अम्लपित्त (Hyper Acidity) – लक्षण, बचाव और इलाज –
आज अम्लपित्त (Hyper Acidity) आम समस्या बन गया है बहुत से लोग इस रोग से पीड़ित हैं । आज हम अम्लपित्त (Hyper Acidity) के बारे में विस्तार से जानते हैं ।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) – के लक्षण –
अम्लपित्त (Hyper Acidity) में आमाशय स्थित आमायिक रस (हाइड्रोक्लोरिक एसिड) किसी भी कारण से बढ़ जाने पर खट्टी डकारें आना, सीने में जलन होना, भोजन नहीं पचना, भोजन की इच्छा नहीं होना, उल्टी, कब्ज एवं पेटदर्द आदि लक्षण होते हैं ।
महर्षि सुश्रुत के अनुसार प्राकृत पित्त का रस कटु (कड़वा) तथा विदग्ध या विकृत पित्त का रस अम्ल (खट्टा) स्वीकार किया गया है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अम्लपित्त को हाइपर एसिडिटी कहते हैं। अम्लपित्त के लक्षण- भोजन नहीं पचना, बिना किसी परिश्रम के थकावट होना, कड़वी या खट्टी डकारें आना, शरीर में भारीपन, हृदय प्रदेश तथा पेट में जलन का अनुभव, कभी-कभी उल्टी होना, जिसमें खट्टा पदार्थ निकलना, मिचली, मुंह से खट्टा पानी आना, सिरदर्द, आंखों में जलन तथा जीभ लालिमायुक्त होना आदि।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) के प्रकार –
अम्लपित्त दो प्रकार का होता है :-
1- अधोगामी अम्लपित्त – अधोगामी अम्लपित्त में कभी जलन, कभी प्यास लगना, भ्रम, मूर्छा, तंद्रा, बदहजमी, कमजोर पाचन-शक्ति, पसीना निकलना आदि लक्षणों के अतिरिक्त अम्लपित्त के इस प्रकार में रोगी हरे, पीले, काले, दुर्गंधयुक्त मल का त्याग करता है। मिचली आना, शरीर में ददोड़े निकलना, रोंगटे खड़े हो जाना तथा अंगों में पीलापन आदि लक्षण भी मिलते हैं। इस अम्लपित्त में वात का अनुबंध होता है । अधोगामी अम्लपित्त बहुत कम देखने में आता है।
2- उर्ध्वगामी अम्लपित्त – अम्लपित्त के इस प्रकार में कफ का रोगी होने से रोगी हरी, पीली, नीली, काली, फीकी या गहरे लाल रंग की अत्यंत खट्टी, अत्यधिक चिपचिपी, कफ मिली, विभिन्न स्वाद वाली यथा कड़वी, खारी, चरपरी उल्टी करता है। आहार की पाचन-क्रिया विकार-ग्रस्त होने के कारण तथा कभी-कभार भोजन नहीं करने पर भी रोगी कड़वी तथा खट्टी उल्टियां करता है। उसे खट्टी एवं कड़वी डकारें आती हैं । वह तेज सिरदर्द से पीड़ित रहता है । हाथ-पैरों में जलन, अत्यधिक गर्मी का अनुभव, भोजन से अरुचि तथा बुखार भी हो जाता है। रोगी के शरीर में खुजली तथा फुसियों आदि के लक्षण पाए जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार अम्लपित्त (Hyper Acidity) के प्रकार –
आयुर्वेद में अम्लपित्त वात एवं कफ के लक्षणों के अनुसार अम्लपित्त (Hyper Acidity) को तीन प्रकार का बताया गया है :-
1- वात की अधिकता वाला अम्लपित्त – वात की अधिकता वाले अम्लपित्त में शरीर में कंपन, चुनचुनाहट, अंगों की शिथिलता, दर्द, आंखों के आगे अंधेरा छाना तथा बिना किसी कारण के रोंगटे खड़े होना आदि लक्षण होते हैं।
2- वात एवं कफ की अधिकता वाला अम्लपित्त – वात एवं कफ की अधिकता वाले अम्लपित्त में वात-कफ के मिले-जुले लक्षण पाए जाते हैं, जैसे कड़वी, खट्टी एवं चरपरी डकारें आना, छाती, पेट तथा गले में जलन, मूर्छा, भ्रम, भोजन के प्रति अरुचि, उल्टी, आलस, मुख से लार गिरना तथा मुख में मिठास अनुभव होना आदि लक्षण होते हैं।
3- कफ की अधिकता वाला अम्लपित्त – इसमें अन्य लक्षणों के साथ साथ बहुत अधिक मात्रा में कफ आती है ।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) के कारण –
