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कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या – एक अभिशाप या विज्ञान का दुरुपयोग या सामाजिक मजबूरी ??

कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप या विज्ञान का दुरुपयोग या सामाजिक मजबूरी ??

                                        कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप या विज्ञान का दुरुपयोग या सामाजिक मजबूरी हैजब हम इस पर अध्यन करते हैं तो हैरानी होती है कि जिस देश में नारी को भगवान का दर्जा दिया जाता है उसी देश में ही कन्या भ्रूण हत्या विश्व में सबसे अधिक की जाती है परन्तु यह अस्भाविक व अनुचित है तथा देश व समाज को पतन की ओर ले जा रहा है। जीवन की हर समस्या के लिये देवी की अराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या के जन्म को ही अभिशाप मानता है और इस संक्रीण मानसकिता की उपज मूल में दहेज प्रथा ही है बेटी पैदा नही हुई कि घर वाले उसके विवाह की चिन्ता करने लगते हैं दूसरी बात वंश को आगे बढाने के लिए भी सबको बेटा ही चाहिए और सरकार चाहती है कि दो बच्चे हों ऐसे में लोग बेटे के लिए गर्भ में ही बेटी की बली चढा देते हैं ऐसा नही है कि कन्या भ्रूण हत्या सिर्फ देहात में ही हो रही है बल्कि शहरों में व पढ़े लिखे सभय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के आकडे और भी ज्यादा हैरान कर देने वाले हैं ।

 

इतिहास व आंकड़े

                                                अरब जातियों में लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करने की प्रथा असभ्य काल में प्रचलित थी लेकिन भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में उभरी है जहाँ शिक्षा, ख़ासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर है और लोगों का आर्थिक स्तर भी अच्छा है ! इस जघन्य अपराध कि शुरुआत जीवन देने वाले डाकटरों के द्वारा 70 के दशक में कि गयी थी ए बात तब कि है जब देश में जनसंख्या निंयन्त्रण के उपाय ढूंढे जा रहे थे तब यह सुझाव सरकार को एमस दिल्ली के डाकटरों नें दिया था कि अगर बच्चे के जन्म से पहले ही गर्भ में ही लिंग की जांच कर ली जाए तो जिन्हे बेटी की चाह नही है वो गर्भ को गिरा सकते हैं इस तरह बेहतासा जनसंख्या बढ़ोतरी पर काबू पाया जा सकता है ! शायद तब वे लोग इसके दूरगामी परिणामों मों से वाखिफ नहीं थे। और इसी सोच के चलते भारत में पिछले 20 वर्षो से में कम से कम सवा करोड् से अधिक बच्चियों की भ्रूण हत्या की जा चुकी है सन्न 2011 की जन संख्या गणना के आंकडो के अनुसार भारत में लिंग अनुपात 1000 लड्को पर 913 लड्कीयां ही रह गया है जबकि 2001 में यह 943 व1981 में 960 का था विकसित राज्यों जैसे पंजाब और हरियाणा, दिल्ली में तो ये अनुपात और भी चिंता जनक है पंजाब में यह अनुपात 780 है ! UNISEF के अनुसार दस प्रतिशत महिलायें विश्व जनसंख्या से लुप्त हो चुकीं है।महिलाओं का तेजी गिरता यह अनुपात चिन्ता का विषय है जिसका प्रमुख कन्या भ्रूण हत्या ही है।

सवैंधानिक व धार्मिक व्यवस्था –

                                                                             हमारा भारतीय सविंधान भी देश में रहनें वाले हर स्त्री या पुरूष को बराबरी से जीवन यापन का अधिकार देता है और संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नही है अन्य प्राणियों कि बात छोड़ें तो छोडे्ं आज बेटीयों की जिन्दगी कोख में ही छीनी जा रही है जो हमारे सभ्य समाज के लिए भी चिंता का विषय है ! सरकार नें समय समय पर कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कई सख्त कानून भी बनाये हैं परन्तु हमारे सामाजिक ताने बाने व सामाजिक कुरीतियों के कारण कन्या भ्रूण हत्या को पूरी तरह से रोक पानें में अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है ! हमारे धर्म शास्त्रों में भी लिखा है कि “जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं” श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में भी बेटियों के बारे में गुरु बानी में लिखा है “सो क्यों मंदा आखिए जित जम्मे राजान” बेटियों की दिनों दिन कम होती संख्या हमारे दोहरे चरित्र को उजागर करता है व सभ्य समाज के मून्ह्मे एक करारा थप्पड़ है !

आत्म संकलन –

                                         गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जाती है तब वह बचने के कितने प्रयास करती होगी गर्भ में “मॉ मुझे बचा लो” की चीख कोई ख्याली पुलाव नहीं बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है एक अमिरेकी फिल्म ‘The silent screen’ मे गर्भ पात की कहानी को बयां करते हुए दिखाया गया है कि कैसे भ्रूण स्वंय को बचाने का प्रयास करता है और गर्भ में हो रही इस भाग दौड़ को माँ भी महशूस करती है ! अजन्मा बच्चा हमारी तरह ही एक इंसान होता है ! भ्रूण हत्या एक महा पाप है वैसे भी वह नन्हा जीव जिसकी हत्या की जा रही है उनमें से कोई कल्पना चावला, कोई पी0टी0 उषा, कोई सानिया मिर्जा कोई स्वर कोकिला लता मंगेसकर, कोई सानिया नेहवाल तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थीं। सोचिये अगर इन सब के माता पिता नें भी गर्भ में ही इनकी हत्या करवा दी होती तो क्या देश को ये मुकाम हासिल करने को मिल पाता । थोडा सा समाजिक ढर्रा तो बदलिए और देखिये बेटियाँ बेटों से जायदा देखभाल करेंगी उन्हे मौका तो दीजीए और उन्हे केवल लक्ष्मी या घर कि देवी कह देने से उन्हे अधिकार व सम्मान नहीं मिल जाते हैं इस सन्दर्भ में सामाजिक कार्यकर्ता कुदुम सिंह की यह पंक्तियां बहुत सार्थक लगती हैंक्योंकि देवी कभी स्थापित कर दी जाती हैं तो कभी विसर्जित इसलिए मेरी बेटी मैं तुझे कभी देवी नहीं बनाऊँगी”।

समाधान –

                         सामाजिक कार्यकर्ताओं में भी इस पर सहमति है. बल्कि अब तक होने वाले सर्वेक्षण भी इसका समर्थन करते हैं कि महिलाओं के ख़िलाफ़ नकारात्मक रुझान को ख़त्म करने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है इसके साथ ही दहेज़ प्रतिषेध के कानूनों व कन्या भूर्ण हत्या को रोकने वाले कानूनों का क्रियावान सही ढंग से करके व् इस प्रति समाज को जागरूक करके भी हम समाज से इस बुराई को खत्म कर सकते हैं !

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संकल्प –

आइये आज से ही हम सब लोग भ्रूर्ण हत्या जैसी बुराई को जड् से मिटाने के लिये यह संकल्प लें “कि हम अपनी सदियों पुरानी संक्रीर्ण मानसकिता से बाहर निकल कर तथा अपनी सोच बदल कर, बेटियों को बेटों की तरह अधिकार देकर और बेटियों को शिक्षित कर इस सामाजिक समस्या का अन्त करने में पहल करेगें” और यदि इसके बाद हम किसी एक कन्या भ्रूर्ण को भी बचा पाये तो हम समझेंगे कि हमारा यह छोटा सा प्रयास सफल रहा !!

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