मानव शरीर में दो प्रकार की क्रियाएं होती हैं, ऐच्छिक और अनैच्छिक कर्मेन्द्रियों के कर्म यथा हाथ-पांव चलाना, मल-मूत्र का विसर्जन आंखें झपकना, भोजन करना आदि क्रियाएं ऐच्छिक कहलाती हैं, जबकि शरीर की कुछ आंतरिक क्रियाएं अनैच्छिक होती हैं। आप चाहें न चाहें आंतरिक क्रियाएं निरंतर चलती रहती हैं। हृदय की धड़कन आप चाहकर भी बंद नहीं कर सकते। इसी प्रकार भोजन करने के बाद पाचन क्रिया पर आपका कोई नियंत्रण नहीं रहता। मल-मूत्र के निर्माण की प्रक्रिया संबंधित अंग स्वतः करते रहते हैं। इसमें आपके दखल की कोई गुंजाइश नहीं रहती। हां, मूत्राशय या मलाशय में मल-मूत्र संचित रहने पर उनके विसर्जन की क्रिया पर आप थोड़ा बहुत नियंत्रण कर सकते हैं। छींक, उबासी, खांसी, जम्हाई, अपानवायु का निस्तारण आदि कुछ असामान्य क्रियाएं होती हैं जो शरीर में वायु के कारण जन्म लेती हैं। इसी प्रकार भूख प्यास, नींद, मल-मूत्र विसर्जन आदि कुछ नैसर्गिक क्रियाएं हैं जो भी जीवन का चिह्न मानी जाती हैं। ये सभी क्रियाएं वायु के कारण संपन्न होती हैं। अतः इन्हें वेग कहा जाता है। वेग वायु का ही गुण है। हम आगे जानते हैं कि मानव शरीर की क्रियाएं कौन कौन सी हैं और मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान क्या है :- मानव शरीर की क्रियाएं – मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान
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शारीरिक वेग
इन शारीरिक वेगों के अतिरिक्त मनुष्य के मस्तिष्क में क्रोध, आवेश, शोक, चिंता, मोह, लोभ, काम, अहंकार आदि भावनाओं के ज्वार भी समय-समय पर उठते रहते हैं। इन्हें मनोवेग कहा जाता है। शारीरिक व मानसिक दोनों ही प्रकार के वेग नैसर्गिक व जन्मजात हैं। इनकी प्रवृत्ति मनुष्य में जन्म से ही निहित रहती है। विशेष परिस्थितियां एवं कारण पैदा होने पर ये वेग प्रकट होकर सामने आ जाते हैं अन्यथा निश्चेष्ट होकर शरीर या मन के किसी कोने में पड़े रहते हैं। यद्यपि शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के वेगों का आधार मानव शरीर ही है किंतु स्वस्थ रहने के लिए इनके साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार किया जाता है। मानव शरीर की क्रियाएं – मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान
चरक संहिता के अनुसार ‘न धारयेत् कायवेगान् मनोवेगांस्तु धारयेत्’ अर्थात् शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए, किंतु मनोवेगों को भावावेश में आकर कभी बाहर प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। उन्हें भीतर ही जज्ब कर लेना चाहिए। शारीरिक वेगों से समय पर निवृत्त न होने के कारण शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं, जिनमें कई तो मारक भी बन सकते हैं, किंतु काम, क्रोध आदि से प्रभावित होकर कोई कदम उठाना आपको संकट में डाल सकता है, इसलिए शारीरिक वेगों पर जहां नियंत्रण रखना रोगों को आमंत्रण देना होगा वहीं मानसिक वेगों के प्रभाव में आकर कोई कदम उठाना भी खतरा मोल लेना ही होगा। इसीलिए शास्त्रों ने शारीरिक वेगों की निवृत्ति और मानसिक वेगों पर नियंत्रण का विधान किया है।
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शारीरिक वेग रोकने से होने वाले नुक्सान
‘अष्टांग हृदय’ के सूत्र स्थान में तेरह शारीरिक वेग गिनाए गए हैं जिनसे तुरंत निवृत्ति प्राप्त कर लेनी चाहिए। यह हैं अपानवायु (स्थानीय भाषा में पाद अथवा बावसरना कहते हैं) तथा उद्गार या डकार अर्थात् वायु की निम्न तथा उर्ध्वगति को रोकना, मल-मूत्र के विसर्जन पर नियंत्रण करना, छींक, प्यास, भूख, निद्रा, खांसी, श्रमजनित श्वास, जम्हाई, आंख से खुशी या शोक में आए आंसू रोकना, । वमन तथा वीर्य क्षरण को रोकना रोगों का कारण बन सकता है। ये सभी क्रियाएं वायुजनित हैं और वायु को एक स्थान पर रोकने से अनेक प्रकार की व्याधियां हो सकती हैं।
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मल-मूत्र विसर्जन की इच्छा होने पर यदि बलपूर्वक रोकने का प्रयास किया जाएगा तो पेट के निचले हिस्से की वायु अवरुद्ध होकर पेट में ऐंठन, सूई चुभने की सी तीक्ष्ण पीड़ा, बवासीर, आंतों में गांठ बन जाना, बेचैनी जैसे रोग पैदा कर सकती है। मल शुष्क होकर मलाशय तथा आंतों में जम सकता है और पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है। आंतों की रस चूसने की शक्ति कमजोर या कुंठित हो जाती है। इससे हृदय भी प्रभावित हो सकता है और अनिद्रा व हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार छींक, खांसी, डकार, वमन (उल्टी), उबासी तथा जम्हाई को रोकने से शरीर की प्राण व उदान वायु अवरुद्ध हो जाती है। इस कारण हृदय, फेफड़े, गर्दन व शरीर के उर्ध्व भाग की मांसपेशियों में जकड़न आ सकती है। सिर दर्द तथा नेत्र ज्योति कमजोर हो सकती है। इसलिए आरोग्य शास्त्र स्पष्ट रूप से जहां शारीरिक वेगों को न रोकने की सलाह देता है वहीं दुस्साहस, काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आदि से उत्पन्न आवेश या आवेग को दृढ़तापूर्वक रोकने का आदेश भी देता है। मानव शरीर की क्रियाएं – मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान
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मानव शरीर की क्रियाएं – मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान