कल की चिंता छोड़ो और वर्तमान में जियो। यह कहना आसान है। कल की चिंता तो होती ही है। वृद्धावस्था की चिंता किसे नहीं होती? बीमारी से मुक्त होने की चिंता लगभग सभी को होती है। आर्थिक बचत की चिंता सारी दुनिया में है तो फिर कैसे छूटे चिंता? कैसे जिएं वर्तमान में? आगे जानते हैं कि भविष्य की चिंता क्यों?- वर्तमान में जीने का सही तरीका क्या है –
व्यर्थ कि चिंता न करें –
सच पूछो तो वर्तमान में जीने का अर्थ हमने समझा ही नहीं। इसे समझना जरूरी है। सुख अथवा दुख में सामान्य चिंतन अलग चीज है। दुख के निवारण और सुख के संरक्षण में दुखमय चिंतन ही चिंता बन जाता है। भावी स्थिति के विचारों का चिंतन ही चिंता का रूप ले लेता है। भावी स्थिति और भयमुक्त चिंतन जब मनोविकारों को बड़ा कर चिंता का चोला ओढ़ने लगता है तब विचारों की क्षति होती है। जीवन असहज बनने लगता है। दरअसल, मानसिक-विकलता से मुक्ति ही प्रमुख है। वर्तमान में जीने का नुस्खा भी यही है। होता यह है कि जब हम किसी परिस्थिति से घिरे होते हैं, हम उसके माकूल और सूझबूझ युक्त निराकरण से विमुख होते हैं। जरूरी है कि सही चिंतन से परिस्थिति का हल-जन्य विचार करें। परिस्थिति से मुक्त होने का रास्ता खोजें। परिस्थिति के भावी परिणाम से चिंतित होने लगेंगे तो परिस्थिति अधिक उलझेगी। भविष्य की चिंता वर्तमान की नींद बिगाड़ेगी। इससे वर्तमान तो बिगड़ेगा ही, भावी भी नहीं सुधरेगा।
भविष्य की चिंता छोड़ें
इन दिनों व्याप्त बीमारियों का विश्लेषण बताता है कि वे शारीरिक कम, मानसिक अधिक हैं। लोग भूत और भविष्य के चिंता रोग से ग्रस्त हैं। यह इसलिए है कि वे भूत-भविष्य की चिंता भूलने की कला नहीं जानते। क्या यह सच नहीं है कि हम आंखों के आगे होने वाले संत्रास, हादसों और पीड़ा के भूत से चिंतित हैं? जो भावी हमारे सामने है ही नहीं उसकी मानसिक चिंता क्यों पालें? हम नाहक भावी सोच का भूत खुद खड़ा करते हैं, जो हकीकत में है ही नहीं। यह भूत तो हमारा ही बनाया हुआ है। जीवन का आनंद इसी में है कि वर्तमान में जैसा भी जो मिला है, उसे स्वीकार करें। उससे दोस्ती करें, अपना बनाएं। उसमें अपने को आत्मसात करें। भविष्य की चिंता क्यों?
पोजटिव रूख रखें
मीरा का उदाहरण हमारे सामने है। परिस्थिति ने मीरा को विष का प्याला दिया-उसने उसे हंस कर पिया, वह अमृत हो गया। वर्तमान में विषय में भी अमृत ढूंढ़ना ही सच्चा जीना है। वर्तमान जीने की यह कला ही हताशा से मुक्ति देगी। हर सुबह नई जिंदगी का आह्वान । वस्तुस्थिति से पलायन करने से कुछ हासिल नहीं होता। जो है, उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर अपने अनुरूप बनाने की कोशिश ही हिम्मत की जन्मदात्री है। भावी में है चिंता में पड़कर नाहक अधमरा जीने की बजाय वर्तमान के दुख से जूझना अधिक के श्रेयस्कर है। गमों को हंस के पिएं। खुशी को हंस के जिएं।
नाकरात्मक सोच से दूर रहें
यह निर्विवाद सत्य है कि जो हमारे मन को अच्छा लगता है, उसे ही हम अच्छा, सुंदर और शुभ कहते हैं। उसे ही हम अच्छा, सुंदर और शुभ मानते भी हैं, और उसी के अनुसार हम अपना व्यवहार भी करते हैं। जो बात हमारे मन को अच्छी नहीं लगती वही हमारे लिए असुंदर, बुरी और अशुभ लगने लगती है और उसी के साथ हमारा व्यवहार भी नकारात्मक होता चला जाता है। दरअसल, कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं होती। वह, वही होती है जो वह है। यह तो हमारे अपने दृष्टिकोण, हमारी अपनी मान्यता पर निर्भर करता है कि हम उस वस्तु को क्या मानते हैं। सच तो यह है कि हम हमारी प्रसन्नता और अप्रसन्नता को ही बाहर की दुनिया में तलाश कर दुनिया को वैसा ही देखते, मानते और बनाते हैं, जबकि दुनिया ऐसी है नहीं।
समय के अमुसार बदलाव के लिए तैयार रहें
प्रकृति वस्तुओं के रंग-रूप, आकार-प्रकार और गुण-धर्म इतना नहीं बदलती जितना उन्हें हम अपने विचार, अपनी मान्यता और अपने दृष्टिकोण से बदलते हैं। सब चीजें वही हैं। उनमें बदलाव नहीं होता। बदलाव उनमें नहीं होता, बदलाव हममें होता है। हमारे अपने मन के बदलाव से दुनिया की चीजें बदली-बदली दिखती हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि एक समय अमुक व्यक्ति – हमारा प्यारा मित्र होता है, कुछ समय बाद वह हमें विरोधी और शत्रु लगने लगता है और फिर समय के एक अंतराल के बाद स्थितियों और दृष्टिकोण के बदलाव से, मन का परिष्कार होने पर, हमारे विचारों में बदलाव आने पर, वही व्यक्ति फिर हमें अपना मित्र और प्यारा लगने लगता है। सच तो यह है कि आपका मन जिसे चाहता है वह आपका मित्र है। आपका मन जिसे नहीं चाहता वह आपका नहीं है। जहां आपकी निकटता हुई, अपनत्व का घेरा अपने-आप बढ़ने लगता है। जहां अपनत्व का घेरा टूटा और द्वेष का भाव बढ़ा कि अलगाव की दूरियां बढ़ने लगती हैं। एक नया आरोपण अपने-आप बनाने लगते हैं हम। भविष्य की चिंता क्यों?
हमारे विचारों का यह आरोपण अथवा स्वीकार ही किसी वस्तु, विषय, परिस्थिति अथवा व्यक्ति को अच्छा या बुरा बना देता है। किसी के प्रति हमारा विचार अच्छा है, तो वह अच्छा है, विचार बुरा है तो वह बुरा है। अपनी निगाह अच्छी बने तो कोई बुरा नहीं है। अपनी निगाह बुरी ही बनी रहे, वह कभी अच्छी बने ही नहीं, यह कोई न्यायसंगत स्थिति नहीं कही जा सकती।।
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