हम जल्द बाजी और जीब के स्वाद के लालच में फटाफट भोजन के नाम पर आप जो कुछ खाते हैं उसे जंक फूड्स (Junk Foods) कहा जाता है । इन जंक फूड़ों में कार्बोहाइड्रेट, कैलोरी, वसा का अंदाजा नहीं लगता। सिर्फ पेट भरने के लिए या मजा लेने के लिए अगर इन्हें खाना ही है तो, हम इन जंक फूड़ों का थोड़ा सा अंदाज बदल कर इनके नुकसान का कैसे कम कर सकते हैं। आगे हम इसी लेख में जानते हैं कि कुछ मशहूर जंक फूड्स (Junk Foods) के बारे में और जंक फूड्स के नुक्सान एवं भरपाई कैसे कर सकते हैं और हम इनके नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं ।
जंक फूड किसे कहते हैं
आमतौर पर जंक फूड्स (Junk Foods) चिप्स और कैंडी जैसे अल्पाहार को कहते हैं । बर्गर, पिज्जा जैसे तले-भुने हुए फास्ट फूड को भी जंक फूड की संज्ञा दी जाती है तो कुछ लोग जाइरो, तको, फिश और चिप्स जैसे शास्त्रीय भोजनों को भी जंक फूड मानते हैं। जनक फ़ूड की श्रेणी में क्या-क्या आता है, ये कई बार सामाजिक दर्जे पर भी निर्भर करता है। उच्च वर्ग के लिए जंक फूड की सूची काफी लंबी हो सकती है और वहीं मध्यम वर्ग कई खाद्य पदार्थो को जंक फूड्स (Junk Foods) की श्रेणी से बाहर रखते हैं। जंक फूड्स (Junk Foods) आने से पिछले 25 सालों में मोटापे से ग्रस्त रोगियों की संख्या काफी बढ़ी है। इनमें केवल बच्चे ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी शामिल है। जंक फूड में अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट, वसा और शर्करा होती है। इसमें अधिकतर तलकर बनाए जाने वाले व्यंजनों में पिज्जा, बर्गर, फ्रैंकी, चिप्स, चॉकलेट, पेटीज मुख्य रूप से शामिल हैं। आगे हम इस लेख में जंक फ़ूड के कुछ उत्पादों का एक एक करके परीक्षण करते हैं और जानते हैं कि जंक फ़ूड से होने वके दुष प्रभावों को हम कैसे कम कर सकते हैं ।
1- बर्गर (Burger)
बर्गर, बन + सलाद + प्रॉसेज चीज़ + आलू की टिक्की + मेयोनीज़ + मक्खन से बनता है
बर्गर के बेस के लिए उपयोग में लिए गए बन मैदा का बना होता है। और उसके बीच लगी आलू की टिक्की में घी/तेल की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें एक स्लाइस प्रॉसेज्ड चीज़ का भी लगाया जाता है, जिसमें संतृप्त वसा की मात्रा अधिक होती है। मेयोनीज़ का भी इस्तेमाल किया जाता है। टिक्की का आकार, प्रयुक्त सब्जियां तथा अन्य पदार्थों की मात्रा इसकी कैलोरी में अंतर ला सकती हैं।
बर्गर में मिनरल्स की मात्रा
मध्यम आकार के एक बर्गर में कैलोरी 450-500, वसा 30 ग्राम, प्रोटीन 12 ग्राम व कार्बोहाइड्रेट 55 ग्राम होता है ।
बर्गर खाने से होने वाले नुक्सान
मैदा से तैयार किये बन पेट के लिए सही नहीं होता है । मैदा के अत्यधिक सेवन से से कब्ज और गैस संबंधी शिकायत हो सकती है। इसमें संतृप्त वसा ट्रांसफैटी एसिड्स (Transfatty Acids) की मात्रा बहुत अधिक होती है।
बर्गर से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
बर्गर एक तरह का जंक फूड्स (Junk Foods) होता है और इससे फायदों की अपेक्षा नुक्सान अधिक होते हैं । आप बर्गर को पौष्टिक तत्वों में बदल दें ऐसा करने से आपको बर्गर के अच्छे स्वाद के साथ-साथ आपके शरीर को पौष्टिक तत्व भी मिलेंगे। इसके लिए आप बर्गर में मैदे की जगह ओट मील के बन या होल ब्रेड का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से बन की पौष्टिकता में सुधार होगा। आलू की टिक्की के स्थान पर पनीर स्लाइस का इस्तेमाल करें। अगर टिक्की ही लगाना चाहते हैं तो अंकुरित मूंग या चने की टिक्की लगाएं। इससे बर्गर में पौष्टिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाएगी। आप बर्गर में मेयोनीज़ के बदले सलाद अधिक में मात्रा इस्तेमाल कर सकते हैं ।
2- समोसा (Samosa)
समोसा, मैदा + आलू + मसाले + तलने के लिए तेल से बनता है ।
समोसे की परत मैदे से बनती है और उसमें भरावन के लिए आलू डाला जाता है। इसे गहरा तला जाता है जिससे इसमें वसा की मात्रा भी काफी अधिक होती है। समोसे में मसाले भी काफी अधिक मात्रा में डाले जाते हैं, इसलिए समोसे में संतृप्त वसा, ट्रांसफैटी एसिड्स (Transfatty Acids) की मात्रा भी अधिक होने के साथ ही इसमें कैलोरी भी अधिक मात्रा में होती है। यह पेट भर देता है, लेकिन उसकी वजह स्टार्च तथा मैदे के आवरण का संयोग है। यह चटपटा है, इसलिए स्वाद कलिकाओं को आकर्षित करता है। समोसा पारंपरिक रूप से लोकप्रिय रहा है क्योंकि इसमें ‘छद्म तृप्ति’ की अनुभूति पैदा करने की शक्ति होती है।
समोसे में मिनरल्स की मात्रा
एक सामान्य आकार के समोसे में कैलोरी 250, प्रोटीन 3 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 25 ग्राम और वसा 15 ग्राम होती है।
समोसे से होने वाले नुक्सान
तला हुआ भोजन जो सेहत के लिए ठीक नहीं होता है । समोसे में कैलोरी भी अधिक मात्रा में होती है। समोसे की कंपोजीशन जंक फूड की तरह होती है। समोसे में प्रोटीन सबसे कम मात्रा में होता है और कार्बोहाइड्रेट उससे ज्यादा जो कि कोलेस्ट्रॉल के लिए जिम्मेदार होता है।
समोसे से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
समोसे को पौष्टिक बनाने के लिए आप मैदे की जगह आटा इस्तेमाल करें। अगर मैदे का इस्तेमाल करना ही चाहते हैं तो आधा आटा और आधा मैदा मिला लें। इसके अंदर आलू की जगह अंकुरित दालें, पनीर, मेवे, मटर या फिर सब्जियां भरें। यानी भराव ऐसा करें जो पौष्टिक तत्वों से भरपूर हो। आप चाहें तो अंकुरित समोसा या मिक्स वेजिटेबल समोसा भी बना सकते हैं। समोसे को चटनी के साथ खाना चाहते हैं हरी चटनी के साथ खाएं। आपको सॉस या इमली की चटनी से बचना चाहिए।
3- गोलगप्पे (Golgappas)
गोलगप्पे, मैदा + तेल + मिर्च मसाले + खटाई दार पानी से मिलकर बनते हैं ।
यह भ्रांति है कि गोलगप्पा तो बहुत हल्का व सूखा होता है, लेकिन हकीकत से बिल्कुल विपरीत है। अगर आप हकीकत जानना चाहते हैं तो एक गोलगप्पा लीजिए, उसे कुछ देर के लिए ओवन में रख दें। कुछ समय बाद जब वह गरम होगा तो गोलगप्पे में से घी टपकने लगेगा। यह देख आप निश्चित रूप से हैरान रह जाएंगे कि सूखा सा दिखने वाला गोलगप्पा किस तरह अपने अंदर वसा छुपाए रखता है।
गोलगप्पों में मिनरल्स की मात्रा
6 पीस गोलगप्पे में कैलोरी 250 से 275, वसा 16 ग्राम, प्रोटीन 4 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 28 ग्राम होती है ।
गोलगप्पे से होने वाले नुक्सान
गोलगप्पे में पौष्टिक तत्व तो बिल्कुल भी नहीं होते साथ ही यह अस्वास्थ्य कर भी होते हैं। इसमें ट्रांसफैटी एसिड्स की मात्रा भी ज्यादा होती है। यह करेला भी है और नीम चढ़ा भी है। गोलगप्पे में जो पानी इस्तेमाल किया जाता है उसके प्रदूषित होने की सर्वाधिक संभावनाएं होती हैं। पेट की बीमारियों के लिए यह एक तरह का आमंत्रण होता है।
गोलगप्पे से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
अगर आप गोलगप्पा ही खाना चाहते हैं तो साफ सुथरी दुकानों में जाकर खाएं। साथ ही कम मात्रा में खाएं, उतना ही जितना आपका शरीर पचा सके। गोलगप्पों का पानी मिनरल वाटर से बना हो। . गोलगप्पे खाने से बेहतर है कि आप गोलगप्पों की पापड़ी बनाकर खाएं इससे आपको पौष्टिक तत्व भी मिल सकेंगे। पापड़ी में आप अंकुरित चने या मूंग डाल सकते हैं। थोड़े से उबले आलू डाल दीजिए। अनार के दाने व हल्का सा नमक व मिर्च डाल सकते हैं। ध्यान रहे कि पापड़ी के लिए इस्तेमाल होने वाला दही तथा उबले आलू भी ताजे हों।
4- फ्रेंच फ्राइज (French Fries)
फ्रेंच फ्राइज़, आलू + तेल + नमक से मिलकर बनती है
फ्रेंच फ्राइज़ बनाने के लिए आलू का इस्तेमाल किया जाता है। इसका पानी सुखाकर इसे भूरा होने तक गहरा तला जाता है। इसमें अधिक मात्रा में संतृप्त वसा और एंप्टी कैलोरी होती है जो स्वास्थ्य के लिए हानि कारक हो सकती है। बेल्जियम हालांकि इस बात का दावा करता है कि फ्रेंच फ्राइज़ का आविष्कार उनके यहां हुआ और सबसे ज्यादा उपभोग भी वहीं होता है। प्रमाण दिए जाते हैं कि सन 1680 से फ्रेंच फ्राइज़ का चलन वहां पर था। स्पेन, अमेरिका और ब्रिटेन भी इस बात का दावा करते हैं कि इसका आविष्कार उनके यहां हुआ। आलू चिप्स आज पॉपकॉर्न के मुकाबले खड़ा है जबकि वह कम नुकसान देह होता है। ये भी जंक फूड्स (Junk Foods) की श्रेणी में आता है।
फ्रेंच फ्राइज से होने वाले नुक्सान
डीप फ्राई और आलू से बना होने के कारण इसमें संतृप्त वसा की मात्रा अधिक होती है। इसमें नुकसान दायक रसायन, एक्रायल एमाइड अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। एक्रायल एमाइड डीएनए को क्षति पहुंचाता है जिसका परिणाम कैंसर भी हो सकता है। इन चीजों से बचाव के लिए आपको इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर ध्यान देना चाहिए कि वे किस तरह से आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आलू चिप्स और वेफर्स मोटापे के कारण बनते जा रहे हैं।
फ्रेंच फ्राइज से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
आलू के फ्रेंच फ्राइज खाना ही है तो बहुत पतले स्लाइस काटें। एल्यूमिनियम के एक पैन में फॉइल शीट लगाकर उस पर थोड़ा जैतून का तेल लगाएं। कटी हुई स्लाइस पर लहसुन और नमक लगाकर (अगर चाहें तो काली मिर्च भी लगा सकते हैं) उसे बैक होने के लिए 40-45 मिनट के लिए ओवन में रख दें। और फिर अपने पसंदीदा सॉस या चटनी के साथ खाएं। सबसे अच्छा यह है कि आलू तला हुआ नहीं, भुना हुआ खाया जाए।
5- पिज्जा (Pizza)
पिज्जा, पिज्जा बेस + प्रॉसेस चीज़ + सब्जियां + पिज्जा सॉस + मक्खन से मिलकर बनता है
