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हृदय रोग और आयुर्वेद

हृदय रोग और आयुर्वेद – दिल के रोगों का देशी इलाज

                                       मानव शरीर का महत्वपूर्ण अंग हृदय या दिल है। यदि हृदय धड़कना बंद कर दे तो सब कुछ समाप्त हो जाता है। ईश्वर ने हृदय की रचना तो इस मजबूती से की है कि जीवन भर वह थकता नहीं, काम करना नहीं भूलता । हृदय के धड़कने से ही हमारे जीवन की गाड़ी चलती है। यदि हृदय स्वस्थ ै तो हम भी स्वस्थ हैं । आज हम आगे बात  करते हैं कि हृदय रोग और आयुर्वेद  में क्या सम्बन्ध  है  और  दिल के रोगों का देशी इलाज क्या है ?

हृदय रोग निवारक आयुर्वेदिक औषधियां

                                                          आयुर्वेद में दिल को मर्म स्थान कहा गया है, आयुर्वेद में 107 मर्मों का उल्लेख है। उनमें वस्ति, हृदय और सिर ये प्रधान रूप प्राण का आश्रय स्थान हैं। मर्म अर्थात् शरीर की वह रचना, जहां मार लगने से या आघात होने से तुरंत ही मृत्यु हो जाये । हृदय का मुख्य कार्य संपूर्ण शरीर में रक्त का प्रवाह सही व सुचारू रूप से करना है, जिससे शरीर के सभी कोषाणुओं को आवश्यकतानुसार पोषण मिलता रहें । यदि हृदय में विकृति हो गई, तो शरीर में रक्त का संचरण व्यवस्थित न होने से अनेक बीमारियों के लक्षण सामने आने लगते श्वास हैं। जिसमें मुख्यत: थकावट, घबराहट, फूलना, सूजन होना, धड़कन बढ़ना, लकवा आदि।                                      हृदय रोग और आयुर्वेद

हृदय रोग के कारण

आयुर्वेद के अनुसार हृदय रोग के कारणों मल-मूत्रादि वेग को रोकने से, अत्यंत उष्ण, अम्ल व तिक्त रसयुक्त पदार्थों के अति सेवन से, आघात, भोजन करने के बाद भी भोजन करना , हर समय भय या चिंता रहने से पांच प्रकार के  हृदय रोग उत्पन्न हो  सकते हैं ।

हृदय रोग के प्रकार

आयर्वेद के अनुसार हृदय रोग के  पांच प्रकार इस प्रकार हैं :-   वातज, पितज, कफज, सन्निपातज व कृमिज।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार हृदय रोग कई प्रकार के होते हैं :-

1. जन्मजात हृदय रोग

जन्मजात हृदय रोग  में बच्चे के जन्म से ही उसके  हृदय में छेद होता है।

2. हृदय स्पंदन रोग

हृदय स्पंदन रोग  एरोटिक, माइट्रल व पल्मोनरी वाल्व के संकुचित होने से होता है ।

3. रयूमेटिक हृदय रोग

रयूमेटिक हृदय रोग के कारण रोगी में जोड़ों का दर्द होता है।

4. एन्जाइना

                              आज कल अधिकांश लोग छाती के दर्द की शिकायत करते हैं। इसमें हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन, पोषक तत्व व रक्त प्रवाह कम होने के कारण छाती में दर्द होता है यह दर्द ही एन्जाइना कहलाता है। इसके साथ ही छाती में भारी पन एवं खिंचाव होता है इसमें दर्द छाती से शुरू होकर हाथ, कंधे, गर्दन व पेट के उपरी हिस्से तक जाता है। रक्त वाहिनियों में रूकावट या बंद होने का मुख्य कारण इनकी दीवारों पर वसा युक्त पदार्थों का जमा होना है।                                                      हृदय रोग और आयुर्वेद

हृदय रोग के उपद्रव –

1. हृदय चेतना एवं मन का स्थान है और चिंता भय, शोक, क्रोध आदि भावों की मानसिकता का हृदय पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इनके कारण कई बार चेतना लुप्त हो जाती है।

2. हृदय साधक पित्त का स्थान है हृदय रोग में बुद्धि, मेधा आदि का ह्रास हो जाता है।

3. हृदय में अवलंबक कफ रहता है जिस पर प्रभाव पड़ने से हृदय शून्यता हो जाती है।

4. हृदय प्राण वायु का स्थान है तथा हृदय प्राण वह स्रोतस का मूल है अत: हृदय रोग में खास कष्ट भी होता है।

हृदय रोग की चिकित्सा

हृदय को बल देने वाली तथा वातशामक , अर्जुन, ब्राह्मी, यष्टिमधु, पुनर्नवा, आदि बहुमुल्य जड़ी-बूटियों के तथा अभ्रक भस्म, मुक्तापिष्टी, प्रवाल पिष्टी, तृणकांतमणि पिष्टि, जैसे घटकों  से तैयार हृदयशक्ति 1-1 कैप्सूल  दूध से लें। साथ ही सुबह-शाम ही जेरीरान सीरप 2-2 चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें। चिकित्सा के साथ निम्न बातों का ध्यान रखें ।                                                                                        हृदय रोग और आयुर्वेद

1. प्रातः काल खुली हवा या उद्यान में टहलना चाहिये ।

2. प्राणायाम का अभ्यास करें।

3. वक्षस्थल पर वातनाशक  तैल से हल्के हाथों से मालिश करें

4. काम, क्रोध, चिंता, ईष्या, द्वेष आदि मानस विकारों से दूर रहें ।

5. आहार-विहार में संयम रखें।

हृदय रोग में परहेज

अधिक नमक, मिर्च-मसाले युक्त भोजन तथा वसायुक्त भोजन, अचार, इमली, मांस का सेवन न करें ।।

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