भोजन में रुचि नहीं होना या खाना खाने का मन नहीं होना ही अरुचि है। इसे अरोचक भी कहा गया है। अरुचि मुख्य रूप से रसज रोग है। अतः रस धातु में किसी भी तरह को विकृति या रसवह स्रोतस में किसी भी तरह की रुकावट होने से अरोचक रोग उत्पन्न होता है। भूख लगी होने पर भी व्यक्ति भोजन करने में असमर्थ हो, तो वह अरुचि कहलाती है। अरुचि या अरोचक रोग सामान्यत: विभिन्न रोगों के लक्षण रूप में प्रकट होने वाला रोग है। वैसे स्वतंत्र रूप से भी यह रोग होता है, आगे हम जानते हैं कि भूख न लगने के कारण और उपाय और भूख बढाने के आयुर्वेदिक उपचार कौन कौन से हैं :-
भोझन में अरुचि के प्रमुख कारण
वात आदि दोष भेद से अरोचक के पांच प्रकार होते हैं
1. वातज
2. पित्तज
3. कफज
4. सत्रिपातज
5. आगंतुज ।
अरोचक रस का निर्माण आहार से होता है। आहार का ग्रहण, पाचन एवं रस-का विभाजन महास्रोतस (मुख से लेकर मलद्वार तक का पाचन संस्थान) में होता है। अतः मुख से लेकर मलद्वार तक माने गए महास्रोतस की या कोष्ठांगों की किसी भी विकृति में अरोचक रोग उत्पन्न हो सकता है, लेकिन इस रोग में केवल भोजन ग्रहण करने में असमर्थता या अरुचि होती है। अतः जीभ, मुख, गला, लार ग्रंथियां एवं अन्न-नलिका को प्रभावित करने वाले कोई भी कारण या कारण स्वरूप के रोग अरुचि के कारण माने जाते हैं। दूसरे शब्दों में मुख एवं आमाशय तक होने वाली कोई भी विकृति या विक्रयात्मक प्रभाव अरुचि के कारण होते हैं। ये कारण दो प्रकार से अपना प्रभाव प्रकट करते हैं :-
1. प्रत्यक्ष प्रभाव – जैसे वात, पित्त, कफ, सन्निपात (त्रिदोषज) एवं आगंतुज कारण अपनेअपने कारणों से प्रकुपित होकर मुख से लेकर आमाशय तक के स्थान को अपना प्रभाव स्थल बनाते हैं, तब अरुचि उत्पन्न होती है। यह कारणों का प्रत्यक्ष रूप है । भूख न लगने के कारण और उपाय
2. परंपरया प्रभाव – वात, पित्त और कफ की विकृतियों का अधिष्ठान अन्यत्र होते हुए भी यदि पाचन संस्थान किसी भी रूप में प्रभावित होता है, तब अरुचि उत्पन्न होती है। यह कारणों की परंपरया प्रक्रिया है। अतः वात, पित्त और कफ का प्रकोप होकर पाचन संस्थान के विकार ग्रस्त होने से अरोचक रोग उत्पन्न होता है। शोक, दीनता, भय, चिंता एवं हर्ष आदि के संयोग से तत्काल अरुचि उत्पन्न होती है। इन्हें आगंतुक कारण माना जाता है ।
अरोचक के लक्षण
1. वातज अरोचक – दंतहर्ष एवं मुख में कसैलापन ।
2. पित्तज अरोचक – मुख में मधुरता एवं चिपचिपाहट का अनुभव होना, मलावरोध होना ।
3. कफज अरोचक- शरीर में भारीपन एवं ठंड लगना।
4. सन्निपातज (त्रिदोषज) अरोचक- इसमें तीनों दोषों के मिले-जुले लक्षण होते हैं। भूख न लगने के कारण और उपाय
5. आगंतुक अरोचक – शोक, भय आदि आगंतुक कारणों से होने वाले अरोचक में मुख का स्वाद तो ठीक रहता है, किंतु भोजन में अरुचि रहती है। उपरोक्त सभी पांचों प्रकार के अरोचक में मुख्य लक्षण भोजन में अरुचि (भोजन ग्रहण करने में असमर्थ) होना है।
चिकित्सा
मुख्य अरोचक में पाचन संस्थान को प्रभावित करने वाला बुखार, कमजोर पाचन शक्ति तथा मुख आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाली चिकित्सा तथा आगंतुक अरोचक में शोक, भय आदि के निवारण के साथ-साथ मन को प्रसन्न करने वाली चिकित्सा (उपक्रम) करनी चाहिए। मुख आदि को प्रत्यक्षतः प्रभावित करने वाले उपक्रम ये हैं कवलग्रह, दांतों की सफाई करना, कुल्ला करना, मुख पर पानी के छींटे मारना, जीभ की सफाई करना, नस्य, मन के अनुसार आहार करना तथा मन को प्रसन्न करने के उपाय करना आदि।
- कवलग्रह अदरख, नीबू एवं नमक की चटनी को मुख में रखने से भोजन में रुचि उत्पन्न होती है।
- समस्त प्रकार के अरोचक (खाना खाने का मन नहीं होने ) की लाभकारी चिकित्सा।
- लवण चूर्ण तीन-तीन चम्मच दिन तथा रात्रि के भोजन के बाद कुनकुने पानी से सेवन करें।
- आराम चूर्ण 2 चम्मच नित्य रात्रि में सोते समय कुनकुने पानी से सेवन करें।
- हल्का, शीघ्र पचने वाला, रुचि के अनुसार शाकाहारी भोजन का सेवन लाभकारी है।
- भारी देर से पचने वाले, पीठी के पदार्थ, तले हुए चिपचिपे तथा दही आदि का सेवन हानि कारक होता है इसलिए इनसे बचें ।
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