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जिंदगी जीने के लिए ...
Wilma Rudolph

Wilma Rudolph – दुनिया की सर्वश्रेष्ठ धावक

सितम्बर 1960 की वह सातवीं तारीख थी। रोम के ओलिम्पियाड स्टेडियम में दर्शक खचाखच भरे हुए थे। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ धावक तय करने वाले इस क्षण का गवाह बनने के उत्सुक उन दर्शकों के अलावा हजारों लोग बाहर भी जमा थे। इन लोगों में सबसे ज्यादा उत्सुक तो अमेरिका के लोग थे, क्योंकि वहां की धावक विल्मा रुडोल्फ (Wilma Rudolph) चार सौ मीटर की दौड़ में सेमीफाइनल तक पहुंच चुकी थी। वे सोच रहे थे कि विल्मा जीत जाती है तो अमेरिका में पहली बार कोई महिला गोल्ड मैडल जीतकर अपने देश की शान बढ़ाएगी । विल्मा इससे पहले दो सौ और सौ मीटर की दौड़ में गोल्ड मैडल जीत चुकी थी। इन्हीं ओलिम्पिक खेलों में उसका मुकाबला जुत्ता हैन से था। जुत्ता को अब तक कोई नहीं हरा पाई थी । उसने सौ मीटर की दौड़ 11.3 सैकंड में पूरी करने और 24 सैकंड में 200 मीटर की दूरी तय करने का रिकॉर्ड बनाया था। विल्मा ने पिछले आठ दिनों में इस रिकॉर्ड को क्रमशः 11 और 23.2 सैकंड में वांछित दूरी तक दौड़कर ध्वस्त कर दिया था।

लेकिन विल्मा चार सौ मीटर की दौड़ शुरू करने से पहले डरी हुई थी। उसे अपना बचपन याद आने लगा था, जब वह चलने-फिरने से लाचार थी। उसके बाद शुरू हुई उपचार की प्रक्रिया भी उसे याद आने लगी थी जिसे पूरा करते हुए डॉक्टर कई बार निराश हुए थे। उसके बाद विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेते वक्त बीच-बीच में उठने वाला दर्द याद आने लगा था। न जाने क्यों उसे डर लग रहा था कि वह दर्द इस बार भी उठ सकता है। उसने अपनी प्रतियोगी जुत्ता की ओर देखा, जो तनी हुई खड़ी थी और दौड़ना शुरू करने की भंगिमा बनाए हुए थी । विल्मा (Wilma Rudolph)को अपनी प्रतियोगी का स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट अतीत याद आने लगा। उसकी तुलना में वह अपने आप को कुछ कमजोर महसूस करने लगी। इस दौड़ में विल्मा और जुत्ता की टीम में तीन-तीन लोग और थे। दौड़ चार हिस्सों में होनी थी।

शुरुआती तीन हिस्सों की दौड़ दूसरे खिलाड़ियों को पूरी करनी थी और आखिरी हिस्से की दौड़ जुत्ता विल्मा (Wilma Rudolph) को इसी ऊहापोह में उलझी विल्मा ने देखा कि दौड़ का इशारा हो गया है और शुरुआती खिलाड़ी बेटन लेकर दौड़ उठी है। बेटन को देखते ही विल्मा के भीतर गहराया अवसाद एक झटके में छंट गया और वह खिलाड़ी के पास पहुंचते ही उठकर दौड़ने के लिए सन्नद्ध हो गई। लेकिन यह क्या? टीम के तीन सदस्यों ने अपने हिस्से की दौड़ लगाई और तीसरा साथी जैसे ही विल्मा के पास पहुंचा उसके हाथ से बेटन छूट गई। इस स्थिति में किसी भी खिलाड़ी का मनोबल धराशायी हो सकता था। विल्मा कुछ क्षण पहले जिस तरह के उतार-चढ़ाव से गुजर रही थी, उनके चलते वह भी टूट सकती थी, लेकिन विल्मा उन क्षणों से बाहर आ चुकी थी। उसने फिसलती हुई बेटन उठाई। विल्मा ने बेटन को ठीक से थामा और गोली की तरह निकली। उसे दौड़ते देख जुत्ता ने भी अपने भीतर की ताकत बटोरी और आगे बढ़ती हुई विल्मा से होड़ लेने की कोशिश की। पर वह विल्मा को पीछे नहीं छोड़ पाई। रैफरी ने हाथ उठाया और अनाउंसर ने घोषणा की। विल्मा को जैसे ही बोध हुआ कि वह ‘गोल्ड मैडल’ जीत चुकी है, उसकी चेतना में खुशियों के सूरज हजारों बादलों को चीर कर चमक उठा था।