सामान्यत: बदहजमी, पहले का भोजन पचे बिना पुनः भोजन करने, आमाशय, ग्रहणी आदि में व्रण या किसी तरह को रुकावट होने के कारण हाइपर एसिडिटी उत्पन्न होती है। वर्षा आदि के मौसम के प्रभाव से शरीर में पहले से ही इकट्ठा हुआ पित्त विकृत भोजन, अत्यधिक गर्म, तीखे, देरी से हजम होने वाले, खट्टे, जलन पैदा करने वाले, जैसे मिर्च-मसालेदार पदार्थ, शराब एवं नशीले पदार्थ तथा पित्त को प्रकुपित करने वाले आहार-विहार का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पित्त विदग्ध (विकृत) होकर उसमें अत्यधिक मात्रा में अम्लता उत्पन्न हो जाती है, जिसे अम्लपित्त कहते हैं।
पाचन शक्ति कमजोर होने के फलस्वरूप आमदोष एकत्र होने पर खट्टी डकारें आना, भोजन नहीं पचना तथा भोजन में अरुचि आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं । ऐसे रोगी के मल के साथ प्राय: आम (आंव) निकलता है। रोगी में आमातिसार का इतिहास भी मिलता है। ऐसे रोगी को आमातिसार की चिकित्सा से लाभ होता है। अम्लपित्त का इलाज अम्लपित्त चिकित्सा करने से ठीक हो जाता है, किंतु पुराना हो जाने पर नियमित विशिष्ट चिकित्सा तथा परहेज सहित हितकर आहार-विहार करने पर कष्ट से ठीक होता है।
ऋतु एवं देश परिवर्तन से यह व्याधि होती है, अतः इस स्थिति को देखते हुए देश-काल के अनुकूल आहार-विहार निश्चित कर चिकित्सा करनी चाहिए। अम्लपित्त में सामान्य विधि से वमन कर्म करना चाहिए ताकि उल्टी हो और विकार बाहर निकलें। इसके लिए गर्म जल में मुलेठी का चूर्ण एवं शहद मिलाकर वमन कर्म किया जा सकता है। शौच द्वारा विकार निकल सकें, इसके लिए पहली बार सामान्य जुलाब देकर कुछ-कुछ अंतराल से हल्का जुलाब लेते रहना चाहिए ।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) का इलाज –
अम्लपित्त के रोगियों को किसी प्रभावी चिकित्स से दवाई लेनी चाहिए । अम्लपित्त का इलाज आयुर्वेद, होम्योपैथ , यूनानी एवं ऐलोपैथ में इलाज मुमकिन है।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) के घरेलू उपचार –
पथ्य गेहूं अथवा जौ की चपाती, मूंग की दाल, तरोई, परवल, लौकी, टिंडा, गिलकी, कद्दू, पपीते की सब्जी, अनार, मौसम्मी, पका पपीता, आंवले का मुरब्बा, मुनक्का, कच्चा आंवला, कच्चा नारियल एवं नारियल के पानी का सेवन तथा हल्का एवं शीघ्र पचने वाला आहार अम्लपित्त के रोगी के लिए हितकारी होता है।
अम्लपित्त (Hyper Acidity) के रोगी के लिए परहेज –
अपध्य, खट्टे पदार्थों का सेवन अम्लपित्त के रोगी को नहीं करना चाहिए। नीबू तथा टमाटर का सेवन भी मना है। गर्म, तीखे, घी-तेल से बने, गेहूं एवं उड़द की पीठी से बने, देरी से पचने वाले पदार्थ, शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करना तत्काल बंद कर देना चाहिए। अम्लपित्त के रोगी को दही एवं छाछ (मठा) का सेवन भी हानिकारक होता है।
अम्लपित्त को संतुलित करने के उपाय –
- नहाने से पहले हर रोज आधा कप गर्म किये हुए तिल के तेल से 10 से 20 मिनट तक शरीर की मालिश करने से फायदा होता है ।
- सप्ताह में कम से कम पांच मिनट तक व्यायाम जरूर करें और जिसमें जॉगिंग, हाइकिंग, बाइकिंग भी जरूर शामिल हो ।
- तीखी, कड़वी या कसैले स्वाद की चीजों को खाएं। लाल मिर्च, अदरक, दालचीनी, काली मिर्च और जीरे का सेवन जरूर करें ।
- साबुत और ताजी पकी हुई सब्जियां ही खाएं ।
- हल्की, सूखी और गर्म चीजें ही खाएं।
- शहद, मूंग दाल, हरी सब्जियों, गर्म सोया मिल्क को अपने आहार में जरूर शामिल करें ।
- सुबह जल्दी उठें और रात को जल्द सोएं।
- कफ दोष को संतुलित करने के लिए त्रिफला, कंचनार गुग्गुल, लवंगादि वटी, व्याघ्रयादि, निशामलकी, अमृत जैसी जड़ी बूटियां एवं आयुर्वेदिक औषधियों का बराबर सेवन करते रहें ।
- आप योग की मदद भी ले सकते हैं। सूर्य नमस्कार, वीरभद्रासन, त्रिकोणासन, अर्ध चंद्रासन,, धनुरासन, शीरासन, पूर्वोत्तानासन और शवासन करने से फायदा होता है ।
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