पिज्ज़ा के बेस को मैदा में यीस्ट के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है, क्योंकि इसमें विटामिन बी कॉम्पलेक्स की मात्रा अधिक होती है। पिज्ज़ा की टॉपिंग के लिए प्रॉसेज्ड चीज़ का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें संतृप्त वसा की मात्रा बहुत होती है। स्वास्थ्य के लिहाज से आपको पिज्जा के कंपोजीशन पर ध्यान देना होगा कि उसमें क्या-क्या चीजें, कितनी मात्रा में हैं।
पिज्जा में मिनरल्स की मात्रा
एक मध्यम आकार के पिज्जा में कैलोरी – 900, प्रोटीन 40 ग्राम, वसा – 70 ग्राम और कार्बोहाइड्रेट 70 ग्राम होता है।
पिज़्ज़ा से होने वाले नुक्सान
बेशक पिज्जा डीप फ्राई नहीं होता, लेकिन इसमें प्रॉसेज्ड चीज़ अधिक मात्रा में डाला जाता है जो कि शरीर में संतृप्त वसा की मात्रा को बढ़ाता है। इसकी वजह से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, मधुमेह जैसी बीमारियों में बढ़ोतरी हो सकती है। यह शरीर में कॉलेस्ट्राल की मात्रा को भी बढ़ाता है।
पिज़्ज़ा से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
आप घर पर पिज्जा बनाएं। यह पिज्जा पौष्टिक हो सकता है। बेस पर घर का बना सॉस लगाएं। टॉपिंग के लिए पौष्टिक तत्वों को पिज्ज़ा में शामिल करें, उसके ऊपर पनीर, सलाद, सब्जियां और अंकुरित दालें जो भी आप डालना चाहते हैं डाल लें। प्रॉसेज्ड चीज़ और पनीर को बराबर मात्रा में मिलाकर कद्दू कस करके इसके चारों ओर फैला दें। अब इसके ऊपर उबली हुई स्वीट कार्न या उबले हुए भुट्टे के दाने डालें। सामान्यतः प्याज, शिमला मिर्च और हरे धनिये का अनुपात के अनुरूप उपयोग किया जा सकता है। पनीर और पौष्टिक वस्तुओं की टॉपिंग पिज्जा को अधिक उपयोगी बना देगी। आपका स्वाद भी बचा रहेगा और आपके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत असर को भी आप कम कर सकेंगे।
6- चाउमीन (Chowmein)
चाउमीन , नूडल्स + सोया सॉस + सिरका + अजीनो मोटो+ नमक + सब्जियां + तेल से मलकर बनता है
अगर आप चाउमीन नूडल्स खा रहे हैं तो इसका मतलब आप अपने भोजन में केवल सूखी रोटी खा रहे हैं। क्या आप अपने भोजन में केवल सूखी रोटी खाते हैं? नहीं, न ! हम रोटी के साथ दाल, सब्जी व सलाद भी खाते हैं। तभी वह भोजन की पूरी थाली कहलाती है। फिर हम क्यों किसी दूसरे देश की सूखी रोटी खाने के लिए किसी या होटल में बैठ जाते हैं? चाऊमीन बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले नूडल्स मैदे के बने होते हैं। चाऊमीन के लिए उसमें सोया सॉस, सिरका, नमक, गाजर, प्याज व बंद गोभी डाली जाती हैं। नूडल्स में प्रयुक्त प्रिजर्वेटिव जैसे अजीनो मोटो कई देशों में प्रतिबंधित हैं।
चाउमीन में मिनरल्स की मात्रा
मध्यम आकार की चाऊमीन की एक प्लेट में कैलोरी 350 से 400 ग्राम, वसा 20 ग्राम, प्रोटीन 7 ग्राम, और कार्बोहाइड्रेट 25 ग्राम होती है ।
चाउमीन से होने वाले नुक्सान
मैदा शरीर के लिए अच्छा नहीं माना जाता। इसके ज्यादा इस्तेमाल से पेट की कई बीमारियां पैदा हो सकती हैं। हमारे शरीर को क्लीनिंग के लिए चोकर की जरूरत होती है जो कि मैदे में नहीं होता। अजीनो मोटो के सेवन से कुछ लोगों को सिर दर्द, त्वचा की एलर्जी की भी शिकायत हो सकती है।
चाउमीन से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
