Biological Clock in Human Body in Hindi – जैविक घड़ी किसे कहते हैं ? –
कहते जरूर हैं कि हवाई यात्रा बड़ी आरामदायक होती है, लेकिन ये क्या अमेरिका से दिल्ली आते वक्त आराम की इस यात्रा में आंखें लाल हो चुकी हैं और एयरपोर्ट से सुबह-सुबह घर पहुंचते-पहुंचते शरीर ने दिमाग का साथ देना बंद कर दिया है। तो क्या थकान और शरीर के टूटन की ये लंबी यात्रा है ? नहीं, बल्कि इसकी मुख्य वजह डिस्टेंस टाइम जोन है, जिससे शरीर की आंतरिक घड़ियां गड़बड़ा जाती हैं और नाश्ते के वक्त हमारे शरीर में रात के 9 बजे दर्शा रही हैं। बाहरी मशीन घड़ी के अलावा भी शरीर में भी ऐसी घड़िया होती हैं जो हमारे उठने-बैठने, सोने-जागने और पूरे दिन की दिनचर्या को नियंत्रित करती हैं । विज्ञान ने अपने कई दशकों की खोज के बाद यह सिद्ध कर दिया है कि सिर्फ मानव का शरीर समय के अनुसार ही नहीं चलता, बल्कि पेड़-पौधे और अन्य जीव भी इन घड़ियों के समय प्रबंधन की कठपुतली हैं, अगर तय शुदा समय के अनुसार शरीर, पेड़- पौधे और अन्य जीव अपने क्रिया कलाप न करें तो उनकी आंतरिक घड़ियां शरीर की हर गतिविधि को गड़बड़ा सकती हैं । आइये आज जानते हैं, Biological clock in Human Body in Hindi – जैविक घड़ी किसे कहते हैं ?
क्या है जैविक घड़ी, (Clock in Human Body) –
हमारा इंसानी शरीर एक ऐसी जैविक घड़ी के हिसाब से चलता है, जिससे हमारे मिज़ाज, हमारे शरीर के हॉर्मोन के स्तर, शरीर के तापमान और पाचन क्रिया में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है। कई एक्सपर्ट का मानना है कि सुबह के वक्त दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि उस समय हमारा शरीर नए दिन की शुरुआत के लिए खुद को तेजी से तैयार कर रहा होता है। बेशक जैविक घड़ी हमारे शरीर को नियंत्रित करती है और इसमें किसी भी तरह का बदलाव आने पर हमारे शरीर पर बहुत गहरा असर डालती है। किसी दूसरे देश जाने पर टाइम ज़ोन बदलते ही हमें जेट लैग से , होने वाली परेशानी भी इसका ही उदाहरण है। नए टाइम जोन में जाने पर शरीर खुद को उस हिसाब से सेट करने के लिए वक्त लेता है और लोग जेट लैग का अनुभव करते हैं।
जैविक घड़ी ऐसे काम करती है –
ये ठीक वैसे ही होता है जैसा हम अपने दैनिक कामकाज के दौरान समय को प्रबंधित करते हुए हर काम को एक डेड लाइन में करते हैं। दरअसल शरीर के अंदर भी हर काम की अपनी डेड लाइन होती है, जिस हर 24 घंटे में पूरा होना होता है और इन गतिविधियों को मानव शरीर में उपस्थित जैविक घड़ियां (बायोलॉजिकल क्लॉक्स) नियंत्रित करती हैं, जिसे हम सिरकाडियन रिदम कहते हैं। जैसे-जैसे प्रत्येक 24 घंटे में पृथ्वी घूमती जाती है, वैसे- वैसे ये घड़ी जीव के शरीर को दिन और रात के दैनिक चक्र के अनुकूल बनाने में मदद करती हैं। एक मशीनी घड़ी, गियर, वजन, दोलन, चरखी और स्प्रिंग पर निर्भर रहती है, उसी तरह इन शारीरिक घड़ियों या सिरकाडियन रिद्ध्म को शरीर के अंदर क्लॉक जीन्स निर्यात्रत करती हैं। वैज्ञानिकों ने इसे एक भौतिक मॉडल से समझाया है । इस मॉडल के अनुसार वैज्ञानिकों ने प्रकल्पना की कि जैविक घड़ी यानी बॉयोलॉजिकल क्लॉक एक रासायनिक आधारित दोलन प्रक्रिया है, जो नियमित लय के दो चरम अवस्थाओं के बीच कार्य करती है। ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे घड़ी का पेंडुलम दो भौतिक चरम अवस्थाओं के बीच चलता है।
जैविक घड़ी के तीन हिस्से होते हैं। पहले हिस्से में वह रास्ता होता है, जिसके जरिए घड़ी के संचालन के लिए आवश्यक तत्व (प्रकाश, तापमान आदि) इसमें प्रवेश करते हैं। दूसरा हिस्सा घड़ी स्वयं होती है, जिसे रासायनिक समय प्रबंधन को यांत्रिकी के रूप में समझा जा सकता है। तीसरा वे जीन्स होते हैं जो अन्य जीन्स को नियंत्रित करने में घड़ी की सहायता करते हैं। जीन्स निर्देशित लयबद्ध प्रक्रिया में प्रोटीन्स का स्तर कम या ज्यादा होता रहता है। ये दोलित जैव रासायनिक संकेत शरीर के बहुत सारे कार्यों को नियंत्रित करते हैं, जिनमें सोने व आराम करने और जागने व काम करने का कार्य शामिल है। इतना ही नहीं सिरकाडियन रिदम्स शरीर के तापमान, हृदय गति विधि, हार्मोन प्रवाह, रक्तचाप, ऑक्सीजन खपत, उपापचय और कई अन्य कार्यों का समय के अनुसार प्रबंधन करती हैं। दैनिक काल चक्र हमारे खून में तत्वों के स्तर को नियंत्रित करता है, जिसमें रक्त कोशिकाएं, रक्त शर्करा, कई गैस और आयरन जैसे पोटेशियम और सोडियम शामिल हैं। हमारी आंतरिक घड़ियां हमारी मनोदशा से भी प्रभावित हो सकती हैं, विशेष कर सर्दी में दिखने वाली निराशा जिसे हम सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर में जानते हैं। पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने ऐसे जीन्स खोज निकाले हैं, जो आंतरिक घड़ियों के के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये जीन्स हैं पीरियड, क्लॉक, साइकिल, टाइमलेस, फ्रीक्वेन्सी और डबलटाइम ये जीन्स सिरकाडियन रिदम्स को नियंत्रित करते हैं, जो इंसानों से लेकर मछली, चूहे, पौधों, फ्रूट फ्लाइज़ (मक्खियों की एक जाति) , फफूंद और साइनो बैक्टीरिया में भी पाए जाते हैं।
जैविक घड़ी की खोज –
विज्ञान ने आज से लगभग 300 साल पहले जैविक घड़ी का पता पौधों में तो लग गया था, किंतु 1950 में वैज्ञानिकों ने पशुओं में इसके अस्तित्व को प्रमाणित किया। 1971 में फ्रूट फ्लाइज़ में पहली बार क्लॉक जीन पीरियड पाया या, और 1984 में इसके अनुवांशिक कोड की परिशुद्ध श्रृंखला का निर्धारण हुआ। अध्ययन के दौरान पाया गया कि फ्लाइज की जैव घड़ी का चक्र, सामान्य 24 घंटे की बजाय 19 या 29 घंटे का था। इसकी वजह या तो सिरकाडियन रिद्म की कमी थी या फिर जीन्स में अचानक आया बदलाव । 1988 में वैज्ञानिकों ने पहली बार स्तन धारियों में क्लॉक जीन्स होने का पता लगाया, जब उन्होंने उत्परिवर्ती हेमस्टर (साइबेरिया में पाया जाने वाला स्तनधारी जीव) खोजा, जिसकी सिरकाडियन या फिर 20 घंटे अवधि की थी । यह जीव विशेष बायोलॉजिकल क्लॉक के कारण अपने फर, रंग को मौसम के अनुसार बदल देता है। वैज्ञानिकों ने 1997 में चूहे में जैविक घड़ी का पता लगाया और डीएनए क्रम को लिखा। इस जीन को क्लॉक नाम दिया गया। सन् 2001 में यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा के वैज्ञानिकों ने पहला मानव क्लॉक जीन खोजा। यह जीन उन्हें एक असाधारण वशांनुगत बीमारी के अध्ययन के दौरान मिला, जो लोगों को जल्दी ही सोने और भोर के घंटों पहले स्वतः ही जगाने का कारण था।
प्रोटीन नियंत्रण –
जैविक घड़ी की लय में क्लाक जीन्स का मुख्य काम प्रोटीन उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए निर्देश भेजना है, रोजाना प्रोटीन उत्पादन की मात्रा में उतार-चढ़ाव उत्पन्न करने के लिए जीन्स एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, जो जीवों में होने वाली रसायनिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीरियड जीन एक मुख्य जीन है, जो पीरियड प्रोटीन उत्पन्न करता है। पीरियड प्रोटीन उत्पादन का स्तर शाम से पहले अधिक और जल्दी सुबह कम होता है। फूट फ्लाइज में क्लॉक और साइकिल जीन्स साथ मिलकर पीरियड और टाइमलेस जीन्स को सक्रिय करते हैं ताकि वे प्रोटीन निर्माण कर सकें। ये प्रोटीन को पीरियड और टाइमलेस के कोशिका केंद्रक में एक साथ और धीरे-धीरे संचय करते हैं, जहां क्लॉक और साइकिल जीन्स को धीमा कर दिया जाता है ताकि पीरियड और टाइमलेस निष्क्रिय हो जाएं। जैसे ही पीरियड और टाइमलेस कम हुए वैसे ही क्लॉक और साइकिल फिर से क्रियाशील हो जाते हैं और नया दैनिक चक्र शुरू हो जाता है। क्लॉक जीन अन्य जीवों में अलग-अलग तरह से यानी किसी में जटिल और किसी में सरल प्रक्रिया के दौरान प्रोटीन निर्माण का कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न जीव अलग अलग तरह से व्यवहार करते हैं । Biological clock in Human Body in Hindi
सभी में अलग-अलग अवधि –
मानव, पशु-पक्षी और पौधों में इन जैविक घड़ियों की समय अवधि अलग-अलग होती है। आमतौर पर हम मानते हैं कि मानव की जैविक घड़ी 24 घंटे की होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। ये घड़ी 10 से 20 मिनट ज्यादा अवधि की हो सकती है। अन्य प्रजातियों की घड़ियों के काम करने की सीमा 22 से 29 घंटे की होती है। जैविक घड़ी जीवों में तब भी काम करती रहती है, जब वे प्राकृतिक प्रकाश से दूर रहते हैं। बिना प्रकाश के. जैविक घड़ी स्वयं के प्राकृतिक कालचक्र से काम करती है, किंतु जैसे ही सुबह प्रकाश आंखों पर पड़ेगा घड़ी फिर से पृथ्वी के 24 घंटे के हिसाब से पुनर्व्यवस्थित हो जाएगी। सवाल यह है कि जब सभी जीवों में ये घड़ियां उपस्थित रहती हैं तो फिर सभी की आंतरिक घड़ियां पूर्णत 24 घंटे की क्यों नहीं होती हैं ? इसे हम 24 घंटे के चक्र में प्रजातियों के बीच भोजन और अन्य तीव्रता पैदा करने वाले स्रोत के एक उदाहरण से समझ सकते हैं। सोचिए यदि एक ही समय में सारी प्रजातियां खाना खाएं तब हो सकता है कि आपको आपका हिस्सा कम पड़ जाए, इसलिए सभी प्रजातियों की आंतरिक घड़ी अलग-अलग होती है और हमें जीवित रखने में मदद करती है। जैविक घड़ी लंबे काल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती जैसे शीत निष्क्रियता, पक्षी प्रवसन और साल में परिवर्तित होने वाले हैमस्टर के आवरण। जीन्स की प्रक्रिया से पड़े असर के चलते पशुओं का दिमाग वसंत में बड़े दिनों को और पतझड़ में छोटे दिनों को रिकॉर्ड करता है।
जैविक घडी शरीर के किस भाग में होती है ? –
24 घंटे के कालचक्र के हिसाब से होने वाली सभी गतिविधियों को जीव अपनी मास्टर क्लॉक के कारण समझ पाते हैं। ये घड़ी हमारे शरीर के दिमागी हिस्से हाइपोथैलेमस में पाई जाती है, इस क्षेत्र को सुप्राकियॉस्मेटिक न्यूक्लिआई (एससीएन) के नाम से पुकारते हैं। एससीएन क्षेत्र हजारों तंत्रिकीय कोशिकाओं के दो छोटे गुच्छों से बना होता है, जो बाहरी संकेतों जैसे प्रकाश और अंधेरे का बोध कराता है। एससीएन नींद, उपापचय और हार्मोन उत्पादन को नियंत्रित करता है। एससीएन का महत्व सिर्फ इससे जाना