Black gazelle (ब्लैक गेजल) का एवार्ड

 विल्मा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी थी। उसने दुनिया की सबसे तेज धावक होने का खिताब हासिल कर लिया था। अखबारों ने उसे ‘ब्लैक गेजल’ के खिताब से नवाजा था, जो बाद में धुरंधर अश्वेत एथलीटों का पर्याय बन गया। उस क्षण को स्टेडियम में बैठे दर्शकों के अलावा टेलीविजन के हजारों दर्शकों ने देखा था। यह पहला मौका था जब ओलिम्पिक खेलों की कवरेज टेलीविजन पर हुई थी। विल्मा की जीत के समाचार सुनकर पूरा अश्वेत जगत गर्व से झूम उठा था। विल्मा की अपनी खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था, पर उसके मन के एक कोने में अपनी मां के लिए हूक सी उठने लगी थी। मां ने यदि उसके लिए तपस्या नहीं की होती तो विल्मा (Wilma Rudolph) अच्छी तरह समझती थी कि वह इस मुकाम पर नहीं होती। अपनी आत्मकथा के अलावा विल्मा ने दसियों अवसरों पर यह बात कही है।

विल्मा रुडोल्फ का  बचपन

इक्कीस साल पहले अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक कस्बे में जन्मी विल्मा के बारे में उसकी मां ने भी कल्पना नहीं की होगी कि उसकी बेटी इस बुलंदी को छुएगी। विल्मा के पिता अपने कस्बे क्लार्क विले में कुली का काम करते थे। पिता की आय से घर का खर्च नहीं चलता था, इसलिए मां कुछ घरों में झाड़ू-पोंछा, कपड़े धोने और इसी तरह के छोटे-मोटे काम कर अपने पति का हाथ बंटाती थी। रुडोल्फ का परिवार बहुत बड़ा था। उनकी बाईस संतानें थीं और विल्मा उन सबमें उन्नीसवीं थी। तकलीफें विल्मा के लिए जन्म से पहले ही ज़िंदगी में आने के लिए तैयार थीं। पचास हजार की आबादी वाले उस अस्पताल में अश्वेतों के लिए एक भी अस्पताल नहीं था। चार-पांच अस्पताल थे, उनमें गोरों का ही इलाज होता था।

विल्मा की मां ने अपने पहले बच्चों को घर में ही जन्म दिया। विल्मा (Wilma Rudolph) का जन्म समय से पहले हुआ, इसलिए प्रसव पीडा शरू होते ही उसे डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ा। कोई अस्पताल तो क्या डॉक्टर भी उसके लिए तैयार नहीं हुआ। क्रेसी ने एक अश्वेत डॉक्टर का पता दिया पर मां उस तक भी नहीं पहुंच पाई। उस डॉक्टर की मदद मिलने से पहले ही विल्मा का जन्म हो गया। जन्म के समय विल्मा बहुत कमजोर थी। प्रसव के बाद मां ठीक से आराम नहीं कर सकी। उस पर अपनी पिछली चार संतानों और ईडी रुडोल्फ का पहली पत्नी से जन्मी चौदह दूसरी संतानों का भी दायित्व था, इसलिए विल्मा की उचित और देखभाल नहीं हो सकी।

विल्मा रुडोल्फ की बीमारी

विल्मा जन्म के समय बीमार थी। ठीक होने के बजाय उसकी बीमारियां बढ़ने लगीं। कभी बुखार, कभी खांसी और कभी चर्म रोग ने उसे घेरा। डेढ़ साल की हुई थी कि उसे एक के बाद एक चेचक, काला बुखार और निमोनिया ने दबोचा। ढाई साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया। बीमारी की इस हालत में भी मां पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी। दूसरों के घर में मेहनत-मजदूरी से ही समय नहीं मिल पाता। विल्मा की देखभाल में उसके बड़े भाई-बहन भी हाथ बंटाते पर वे भी कितना करते। आखिर मां का ही मन पसीजा विल्मा को जब पोलियो हो गया तो मां ने तय किया कि कामकाज से अपने आप थोड़ा समय निकालेगी और बेटी की देखभाल करेगी।

मां देखती थी कि उसकी बेटी पांव हिलाने की कोशिश करती है। पर नहीं हिला पाती है और दर्द के कारण रोने लगती है। उस विलाप को देखकर मां का संकल्प उभरा और वह अपनी बेटी को क्लार्क विले से पचास मील दूर एक अस्पताल में ले गई। उस इलाके में अश्वेतों के इलाज की सुविधा सिर्फ वहीं थी। पचास मील का यह सफर मां ने लगभग पैदल ही तय किया। बीच में कुछ दूर एक ही मोटरगाड़ी नसीब हो पाई थी।

विल्मा रुडोल्फ का इलाज

डॉक्टरों ने इलाज शुरू करते हुए कहा कि सप्ताह में दो दिन यहां आना होगा। यहां से दी जा रही दवा और मालिश के बाद असल उपचार घर में होगा। उस उपचार में दिन में चार बार पैरों की मालिश और समय पर दवा देना शामिल था। मां ने अस्पताल में एक ही दिन में मालिश की विधि सीख ली।  घर पहुंचकर बच्चों को भी वह विधि सिखाई। कुछ दिन घर रहकर विल्मा के पैरों की मालिश करने और ध्यान रखने के बाद वह वापस काम पर जाने लगी। सुबह खुद मालिश करती । बाद की दो मालिश विल्मा की बड़ी बहन चेतना करती। रात को फिर मां खुद देखभाल करती ।

विल्मा रुडोल्फ की पढ़ाई लिखाई

इस तीमारदारी और मेहनत-मजदूरी के साथ सप्ताह में दो दिन नाश विले के मेहरी अस्पताल जाने का सिलसिला चलता रहा। इलाज के साथ मां-बाप ने जो काम किया वह विल्मा (Wilma Rudolph) में हौसला जगाने का था। हौसला जगाने के लिए ही उन्होंने बेटी को स्कूल में भर्ती कराया। बाकी बच्चों में सातआठ ही कुछ दिन तक पढ़ाई कर सके थे। कुछ दिन बाद स्कूल छोड़कर काम-धंधे में लग गए। पर विल्मा को स्कूल भेजने, लाने ले जाने के लिए वे हमेशा तत्पर रहे। इस काम में तीन भाई-बहन तो जैसे विल्मा के लिए ही तैनात थे। उनके द्वारा ध्यान रखने की कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए विल्मा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बड़े परिवार के फायदे भी हैं। कोई न कोई तो आपकी हिफाजत कर ही लेता है।

विल्मा रुडोल्फ की प्रेरणा

पूरे पांच साल तक इलाज चलने के बाद विल्मा की हालत में थोड़ा सुधार हुआ। एक पांव में ऊंची एड़ी के जूते पहनकर उसने अपने भाई-बहनों के साथ खेलना शुरू किया। डॉक्टरों ने उसके लिए बास्केटबॉल की सलाह दी । यह खेल शुरू में बहुत मुश्किल था, लेकिन घर में ध्यान रखने वाले भाई-बहन थे इससे धीरे-धीरे अभ्यास हो गया। स्कूल में भी वह खेलने लगी। विल्मा ने स्कूल में देखा कि कुछ बच्चे उस पर तरस खाते हुए सहयोग करते हैं। उन बच्चों को उसने मना किया और सामान्य स्वस्थ बच्चों के साथ खेलने में दिलचस्पी ली। ग्यारह साल की उम्र में विल्मा ने अपने पांवों में पहन रखे ब्रेस उतारे और बास्केटबॉल खेली। उसका प्रदर्शन बहुत बढ़िया तो नहीं था पर डॉक्टरों के लिए चौंकाने वाला था, जिन्होंने विल्मा के बारे में नाउम्मीदी जताई थी। अपनी बेटी की इस कामयाबी से मां उत्साहित हुई ।