चाऊमीन को पौष्टिक माने के लिए आप मैदा की जगह आटे की बनी नूडल्स का इस्तेमाल करें। चाऊमीन में सब्जियों की मात्रा को बढ़ा दें। पनीर के टुकड़े, अंकुरित मूंग व चने भी शामिल करें। खाली चाऊमीन न खाएं उसके साथ सूप अवश्य लें। सेवइयां हमारा परंपरागत खाद्य रहा है। इसे नमकीन या मीठा बनाकर खाया जा सकता है। चाऊमीन के नाम पर प्रिजर्वेटिव इस्तेमाल की गई सेवइयां ही हमें बाजार में मिलती हैं। उनका विकल्प घर में उपलब्ध है।
7- चाय – कॉफी (Tea – Coffee)
चाय और काफी, चाय की पत्तियां/ काफी पाउडर + निकोटिन + कैफीन + पानी + दूध+ चीनी से मिलकर बनती है
आमतौर पर माना जाता है कि चाय पीने की आदत हम भारतीयों में बहुत पुरानी है, जबकि ऐसा नहीं है। अगर आप गौर करें तो चाय/कॉफी पीने की आदत हिंदुस्तानियों में पिछले पचास सालों में ज्यादा आई है। इससे पहले तक तो हर्बल चाय, लस्सी, छाछ व दूध पीने का चलन था। हर्बल चाय पीने से खांसी, जुकाम खत्म हो जाया करता था। पैकेट बंद चाय हमारी अपनी नहीं है यह हिदुस्तान में शुरू में फ्री बांटी गई थी अब यह आदत इस कदर पड़ चुकी है कि सुबह उठते ही बिना चाय का कप पिए हम अपनी शरीर रूपी मशीन को नहीं चला पाते। अगर तुलना करें तो चाय के बजाय कॉफी ज्यादा स्ट्रॉग होती है। जिस कारण अगर आप रोज एक निश्चित समय में कॉफी पीना शुरू कर दें तो कुछ समय बाद आपको उसी समय कॉफी पीने की तलब लगेगी।
चाय के एक कप में मिनरल्स की मात्रा
कैलोरी 60, वसा 3 ग्राम, प्रोटीन 2 ग्राम और कार्बोहाइड्रेट 8 ग्राम पाया जाता है ।
कॉफी के एक कप में मिनरल्स की मात्रा
कैलोरी 140, वसा 6 ग्राम, प्रोटीन 5 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 17 ग्राम पाया जाता है ।
चाय कॉफी से होने वाले नुकसान
चाय या कॉफी पीने से आपके पेट में पड़ा भोजन भी धीरे-धीरे पचता है और भोजन लंबे समय तक आपके पेट में ही रहता है। यह शरीर के लिए नुकसान दायक होता है चूंकि इससे पाचन क्रिया मद्धम हो जाती है। जो लोग खाना खाने के बाद चाय या कॉफी पी लेते हैं उन्हें अंदर से यह फीलिंग आती है कि आज पेट भरा हुआ लग रहा है। एसिडिटी के साथ चाय-कॉफी का गहरा रिश्ता है। चूंकि कॉफी में मादक द्रव्य की मात्रा होती है, इसलिए लत तो लगती ही है, अधिक पेशाब की वजह से विटामिन भी बह जाते हैं। ऐसे में बैलेंस बनाए रखने के लिए आपको अपने भोजन में विटामिन की मात्रा अधिक लेनी होगी। अगर किसी को माइग्रेन या स्टोन की समस्या है उन्हें कॉफी नहीं पीनी चाहिए। गाठिया के मरीजों को तो कॉफी बिल्कुल ही नहीं पीनी चाहिए।
चाय कॉफी से होने वाले नुकसानों को कैसे कम कर सकते हैं
सबसे पहले तो आप अपनी चाय/कॉफी की मात्रा को नियंत्रित करें। चाय/कॉफी पीने से पहले पानी जरूर पिएं और चाय/कॉफी पीने के कुछ देर बाद फिर से थोड़ा पानी जरूर पिएं ताकि अगर आपके शरीर में एसिडिटी का लेवल बन रहा है तो वह पानी पीने से कम हो जाएगा। खाली चाय/कॉफी कभी न पिएं, साथ में एक-दो बिस्कुट या कोई अन्य चीज़ जरूर खाएं। हर्बल टी लें। स्ट्रॉग कॉफी न पिएं अगर पीनी ही हो तो बहुत हल्की कॉफी पिएं ।।
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