सुनीता विलियम अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के माध्यम से अंतरिक्ष जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं प्रथम महिला कल्पना चावला थी ।सुनीता भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर से ताल्लुक रखती हैं । इन्होंने एक महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में १९५ दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का विश्व रिकार्ड बनाया था। आज हम इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि सुनीता विलियम्स कौन थी ?– Sunita Williams information in Hindi.
सुनीता विलियम का जन्म
सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर 1965 ईस्वी को अमेरिका देश के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में हुआ था। इनका पूरा नाम कमांडर सुनीता लिन पांड्या विलियम्स है। इनके पिता का नाम दीपक पंड्या पेशे से एक डाक्टर हैं । सुनीता कि माता का नाम बोनी जलोकर पंड्या है जो एक स्कूल टीचर थी। इनके भाई का नाम जे पंड्या और बहन का नाम डीना पंड्या है। भाई बहनों में सुनीता सबसे छोटी थी । सुनीता पंड्या के पति का नाम माइकल जे. विलियम्स है जो छत्र जीवन में सुनीता पंड्या के सहपाठी रह चुके थे । जब सुनीता की आयु एक वर्ष से भी कम की थी तभी उनके पिता सन्न 1958 में अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बस गए थे। सुनीता के पिता डॉ0 दीपक एन0 पांड्या एक जाने-माने तंत्रिका विज्ञानी (एम.डी) डाक्टर हैं। सुनीता के परिवार का संबंध भारत के गुजरात राज्य से हैं। उनकी माँ बॉनी जालोकर मूल रूप से पांड्या स्लोवेनिया की हैं। सुनीता को बचपन में सब प्यार से सुनी कहते थे ।
सुनीता विलियम का प्रारम्भिक जीवन और पढ़ाई लिखाई
सुनीता पंड्या ने मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल पास किया और उसके बाद सुनीता ने 1987 में संयुक्त राष्ट्र की नौ सैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स में बीएस (स्नातक उपाधि) की परीक्षा पास की। उसके बाद 1995 में सुनीता ने फ़्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में एम.एस. की डिग्री प्राप्त की।
सुनीता विलियम्स का करियर
सुनीता विलयम्स का जून 1998 में अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा में चयन हुआ और प्रशिक्षण शुरू हुआ था । सुनीता विलियम्स भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं जो अमरीका के अंतरिक्ष मिशन पर गईं। सुनीता विलियम्स ने सितंबर / अक्टूबर 2007 में भारत का दौरा भी किया था । जून, 1998 से नासा से जुड़ी सुनीता विल्यिम्स ने अभी तक कुल 30 अलग-अलग अंतरिक्ष यानों में 2770 उड़ानें भरी हैं। 5 फरवरी, 2007 के दिन अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में एक बार में 195 दिनों तक रहने का वर्ड रिकॉर्ड बनाया था। उन्होंने इससे पूर्व शैनौन ल्यूसिड के बनाए 188 दिन और 4 घंटे के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। वे विभिन्न अभियानों में कुल 321 दिन 17 घंटे और 15 मिनट अंतरिक्ष में रहीं। सुनीता ऐसी पहली अंतरिक्ष यात्री हैं, जिसने 50 घंटे तक स्पेस में वॉक करने का वर्ड रिकॉर्ड बनाया था। यह वॉक स्पेस शटल या इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) में नहीं, बल्कि बाहरी स्पेस में था इसके अलावा सुनीता सोसाइटी ऑफ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलेट्स, सोसाइटी ऑफ फ्लाइट टेस्ट इंजीनियर्स और अमेरिकी हैलिकॉप्टर एसोसिएशन जैसी संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं।
