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लघु कथाएं

लघु कथाएं – Short stories

लघु कथाएं – Short Stories :-

                                                                          आज हम आपको 4 ऐसी लघु कथाएं – Short stories सुनाते है जिन्हे सुनकर आप अपनी हंसी रोक नहीं पाओगे, चलो देखते है वो कहानियां कौन सी हैं :-

सराहना

                      एक नट था। उसकी कलाबाजियां देख लोग दांतों तले उंगुलियां दबा लेते थे। वह दो रस्सियों और एक डण्डे की मदद से दो बीस मंजिला इमारतों के बीच की दूरी आसानी से तय कर लेता था। एक ओर की दूरी तय कर लेने के बाद वह अपने सहायक को कंधे पर बैठाकर दूसरे छोर तक आता था। एक दिन जब उसके करतब पर लोग तालियां बजा रहे थे तो उसने पूछा कि क्या उन्हें विश्वास है कि वह ऐसा दुबारा कर पाएगा। सभी ने पूरे जोश के साथ हामी भरी। एक पल के लिए ठहर कर उसने भीड़ से दूसरा सवाल किया। उसने कहा कि वे लोग आगे आएं जो उसके करतब में सहायक बनने को तैयार हो 1 अचानक चारों ओर खामोशी छा गई। भीड़ में से एक भी व्यक्ति आगे नहीं बढ़ा।

सबक :- प्रतिभा की सराहना और व्यक्ति की क्षमता पर विश्वास करना, दो अलग बातें हैं।

 

निःस्वार्थ त्याग

                               दस आदमी और एक औरत हेलीकॉप्टर से लटक रहे थे। रस्सी कमजोर होने के कारण एक साथ इतने लोगों को लेकर चलना संभव नहीं था। कम से कम एक आदमी को रस्सी छोडना ही था नहीं तो उससे बाकी के आदमियों की जान को खतरा था। इस काम के लिए कौन अपनी जान जोखिम में डालेगा इस बात पर गहन विचार मंथन चल रहा था। तभी उस महिला ने अचानक भावुक होकर कहा कि वह स्वेच्छा से रस्सी को छोड़ने के लिए तैयार है, क्योंकि त्याग करना स्त्री का स्वभाव रहा है। वह रोज ही अपने घर, अपने बच्चों और पति के लिए नि:स्वार्थ भाव से त्याग करती रहती है। जैसे ही महिला ने अपनी बात समाप्त की, सभी पुरुष एक साथ ताली बजाने लगे। वैवाहिक जीवन मसाले की भांति है। लोग आंखों में आंसू भरकर उसकी प्रशंसा करते हैं।

अक्लमंदी

                                           क कंजूस सेठ अपना परलोक सुधारने के लिए पैदल ही तीर्थयात्रा पर निकला। मोह-माया कदम-कदम पर उसके साथ लगी हुई थी। पीछे घरवाले क्या फिजूलखर्ची और लापरवाही कर रहे होंगे। सेठजी को यही चिंता खाए जा रही थी। तभी उन्हें शंका हुई “शायद घर छोड़ने से पहले मैं बरामदे की बत्ती बुझाना भूल गया। अगर किसी ने उसे बंद नहीं किया तो। तब तो महीने भर की तीर्थयात्रा के बाद बिजली का भारी बिल मुझे ही भरना होगा” सेठजी ने तब तक चार-पांच किलोमीटर की दूरी तय कर ली होगी। उन्होंने फैसला लेने में देर नहीं की  ‘पहले घर लौटूं और बरामदे की बत्ती बंद करूं। तीर्थयात्रा तो फिर से शुरू हो सकती है।’ सेठजी पलट कर घर पहुंचे तो बेटे ने पूछा ‘पिताजी यों लौट कैसे आए?’ सेठ जी बोले  ‘वह बरामदे की बत्ती जो जलती छोड़ गया था न…।’ बेटा बोला ‘पर वह तो मैंने आपके निकलते ही बंद कर दी थी। बेकार में चप्पल घिसी आपने।’ सेठ जी  ने कहां घिसी चप्पलें ? “मूर्ख समझा है तुमने मुझे, देख चप्पल बगल में दबाकर लौटा हूँ ! “

 

कमाल की दीवार

                          एक ग्रामीण पिता पुत्र अपने नजदीकी शहर में शॉपिंग मॉल देखने गए। वहां की हर चीज देखकर वे आश्चर्यचकित थे, लेकिन एक जगह एक खुलने और बंद होने वाली दीवार (लिफ्ट) देखकर वे विशेष रूप से प्रभावित हुए। उन्होंने ऐसी लिफ्ट पहले कभी नहीं देखी थी। जिस समय वह पिता-पुत्र आंखें फाड़कर उस दीवार की ओर देख रहे थे उसी समय एक बूढ़ी औरत उस दीवार के अंदर चली गई और दीवार फिर बंद हो गई। थोड़ी देर बाद दीवार अपने आप खुली और एक 25 साल की खूबसूरत लड़की बाहर निकली। पिता यह सब देखकर लगभग चिल्लाते हुए पुत्र से बोला- बेटा जल्दी घर जा और अपनी मां को लेकर आ।

 

चमत्कारी कुआं

                      एक कुएं के बारे में मान्यता थी कि उसमें सिक्का डालकर मांगने पर मनो कामना पूरी हो जाती है। मनो कामना पूरी करने के इरादे से एक पति पत्नी भी वहां पर गए। पति ने कुएं की जगह पर बैठकर कुएं में झांका, मनो कामना की और कुएं में सिक्का डालकर पीछे हट गया। अब पत्नी की बारी थी। वह कुएं में झांकने की कोशिश में कुछ ज्यादा ही झुक गई और कुएं में जा गिरी। यह देख पति एक मिनट के लिए तो स्तब्ध रह गया और फिर बुदबुदाया-बाप रे! इतनी जल्दी! यह तो चमत्कारी कुआं है।

 

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