना चाहिए तभी इस समस्या का हल खोजा जा सकता है ।
चेहरा ही नहीं दिल भी बदलें –
आज बहुत से युवा अपने चेहरे प्लास्टिक सर्जरी से बदलना चाहते हैं , एक सामान्य चेहरे वाला व्यक्ति भी अपने आपको बदलकर रख देना चाहता है। बहुत से कारक इसके हमके बदले हुए रूप से उल्टो लोगों द्वारा जो प्रतिक्रिया मिलती है उससे उसे खुशी मिलती है । वे अपने व्यक्तिगत कारणों से अपने जीवन से खुश नहीं होते और हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं । उन्हें लगता है इस बदलाव से उनके आत्मविश्वास का स्तर कुछ हद तक बढ़ा जायेगा और वास्तव में ऐसा होता भी है । जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?
आज हर क्षेत्र में लोग कुछ बेहतर पाने की दौड़ में भागते जा रहे हैं । आज दुनिया का जो रूप हम देख रहे हैं उसके बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि खाना, कपड़ा, जरूरतें और जीवन शैली में इस हद तक बदलाव आएगा । आज गांव का लड़का भी किसी फिल्म के हीरो की तरह दिखना चाहता है। एक सामान्य चेहरे वाला व्यक्ति भी इस बदलाव के लिए इतना इच्छुक होता है कि अपने आपको बदलकर रख देना चाहता है । बहुत से कारक इसके लिए जिम्मेदार हैं । उसके बदले हुए रूप से उसे लोगों द्वारा जो प्रतिक्रिया मिलती है उससे उसे खुशी मिलती है ।
कुछ लोग करिअर के लिहाज से भी अपने चेहरे में बदलाव चाहते हैं, जिनमें मुख्य रूप से मॉडल, फिल्मी हस्तियां और ग्लैमर से जुड़े लोगों के लिए खूबसूरत दिखना उनके पेशे के लिए जरूरी होता है । आज आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक मामले हों सभी में बदलाव का असर प्रभावी रूप से दिखाई देता है । राजनीतिक नजरिए से देखें तो जनता भी बदलाव के मद्देनजर पांच साल के बाद दूसरी पार्टी को वोट देकर कुछ बेहतर पाने की उम्मीद करती है । पांच साल तक एक ही सरकार चल रही होती है और वह काम भी ठीक-ठाक कर रही होती है, लेकिन फिर भी लोग सोचते हैं कि इसे बदल दिया जाए जबकि लोग जानते हैं कि बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हो पाएगा और अमूमन मुद्दे भी वही रहेंगे फिर भी लोग बदलाव के लिए सरकारें तक बदल देते हैं। ज्यादातर लोगों की यह सोच होती है कि बदलाव का नतीजा कुछ बेहतर होगा । जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?
आज कल चीजों के प्रति सतही आकर्षण अधिक होता है। यदि एक बच्चे को कहा जाए कि अपनी गुड़िया हमें दे दो, हम तुम्हे नयीं ला देंगे तो वह उसे देने के लिए तैयार हो जाएगा । वह पुरानी गुड़िया बदलने में जरा भी देर नहीं लगाएगा । इसी तरह ये बदलाव का ही असर है कि जो देश में पढ़ रहे हैं वे विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं और बाहर से लोग यहां आकर पढ़ना चाहते हैं । बदलाव का ये क्रम इसी तरह आगे बढ़ता जा रहा है । हमें अपने काम को और बेहतर तरीके से करने के लिए समय-समय पर बदलाव करते रहना चाहिए । हमारे लिए बदलाव का मतलब होना चाहिए अपने काम में कुछ अलग करना ।
जो लोग डरते हैं वे लोग बदलाव नहीं चाहते, लेकिन जो लोग जोखिम उठाने के लिए तैयार रहते हैं और अपने जीवन में कुछ नया करना चाहते हैं वे लोग ही आगे बढ़ पाते हैं । अगर आदमी कोल्हू के बैल की तरह एक ही स्थान पर घूमता रहेगा तो वह मशीन बन जाएगा । जिसने भी अपना काम लीक से हटकर किया उसका पूरा-पूरा फायदा उसे मिला है । काम के अलावा भी हमें अपना कुछ समय अपने परिवार के साथ बिताना चाहिए । जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?
नॉट- इसी कढ़ी में मेरे अगले ब्लॉग को आप अपने को बदलाव के पैमाने में परखने के लिए पढ़ सकते हैं ।
ये भी पढ़ें :-
टखने की चोट को कैसे सही करें ? How to correct an ankle injury in Hindi?
बात वही- अंदाज नया Same thing – style new in Hindi short story
समय का प्रबंधन कैसे करे ? How to manage time ?
बच्चे को परफैक्ट कैसे बनाएं ? How to make baby perfect ?
5 ऐसे शब्द जिनका मतलब हम नहीं जानते 5 words we don’t know the meaning of
जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं ?