अगर आप मां बाप है तो आपको भी अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उनके साथ समय अवश्य बिताना चाहिए । माता-पिता को बच्चों के साथ कम समय बिता पाने का अफसोस करने की बजाय उनके साथ गुणात्मक समय बिताना चाहिए, इसका पुरस्कार माता-पिता व बच्चों दोनों को मिलता है तथा परिवार खुशहाल रहता है। आगे हम जानते हैं कि आप कैसे बच्चों को समय दें जो उनके लिए कम भले हो लेकिन कीमती हो। आईये आगे इसी के बारे में बात करते हैं –
बच्चों के साथ प्लानिंग करें
हर शनिवार को आपके बच्चे आपसे सवाल करते होंगे कि ‘मॉम, पापा कल की प्लानिंग क्या है?’ और पर्सनल सेक्रेटरी और एजेंडा मैनेजर की तरह आप हमेशा अगले दिन के टाइम टेबल की जानकारी देते होंगे, ‘दोपहर में मूवी, शाम को एंटरटेनमेंट पार्क और रात को रेस्त्रां में डिनर’। बच्चों के चेहरे की मुस्कुराहट देखकर आप समझ जाते होंगे कि आपकी इस प्लानिंग को बच्चों की स्वीकृति मिल गई है। अगर आप उनके इस सवाल का जवाब कुछ इस तरह दें कि ‘सॉरी’ इस बार संडे को कोई प्रोग्राम नहीं है। तो नाराज होते हुए वे आपसे यही कहेंगे। ‘कोई प्लान नहीं?’ क्यों? सभी शनिवार को अगले दिन की प्लानिंग करते हैं!
आजकल परिवारों में ऐसी प्रतिक्रिया मिलना आम बात है। ज्यादातर बच्चे हर शनिवार को रविवार की छुट्टी की प्लानिंग करते हैं। वैसे तो बच्चे सोमवार से शनिवार तक के सभी दिन प्लानिंग के साथ बिताते हैं, लेकिन रविवार के दिन प्लानिंग का महत्व उनके लिए ज्यादा बढ़ जाता है। दर असल बच्चों की देखभाल में प्लानिंग का महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है, बल्कि यह कह सकते हैं कि अब बच्चों की परवरिश पुराने तरीकों से नहीं होती।
बच्चों के साथ प्लॉनिंग की जरूरत क्यों पड़ती है ?
अब योजना, प्रबंधन और रणनीति परिवार का हिस्सा बन चुकी है। इसके कई कारण हैं। एकाकी परिवारों का बढ़ना, जिसमें बच्चों के पुराने साथी और संरक्षक जैसे दादा-दादी, चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहन बच्चों की जिंदगी से दूर होते जा रहे हैं। दूसरी तरफ पुराने जमाने की परंपरागत मां से अलग आज की मिलेनियम मॉम- मां, दोस्त, टीचर, दादा-दादी की भूमिका भी निभा रही हैं और साथ ही किसी ऑफिस में घंटों काम करने में जुटी रहती हैं। वहीं पिता कैरियर के प्रति समर्पित होने के कारण परिवार से दूर रहकर दिन-रात काम में जुटे रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी पीढ़ी के पास फुर्सत की कमी है। (बच्चों को समय दें)
एक समय था, जब मां खाना बनाती या सिलाई करती थी तो बच्चे घंटों उसके पास बैठे खेलते रहते थे। मां या पिता के साथ प्रेशर कुकर बनाने जाना, सिलेंडर बुक करवाने के लिए लाइन में खड़े होना, बाजार से सामान खरीद कर लाने जैसे काम आउटिंग में शामिल हुआ करते थे। माता-पिता के साथ बिताए यह पल करिश्माई होते थे। जिनका आजकल के बच्चों ने न अनुभव किया है और न ही वे इसके महत्व को समझ सकते हैं। अब प्रेशर कुकर में सीटी नहीं होती, गैस सिलेंडर सिर्फ एक फोन कॉल से घर आ जाता है और दादा-दादी या नाना-नानी बच्चों को सब्जी बाज़ार ले जाने की जगह खुद मैकडॉनल्ड्स लेकर जाते हैं। शायद इन बातों पर गौर करने के बाद आप भी इस भावनात्मक जुड़ाव की कमी को महसूस करें, लेकिन वर्किंग पेरेन्ट्स के लिए परिवार के साथ भोजन, होमवर्क टाइम, शॉपिंग ट्रिप या शाम को खेलने से अधिक समय खोज निकालना कहीं मुश्किल हो सकता है।
ऐसे में माता-पिता बच्चों के साथ कम समय बिताने का अफसोस करते है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में परवरिश की आवश्यकताओं में जो परिवर्तन आया है, उसमें बच्चों के साथ ज्यादा समय न बिता पाने का अफसोस करने से अच्छा है कि उन्हें गुणात्मक समय दिया जाए, जो आपकी तरफ से उनके लिए मदद साबित होगा। बच्चों के साथ बैठकर टीवी देखने जैसे कामों की गिनती गुणात्मक समय में नहीं की जा सकती। (बच्चों को समय दें)
बच्चों को गुणात्मक समय दें
गुणात्मक समय का अर्थ है, ऊर्जावान और उपयोगी तरीके से बातचीत करना। बच्चों से बात करना गुणात्मक समय का हिस्सा है, जो उनमें आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना जगाने में मदद करता है। यह समय बच्चों के गुणों को आकार देने का काम करता है, यह गुणात्मक समय का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। निःसंदेह आज समय की बहुत कमी है, लेकिन यह मत भूलिए, बच्चों पर निवेश किए गए गुणात्मक समय का पुरस्कार बहुत बड़ा होता है। यह पुरस्कार माता-पिता व बच्चों दोनों को मिलता है। गुणात्मक समय न बिताने का अफसोस। मात्रात्मक समय न बिताने का अफसोस। काम में व्यस्तता का अफसोस। काम न कर पाने का अफसोस।
विशेषज्ञ कहते हैं ज्यादातर कामकाजी मां स्वयं को दोष देने की ऐसी ही भावनाओं से ग्रसित रहती हैं, लेकिन यह अर्थहीन सोच है। अगर आपने इस क्षेत्र में कुछ ज्यादा नहीं किया है, तो अफसोस मनाने में समय व्यर्थ न करें। बस शुरुआत करें।
गुणात्मक समय का उपयोग कैसे करें –
मुझे पूर्ण विशवास है कि आप ये उपाय अपना कर अपने बच्चों के साथ गुणात्मक समय बिता सकते हैं –
- सबसे पहले वन-टू-वन समय बिताने की कोशिश करें। जैसे पेट्स की देखभाल या खाना बनाते हुए, कार ड्राइव या लॉन की पत्तियां साफ करते समय आप बच्चों को गुणात्मक समय दे सकते हैं। उनसे ऐसे प्रश्न पूछे जिनके उत्तर हां या ना में होते हों। छोटे बच्चों से उस कहानी के सबक के बारे में प्रश्न करें, जो आपने और उसने साथ पढ़ी थी। स्कूल और दोस्तों के बारे में पूछ सकते हैं। थोड़े बड़े और किशोर उम्र के बच्चों से पड़ोस या घर के बाहर के मुद्दों और घटनाओं पर बात की जा सकती है। फिल्म या विज्ञापन के अर्थ के बारे में विचार-विमर्श कर सकते हैं। इस विषय पर उनकी राय मांग सकते हैं। (बच्चों को समय दें)
- उन्हें व्यावहारिक समस्याओं के बारे में बता सकते हैं, जिनका सामना आपको उस दिन करना पड़ा। साथ ही उसका समाधान भी बताइए कि किस तरह आप उस समस्या से बाहर निकले। समस्या से बाहर निकलने के व्यावहारिक व अनुभाविक उपाय बच्चों को नशे और किसी बड़ी मुसीबत में न फंसने में सहायता करते हैं।
- समय पर उठने, खाने से पहले डाइनिंग टेबल सेट करने या बिना कहे होमवर्क पूरा करने पर बच्चों की तारीफ कीजिए। सिर्फ काम करने के लिए ही नहीं, बल्कि उस कार्य को करने के लिए उपयोग में लाई गई रचनात्मकता की भी प्रशंसा कीजिए। मूल्यांकन या तुलना करने का तरीका छोड़ दें। बच्चों को यह जानने का मौका दीजिए कि आप उनकी भावनाओं की कद्र करते हैं और जरूरत पड़ने पर उनकी सहायता करेंगे। आईबिड द्वारा किए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि ज्यादातर बच्चे किसी समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले माता-पिता से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता मांगते हैं।
- संचार के अतिरक्ति बच्चों को हर सप्ताह कुछ नया देने की कोशिश भी कर सकते हैं। बच्चों को विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने, लोगों, जगहों और विचारों को जानने का मौका देना चाहिए। अगर बच्चा खेल या क्रिएटिव आर्ट में रुचि लेता है तो उसे ऐसे अवसर देने के कई प्रयास किए जा सकते हैं। यह उनकी कल्पनाशीलता को बढ़ाता है। इतना ही नहीं उन्हें अपनी रुचियों को पहचानने का मौका देता है। संभव हो तो उनके साथ खेलें, उन्हें ट्रिप पर या आर्ट गैलरी ले जाएं। उन कामों में भी शामिल कर सकते हैं, जिसमें योजना बनाना, आधारभूत बातें या समस्याएं सुलझाना और परिणाम निकालना शामिल हो। इस तरह के कामों बच्चों की भागीदारी उनमें जागरूकता बढ़ाएगी और रचनात्मक सोच विकसित करेगी।
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