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Real Estate Business

Real Estate Business-दूसरे घर में निवेश

रिअल एस्टेट Real Estate Business हमेशा से आकर्षण का कारण रहा है । अगर आपके वित्तीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिए तैयार की गई रणनीति में यह फिट होता हो तो रिअल एस्टेट में निवेश करना बेहतर विकल्प है। रियल स्टेट में निवेश करने के लिए क्या दुसरे घर के लिए निवेश करना बेहतर विकल्प है या प्लाट या कृषि जमीन खरीदना बेहतर रहेगा। हालांकि इस निर्णय को बिना पूर्व योजना के नहीं लिया जा सकता। हम  यहां पर कुछ ऐसे पहलू हैं, जिन पर विचार व् चर्चा करना बेहद जरूरी है।

दूसरा घर खरीदने का उद्देश्य

सबसे पहले खरीद के उद्देश्य को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। क्या आपको रिॲल एस्टेट ( दूसरा  घर ) खुद के उपभोग के लिए खरीदना है या फिर निवेश के लिए? याद रहे कि अगर यह खुद के उपभोग के लिए है तो यह आपकी आय का इस्तेमाल करेगा। घर की मरम्मत, सार-संभाल आदि के लिए हमारी आय में से खर्च होता है। साथ ही इसके साथ हमारा भावनात्मक संबंध भी जुड़ जाता है और हम हमेशा इसके बारे में तार्किक निर्णय नहीं ले सकते, उदाहरण के लिए अगर हम कुछ समय तक किसी घर में रुक जाते हैं तो उससे हमारी भावनाएं जुड़ जाती हैं फिर हमारे लिए उस घर को  बेच पाना मुश्किल होता है, ऐसे में जब घर बिकेगा नहीं तो फिर मुनाफा कैसा ? हाँ अगर आप को केवल निवेश  के उद्देश्य से ही दूसरा घर खरीदना है तो फिर बात अलग है, लेकिन उसके लिए आपको विभिन्न करों के लिए तैयार रहना चाहिए जैसे :-

कर प्रक्रिया

हमें दुसरे घर में विभिन्न कर देने पड़ सकते हैं :-

सम्पदा कर (Estate Tax)

अगर आप एक से अधिक रिहायशी मकान के मालिक हैं, तो आपको सम्पदा कर देना होगा। जब आपकी शुद्ध सम्पत्ति पंद्रह लाख से अधिक हो जाती है तो आपको संपदा कर देना होता है। यह कर, आभूषण, एक से अधिक रिहायशी मकान और दूसरी कई संपत्तियों पर लागू होता है। हालांकि यदि आपका दूसरा रिहायशी मकान एक वित्तीय वर्ष में 300 से अधिक दिन तक किराए पर रहा हो तो आपको सम्पदा कर नहीं देना होगा।

आयकर (Income Tax)

संपदा कर के अलावा, जो किराया आप ले रहे हैं. उस पर आपको आयकर अदा करना होगा। यहां तक कि अगर आप अपना दूसरा घर किराये पर नहीं दे सके हों, तो भी आयकर अधिकारी इसके वार्षिक मूल्य के आधार पर आयकर लगाते हैं। चलिए एक उदाहरण के माध्यम से इसे समझते हैं। मान लीजिए, रेशमा लालवानी के पास दो घर हैं। एक घर में रेशमा अपने परिवार के साथ रहती है। दूसरा घर खाली है, लेकिन आयकर विभाग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आयकर अधिकारी यह मान लेंगे कि रेशमा ने इसे किराये पर दे रखा है। ये अधिकारी इस आधार पर इसका वार्षिक मूल्य निकालेंगे कि अगर यह किराये पर होता तो कितना किराया अर्जित होता। यह वार्षिक मूल्य या आभासित किराया रेशमा की आय में जोड़ा जाएगा और उन्हें इस आय पर आयकर अदा करना होगा। निसंदेह ‘वार्षिक मूल्य’ की गणना के निर्धारित नियम हैं। रेश्मा को कुछ निश्चित मानक छूट का फायदा मिलेगा। यहां याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही आपने अपना दूसरा घर किराये पर नहीं दे रखा हो, आपको आभासित किराये के आधार पर कर चुकाना होगा।

अगर आपने दूसरा घर खरीद लिया है या खरीदने की योजना बना रहे हैं तो पहले अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट से बात कीजिए और सुनिश्चित कीजिए कि आप ऊपर बताई गई कर प्रक्रिया अच्छी तरह समझ गए है। अब यहां कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो दोनों घरों के बारे में प्रासंगिक हैं, चाहे वह आपका पहला घर हो या दूसरा ।

लीवरेजिंग (Leveraging)

लीवरेजिंग का अर्थ है निवेश के लिए ऋण लेना । यह एक बड़ा जोखिम कम फायदे वाला खेल है। रेशमा लालवानी के ऊदाहरण में आगे बढ़ते हैं, मान लीजिए कि उन्होंने अपना दूसरा घर खरीदने के लिए एक हाउसिंग फाइनेंस कंपनी से 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर ऋण लिया। अगर प्रॉपर्टी की कीमत 30 प्रतिशत | कि बढ़ती है तो उनका लाभ (रिटर्न) होगा 30 10 = 20 प्रतिशत। उसका अर्थ यह हुआ कि भले ही बाज़ार 30 प्रतिशत तक बढ़ गया हो। लेकिन रेशमा को लाभ सिर्फ 20 प्रतिशत (उनके गृह ऋण पर भूगतान किए गए 10 प्रतिशत ब्याज को घटाने के बाद) का ही होगा।                                                     Real Estate Business

मान लीजिए कि रिअल एस्टेट की कीमतें गिर रही हैं। अगर कीमतें  प्रतिशत तक गिरती हैं तो एक लीवरेज्ड इंवेस्टर का नुकसान 5 प्रतिशत+10 प्रतिशत यानी कि 15 प्रतिशत होगा। रेशमा का नुकसान बाज़ार में हुए नुकसान से ज्यादा होगा क्योंकि उनको बाज़ार की मंदी के साथ-साथ ऋण राशि के ब्याज का भी नुकसान उठाना होगा। अगर संक्षेप में कहें तो एक लीवरेज्ड खरीदार होने के नाते, रेशमा को बढ़ते बाज़ार में कम फायदा और गिरते बाज़ार में ज्यादा नुकसान होगा।

लीवरेजिंग का अर्थ केवल किसी खास संपत्ति के लिए ऋण लेना ही नहीं है, आप दूसरे तरीकों से भी लीवरेज ले सकते हैं। मान लीजिए कि आपने विशिष्ट गृह ऋण लिया है और इसे चुकाने के स्थान पर आप एक प्रचलित म्यूचुअल फंड में निवेश करने का फैसला करते हैं तो यह भी एक प्रकार की लीवरेजिंग ही होगी। मूलतः इसका अर्थ है कि आपकी बैलेन्स शीट में आप पर कोई देयता है और आप इसे चुकाने के स्थान पर एक संपत्ति बना रहे हैं।                                      Real Estate Business

तरलता (Liquidity)

आखिर में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि रिअल एस्टेट Real Estate Business तरल संपत्ति नहीं होती और इसकी इंपेक्ट कॉस्ट उच्च होती है। अधिकतर लोग जो रिअल एस्टेट में निवेश करते हैं, एक ऐसे पोर्टफोलियो में अटक जाते हैं, जिसमें केवल रिअल एस्टेट का एक टुकड़ा होता है और जिसमें तरलता नहीं होती । इम्पेक्ट कॉस्ट का अर्थ एक निवेश सौदे की कीमत से है। एक घर खरीदने के लिए हमें एक रिअल एस्टेट एजेंट को कीमत देनी होगी। हमें रजिस्ट्रेशन और स्टाम्प ड्यूटी का खर्च भी उठाना होगा। इन सबका असर हमारे मुनाफे पर पड़ता है।

इस तरह से हर तरह से यही कहा जा सकता है कि रिअल एस्टेट Real Estate Business  में निवेश तभी करें अगर यह आपको आपके वित्तीय उद्देश्यों की पूर्ति के करीब ले जाए। विचार किए बिना सीधे निवेश करने का निर्णय न लें।

प्री-पेमेन्ट के डर और असली फायदा

केवल कुछ भाग्यशाली होते हैं जिनके पास एक घर खरीदने के लिए पैसा होता है बाकी सबको ऋण ही लेना पड़ता है। अपने पहले घर के लिए ऋण लेने में कुछ भी गलत नहीं है। हर माह किराया चुकाने से बेहतर है कि आप हर माह ऋण की किस्त चुकाएं। हालांकि, एक बार ऋण लेने के बाद आपके प्रयास यही होने चाहिए कि आप जल्द से जल्द इस ऋण को चुका दें।

अक्सर, लोग अपने ऋण को अवधि पूर्व चुकाने के प्रयास नहीं करते क्योंकि उनकी हाउस फाइनेंस कंपनी ऐसा करने पर प्रीपेमेंट पेनल्टी लगा देती है। ‘पेनल्टी’ शब्द का जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है। मान लीजिए कि हमारा विशिष्ट मूलधन 15.5 लाख रुपए है। अब या तो हम 15.5 लाख रुपए पर 2 प्रतिशत प्रीपेमेंट पेनल्टी अदा करते हैं या फिर 10 प्रतिशत ब्याज अदा करते हैं। हालांकि यह काफी निरर्थक प्रतीत होता है, लेकिन यह काफी आश्चर्यजनक है कि कितने लोग केवल प्रीपेमेंट पेनल्टी से बचने के लिए ब्याज देते रहना पसंद करते हैं। ‘पेनल्टी’ शब्द हमें हमारे ऋण चुकाने के ख्याल से दूर रखता है।

‘पेनल्टी’ की तरह ‘टैक्स सेविंग्स’ शब्द भी हमारे ऊपर गहरा मनोवैज्ञानिक असर डालता है। हम हाउसिंग लोन लेना इसलिए चुनते हैं क्योंकि हमें इसके मूल व ब्याज राशि चुकाने पर कर में छूट मिलती है। मान लीजिए कि हम अपनी कर योग्य आय में से 5,000 रुपए का इस्तेमाल अपने गृह ऋण की हर महीने की किस्त को चुकाने के लिए करते हैं। आय के 5,000 रुपए, खर्च के भी 5,000 रुपए ऐसे में बाकी बचे शून्य रुपए और हमने कर भी शून्य रुपए ही चुकाया क्योंकि हमें गृह ऋण चुकाने पर कर में छूट मिल रही है।

अब, यदि हमने गृह ऋण लिया ही नहीं होता तो हमें 5,000 रुपए पर आयकर चुकाना पड़ता। अगर हम 30 प्रतिशत वाले कर दायरे में आते हैं तो हमें 5,000 रुपए की आय पर 1,500 रुपए का कर चुकाना पड़ता। इसलिए 5,000 रुपए की आय में से 1,500 रुपए कर में चले जाएंगे और हमारे हाथ में बचेंगे 3,500 रुपए।                Real Estate Business

कर के 1,500 रुपए बचाने के चक्कर में हम लोग ब्याज के रूप में 5,000 रुपये गंवाने को तैयार हैं। वास्तविकता में बहुत से मामलों में तो मूलधन के रीपेमेंट के लिए कर फायदे उपलब्ध ही नहीं होते जैसे कि आयकर अधिनियम की धारा-80 (सी) के फायदे ई.पी.एफ., जीवन बीमा प्रीमियम, बच्चों की स्कूल फीस, सेवानिवृत्ति योजना और इसी तरह की योजनाओं के द्वारा खत्म हो जाते हैं, इसलिए हमें केवल ब्याज राशि के चुकाने की रकम पर ही कर फायदा मिल पाता है। वर्ना सबसे समझदारी की बात यही है कि जितना कम से कम राशि संभव हो, उधार लें और जितनी जल्दी हो सके इसे चुकाने का प्रयास करें ।।

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