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जिंदगी जीने के लिए ...
Money management

Money management – मनी मैनेजमेंट कैसे करें ?

ज की महंगाई के दौर में गुजारा कैसे कर सकेंगे ? वर्षों तक निरंतर हो रही कमाई का प्रवाह एकदम कम होने या बंद हो जाने पर आप अपना शेष जीवन आत्मनिर्भर रहते हुए सम्मानपूर्वक कैसे बिता सकेंगे ? Money management – मंदी में मनी मैनेजमेंट कैसे करें ? इन सारे विषयों का विचार अभी समाज में काफी हद तक प्रचलित नहीं हुआ है। इसका कारण यह है कि अब तक अपने समाज में ऐसी परम्परा रही है जिसमें संयुक्त परिवार में पिता सेवानिवृत्त होने तक अपनी संतानों का अच्छी तरह पोलन-पोषण करके उन्हें जीविको पार्जन के लिए सक्षम बना देता था और तदुपरांत वे अपने पुत्र धर्म का पालन करते हुए अपने अभिभावकों की सेवा सुश्रुषा करते थे।

परंतु अब समय बदल गया है। परिवार एवं समाज की परिकल्पना एवं परिभाषा बदल रही है। संयुक्त परिवार विभाजित हो रहे हैं। संतानों में विवाह के उपरांत अपने अभिभावकों से अलग रहने की प्रथा जोर पकड़ती जा रही है। भारत में पश्चिमी सभ्यता का तीव्र गति से प्रसार हो रहा है। सेवानिवृत्त होने के बाद संतानें उनका ध्यान रखेंगी, अब ऐसी धारणा पर प्रश्नचिह्न लग गया है। इस सत्य को जिन लोगों ने समझ लिया है, उन्होंने न केवल अपने सेवानिवृत्त जीवन के लिए, बल्कि अपने विद्यमान जीवन के लिए भी आर्थिक आयोजन करना शुरू कर दिया है।

मनी मैनेजमेंट की आवश्यकता Money management

एक सत्य स्पष्ट है कि आज के समय में व्यक्ति की औसतआयु बढ़ी है। वैज्ञानिक एवं मेडिकल साइंस के विकास के चलते आज व्यक्ति सामान्यतः 75 से 80 वर्ष तक जीवित रहता है, जबकि वह 58 से 60 वर्ष के बीच सेवानिवृत्त हो जाता है। यदि व्यक्ति व्यापारी हो तो बात अलग है, परंतु शरीर को तो निवृत्त और आराम की आवश्यकता शुरू हो ही जाती है। इस प्रकार एक व्यक्ति को अनुमानित रूप से सेवानिवृत्त होने के बाद 15 से 20 वर्ष तक का जीवन गुजारना होता है, जिसमें आय अनियमित, कम और कभी-कभी शून्य होने की स्थिति में जीवन का यह समय गुजारना काफी कष्टप्रद हो जाता है और इसमें भी उन लोगों के लिए ज्यादा कठिनाई हो जाती है जिन्होंने अपना जीवन स्वरोजगार के बल पर गुजारा है और अब पेंशन का कोई सहारा नहीं है।

तो ऐसी स्थिति में क्या किया जाए ? ऐसा विचार 20-25 वर्ष की आयु से ही कर लेना चाहिए या जिस समय वह कमा रहा हो उसी दौरान उसे अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग Financial planning कर लेनी चाहिए। आज समाज का उच्च वर्ग या समर्थ लोग तो सेवानिवृत्त होने की आयु तक काम ही नहीं करना चाहते तथा अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग के बल पर वे स्वैच्छिक रूप से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। हालांकि अभी ऐसा करने वाले लोगों का वर्ग काफी छोटा है, परंतु आने वाले समय में यह प्रथा जोर पकड़ेगी। आज  हम आपको यहां फाइनेंशियल प्लानिंग की पांच आधारभूत व्यावहारिक बातें बताते हैं  :–

1- सिर्फ कमाना ही नहीं, उसका संचालन भी महत्वपूर्ण है –

‘हाउ टू मेक मनी’ के बाद अब ‘हाउ टू मैनेज मनी’ ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप जो कमाई करते हैं उसमें से कितनी बचत करना संभव है तथा उस बचत को कहां किन साधनों में किस आयोजन के लिए रखा जाए, इसका विचार करना काफी महत्वपूर्ण हो गया है। कई बार आपने देखा होगा कि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में भरपूर पैसा कमाता है, उसकी आय बंद होने या फिर आय घट जाने पर वह व्यक्ति कुछ समय के बाद आर्थिक संकट के दौर से गुजरता दिखाई देता है। ऐसा इसलिए होता है कि उसने समय रहते अपने लिए किसी प्रकार का कोई आर्थिक आयोजन नहीं किया। इसका अभिप्राय यह हुआ कि ठीक तरीके से कमाने के साथ-साथ उस कमाई का उचित तरीके से संचय करना महत्वपूर्ण कार्य है ताकि उस संचित राशि से नियमित आय होती रहे।                                                        (Money management)

2- भिन्न-भिन्न साधनों में निवेश करें

भिन्न-भिन्न साधनों में निवेश करने की पद्धति को इन्वेस्टमेंट जगत में असेट एलोकेशन कहा जाता है। आप बचत तो करते हैं परंतु इस बचत की रकम का निवेश किस असेट में-किस साधन में कितना और किस प्रकार से व्यवस्थित आयोजन करें, इसकी जानकारी देना जरूरी है। प्रायः लोग एक-दो असेट में ही अधिक निवेश करते है। या तो अनेक निवेशक बाज़ार में निवेश करके जोखिम ले लेते हैं या फिर कुछ संकुचित वर्ग के लोग बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट या पीपीएफ, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट जैसी राष्ट्रीय लघु बचत की योजनाओं तक ही सीमित रहते हैं, जबकि कुछ लोग सोने में निवेश करना श्रेष्ठ मानते हैं। निवेशकों में एक बहुत बड़ा समूह ऐसा भी है, जो मात्र स्वयं के व्यापार में ही अधिक से अधिक निवेश करते हैं। उनका अन्य साधनों में निवेश करने के प्रति विश्वास ही नहीं होता के व्यापार में मात्र 7-8 प्रतिशत प्रतिफल मिलता हो तो भी ये लोग आंशिक रकम का अन्य साधनों में निवेश करना टालते हैं।

हमारी राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वयं की जोखिम उठाने की क्षमता, आयु, उत्तरदायित्व एवं लक्ष्य के आधार पर इन्हें ध्यान में रखते हुए विभिन्न निवेश साधनों में निवेश करना चाहिए, जैसे कि शेयर प्रतिभूतियां, सोना, म्यूचुअल फंड, रियल एस्टेट, राष्ट्रीय लघु बचत योजनाएं, बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट या आरबीआई के बांड्स इत्यादि। जीवन के विविध उद्देश्यों को पूरा करने के लक्ष्य के साथ प्रत्येक निवेश का निर्णय लिया जाना चाहिए न कि इसलिए कि बस निवेश करना है तो किया। इन निवेश से कितना प्रतिफल मिलेगा, इसमें कितनी सुरक्षा है, प्रवाहिता कैसी रहेगी इत्यादि बातों को स्पष्ट रूप से समझ कर ही निवेश करना चाहिए। हां, इनके साथ निवेश करने से पूर्व निवेशकों को मेडिक्लेम पॉलिसी और जीवन बीमा पॉलिसी की उचित व्यवस्था भी कर लेनी चाहिए।                                         (Money management)

3- कमाएं- बचाएं एवं खरच करें

ऊपर की बातों के क्रम हर व्यक्ति के अलग-अलग हो सकते हैं। कई लोग कमाने से पहले क्रेडिट कार्ड, लोन इत्यादि माध्यमों से खर्च करना शुरू कर देते हैं। नई पीढ़ी में यह प्रथा तेजी से फैल रही है। ऐसे लोगों को अमेरिका की अभी की स्थिति से सबक ले लेना चाहिए। तमाम लोग अपनी कमाई को खर्च करने का सिद्धांत मानते हैं। उनमें यह धारणा होती है कि खर्च करने के बाद जो बचेगा उसे निवेश किया जाएगा। यह वर्ग भी आगे जाकर आर्थिक संकट में पड़ सकता है। आदर्श आर्थिक व्यवस्थापन का क्रम यह है कि पहले व्यक्ति भरपूर कमाएं। उसमें से निश्चित बचत करें और फिर जो कुछ बचे उसे खर्च करें। खर्च की सूची में भी सबसे पहले आवश्यक-आवश्यकताओं, फिर सुविधा और बाद में उत्सव मनाने के क्रम को मानना चाहिए।

4 – जिंदगी के प्रति व्यावहारिक बनें

 ‘मरने पर कुछ साथ नहीं जाएगा, सिकंदर को भी खाली हाथ ही जाना पड़ा’ जैसी दर्शन भरी बातें बोलने, सुनने और पढ़ने में अच्छी लग सकती हैं, परंतु जिंदगी जीने के लिए व्यावहारिक बनना आवश्यक है, इसलिए भले ही हमें कल की खबर न हो परंतु फिर भी उसके लिए समुचित आयोजन करना ही चाहिए। प्रत्येक छोटे-बड़े व्यक्ति की ज़िंदगी में इच्छा हो या न हो उन्हें चार उत्तरदायित्वों को स्वीकार करना ही पड़ता है।  1. स्वयं का घर-परिवार, 2. संतानों की शिक्षा, 3. संतानों का विवाह, 4. स्वयं की सेवानिवृत्ति।             (Money management)

जीवन के इन चार प्रसंगों के लिए येन-केन प्रकारेण आयोजन करना ही पड़ता है। फिर इन सबको अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर सिस्टेमेटिक प्लानिंग क्यों न की जाए? चना तकनीकी और निरंतर दौड़ते युग में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वयं की ज़िंदगी अत्यधिक सुविधापूर्ण बनाने एवं संपत्ति सृजन करने का आयोजन करना आवश्यक बन गया है। इस विषय की जितनी उपेक्षा की जाएगी उतनी ही मुश्किलें बढ़ेगी। आज के युग में जिंदगी जीने के लिए भी प्रोफेशनल तरीके से आयोजन करना नितांत आवश्यक हो गया है।

समय के साथ चलने के लिए समय से आगे चलना सीखना चाहिए। गरीबी और बेकारी को कर्म का फल मानने वाला समाज लुप्त होता जाता है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक शीर्ष की प्राथमिकता बन गई है और यदि न बनी हो तो इसे बनाना चाहिए। जीवन भले ही वर्तमान में माना जाए परंतु भविष्य का आयोजन भी इतना ही जरूरी है। नॉलेज का युग है, ज्ञान के आधार पर अधिक कमाई करने के लिए ऊंच-नीच, उम्र, जाति, धर्म जैसे भेद अब रुकावट नहीं बनते। संक्षेप में जीवन इस तरह जीना चाहिए कि कल ही मौत आ सकती है, परंतु आयोजन इस प्रकार करना चाहिए कि हमें 100 वर्ष जीना है।            (Money management)

5- समझ में नहीं आता कि समय नहीं, तो क्या करें ?

अब मान लिया और समझ लिया कि जीवन में आर्थिक आयोजन जरूरी है, परंतु यह सब किस प्रकार करें यह हमारी समझ में नहीं आता और यह हमारा विषय भी नहीं। मैं तो अपने व्यापार, व्यवसाय या नौकरी में ही काफी व्यस्त रहता हूं। इस प्रकार की फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए मैं समय कहां से निकालूं? ऐसा विचार करने वालों के लिए स्पष्ट उत्तर है। आप बीमार होते हैं तब डॉक्टर के पास जाते हैं, फैमिली डॉक्टर से इलाज न हो तो किसी कुशल डॉक्टर से संपर्क करते हैं। कानूनी विवाद में वकील से संपर्क करते हैं। आयकर जैसे मामलों में चार्टर्ड एकाउंटेंट की सलाह लेते हैं तो फिर आर्थिक आयोजन के लिए फाइनेंशियल प्लानर की सलाह क्यों नहीं ?                                     (Money management)

आपको समझ में आए या न आए आप अपने मित्र, पड़ोसी, सगे-संबंधियों व साथी कर्मचारियों के कहने से निवेश कर बैठते हैं। इसके उपरांत भी आप सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर की सेवाएं तो ले ही सकते हैं। हमारे देश में अब यह प्रथा विकसित हो रही है। हम तो यहां तक कहते हैं कि मात्र फाइनेंशियल प्लानर पर निर्भर होना ही पर्याप्त नहीं है। आपको स्वयं भी आयोजन समझने की कोशिश करनी चाहिए। इनमें तमाम विषयों पर केवल आपकी सामान्य विवेक बुद्धि ही काफी है। अलबत्ता, आपको किसी प्रकार के लालच या आकर्षण में आने जैसे क्षणों के प्रति सजग रहना चाहिए। संक्षेप में रकम डबल हो जाने, असाधारण रूप से भरपूर प्रतिफल मिलने, विविध इनामों, दावों और प्रलोभनों से सचेत रहना चाहिए। घर में या फिर जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक ठिकाने लगा देने के साथ व्यक्ति को खुद को योग्य रीति से व्यवस्थित होने की आवश्यकता है और यह उत्तरदायित्व मनुष्य का खुद का अपना है ।।

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