https://zindagiblog.com/ zindagiblog.com
जिंदगी जीने के लिए ...
विज्ञान और सत्य

विज्ञान और सत्य – विज्ञान सत्य पर आधारित है या प्रयोग पर ?

विज्ञान हमारे जीवन का अमिट हिस्सा बन चुका है। ये कहना गलत न होगा कि हमारे दिन प्रति-दिन के जीवन में हम जिन कई उत्पादों का प्रयोग करते हैं, वह सभी आधुनिक विज्ञान की ही दें है। कई लोगों का मानना है कि  वैज्ञानिक सोच ही हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है। हो सकता है कि यह बात गलत हो लेकिन  इस से  इन्कार नहीं किया जा सकता है कि विज्ञान ने ही  विकास को संभव बनाया हुआ है। आज इस लेख में हम आगे जानते हैं कि विज्ञान और सत्य का आपस में क्या संबंध है और क्या विज्ञान सत्य पर आधारित है या प्रयोग पर ?

विज्ञान क्या है?

विज्ञान और सत्य के संबंध को जानने से पहले हम विज्ञान को जानते हैं।  विज्ञान को ज्ञान प्राप्त करने के साधन के रूप में परिभाषित करते हैं। तो ज्ञान क्या है ? सदियों-सदियों से कई विद्वान इस  पर निरंतर बहस  करते रहे हैं। इस प्रश्न ने आज खास महत्व अपना  लिया है, आज जब हम लोग इंटरनेट पर भारी मात्रा में सामग्री पढ़, सुन और देख रहे हैं , यह सारी सामग्री हमें कुछ-ना-कुछ सिखाती है। हम अपने ज्ञान को लेकर अपनी समझ को  संक्षेप में व्यक्त करते हैं  और  अनुभवों और उपयुक्त आधारों पर सैद्धांतिक रूप अपना  कर आसपास की दुनिया के बारे में हम जो कुछ सीखते हैं बस यही विज्ञान है ।                                                                       विज्ञान और सत्य

वैज्ञानिक सच

पिछले दिनों सौर मंडल के अंतिम ग्रह प्लूटो को नौ ग्रहों की सूची से निकाल दिया गया। यानी वर्षों मनुष्य की जो सौर मंडल अपने नौ ग्रहों समेत जिज्ञासा और कल्पना का केंद्र रहा अचानक उसे मालूम  पड़ा कि नौ नहीं ग्रह तो आठ हैं ! तो फिर सच क्या है? ग्रहों की संख्या नौ है, यह तथ्य तमाम शोध और विज्ञान की खोज पर आधारित था। आज जब यह कहा जा रहा है कि ग्रह नौ नहीं आठ हैं तब भी आधार वही विज्ञान और शोध है। तो फिर सही क्या माना जाए ? वैज्ञानिक सच किसे माना जाए- आठ ग्रह या फिर नौ ?

विज्ञान का सत्य जितना अनूठा और व्याख्यायित है उतना ही कल्पित और मनुष्य की उर्वर मेधा पर आधारित । हम सदियों दर सदियों एक सच की सीढ़ी लांघते हुए दूसरे सच के करीब ज़्यादा खोज और समस्याएं लेकर बढ़ जाते हैं। बीच में उन रहस्यों को अनसुलझा छोड़ते हुए जो हमारे अस्तित्व के साथ ठोस तरीके से जुड़े हुए हैं। आज भी ऐसा बहुत कुछ है जो हमारे तर्क की सीमाओं उल्लंघन करता है। ऐसा बहुत कुछ जो हम जानने का दावा करते हैं, लेकिन अपनी वैज्ञानिक दृष्टि से उसके सच के वस्तुजगत तक भी नहीं पहुंच पाते ।

अल्बर्ट आइंस्टाइन का सापेक्षता का सिध्दांत

अल्बर्ट आइंस्टाइन अपने पूरे जीवन जब विज्ञान के सत्य से  जूझते रहे तो उन्होंने सापेक्षता के सिद्धांत की विवेचना की। सापेक्षता के सिद्धांत ने पदार्थ के वजूद को खारिज किया और उसके उर्जा में रूपांतरित होने का विचार व्यक्त किया यानी उन्होंने मूर्त और अमूर्त जगत के अस्तित्व के बीच एक बारीक रेखा खींच दी। दरअसल विज्ञान का सच समय और विश्वास के अनुसार अपनी स्थिति बदलता रहता है यह किसी खास दिशा में किसी वैज्ञानिक द्वारा किए गए प्रेक्षण और प्रयास पर आधारित होता है ।                                                         विज्ञान और सत्य

कुछ खास तर्कों की कसौटियों पर परखा हुआ, समय और नई खोज के साथ सारी कसौटियां बदल जाती हैं सत्य पुराना हो जाता है और झुठला दिया जाता है। एडिनबरा विश्वविद्यालय के एक समाजशास्त्री कहते हैं कि ज्ञान वही है जिसे हम ज्ञान होने की स्वीकृति दें । साथ ही विज्ञान में वस्तुनिष्ठता लोगों के एक समूह के सामूहिक विश्वास से ज्यादा कुछ नहीं। जबकि हार्वड विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले अध्येता रोजर न्यूटन कहते हैं कि विज्ञान में विषयनिष्ठता जरूर होती है पर अंत में वस्तुनिष्ठता ही महत्वपूर्ण होती है।