जा सकता है कि वैज्ञानिकों ने जब एक चूहे में एससीएन को हटा दिया तो उसकी दैनिक कालचक्र की गतिविधियां और निद्रा अव्यवस्थित हो गई। दरअसल सीएन हार्मोन या शारीरिक तापमान में परिवर्तन करके संपूर्ण शरीर के अंगों और ऊतकों में उपस्थित जैविक घड़ियों में समन्वय स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है, लेकिन जीन्स संचालित जैव घड़ी की लय तथा मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस से जुड़े संवेदी नतीजे आम जीवों में एक-दूसरे से अलग भी काम करते हैं जैसे फ्रूट फ्लाइज़ एंटीना (या शृंगिकाओं ) की सूंघनेछूने की क्षमता दिन-रात के अंतर से बदल जाती है। मस्तिष्क की मॉस्टर क्लॉक और शेष शरीर में उपस्थित संवेदी अंगों की जीन्स आधारित सूचनाएं दोनों माध्यम संपूर्ण जैव घड़ी को बनाते हैं।
जैविक घड़ी है नींद का शूत्रधार –
देखा जाए तो पूरा दैनिक कालचक्र दिन और रात पर निर्भर करता है, जिसका सीधा संबंध जागने और सोने से है और क्लॉक जीन्स हमें दिन में जागने और रात में सुलाने का काम करते हैं, किंतु जब कोई क्लॉक जीन परिवर्तित हो जाता है तब यह सामान्य निद्रा चक्र को गड़बड़ा देता है जैसे एक उत्परिवर्ती जीन hper2 फैमिलीअल एडवांस्ड स्लीप फेज सिंड्रोम (एफएएसपीएस) के लिए उत्तरदायी है। एफएएसपीएस के कारण मानिंग लास (जल्दी जगाने वाले) लोग जल्दी ही, शाम 7 बजे सो जाते हैं और सुबह 2 बजे उठ जाते हैं। एक अन्य निद्रा परिस्थिति जिसे डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम कहते हैं, बिल्कुल उल्टा प्रभाव डालती है, जिसमें लोग देर रात तक सोने के आदी हो जाते हैं। ये लोग देर रात को सोते हैं और जल्दी उठने में परेशानी महसूस करते हैं। डिलेड स्लीप फेज सिन्ड्रोम hper3 जीन की वजह से होता है।
नींद भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जैसे जब चूहे जागते और चौकस रहते हैं तब उनके दिमाग की मास्टर क्लॉक अत्यधिक सक्रिय रहती है। सूर्य का प्रकाश हर दिन आंतरिक जैविक घड़ी को पुनर्व्यवस्थित करता है, इसलिए इसे दिन के 24 घंटे से मिला लेनी चाहिए। यदि आप भूमिगत बंकर के कृत्रिम प्रकाश में रहते हैं तो आपको लगातार लगभग 24 घंटे सोने-जागने की प्रक्रिया का पालन करना होगा, क्योंकि आपका चक्र वास्तविक दिन और रात की अवस्था से हटकर होता है। हवाई यात्रा में डिस्टेंस टाइम जोन हमारे सामान्य चक्र को गड़बड़ा देता है। ऐसा इसलिए होता है कि स्थानीय समय (हवाई यात्रा के दौरान दो देशों के समय में परिवर्तन) और शरीर की आंतरिक घड़ियों के बीच संबंध टूट जाता है।
इसके अलावा आपके पूरे शरीर के ऊतकों की आंतरिक घड़ी और दिमाग की मास्टर क्लॉक के बीच बदलाव होता है। इस बदलाव के कारण थकान, अनिद्रा और अन्य शारीरिक परेशानियां उत्पन्न होती हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर असर डालती हैं। जब आप अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं तो दिन के समय का बदलाव आपकी आंतरिक घड़ी को पुनर्व्यवस्थित करना शुरू कर देता है और इस स्थिति यानी जेट लैग से बाहर निकलने में कुछ दिन लगते हैं।
समय के साथ चलो स्वस्थ रहो –
जैविक घड़ी का सबसे ज्यादा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। रात-दिन की पारियों में काम करने, जेट लैग, विटंरटाइम डिप्रेशन या अन्य कारण से जैविक घड़ियों पर पड़े असर से कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं। यदि यह जान लिया जाए कि क्लॉक जीन्स कैसे काम करती है तो वैज्ञानिक इन बीमारियों से बचने के लिए उन नई दवाइयों का विकास कर सकते हैं, जो बायोलॉजिकल क्लॉक को पुनर्व्यवस्थित करने में काम आए। क्लॉक जीन्स नींद की बीमारी के संकेत दे सकते हैं जैसे नारकोलरप्सी (narcolrpsy) में लोग दिन के समय भी नींद महसूस करते हैं।
हमारी आंतरिक घड़ी हार्मोंस के स्तर को नियंत्रित करती है, जो किसी सुनिश्चित दवा या इलाज के समय हमारे शरीर की प्रतिक्रिया के तरीके को प्रभावित कर सकती है। सिरकाडियन रिद्म का बेहतर ज्ञान दवाइयों के प्रभाव को बेहतर कर सकता है। खासतौर पर यह जानकारी देकर कि इलाज के समय दवाइयों को लेने का सर्वोत्तम वक्त क्या है ? प्रकाश का उपयोग लोगों की मौसमी बीमारी के इलाज में किया जाता है जैसे सर्दी के छोटे दिनों के दौरान होने वाली निराशा आदि के मामले में चिकित्सक करते हैं। कुछ शोध संकेत देते हैं कि प्रकाश चिकित्सा बहुत ही प्रभावशाली साबित होगी यदि मरीज की आंतरिक घड़ी के साथ की जाए, इसलिए कुछ मरीजों का इलाज जल्दी सुबह की रोशनी में किया जाता है। सूर्य के चमकीले प्रकाश का उपयोग लोगों के जेट लैग और काम के परिवर्तित घंटे को व्यवस्थित करने में भी किया जाता है। क्लॉक जीन्स एकदिन वैज्ञानिकों को कैंसर के इलाज में मदद कर सकती है। यदि क्लॉक जीन्स कैंसर में एक भूमिका अदा करती है तो ऐसी नई दवा बनाने का लक्ष्य बनाया जा सकता है जो क्लॉक में व्यवधान उत्पन्न करके कैंसर को रोक दे।
जैविक घड़ी ही तय करती हैं पौधों का भी समय –
पौधे अपनी जैविक घड़ी का उपयोग दिन की लंबाई का पता लगाने के लिए करते हैं। जब उनकी भीतरी घड़ियों को छोटे दिन का आभास होता है तब वे बीज पैदा करते हैं और अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। वहीं जब उन्हें वसंत में बड़े दिनों का आभास होता तब उनमें फूल और फल लगते हैं। बायोलॉजिकल क्लॉक्स पेड़-पौधों को सूर्योदय के लिए तैयार करती हैं ताकि उनकी पत्तियां बढ़ सकें और प्रकाश संश्लेषण के द्वारा सूर्य के प्रकाश में भोजन निर्माण कर सकें। आंतरिक घड़ियां पतियों के छिद्र को खोलने और बंद करने तथा रात्रि में पत्तों को मोड़ने (जिससे पानी की हानि को बचाया जा सके) में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। Biological clock in Human Body in Hindi
कुछ शोध कर्ताओं को साक्ष्य मिले हैं कि पेड़-पौधों में दो आंतरिक घड़ियां होती हैं। पहली प्रकाश के लिए और दूसरी तापमान परिवर्तन के लिए संवेदनशील होती हैं। जीन्स सूर्य का प्रकाश खोजने के लिए प्रोटीन उत्पन्न करते हैं, और दिन की लंबाई की जानकारी पेड़-पौधों की आंतरिक घड़ियों को देते हैं और जब तक समय नहीं आ जाता तब तक फूलों को खिलने से रोकते हैं।वैज्ञानिकों को विश्वास है कि अगर पौधों के जीन्स की इस प्रक्रिया में जैविक घडी के परिवर्तन से असर डाला जा सके तो विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी और ज्यादा फसल पैदा की जा सकती है ।।
ये भी पढ़ें –
Biological clock in Human Body in Hindi – जैविक घड़ी किसे कहते हैं ?
Massage कैसे करें – मसाज करने के फायदे
Biological clock in Human Body in Hindi
Biological clock in Human Body in Hindi