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ब्लू जींस

ब्लू जींस – कैंसर का नया इलाज

ब्लू जींस – कैंसर का नया इलाज –

ब  आपको  अपने दोस्त की काली जींस से ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं क्योंकि आपकी ब्लू जींस में है कैंसर का इलाज करने की एक खाश खासियत । चौंकिए मत !यह कमाल किया है आपकी जींस की डाई ने जिसमें छिपा एक ऐसा रसायन जो कैंसर कोशिकाओं को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर कर देता है । अमेरिका के शोध कर्ताओं ने इस रसायन को सीधे कैंसर कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए बाल के 5000 वें हिस्से से भी पतले गोल्ड नैनोपार्टिकल का इस्तेमाल किया है । इस  प्रकार से अब ब्लू जींस – कैंसर का नया इलाज बन चुकी है।

कैसे काम करता है –

ब्लू जींस और बॉल पेन की सामान्य डाई में पाया जाने वाला यह रसायन थाइलोसाइनिन है। जिसमें जिसमें कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की क्षमता पाई गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंजिलिया की टीम ने गोल्ड पार्टिकल्स का इस्तेमाल ट्रोजन होर्सेज के रूप में किया। उनका छोटा आकार उन्हें कोशिकाओं में आसानी से प्रवेश करने देता है और थालकोसाइनिन उनके साथ ही अंदर जाता है। जब लेजर लाइट के द्वारा इन्हें छोटा किया जाता है तो यौगिक ऑक्सीजन का उच्च प्रति क्रियाशील रूप उत्पन्न करता है जो कि कैंसर कोशिकाओं को नष्ट होने के लिए प्रेरित करता है ।

शोधकर्ता डॉ डेविड रसल के अनुसार चूंकि यह यौगिक पानी में नहीं घुलता, इसलिए इसका कोशिकाओं में प्रवेश आसानी से नहीं होता, लेकिन इसकी फैट सोल्यूबल प्रोपर्टी इसे महत्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति बनाती है। नैनो टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए थाइलोसाइनिन को कैंसर कोशिकाओं में प्रवेश करवाया जा सकता है । जहां यह जम जाता है और सक्रिय होने पर कोशिका की मृत्यु का कारण बनता है । स्वस्थ कोशिकाएं ड्रग कोटेड नैनो पार्टिकल्स को स्वीकार तो कर लेती हैं, लेकिन कैंसर कोशिकाओं के उलट ये इन्हें शरीर से बाहर निकाल देती हैं, जबकि कैंसर कोशिकाएं लालची प्रवृत्ति की होती हैं । वे वृद्धि के लिए पोषक तत्वों के अलावा भी हर चीज को अपने अंदर ले लेती हैं ।

किसी वजह से थाइलोसाइनिन त्वचा के भीतर प्रवेश नहीं करता, जो कि शरीर को ट्यूमर के इलाज के लिए अनुकूल बनाता है । इस यौगिक की क्षमता बढ़ाने के लिए इसे लाल रोशनी के द्वारा सक्रिय किया जाता है और यह वर्तमान फोटो डायनेमिक थैरेपी से कहीं अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करता है ।

इसके अतिरिक्त चूंकि यह त्वचा के अंदर नहीं जाता इसलिए मरीज को सूरज की रोशनी से बचने की भी जरूरत नहीं होती जबकि दूसरे मामलों में सूर्य की रोशनी और दवाइयों के कारण हानि कारक प्रभाव उत्पन्न होते हैं ।

परंपरागत कैंसर कीमो थैरेपी की अपेक्षा फोटो डायनेमिक थैरेपी में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि दवाई को सक्रिय करने के लिए उसे शरीर पर निर्भर नहीं रहना पड़ता । अच्छी खबर यह है कि अगर यह प्रक्रिया योजना के अनुसार चलती रही तो थाइलोसाइनिन नैनोपार्टिकल अगले  पांच सालों में मनुष्य के लिए उपलब्ध होंगे, जिन्हें सीधे रक्त वाहिनियों में ४ इंजेक्शन के द्वारा या सीधे ट्यूमर में प्रवेश कराया जा सकेगा ।।

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