विज्ञान और आस्था

अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो हमेशा विशेषज्ञों और एक सकारात्मक समाज ने यह माना है कि अगर आपके पास एक सिद्धांत है तो उसका परीक्षण कीजिए उसे तर्क की कसौटियों पर परखिए। विज्ञान का सत्य आस्था की अंधेरी गुफाओं से बाहर निकलकर अपने लिए कारण तलाशता है । मध्यकालीन यूरोप में जहां चर्च ही जीवन और विज्ञान के नियम तय करता था गैलीलियो जैसे महान वैज्ञानिक ने कहा कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर नहीं लगाता बल्कि पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है। पर इसके लिए उन्हें धर्मवेत्ताओं का कोपभाजक बनना पड़ा। उन्होंने अपना विचार वापस ले लिया, विज्ञान आस्था के सामने एक क्षण के लिए पराजित तो हुआ, लेकिन उन्होंने अपना टेलिस्कोप बनाया और उससे ग्रहों नक्षत्रों को देखा और यह तय कर दिया कि पृथ्वी ही सूर्य के चारों ओर घूमती है।

पराविज्ञान

चार्ल्स डार्विन ने जब विकासवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित किया और यह कहा कि मनुष्य अपने बंदर पूर्वजों से विकसित हुआ है तो मानों हड़कंप ही मच गया। अपनी श्रेष्ठता का दावा करने वाली मनुष्य जाति इसे स्वीकार नहीं कर सकी। डार्विन ने इसे प्रमाणित करने के लिए कई उदाहरण दिए, लेकिन उनसे जब पूछा गया कि ऐसा अनोखा विकास केवल मनुष्य का ही क्यों हुआ अन्य पशुओं का क्यों नहीं, तो उनके पास कोई मुकम्मल उत्तर नहीं था। कहीं पर तो विज्ञान और तर्क चुक जाते है वहीं से पराविज्ञान की शुरुआत होती है यानी जो भी सत्य की परिधि से बाहर है या अपने आपको अपरिचित दर्शाता है वह हमारी बुद्धि की सीमाओं के परे है। हमने आज जो सच पाए हैं कल वे सत्य की कसौटी पर परखे जाएंगे हमारे पास और अनुसंधान होगा भविष्य में और ज्यादा विकसित दिमाग होगा और फिर उन्हीं सत्यों को हम बेहतर विकल्पों में तलाश पाएंगे।                                                    विज्ञान और सत्य

विज्ञान और तर्क

जब अणु की संरचना पर खोज हो रही थी तो प्रोफेसर रदरफोर्ड से लेकर नील्स बोहर तक अणु के अलग-अलग आकार प्रकार बतलाते रहे। हर अणु का संरचना सिद्धांत उसकी समूची विशेषताओं को बता पाने में सफल नहीं हो पा रहा था यह तो अंत में नील्स बाहर ने अपने प्रयोगों से संभव कर दिखाया कि उन्होंने अणु का एक प्रमाणिक मॉडल दुनिया के सामने लाकर उसे चमत्कृत कर दिया। विज्ञान कोरा तर्क नहीं है, बल्कि स्वप्न से भी जुड़ा है । एक वैज्ञानिक कैकुले ने बैंज़ीन नामक कार्बनिक पदार्थ की संरचना एक स्वप्न में ही देखी थी ।

दरअसल यह मनुष्य की कल्पनाशीलता और उसकी पारंपरिक भूमिका है जो विज्ञान के तथ्यों को अपनी परिधि में लाकर उनसे एक नई खोज कर पाने में सफल हो पाती है । अणु के हिस्से इलेक्ट्रॉन को जब खोजा गया तो क्या यह सोचा जा सकता था कि एक दिन एक बेहद विकसित क्वांटम फिज़िक्स इसी इलेक्ट्रॉन की गति को माप लेगी? मनुष्य की तमाम कोशिशों के बावजूद विज्ञान का सत्य बेहद तात्कालिक और अपूर्ण होता है। नए विकास और खोज का इंतजार करता हुआ कि कोई बौद्धिक और तार्किक व्यक्ति परंपरागत तथ्य और विचार को फिर से चुनौती दे नई खोज करे। प्रकृति ने मानव को इतना परिश्रमी और जिज्ञासु बनाया है कि वह अपनी पूरी जिजीविषा से सत्य को खोज निकालने के अपने प्रयासों से जीवन को बेहतर बनाता है । तो फिर क्या है विज्ञान का सत्य ? इस जटिल सवाल की व्याख्या सरल नहीं। सत्य वह निष्पक्ष और आदर्श स्थिति है जिसे नई-नई खोजों के प्रभाव में बार-बार झुठलाई जाने वाली विभिन्न वैज्ञानिक खोजों में पाना मुश्किल है ।।

ये भी पढ़ें –

चेहरे का लकवा – Facial paralysis in Hindi

​टाइम कैप्सूल क्या है? – Time Capsule in Hindi.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *