पिछले कुछ वर्षों में ग्रॅफोलॉजी रोचक कला के दायरे से बहुत आगे निकल व्यक्तित्व-परीक्षण की एक लोकप्रिय प्रणाली बन गई है। केवल इंग्लैण्ड में ही तकरीबन 3,000 बड़ी कंपनियां इसे भर्ती प्रक्रिया में इस्तेमाल कर रही हैं। वहां नौकरी के लिए आवेदन करने वालों की भर्ती और छंटनी में लिखावट को महत्वपूर्ण आधार बनाया जा रहा है। इस लेख में आज विस्तार से जानते हैं कि सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology) क्या होती है।
हस्तलेख विश्लेषण (Handwriting Analysis) विवादास्पद प्रणाली रही है
कुछ वर्ष पहले दावोस में हुए विश्व आर्थिक सम्मेलन के दौरान एक दिलचस्प घटना घटी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मीडिया के हाथ कागज़ का एक टुकड़ा लगा जिस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने कॉन्फ्रेंस में बैठे-बैठे आड़ी-टेढ़ी रेखाएं और कुछ अस्पष्ट आकृतियां बना दी थीं। मीडिया को लगा कि उसके हाथ जादुई चिराग लग गया है जो ब्लेयर के व्यक्तित्व की अनजानी परतें खोल देगा। आनन-फानन में हस्तलेख विशेषज्ञों को बुलाया गया और ब्लेयर की निजी जिंदगी में ताक-झांक शुरू हो गई। परिणाम स्वरूप कुछ चौंका देने वाली बातें सामने आईं।
टाइम्स के विशेषज्ञ ने कहा कि ब्लेयर द्वारा बनाए गए त्रिभुज ‘मृत्यु की इच्छा’ दर्शाते हैं जो उनके राजनीतिक जीवन के ख़तरे में होने का सूचक है। डेली मिरर के सलाहकार एलेन क्विगले का कहना था कि शब्दों के चारों ओर बनाए गए घेरे उनके तेज़ दिमाग और हाज़िर जवाबी के सूचक हैं जबकि एक अन्य हस्तलेख विशेषज्ञ हैलन टेलर के इंडिपेंडेंट में प्रकाशित वक्तव्य के अनुसार ये घेरे ब्लेयर की किसी काम को पूरा न कर पाने की अक्षमता की ओर इशारा करते थे। सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology)
इनके अलावा जो बातें उछलीं वे ये थीं कि ब्लेयर में एकाग्रचित्तता की कमी है, वे जन्मजात नेता नहीं हैं और वे जल्दी तनाव में आ जाने वाले अस्थिर व्यक्ति हैं, लेकिन जल्द ही डाउनिंग स्ट्रीट ने ब्लेयर के व्यक्तित्व को लेकर लगी इन तमाम अटकलौं पर यह कहकर पानी डाल दिया कि कागज़ पर हुई सारी कारीगरी ब्लेयर की नहीं, बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ मौजूद माइक्रोसॉफ्ट अध्यक्ष बिल गेट्स की थी। डाउनिंग स्ट्रीट के इस बयान पर बिल एण्ड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने सहमति की मुहर लगाई यानी अस्थिर, अवसाद ग्रस्त रहने वाला व्यक्ति दुनिया का सबसे सफल व्यवसायी निकला।
कयास लगाने वाले झेंपे और बात खत्म हो गई, लेकिन इस पूरी जद्दोजहद ने हस्तलेख विश्लेषण की विवादास्पद प्रणाली पर एक बार फिर प्रश्नचिह्न लगा दिया। मुद्दा बहस का इसलिए भी बन गया क्योंकि लिखावट के ज़रिए व्यक्तित्व-मूल्यांकन की यह प्रणाली पिछले कुछ वर्षों में रोचक कला के दायरे से काफ़ी आगे निकलकर बहुत सी बड़ी कंपनियों के बोर्डरूम तक जा पहुंची है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार केवल इंग्लैण्ड में ही तकरीबन 3,000 बड़ी कंपनियां इसे भर्ती प्रक्रिया में इस्तेमाल कर रही हैं जहां नौकरी के लिए आवेदन करने वालों की भर्ती और छंटनी में लिखावट को महत्वपूर्ण आधार बनाया जा रहा है।
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व्यक्तित्व का पॉलीग्राफ
लिखावट के ज़रिए किसी के व्यक्तित्व की व्याख्या करने की यह पद्धति ग्राफोलॉजी (लिपि-विज्ञान) कहलाती है। इसकी जड़ें टटोलने की कोशिश करें तो सबसे पहले सन् 1622 में कैमिलो बाल्डी नामक इटली के एक विद्वान ने हस्तलेख विश्लेषण पर एक किताब लिखकर पहली बार इस संदर्भ में गंभीर प्रयास किए। उसके बाद गोथे, पॉये, ब्राउनिंग्स और चार्ल्स डिकंस जैसी प्रसिद्ध शख्सियतों ने एक कला के रूप में इसका अभ्यास शुरू किया। आखिर सन् 1875 में जीन हिप्पोलाइट मिशॉन ने इसे ग्राफोलॉजी नाम दिया और सैकड़ों ग्राफिक को व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं से जोड़कर इसे एक व्यवस्थित प्रणाली की शक्ल दी।
ग्राफोलॉजी के प्रकार
ग्राफोलॉजी की फ्रेंच शाखा लिखावट के अलग-अलग प्रतीकों को व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का सूचक मानती थी जबकि जर्मनवासी लिखावट को संपूर्ण रूप में व्यक्तित्व-व्याख्या का आधार मानते थे। सन् 1929 में एम.एन.बंकर ने इन दोनों के बीच का रास्ता निकाला और उसे ग्रॅफोएनेलिसिस कहा। वर्तमान में ग्राफोलॉजी की तीन श्रेणियां, होलिस्टिक, इंटिग्रेटिव और सिम्बॉलिक हैं। सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology)
ग्राफोलॉजिस्टों का दावा
ग्रॅफोलॉजिस्ट दावा करते हैं कि वे किसी व्यक्ति की लिखावट देखकर न केवल उसके व्यक्तित्व का खाका खींच सकते हैं, बल्कि उसके स्वास्थ्य, नैतिकता, पिछले अनुभवों, अप्रकट क्षमताओं, मानसिक समस्याओं आदि को भी भली-भांति समझ सकते हैं। हालांकि बहुत से लोग उनके इन दावों को खोखला ठहराते हैं। उनका कहना कि ग्राफोलॉजी को अनुभवजन्य साक्ष्यों के आधार पर प्रमाणित नहीं किया है जा सकता है , इसलिए यह एक तर्कसंगत प्रणाली नहीं है।
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ग्राफोलॉजी कैसे काम करती है ?
बहरहाल,इसके समर्थक इसे कला की बजाय विज्ञान का दर्जा देते हैं और उसी आधार पर इसकी पैरवी करते हैं। वे कहते हैं कि शरीर के अन्य हिस्सों की तरह ही हमारे हाथ भी हमारे मस्तिष्क के निर्देशन में काम करते हैं। लिखने की प्रेरणा मस्तिष्क में उत्पन्न होकर नसों से होती हुई हाथों तक पहुंचती है यानी जो कुछ भी हम अपने हाथ से लिखते हैं वह हमारे मस्तिष्क और हाथ की मोटर रिफलेक्स मांसपेशियों के बीच के दुतरफा सर्किट का नतीजा होता है।
उनका तर्क है कि स्कूल में सभी बच्चों को एक ही तरह से लिखना सिखाया जाता है लेकिन बड़े होने के साथ-साथ उनकी लिखावट में विशिष्टता आ जाती है और अलग-अलग लोगों द्वारा लिखे समान अक्षर भी बिल्कुल एक जैसे नहीं दिखाई पड़ते। दूसरे शब्दों में कहें तो लिखावट हमारे व्यक्तित्व और भावों का पॉलीग्राफ बन जाती है। वे कहते हैं कि भले ही एक आम आदमी के लिए कागज़ पर कुछ लिखना इस दृष्टि से कोई मायने नहीं रखता हो, लेकिन एक हस्तलेख रखता हो, लेकिन एक हस्तलेख विश्लेषक के लिए वह कलम के पीछे छिपे व्यक्ति के व्यक्तित्व के हर पहलू का कच्चा चिट्ठा है।
ब्रिटिश ग्रॅफोलॉजिस्ट एरिक रीज़ के अनुसार लिखावट हमारे मस्तिष्क की अनियोजित प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं। यही कारण है कि अगर कलम को मुंह या पैर के अंगूठों में रखकर भी चला जाए तो लिखावट पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अन्य विशेषज्ञ एल्बर्ट ए. ह्यज कहते हैं कि व्यक्ति अपने चेहरे के भावों और शारीरिक भाषा को नियंत्रित कर सकता है लेकिन लिखावट को नहीं। उम्र के साथ लिखावट ऊपरी तौर पर भले ही बदल जाए लेकिन अक्षरों को लिखने का हर व्यक्ति का अपना तरीका होता है जिसमें आधारभूत परिवर्तन कभी नहीं आते।
ग्राफोलॉजिस्टों का अपना-अपना तरीका
ग्राफोलॉजी के नियत मानक नहीं हैं, इसलिए इसके अभ्यास को लेकर अलग-अलग विशेषज्ञों का अपना अपना तरीका है। फिर भी अधिकतर ग्रॅफोलॉजिस्ट अक्षरों या शब्दों के झुकाव या ढलान, आकार, कोण, वक्रता, शब्दों के बीच छोड़ी गई जगह आदि के आधार पर नतीजे निकालते हैं। इन ग्राफिक प्रतीकों के अतिरिक्त नॉन-ग्राफिक विशिष्टताएं जैसे पेन को ऊपर या नीचे ले जाने का तरीका, कागज़ पर बनाए जाने वाले दबाव आदि को भी मद्देनज़र रखा जाता है। अधिकतर विश्लेषक अक्षरों के झुकाव को ख़ास तौर से महत्वपूर्ण मानते उनके अनुसार जो लोग अक्षरों को दाई ओर झुकाव (///) के साथ लिखते हैं वे बहिर्मुखी जबकि बाई ओर झुकाव (\\\) से लिखने ) वाले अंतर्मुखी होते हैं।
रोज़न के अनुसार अक्षरों के झुकाव, उनके बीच की जगह, आकार के अतिरिक्त रिदम और टेम्पो सहित 16 कारकों के आधार पर लिखावट का विश्लेषण किया जा सकता है। शीला कर्ज़ अपने विश्लेषण में अक्षरों के झुकाव, दबाव और ख़ासतौर से अंग्रेजी के अक्षर ‘1’ को आधार बनाती हैं। उनके अनुसार इससे वे किसी व्यक्ति के सोचने के तरीके, उपयुक्त करिअर, डर पैदा करने वाले कारण, सामाजिक स्थिति आदि के विषय में बता सकती हैं।
ग्राफोलॉजी की हर शाखा की अपनी विशेष शब्दावली है। हालांकि दो या ज्यादा शाखाएं एक जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि उनके लिए उन शब्दों के अर्थ भी समान हों। इसी तरह ग्राफोलॉजी में अक्सर किसी शब्द का मतलब उसके प्रचलित अर्थ से बिल्कुल अलग होता है। मसलन, अंग्रेजी के शब्द रीजेंटमेंट का साधारण अर्थ गुस्सा जाहिर करना है जबकि ग्रॅफोएनेलिसिस में इसका आशय कुछ थोपे जाने का भय है। सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology)
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अक्सर, विशेषज्ञ विश्लेषण के लिए उस लेख को उपयुक्त मानते हैं जिसे इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया हो। साथ ही लेख कुछ लंबा और दबाव और गति के प्रति संवेदनशील पेन या पेंसिल से लिखा होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वे उसे लिखने वाले की उम्र और लिंग भी जानना चाहते हैं। अधिकतर विशेषज्ञ यह भी चाहते हैं कि जहां तक हो सके जिस व्यक्ति की लिखावट का विश्लेषण किया जाना है लेख उसी पर केंद्रित हो। इस आधार पर उनकी कड़ी आलोचना भी की जाती है।
ग्राफोलॉजी सही है या गलत
बहरहाल, एक बड़ा सच यह भी है कि भर्ती प्रक्रिया में ग्राफोलॉजी की मदद लेने वाली बहुत सी कंपनियां इस बात को स्वीकार करने से झिझकती हैं। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं। कुछ कंपनियां इसे गुप्त हथियार के तौर पर काम में लेना चाहती हैं,जबकि कुछ इसके विवादास्पद होने के कारण इसके खुलासे से बचती हैं। बहुत सी कंपनियां इसके ‘आउट ऑफ फैशन’ होने के कारण इसके इस्तेमाल को लेकर शर्म महसूस करती हैं, लेकिन इसके दबे-छिपे प्रयोग की सबसे बड़ी वजह इससे जुड़ा कानूनी पहलू है।
सन् 2001 में प्रकाशित माइकल इवेंस की किताब एम्पलॉइंग पीपल विद डिसेबिलिटीज़ के अनुसार, ‘चयन-प्रक्रिया में लिखावट को आधार बनाने वाले नियोक्ता निःशक्त आवेदकों के चयनित होने के मार्ग मेंअनुचित रूप से बाधा डाल सकते हैं उनका यह कदम डिसेबिलिटी डिस्क्रिमिनेशन एक्ट का उल्लंघन है।’ इसी तरह एडीए साधारण व्याख्या भी सच लगती है मुझे लगता है कि यह एक छद्मविज्ञान है और इसका इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। ख़ासतौर से, किसी के जीवन और प्रतिष्ठा को प्रत्यक्ष और गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले संवेदनशील मामलों में तो इसका प्रयोग कतई नैतिक नहीं ठहराया जा सकता। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति किसी नौकरी के लिए पूरी तरह से योग्य है, तब क्या केवल लिखावट के आधार पर उसे अनुपयुक्त करार देना उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा?
ग्राफोलॉजिस्ट और डॉक्यूमेंट एग्जामिनर
अक्सर ग्राफोलॉजी की वकालत इस आधार पर की जाती है कि जब अदालत में क्वेश्चन डॉक्यूमेंट एग्जामिनेशन हो सकता है तो इस पद्धति का प्रयोग भी किया जा सकता है, लेकिन अक्सर लोग इन दोनों के बीच का अंतर नहीं समझ पाते। ग्रॅफोलॉजिस्ट एक छद्मविज्ञान है जबकि डॉक्यूमेंट एग्जामिनेशन फॉरेंसिक साइंस की शाखा है। क्वेश्चन डॉक्यूमेंट एग्जामिनर दस्तावेज की प्रमाणिकता की जांच करते हैं। वे इस बात का पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या कोई दस्तावेज़ उसी व्यक्ति ने लिखा है जिसे उसका लेखक माना जा रहा है। दूसरी तरफ ग्रॅफोलॉजिस्ट न्यायालय को गवाह, अपराधी या बेगुनाह की लिखावट के आधार पर उस पर विश्वास करने या न करने की सलाह देने का दावा करते हैं।
क्या ग्राफोलॉजिस्ट अवैज्ञानिक पद्धति है ?
ग्रॅफोलॉजिस्ट कागज़ पर उकेरे गए विविध चिह्नों के आधार पर व्याख्या करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे पुराने समय में लोग आकाश में धुएं और जानवरों की आकृति को देखकर भविष्यवाणियां किया करते थे। अगर आपके अक्षर आगे की ओर झुके रहते हैं तो आप प्रगतिशील और एक जगह न टिकने वाले व्यक्ति हैं, यदि आप बड़े अक्षर लिखते हैं तो आप बहुत सोचते हैं यानी बड़ी योजनाएं या महत्वाकांक्षाएं रखते हैं, लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि कुछ ग्रॅफोलॉजिस्ट असाधारण बातों की व्याख्या करने का दावा करते हैं। उदाहरण के लिए एक जाने-माने ग्रॅफोलॉजिस्ट इस बात का दावा करते है कि वे लिखावट से चोर की पहचान कर सकते हैं। कैसा लगेगा अगर कोई उस पद्धति के आधार पर जो पूरी तरह अवैज्ञानिक है, यह दावा करे कि आपकी लिखावट बताती है कि आप चोर हैं जबकि आप जानते हैं कि आप एक कुशल और कर्मठ व्यक्ति हैं। सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology)
ग्राफोलॉजी के अनुसार हर व्यक्ति का अपना विशिष्ट व्यक्तित्व होता है। हम सभी को एक तरह से लिखना सिखाया जाता है, फिर भी हम अपना व्यक्तिगत तरीका विकसित करते हैं। इसी कारण लिखावट देखकर व्यक्ति – की पहचान आसानी से की जा सकती है, लेकिन विज्ञान कुछ और ही कहता है। उसके अनुसार हमारी हड़ियों, मांसपेशियों आदि के बायोमैकेनिज्म में अंतर होने के कारण हमारी लिखावट भी अलग-अलग होती है। हम उस खास तरीके से लिखने लगते हैं जो हमारे शरीर के बायोमैकेनिज्म के अनुकूल होता है।
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हालांकि कई बार स्वयं को अभिव्यक्त करने की चाह में हम जानबूझकर अपने लेखन को सजावटी बना लेते हैं लेकिन फिर भी कोई भी व्यक्ति उसके आधार पर आपके व्यक्तित्व की विश्वसनीय व्याख्या नहीं कर सकता। एक कलात्मक व्यक्ति दूसरों की तुलना में अधिक कलात्मक ढंग से लिख सकता है या किसी सफाई पसंद व्यक्ति की हैंडराइटिंग ज्यादा स्पष्ट हो सकती है। लेकिन इसके अपवाद भी बहुत हैं, इसलिए इस बात को ग्राफोलॉजी के पक्ष में कोई तर्क नहीं माना जा सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो यह जरूरी नहीं कि एक साधारण व्यक्ति कलात्मक ढंग से नहीं लिख सकता या अव्यवस्थित रहने वाला व्यक्ति की लिखावट स्पष्ट व साफ-सुथरी नहीं हो सकती।
विशेषज्ञ रे हाइमन के अनुसार हमारे मस्तिष्क के कुछ हिस्से सक्रिय रूप से सूचना प्रोसेस करते रहते हैं, लेकिन कई बार हमें इसका अहसास नहीं होता। ऐसी स्थिति में हमारी मांसपेशियां भी सक्रिय रहती हैं और हम बिना किसी योजना के या न चाहते हुए भी लिखने लगते हैं, इसलिए तब ऐसा महसूस हो सकता है कि यह काम किसी बाहरी शक्ति द्वारा किया जा रहा है। इस अवधारणा को इडियोमोटर मूवमेंट कहा जाता है। यदि इन्हें किसी ग्रॅफोलॉजिस्ट के पास यह कहकर भेजा जाए कि ये सब अलग-अलग लोगों की लिखावट है तो आपको हर लिखावट के आधार पर अपने व्यक्तित्व के अलग-अलग विश्लेषण मिलेंगे। सिग्नेचर ग्राफोलॉजी (Signature Graphology)
ग्राफोलॉजी का कोर्स
ग्राफोलॉजी की एक बड़ी समस्या यह है कि इसकी कई शाखाएं हैं जो एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं। शाखा की अपनी मान्यताएं हैं। अब तक उत्तरी अमेरिका में तो कोई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय यह कोर्स नहीं करवाता। हालांकि कुछ संस्थान पत्राचार और कुछ प्रोफेशनल ग्राफोलॉजी स्कूल सर्टिफिकेट कोर्स करवाते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी संस्थान इस बात पर शोध नहीं करता कि उनके द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली अध्ययन सामग्री कारगर सिद्ध होती है या नहीं। द इंटरनेशनल ग्रॅफोएनेलिसिस सोसाइटी ऑफ शिकागो ग्रॅफोएनेलिसिस सर्टिफिकेशन कोर्स का सबसे बड़ा संस्थान है। वैसे दुनियाभर में बड़ी संख्या में ग्रॅफोलॉजिस्ट अपने अनुभव के आधार पर किताबें लिखते हैं, जिन्हें आप बाज़ार या पुस्तकालयों में देख सकते हैं।
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