वह अगली बार मेहरी अस्पताल गई तो वहां के डॉक्टर के. एमवे साथ चलने की जिद करने लगे। डॉक्टर एमवे ही थे जिन्होंने विल्मा के बारे में कई बार कहा था कि वह कभी नहीं चल पाएगी।विल्मा भी उस समय मां के साथ थी। डॉक्टर एमवे ने उससे ब्रेस उतार कर दौड़ने के लिए कहा। विल्मा ने फटाफट ब्रेस उतारा और देखते ही देखते सरपट चलने लगी। कुछ फुट चलने के बाद वह दौड़ी और पांच-सात मीटर चलकर गिर गई। डॉक्टर एमवे अपनी जगह से उठे और किलकारी मारते हुए विल्मा के पास पहुंचे। उन्होंने अपनी रोगी को उठाकर सीने से लगा लिया और कहा, शाबाश बेटी । मेरा कहा गलत हुआ, लेकिन मेरी साध पूरी हुई । तुम दौड़ोगी, खूब दौड़ोगी और सबको पीछे छोड़ दोगी।

डॉक्टर एमवे जब यह कह रहे थे तो विल्मा (Wilma Rudolph) की आंखें भर आई थीं। उसके मुंह से सिर्फ इतना ही निकला था ‘सच! डॉक्टर ।’ विल्मा रुडोल्फ ने आगे किसी अवसर पर कहा कि डॉक्टर एमवे की उस शाबाशी ने जैसे कोई चट्टान तोड़ दी और वहां से ऊर्जा की एक धारा बह उठी। मैंने सोच लिया कि संसार की सबसे तेज धावक बनना है।

विल्मा रुडोल्फ का पदकों का सफर

विल्मा और उसकी मां अपने कस्बे में लौट आई। यहां आकर स्कूल में उसके लिए कोच का इंतजाम किया गया। विल्मा के संकल्प और लगन को देखते हुए स्कूल वालों ने भी सहयोगी रुख अपनाया। शिक्षण-प्रशिक्षण का दौर चलता रहा और विल्मा ने 1953 में अंतर्विद्यालयीन दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में वह सबसे फिसड्डी थी । वह सबसे पीछे रही, लेकिन उसका संकल्प सबसे आगे जाने का था। उसको पहली सफलता 1956 में मिली। तब उसने टेनेसी विश्वविद्यालय में बास्केटबॉल टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और पदक जीता था, लेकिन इससे पहले वह आठ प्रतियोगिताओं में हार चुकी थी। विल्मा के कोच हमेशा कहा करते थे कि तुम्हें दूर जाना है। बहुत दूर और सबसे आगे।

7 सितंबर, 1960 को जब उसने तीसरा स्वर्ण पदक जीता तो विल्मा (Wilma Rudolph) को अपने उस कोच की भी याद आ रही थी। चार सौ मीटर की दौड़ जीतने की खुशी में विल्मा की बड़ी बहन चेतना भी शरीक हुई थी। इस सफलता से पहले विल्मा ने 1956 में मेलबोर्न ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीता। ओलिम्पिक का खिताब जीतने के बाद विल्मा ने अपने आपको पूरी तरह खेल के लिए समर्पित कर अपने एक सहपाठी के साथ परिवार भी बसाया, लेकिन गृहस्थी कुछ ही वर्षों में टूट गई। विल्मा को आगे चलकर कई पुरस्कार मिले। इनमें जेम्स ई सुलिवेन अवार्ड (1960) क्रिस्टोफर कोलंबस अवार्ड (1960) और द पेन रिलेज अवार्ड (1961) प्रमुख हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने विल्मा को शांति दूत बनाकर सेनेगल भी भेजा, लेकिन विल्मा 1960 में अपने शहर कार्न विले में हुए उस भोज को सबसे बड़ी जीत मानती थी जिसमें गोरों और कालों ने एक साथ हिस्सा लिया था।

विल्मा रुडोल्फ का पदकों की मृत्यु

12 नवंबर, 1994 में विल्मा की मृत्यु हो गई ब तक हर मुश्किल से जीतती आई विल्मा रुडोल्फ को ब्रेन ट्यूमर ने हरा दिया, लेकिन यह हार नहीं, उसकी जीवन यात्रा का एक पड़ाव था । मृत्यु से पहले विल्मा ने अपने जीवनभर की कमाई ‘द विल्मा रुडोल्फ फाउंडेशन’ को दे दी। फाउंडेशन का मकसद उन बच्चों को पढ़ने के लिए मदद देना था जो तंगी के कारण आगे नहीं बढ़ पाते । इस तरह विल्मा ने उनके लिए एक नई शुरुआत कर दी ।।

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