सुनीता की फंतासी की उड़ान
10 दिसंबर, 2006 सुबह के 7.17 मिनट पर स्पेस शटल डिस्कवरी से अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर, हॉस्टन, टैक्सास से विमान में अपने विमान दल के अन्य साथियों कमांडर मार्क पोलन स्काई, पायलट बिल ईफेलिएन और मिशन स्पेशलिस्ट निकोलस पैट्रिक, जोन हिग्गीन बोथम, बॉब करबीम और क्रिस्टर फुगेसेंग के साथ सुनीता ने उड़ान भरी। और दो दिन बाद, अंतरिक्ष में लगभग 354 किलोमीटर की ऊंचाई पर, वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के अंदर गई। अपना पहला कदम रखते ही सुनीता स्वयं को संभाल नहीं पाई और इधर-उधर तैरने लगी। बाकी अंतरिक्ष यात्री भी भार हीन होकर तैर रहे थे। उन्होंने सुनीता को पकड़कर नीचे खींचा और सबने ग्रुप फोटो खिंचवाई। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
स्पेस शटल के लॉन्च होने के बाद सुनीता 11 दिसंबर को आईएसएस पहुंची। वहां की पहली सुबह वह ”हियर कम्स द सन” गाना सुनकर उठी। शेनन लुसिड ने उसे संदेश भेजा ”गुड मॉर्निंग टू यू सुनी! यू नीड टू राइज एंड शाइन बिकॉज टूडे इज द डे दैट यू से गुडबाय शटल एंड हैलो स्टेशन”। उसने जवाब दिया ”मैं अपना नया घर देखने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती”। वहां पहुंचकर सुनीता ने अंतरिक्ष में कई प्रयोग किए जिनका नाम उसने ‘लावा लैंप’ रखा। उसके यह प्रयोग इंजीनियरों को और ज्यादा फ्यूलुइड मैनेजमेंट सिस्टम बनाने में मदद करेंगे, जो ईंधन टैंक, वाटर रिसाइक्लिंग सिस्टम और कूलिंग सिस्टम में काम आएंगे। यही नहीं यह तकनीक भविष्य में नासा को स्पेस मशीनों में भी मदद करेगी।
सुनीता का अंतरिक्ष से वार्षिक बोस्टन मैराथन में भाग लेना
सुनीता ने अंतरिक्ष में रहकर भी 16 अप्रैल 2007 को होने वाली वार्षिक बोस्टन मैराथन में भाग लिया। उसने मैराथन की दूरी स्पेस स्टेशन थ्रेड मील पर 4 घंटे, 23 मिनट व 10 सैकंड में पूरी की। स्पेस में उसके साथी उसे इसके लिए उत्साहित कर रहे थे और उसे समय-समय पर संतरे खिला रहे थे। सुनीता की बहन डीना और अंतरिक्ष साथी नायबर्ग धरती पर मैराथन में दौड़ लगा मिशन कंट्रोल प्रोग्राम के तहत अपनी स्थिति की जांच बार-बार कर रही थी। गतिविधियों के साथ उसने अंतरिक्ष में पूरे छह महीने बिताए और 21 जून को धरती पर लौटीं ।
शटल में खराबी के कारण वापसी थोड़े दिनों के लिए टली, लेकिन सुनीता ने एक बार फिर अपनी जिंदगी की तरफ रुख किया है, जो उन्हें अब तक प्राप्त हुई शानदार उपलब्धियों में से एक है सलामत लौटने पर न सिर्फ नासा में बल्कि भारत में भी जगह-जगह जश्न मनाए गए थे । जिस दिन सुनीता ने अंतरिक्ष में उड़ान भरी थी उस दिन से लेकर अब तक उसने कई अनुभव इकट्ठा किये हैं। सुनीता बताती हैं कि “प्लेनेट को अपनी आंखों से देखना एक कामना पूरी होना है। वह वाकई बहुत अद्भुत जगह है। हम वाकई बहुत सुंदर ग्रह पर रहते हैं।
सुनीता विलियम्स को प्राप्त सम्मान और पुरस्कार
सुनीता विलियम्स को सन्न 2008 में भारत सरकार ने साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया था। उन्हें नेवी कमेंडेशन मेडल (2), नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल, ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल जैसे कई प्रसिद्द व् अंतरास्ट्रीय सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सुनीता विलियम्स का अंतरिक्ष से धरती पर पहला संदेश
सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन से सबसे पहले जो संदेश भेजा था, वह संदेश था – ‘Tally ho! on the new home’
सुनीता विलियम्स का निजी जीवन
सुनीता विलियम्स के निजी जीवन के बारे में कुछ बताते हैं –
सुनीता विलियम्स के भारतीय संस्कार कूट कूट कर भरे हुए थे
सुनीता विलयम के पहले जन्मदिन पर ही सुनीता के पिता दीपक पत्नी और तीनों बच्चों के साथ अमेरिका के बोस्टन में आ गए थे । परिवार वालों को उनका यहां आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे दादा-दादी और सभी करीबी रिश्तेदारों से दूर हो रहे थे, लेकिन सबने दीपक के प्रोफेशनल करिअर को सराहा। दीपक चिकित्सकीय क्षेत्र में लगातार वृद्धि कर रहे थे, लेकिन भारत के पश्चिम सौराष्ट्र तट पर बसे छोटे से कस्बे मंगरोल से अमेरिका के बोस्टन शहर का नागरिक बनने तक सफर के बावजूद पिता दीपक ने अपने माता-पिता से मिले आध्यात्मिक संस्कारों को कभी खुद से अलग नहीं होने दिया। यही संस्कार उसने बच्चों में भी डाले। सुबह-सुबह दीपक गीता पढ़ने बैठ जाते। पिता के पूजा करते समय तीनों बच्चों का पास बैठना जरूरी था, इसलिए तीनों बच्चे सुबह ही नहा धोकर पिता के पास बैठ जाते। इतना ही नहीं तीनों बच्चे जब भी कोई नया काम शुरू करते उससे पहले भगवान को याद करना जरूरी था और गीता की किताब पढ़ना भी पिता की तरफ से बनाया गया अनिवार्य नियम था। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
सिर्फ दिन की शुरुआत में ही नहीं बल्कि होली-दीवाली और घर में होने वाले सभी पूजा-पाठ में घर के सभी सदस्यों को भारतीय कपड़े पहनना जरूरी था। दूसरी तरफ बोनी को जिम्मेदारी सौंपी जाती कि वह इन त्योहारों पर हलवा, जलेबी और गुलाब जामुन बनाए। यहां तक कि खाने में भी बच्चों को अधिकतर भारतीय भोजन ही मिलता था, जिसे हाथ से खाना पड़ता था। पिता दीपक भारतीय मूल्यों के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। वह चाहते थे कि भारत से दूर रहकर भी उनका परिवार भारतीय होने की बात न भूले, इसलिए लंबे सफर के दौरान या कैम्प फायर के समय बच्चों को पॉल बुनयान, बेकोस बिल, डेनियल बून की अमेरिकी कहानियों की बजाय राम और कृष्ण की कहानियां सुनाया करते थे।
दीपक अमेरिका के किसी भी थियेटर में लगी हिन्दी फिल्म और संगीत के कार्यक्रम को दिखाने परिवार को जरूर ले जाते थे। अक्सर उनके घर भारत से पार्सल आता, जिसमें भारतीय फिल्मों या शास्त्रीय संगीत के कैसेट होते। पिता के साथ अगर इन कामों में कोई सबसे अधिक उत्साह दिखाता, तो वह थी उनकी सुनी। भारतीय फिल्में तो उसकी जान थी। उसका सबसे पसंदीदा गाना है ‘इचक दाना बीचक दाना ‘ और ‘कभी-कभी’ जिन्हें सुनते ही वह अपने आपको उन गीतों को गुनगुनाने से रोक नहीं पाती।
सुनीता विलियम का खान पान
सुनीता को भारतीय खाना भी बहुत पसंद था। दीपक छुट्टी के दिन सभी लोगों के लिए गुजराती सुखड़ी और पकौड़े बनाते और उन्हें खाने के लिए सबसे आगे सुनीता रहती। मां बोनी बच्चों के लिए कुकीज़ और केक बनाकर रखती, लेकिन स्कूल से आते ही सुनी को सबसे पहले नाश्ते में पापड़, चटनी या समोसे चाहिए होते थे। भारतीय भोजन, संगीत, फिल्मों और कहानियों के प्रति उसके प्रेम ने उसे पिता की लाड़ली बेटी बना दिया था। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
तैराकी का भूत
लाड़-प्यार में सबसे दीपक की सबसे छोटी संतान सुनीता थोड़ी मन मौजी होती जा रही थी। फिल्मों, गानों और खाने के अलावा उस पर एक और काम का भूत सवार था। अपने शौक को पूरा करने के लिए कई बार वह अपने पिता की भी बात नहीं मानती। हालांकि इस शौक को पनपाने की जिम्मेदार पूरी तरह सुनीता की मां बोनी ही थी। पिता दीपक चिकित्सकीय क्षेत्र में वृद्धि कर रहा था। दूसरी तरफ बच्चे भी बड़े हो रहे थे। उनके लिए पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों को सीखना भी जरूरी था ताकि वह दूसरे अमेरिकी बच्चों से किसी मायने में कम न रह जाएं। बच्चों को ऐसी गतिविधियों में व्यस्त करने की जिम्मेदारी दीपक ने अपनी पत्नी बोनी को दी। बोनी ने तीनों बच्चों को दिन भर संगीत और व्यायाम की गतिविधियों में व्यस्त कर दिया, लेकिन बोनी को पता नहीं था कि सुनीता स्विमिंग को अपना जुनून बना लेगी।
तैरने का भूत सुनीता पर इस कदर सवार था कि एक दिन जब घर के सभी सदस्य कैंप में थे, सुनी (सुनीता) दोस्तों के साथ तैराकी प्रतियोगिता में बिना किसी को बताए भाग लेने चली गई। प्रतियोगिता के बाद दोस्त उसे कैंप की जगह छोड़ गए। जब उसके मम्मी-पापा ने सुनी से पूछा- तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?, बिना बताए कहीं कैसे जा सकती हो। तो उसका जवाब था- ठीक है ना और वह दूसरे बच्चों के साथ खेलने लगी। उस समय वह मुश्किल से 6 या 7 साल की रही होगी। जब परिवार वालों ने उसका बैग देखा, तो पाया कि बैग में पांच मैडल थे जो उसने अलग-अलग प्रतियोगिताओं में प्रथम आने पर जीते थे। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
तैरना उसे इतना पसंद था कि मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही जब उसने बोस्टन हार्बर मैराथन स्विम के बारे में सुना, तब उसने अपने भाई जे के साथ इसमें भाग लेना तय किया। इस मैराथन का सफर 15 मील लंबा था, इसलिए एक दिन पहले उसने अपने परिवार के साथ बोस्टन हार्बर की सब चीजों को करीब से देखा और नाव में बैठकर पूरे क्षेत्र की जानकारी ली तो उसने पाया कि पानी पूरी तरह से जैली फिश से भरा हुआ था, लेकिन वह इन सबके पीछे नहीं हटी और काफी हद तक सफल भी रही। हाई स्कूल में सुनीता हमेशा अच्छी तैराक रहीं इसलिए किसी भी प्रतियोगिता के समय सब लोग उसकी तरफ आशा भरी नजरों से दखते थे की वो तो रेस जिता ही देगी। तैराकी उसके लिए खेल नहीं रह गया था बल्कि आवश्यकता बन गया था सुनीता कहती हैं कि ”मुझे याद है, सर्दियों की एक सुबह बर्फ ने पूरी तरह से घर के आंगन को ढक लिया था। डीना और जे खिड़की से बाहर देखते और सोचते थे ओह, आज तो तैराकी नहीं हो पाएगी, दूसरी तरफ सुनी अपना स्विम सूट पहनती और सबका तैराकी के लिए चलने के लिए इंतजार करती।”
अंतरिक्ष यात्री बनने की प्रेरणा
सुनीता अपनी तैराकी टीम के साथ इटली, कनाडा और मैक्सिको भी गई और यह एक हाई स्कूल में पढ़ने वाली बच्ची सुनीता के लिए अद्भुत अनुभव रहा। सुनीता ने गर्मियों के समय में तैराकी के शिक्षक के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया था, वह समर कैंप में शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों को तैराकी के बारे में पढ़ाने जाया करती थी। मगर दूसरी तरफ सुनीता पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही थी। स्कूल में वह एक-दो क्लास में फेल भी हो गई थी । (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
इस असफलता ने उसे एहसास दिलाया कि अगर उसने अपने जुनून पर नियंत्रण नहीं पाया तो वह अपना भविष्य खो देगी। उसे एहसास हुआ कि वह गलत रास्ते पर थी और अगर वह इस पर चलती रही तो वेटेरिनेरियन बनने के बचपन से देखा सपना खो देगी। उसने अपने ऊपर नियंत्रण का प्रयास किया और पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू कर दिया। अब वह दोस्तों के साथ फिल्में देखने की जगह जलीय जीवों की जानकारियों को पढ़ने में व्यस्त रहने लगी। वह डिस्कवरी चैनल का एक भी कार्यक्रम नहीं छोड़ती, जिसमें उसे जलीय जीवों के बारे में जानने का मौका मिले। एक दिन उसने नेवी सील कार्यक्रम के बारे में सुना। उसे लगा शायद यह कार्यक्रम सील मछली पर आधारित हो, लेकिन यह कार्यक्रम सील मछली पर नहीं बल्कि नेवी के तीन यूनिट ‘सी, एयर और लैंड’ पर आधारित था। सुनीता हंसते हुए कहती हैं, ‘इस कार्यक्रम ने मेरे ब्रेन वॉश का काम किया। स्लोवेनियन मां और गुजराती पिता के अनोखे परिवार की इस बेटी ने इस अनोखे काम को अपने लिए चुन लिया। जब उसने अपने माता-पिता से यह बात की तो उन्होंने कहा ”गो फॉर इट”, लेकिन साथ ही उन्होंने एक शर्त रखी कि वह कभी भी खराब ग्रेड के साथ घर नहीं लौटेगी। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
सुनीता बताती हैं कि ”इस बीच अंतरिक्ष नाम का कीड़ा मुझे काट चुका था।” जिस दिन सुनीता ने पहली बार हेलिकॉप्टर को उड़ाया उसी दिन से उसे एहसास होने लगा कि उसका सपना कुछ और ही था। हेलिकॉप्टर उड़ाने के साथ ही उसके सपनों ने उड़ान भरनी शुरू कर दी। उसे वह दिन याद आ रहा था जब उसने 5 साल की उम्र में टीवी पर नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा पर चलते देखा था और सोचा, और खा ”वाउ दैट्स कूल”। उस दिन भी उसे यही लगा था कि काश वह भी ऐसा कर पाती, लेकिन बचपन के खेल-तमाशों के बीच वह अपनी मंजिल से भटक कुछ देर बाद वह हेलिकॉप्टर को वापस जमीन पर ले आई, लेकिन अपने सपनों को आसमान लिए उसने पंख बनाने की तैयारी शुरू कर दी। उसने एक अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए क्या है इस पर शोध कार्य शुरू किया और मास्टर डिग्री पूरी होते ही आवेदन कर दिया।
जब दूसरा आवेदन किया तो वह मंजूर हो गया और उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। सुनीता नासा के लिए पहुंची। उसने सोचा कि अगर इंटरव्यू में पास न भी हुई तो भी वह एक बार ऑफिस के बाहर बने मैदान में एक चक्कर लगाएगी। जैसे ही उसने चक्कर लगाना शुरू किया एक कार उसके पास आई और रुक गई, एक साक्षात्कार कर्ता उसमें से बाहर निकली और सुनीता से कहा ” तुमसे कोई बात करना चाहता है” सुनीता ने देखा तो वह मिसेज डिनापॉली थीं। सुनीता को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी स्कूल की पसंदीदा टीचर उसके सामने खड़ी हैं। उसके बाद से सुनीता और मिसेज डिनापॉली हमेशा एक-दूसरे से बातें करती थीं और संपर्क में थीं। तब उसे लगा कि वह बहुत किस्मत वाली है।
सुनीता साइपान में कार्यरत थी तब उसे जून 1998 में अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए चुना गया। एक बार फिर उसने नासा के हॉल में कदम रखा तो उसे लगा, अब क्या बाकी रह गया है। यह सपने का हकीकत बनना था, लेकिन अभी अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए एक महीने की ट्रेनिंग, अंतरिक्ष की शिक्षा और परीक्षण का समय बाकी था। प्रशिक्षण और विभिन्न स्तरों के दौरान सुनीता ने रशियन स्पेस एजेंसी मॉस्को में काम किया। उसने पहली बार इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के एक्सपेडिशन क्रू में भी काम किया। इस बीच उसने आईएसएस के रोबोटिक ब्रांच और स्पेशल परपज़ डेक्सटेरस मैनीपुलेटर में भी काम किया। सुनीता कहती थी कि “जब भी मैं नासा या मिलिट्री से सेवानिवृत्त हो जाऊंगी, तो मैं स्कूल में पढ़ाना शुरू करूंगी। दीपक बताते हैं कि वह अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भाग लेते रहना चाहती है। उसकी इच्छा है और अगर उसे मौका मिला तो वह चंद्रमा पर जाने वाले मिशन में भी हिस्सा जरूर लेगी।
सुनीता विलियम्स की माइकल से मुलाकात और विवाह
सुनीता ने बारहवीं कक्षा करते ही नेवल एकेडमी से 1987 में फिजिकल साइंस में ग्रेजुएशन डिग्री हासिल की। इस सेरे मनी में उसकी मां ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था । इसी दौरान उसने पायलट स्कूल की परीक्षा दी और हेलिकॉप्टर पायलट बन गई। सुनीता को यूनाइटेड स्टेट्स नेवल एकेडमी की ओर से नौकरी का ऑफर आया। नेवल एकेडमी उसकी ज़िंदगी में कई मोड़ लाई। वह माइकल विलियम्स से मिली जो वहां उसका सहपाठी था। और उसका सबसे अच्छा दोस्त भी और जल्दी ही दोनों ने शादी का फैसला कर लिया।
सन्न 1989 में कैप कोड स्थित सेंट जोसफ चर्च में दोनों ने शादी कर ली। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और भारत से बहुत से लोग शादी में शामिल होने आए। सुनीता के रास्ते में शादी बाधक नहीं बनी बल्कि विलियम ने उसके करिअर को आगे बढ़ाने में मदद ही की। उसने आगे की पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच उसे यूनाइटेड स्टेट नेवल टेस्ट पायलट स्कूल के लिए चुना गया जहां उसने खुद पढ़ाई की थी। यहां उसने 2300 उड़ान घंटों में 30 अलग-अलग विमान उड़ाने का अनुभव हासिल किया। सुनीता ने 1995 फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एमएस इंजीनियरिंग मैंनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
सनीता को कुत्तों से प्यार
सुनीता की मां बोनी बताती थी कि “हम लोगों ने घर में हमेशा जानवर पाले”। सुनीता जब पांच साल की थी पहला कुत्ता पाला जिसका नाम लैसी था। उसका एक और पपी था जिसका नाम था बोनजो। एक दिन जब बच्चे कॉलेज चले गए तो बोनी ने उनके लिए एक उपहार रखा वो था लेब्राडोर-सैसी। और सुनीता का पहला लेब्राडोर सैसी का पिल्ला था, एक चॉकलेटी रंग का लेब्राडोर जिसका नाम सुनीता ने चिरपी रखा था। 2005 में क्रिसमस के दिन सुनी और उसकी मम्मी ने डीना को पीले रंग का लेब्राडोर एलसी उपहार में दिया था , परिवार में एक और कुत्ता था उसका नाम गार्बी रखा, जिसकी तस्वीर वह अपने साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भी लेकर गई थी । (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
पत्र, गणेश और भारतीय खाना
सुनीता इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अपने साथ भगवद गीता, गणेश की छोटी मूर्ति और अपने पापा का हिंदी में लिखा पत्र लेकर गई। सुनीता के अंतरिक्ष में जाने से पहले 7 दिसंबर, 2006 को उसके लिए दिन का भोज का आयोजन किया गया। सुनीता ने इस दिन के खाने में अपनी विशेष मांग रखी, जिसके तहत उसके लिए तंदूरी चिकन बनाया गया, जिसे वह अंतरिक्ष में कुछ चपाती, समोसे, इमली की चटनी और सॉस के साथ ले जाना चाहती थी। सुनीता के खाने के डिब्बे में बहुत सारा इंडियन खाना था जैसे पकौड़े वाली पंजाबी कढ़ी, मटर पनीर और दही ।
सुनीता विलियम्स नें अपने बाल दान दिए
सुनीता ने स्पेस स्टेशन पहुंचने से पहले अपने बाल साथी यात्री जॉन हिग्गीन बोथम की मदद से कटवाए और अपने कटे बालों को लॉक्स ऑफ लव जो कि एक अमेरिकी चैरिटेबल संस्था है, को दान कर दिया था । यह संस्था उन गरीब बच्चों को विग बनाकर देती है जो अपने बाल हमेशा के लिए कैंसर, जलने या रेडिएशन ट्रीटमेंट के कारण खो चुके होते हैं। सुनीता की मां आश्चर्य करती थी कि “आखिर उसके मन में बाल दान करने का विचार आया कहां से”। इस पर सुनीता ने कहा था कि ”मेरे एक दोस्त ने भी ऐसा किया था, जिससे मैं बहुत प्रभावित हुई थी और मुझे उसका यह विचार अच्छा लगा। मैं खुश हूं कि मैं स्वस्थ हूं और मेरे लंबे बाल किसी के काम आ सकते हैं। मुझे शुरू से पता था कि स्पेस स्टेशन में लंबे बाल नहीं रखे जा सकते, क्योंकि वह किसी भी तरह से, पंखे में अटक कर या किसी के ऊपर उड़ कर बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। बाल कटवाने का विचार मेरे मन में उसी क्षण आ गया था जब मुझे इस फ्लाइट में जाने के लिए चुना गया। लेकिन मैं देखना चाहती थी कि अंतरिक्ष में मेरे लंबे बाल कैसे लगेंगे, इसलिए मैंने वहां जाकर लंबे बालों मे अपनी एक फोटो खिंचवाई और फिर शटल में ही उन्हें कटवा लिया, और उन्हें धरती पर भिजवा दिया, ताकि वे सब जगह नहीं फैलें।” सुनीता के काले, घने, लंबे बाल यह दर्शाते थे कि वह भारतीय मूल की हैं।
सुनीता की भारतीय पहचान
जब भी भारत से कोई भी आता है वह अनीता के घर पर ही रुकता। कई साधु-संत भी आते हैं और यहीं रुकते हैं। सुनीता को भारतीय खाना खासतौर पर पापड़ और चटनी बहुत पसंद हैं। सभी बच्चों को खासतौर पर सुनी को शुरू से ही भारतीय संगीत बहुत पसंद रहा है। सुनीता को भारतीय फिल्में देखने का भी बहुत शौक है। सुनीता के पिता दीपक कहते थे कि “हम लोग बच्चों को कई बार जब वे हाई स्कूल में पढ़ते थे भारत घुमाने लेकर आए हैं। हमने भारत में बहुत सी जगह जैसे गुजरात, साबरमती गांधी आश्रम, पोरबंदर, राजस्थान, दिल्ली, आगरा, अजंता, एलोरा, चेन्नई, बेंगलूर और मुंबई देखी हैं। हमने वह जगह भी देखी जहां गांधीजी का जन्म हुआ था और जहां उनकी मृत्यु हुई थी। इन जगहों को देखते वक्त दीपक ने बच्चों को गांधी जी के जीवन और देश के लिए उनके बलिदान के बारे में भी बताया। उस समय सुनीता गांधी जी के सत्य, प्यार और अंहिसा वाली बातों से बहुत प्रभावित हुईं और उसने उनकी इन बातों को अपने जीवन में भी अपनाया”। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
सुनीता विलियम्स की शरारतें
सुनीता विलियम्स की बचपन की शरारतों के बारे में जिक्र करती हुई सुनीता की मां बताती थीं कि
- “जब मैं नौकरी करती थी, तब एक दिन मेरे पति सुनी और उसकी चार सहेलियों को कैंप के लिए कैप कोड लेकर गए। दीपक ने मुझसे उनकी शिकायत की कि वे सब बार-बार कैंप के अंदर मिट्टी डालती हैं और मैं बार-बार फर्श साफ करता रहता हूं। यह सब होने के बाद सुनी ने नाश्ते में सबके लिए पैनकेक बनाया। हम सब जानते थे और दीपक ने भी वैसा ही किया उसने लड़कियों के साथ कैंप में जाने से मना कर दिया”।
- “एक दिन हम न्यू हैम्पशायर के थीम पार्क गए, जिसे स्टोरीलैंड के नाम से भी जाना जाता है। जब हम वहां पहुंचे तब पार्क बंद हो चुका था और बच्चों को यह बहुत बुरा लगा। हमने उन्हें उसे देखने के लिए एक दीवार पर चढ़ाकर अंदर भेज दिया। वे डर गए और वापस भाग आए और दीवार पर चढ़कर नीचे कूद गए लेकिन सुनी दीवार पर ही बैठी रह गई और रोने लगी। उस समय वह पांच साल की थी, हमने उसे वहां से बचाया था”।
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सुनीता के बचपन का एक प्रसिद्द वाक्या है, एक दिन पंड्या परिवार कैपकोड के समुद्र तट पर छुट्टी बिताने के लिए पहुंचा। दो बच्चे डीना और जे पानी के खेलों में व्यस्त थे, जबकि 6 साल की सबसे छोटी बेटी सुनी ऐसी जगह बैठी थी, जहां की मिट्टी थोड़ी गीली थी, लेकिन उस तक समुद्र की लहरें नहीं पहुंच पा रही थीं। वह मिट्टी से खेलने में व्यस्त थी। लहरों से दूर बैठी अपनी इस बेटी से निश्चिंत मां बोनी और पिता दीपक का पूरा ध्यान लहरों से खेल रहे दोनों बच्चों पर था ताकि खेल के बीच कोई दुर्घटना न हो जाए। अचानक मिट्टी से खेल रही बच्ची के चिल्लाने की आवाज़ आई। बोनी और दीपक डर गए। उन्हें लगा शायद मिट्टी से खेलते समय बच्ची को किसी जहरीले कीड़े या सांप ने काट लिया है। अब वह कुछ नहीं बोल रही थी। बस उसने हाथ हिलाते हुए उन्हें एक बार पास आने को कहा। घबराए माता-पिता दौड़कर बच्ची के पास पहुंचे, लेकिन यहां आकर उन्होंने जो देखा वह सचमुच चौकाने वाला था। दरअसल उसने मिट्टी का एक महल बनाया था। महल बहुत सफाई से और अच्छी तरह से बना हुआ था, लेकिन माता-पिता बच्ची की कलाकारी से अधिक महल पर हिंदी में लिखे ‘राम’ शब्द से आश्चर्य चकित थे। ओहियो के क्लिवलैंड में जन्मी और अमेरिका में पली-बढ़ी यह बच्ची अक्सर पिता से रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाने को कहती, लेकिन पिता के लिए यह घटना सचमुच आश्चर्य जनक थी कि उनकी लाड़ली बेटी बड़े भाई और बहन से भी ज्यादा पिता के संस्कारों को मानती है। (सुनीता विलियम्स कौन थी ?)
चलते चलते
कमांडर सुनीता लिन पंड्या विलियम्स यूएसएन (यूनाइटेड स्टेट्स नेवी) एक सामान्य महिला जो अपने परिवार की मदद से अंतरिक्ष में फ्लाइट इंजीनियर के तौर पर गई। ऐसा करके उसने न केवल खुद की बल्कि परिवार वालों और अपनी जन्मस्थली का भी नाम रोशन किया। नासा एक्सपिडिशन 14 क्रू के सदस्य के रूप में सुनीता विलियम्स ने चार स्पेस वॉक पर कुल 29 घंटे और 17 मिनट काम किया जिसे एक्सट्रावेहीकूलर गति विधि भी कहा जाता है। स्पेसवॉक जो नासा की एक पद्धति है में काम करके सुनीता विलियमस ने महिलाओं के समक्ष एक वर्ल्ड रिकॉर्ड पेश किया है। आज सुनीता न सिर्फ भारत बल्कि दुनियां भर में अपने नाम से जानी जाती हैं और सबके सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
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