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गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण

गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण – गर्दन की एक्सरसाईज, त्रिकोणासन –

गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण – गर्दन की एक्सरसाईज, त्रिकोणासन –

ए युग की बिगड़ चुकी जीवनशैली में आज कल हम में से कोई न कोई गर्दन से परेशान रहता होगा, चलिए आज हम जानते हैं, गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण – और गर्दन की एक्सरसाईज, त्रिकोणासन  के बारे में इसके आलावा ये भी जानते हैं कि गर्दन दर्द से परेशान नई जीवनशैली में घंटों एक ही मुद्रा आपकी गर्दन को उठने लायक कैसे बनाए रख सकती है ?

गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण –

किचन की टेबल पर झुककर चपाती बनाने वाली गृहणियां आसानी से गर्दन दर्द (Neck pain) का शिकार हो जाती हैं। पहले महिलाएं ज़मीन पर पालथी लगाकर या ज़रा उकडूं बैठकर आटा गुंथा करती थीं। तब खाना बनाते समय उन्हें अपनी रीढ़ की हड्डी को आज की तरह झुकाना नहीं पड़ता था। इसके अलावा अब हमारे शौचालयों में पश्चिमी शैली वाले कमोड का चलन है। भारतीय शौचालयों में बिल्कुल उकड़ कर पैरो के बल बैठना पड़ता है, इसलिए ऐसी सिथिति में रीढ़ की हड्डी की अच्छी तरह से कसरत हो जाती है। हमें पश्चिमी कमोड का इस्तेमाल सुविधाजनक लगता है, लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि उसका इस्तेमाल कर हम अपनी उपेक्षित रीढ़ की हड्डी के व्यायाम का एक बड़ा अवसर खो रहे हैं।

ऊपर से ज़मीन के बजाय नरम तकियों वाले बिस्तर पर सोने की हमारी आदत भी गर्दन दर्द का मुख्य कारण होती है,  जबकि सख़्त ज़मीन हमें और हमारी रीढ़ की हड्डी को ज़्यादा लचक दार बनाती है। इसी तरह, पहले मक्खन के लिए दूध मथने या कुओं से पानी खींचने जैसे काम भी हमें मज़बूत बनाते थे। आज, जहां एक ओर हमें काम के बोझ से निजात दिलाने के लिए उपकरणों और यंत्रों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, वहीं यह भी समझना चाहिए कि एक कामगार के रूप में हमारी प्रवृत्ति एक जगह बैठे रहने की होती जा रही है। कम से कम शहरों में तो ऐसा ही है।

इससे स्पष्ट होता है कि आखिर उच्च रक्तचाप, मधुमेह और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं महामारी के स्तर तक क्यों जा पहुंची हैं। हालांकि शुक्र है कि सुनियोजित शारीरिक व्यायाम के प्रति इन बीमारियों की प्रतिक्रिया त्वरित और सकारात्मक है। यह रोचक है कि गर्दन-दर्द के इन कारणों में आप तनाव को भी एक मुख्य वजह के रूप में जोड़ सकते हैं। कमर के ऊपरी और निचले हिस्से पर असर डालने वाली साइकोसोमेटिक (मनोदैहिक) पीड़ा पर भी तनाव का प्रभाव होता है। अब यह बात चिकित्सकीय रूप से भी मानी जा चुकी है। कमर का ऊपरी हिस्सा प्राथमिक नियंत्रण केंद्र या प्राइमरी कंट्रोल सेंटर कहलाता है।

तनाव, क्रोध या भय किसी भी रूप में क्यों न हो, यह हिस्सा अपनी संकुचित मांसपेशियों के कारण रक्त का प्रवाह कम हो सकता है, जिससे तीव्र पीड़ा हो सकती है। इसी तरह, कमर के निचले हिस्से में स्थित सोआ मांसपेशियां भी भावनात्मक दबाव की स्थिति में सिकुड़ जाती हैं। घंटों एक ही मुद्रा में रहने के कारण आने वाली गतिहीनता भी कंधे और गर्दन में होने वाले दर्द का शारीरिक कारण है । इसका शिकार गलत मुद्रा में रहकर आटा गूंथने, सब्जियां काटने जैसे काम करने वाली गृहणियां, शेफ़, सर्जन, नर्से और वे सभी लोग होते हैं जिन्हें लगातार कम्प्यूटर पर बैठना पड़ता है। रीढ़ की हड्डी की परतों (वर्टिब्रे) के बीच रक्त प्रवाह में कमी आने पर उसे नुकसान पहुंचता है। ऐसा हड्डियों के बीच के रक्षा-ऊतकों के घिस जाने पर भी होता है, क्योंकि तब उनके बीच की नस में चुभन होती है। नतीजतन असहनीय दर्द हो सकता है।

 

गर्दन के दर्द (Neck pain) के कारण

गर्दन दर्द और योग –

याद रखें कि एक कमजोर गर्दन न केवल धीरे-धीरे कूब निकालकर आपके पोस्चर पर असर डालती है, बल्कि स्वस्थ श्वसन प्रक्रिया को भी आगे जाकर यह ध्वनि-स्थानांतरण को भी प्रभावित कर सकती है, क्योंकि प्राइमरी कंट्रोल सेंटर ध्वनि-स्थानांतरण संबंधी वेगस नर्व के मार्ग में स्थित होता है। गर्दन दर्द को नज़रअंदाज़ करने का मतलब कमज़ोरी देने वाली गति हीनता हो सकती है, लेकिन ऐसी आपदाओं को योग के जरिए नज़रअंदाज़ किया जा सकता है । योग रीढ़ की हड्डी में कसावट लाकर राहत प्रदान करता है। असल में वह हर कशेरुकी (वर्टिब्र) को पीछे की तरफ़ और एक-दूसरे से दूर कर देता है, जिससे रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और प्रत्येक कशेरु की अस्थि के बीच स्थित रक्षा-ऊतक की चोट भर जाती है। योग सुरक्षात्मक और उप चारात्मक दोनों तरह से  काम कर सकता है।

उत्तानासन –

सीधे खड़े हो जाएं। अपने हाथों को छत की तरफ़ उठाते हुए सांस अंदर खींचें। अब सांस बाहर निकालते हए हाथों को धीरे-धीरे नीचे की ओर लाएं। ऐसा करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को इस तरह तानने की कोशिश करें जैसे आपको सामने वाली दीवार को छूना हो।   हाथों को तब तक नीचे लाते रहें, जब तक वे ज़मीन पर न आ जाएं। कमर लचीली नहीं होने पर आप शुरू-शुरू में ऐसा नहीं कर पाएंगे। बस, हाथों को ढीला छोड़ दें। स्वाभाविक रूप से सांस लेते हुए कुछ सैकेंड इसी मुद्रा में रहें। कुछ हफ्ते बीतने के साथ आप धीरे-धीरे इस अवधि को बढ़ाकर आधा या एक मिनट कर सकते हैं। शुरुआती मुद्रा में लौटने के लिए, हाथों को बगल में रखने से पहले ही सांस अंदर खींचते हुए उन्हें फिर से  ऊपर की ओर उठाएं । इस आसन को तीन बार दोहराएं।

उत्तानासन से लाभ –

यह आसन रीढ़ की हड्डी को धीरे ही सही, लेकिन मजबूती से खींचकर गर्दन संबंधी समस्याएं होने से रोकता है। इससे रक्त का प्रवाह चेहरे की ओर हो जाता है, जिससे वह युवा बना रहता है। यह तनाव को सबसे ज़्यादा तीक्ष्णता से अनुभव करने वाले कंधे के ऊपरी हिस्से को आराम पहुंचाता है। यह पूरे श्वसन-तंत्र को चुनौती देकर श्वसन प्रक्रिया को बेहतर बनाता है। इससे पिंडलियों की मांसपेशियों और पैर के पिछले हिस्से को त्रीव  खिंचाव मिलता है। मजबूत पैर रीढ़ की हड़ी से कुछ भार कम करके चलने-फिरने और सही पोस्चर में सहायक होते हैं। इससे मस्तिष्क  तक रक्त प्रवाह की प्रक्रिया बेहतर जाने के कारण यह स्मरण शक्ति और एकाग्रता भी बढ़ाता है ।

गर्दन दर्द सही करने के अन्य उपाय –

अगर आपको अपनी नौकरी या दिनचर्या के कारण एक ही स्थान पर बैठे रहना पड़ता है, तो कुछ योगाभ्यासों को अपना कर गर्दन दर्द की समस्या से बचे रहना बेहतर होगा । याद रखें कि रीढ़ का लचीला पन आपके युवा होने का स्पष्ट संकेत है। गर्दन दर्द से बचने या उसे ठीक करने के लिए शरीर को दिन में कई बार सीधा करें। यहां तक कि पैर के अंगूठों पर खड़े होकर शरीर को ऊपर की ओर खींचना भी (ताड़ासन) दर्द और स्वास्थ्य का अंतर ला सकता है। अगर गर्दन में पहले से ही दर्द है, तो आप उसे जल्दी ठीक करने के लिए उज्जयी, नाड़ी शोधन और भ्रामरी जैसे प्राणायाम कर सकते हैं। शरीर को आंतरिक रूप से स्वस्थ करने में प्राण विद्या और योग निद्रा जैसे ध्यान प्रकारों का सम्मोहन-विद्या जैसा प्रभाव होता है। ताड़ासन, उत्तानासन, पदहस्तासन, सुप्त पवन मुक्तासन, स्कंध चक्र के सभी प्रकार, शशंकासन, प्रणामासन, पश्चिमोत्तानासन, त्रिकोणासन, सुप्त उदराकर्षासन, दलासन, यस्तिकासन आदि गर्दन दर्द से बचाव और उसका उपचार करने वाले कुछ आसन हैं। इसके अलावा, त्रिकाया ताड़ासन, योग मुद्रा, पर्वतासन आदि थोड़े समय बाद किए जा सकने वाले कुछ जटिल आसन हैं ।।

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