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लाल किताब किसे कहते हैं ? – लाल किताब का इतिहास

लाल किताब के बारे में लोगों के मन में बहुत से भ्रम हैं। कुछ धारणाएं हैं कि लाल किताब के लेखक को लाल किताब के सिद्धांतों की आकाशवाणी हुई थी । एक अन्य धारणा के अनुसार किसी शक्ति के वशीभूत होकर लाल किताब लिखी गई। इस  किताब के लेखक ने कभी भी लिखित रूप में ऐसा दावा नहीं किया। दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि यदि वह किताब किसी दिव्य शक्ति या आकाशवाणी से उत्पन्न हुई तो उसका बार-बार नवीनीकरण करने की क्या जरूरत थी? लाल किताब में किसी भी लेखक का नाम नहीं है। कुल पांच तरह की लाल किताबें हैं। वहां केवल प्रकाशक का नाम है और उसकी फोटो छपी है। एक भ्रम है कि लाल किताब के लेखक को आकाशवाणी हुई। तो किसे भविष्यवाणी हुई? दूसरी भ्रांति यह है कि किसी आत्मा ने उसमें प्रवेश किया और उसके द्वारा लाल किताब लिखी गई। आगे हम जानते हैं  विस्तार से कि लाल किताब किसे कहते हैं ?

लाल किताब का इतिहास

सबसे पहली लाल-किताब 1939 में छपी थी जिसके कुल 383 पृष्ठ थे। फिर 1940 में दूसरी लाल किताब छपी जिसका नाम था  ‘लाल किताब के अरमान।’ उसके कुल 156 पृष्ठ थे। उसके बाद तीसरी लाल किताब 1941 में छपी जो छोटे आकार की थी, उसके कुल 428 पृष्ठ थे। फिर 1942 में एक और लाल किताब छपी, जिसके कुल 384 पृष्ठ थे। अंतिम लाल किताब 1952 में छपी, जिसके कुल 1171 पृष्ठ थे। क्या कभी आकाशवाणी या दिव्य शक्ति इस तरह कई साल या कई सालों के बाद रुक-रुककर प्रकट होती रही और वह भी भिन्न-भिन्न रूपों में? जिन किताबों का ऊपर जिक्र किया गया है उन सबकी पृष्ठ संख्या अलग-अलग है, ज्ञान की गहराई अलग-अलग है।                         (लाल किताब किसे कहते हैं ?)

लाल किताब में राशियों का महत्व

वास्तव में, लाल किताब के सिद्धांत हिमाचल प्रदेश से लेकर कश्मीर तक के पहाड़ी क्षेत्र में प्रचलित ज्योतिष पद्धति थी, जिसकी पांडुलिपि की प्राप्ति लेखक को इस क्षेत्र में नियुक्ति के समय उपलब्ध हुई। लाल किताब के लगभग सभी संस्करणों में यह हिदायत दी गई है कि पुराने  ज्योतिष के हिसाब से बनी जन्म कुंडली में लग्न भाव की जो भी राशि हो, उसको मिटाकर उस स्थान पर नं. 1 लिख दीजिए और दूसरे भाव में 2 और तीसरे में 3 लिखकर इसी क्रम से कुंडली को पूरा कर लीजिए। इस तरह हर जन्म कुंडली में पहले भाव में नं. 1 ही आएगा।

इसका मतलब यह हुआ कि राशियों का महत्व लाल किताब में समाप्त कर दिया गया है। किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि लाल किताब में ही आगे जाकर बार-बार राशि को भी महत्व दिया गया है। उदाहरण के तौर पर 1941, 1942 और 1952 में छपी के लाल किताब में किस्मत के ग्रह की तलाश के बारे में साफतौर पर लिखा हुआ है कि हर कुंडली में किस्मत का सबसे अच्छा ग्रह वह होगा जो अपनी उच्च राशि में हो और फिर यदि कोई भी ग्रह उच्च राशि में न हो तो आगे दूसरी शर्ते किस्मत के ग्रह के बारे में आती हैं।

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लाल किताब का अभ्यास

लाल-किताब में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इस किताब को एक उपन्यास की तरह बार-बार पढ़ते रहना चाहिए। ऐसा करने से ही इस पद्धति में छुपे रहस्यमयी भेदों को समझा जा सकता है। इसका कारण यह है कि इसके बहुत से अध्याय अपने आप में संपूर्ण नहीं हैं। हर अध्याय को जानने के लिए इस पद्धति के पहले पृष्ठों या आखिरी पृष्ठों के उसूलों को एक-दूसरे के संदर्भो से हटकर नहीं समझा जा सकता।

लाल किताब व अन्य ग्रन्थ

अनेक लोगों में ऐसी भ्रांतियां हैं कि लाल-किताब शायद भृगु संहिता, अर्जुन संहिता, ध्रुवनाड़ी ग्रंथ या दूसरे नाड़ी ग्रंथों की तरह है। शायद यही कारण है कि बहुत से ज्योतिष के जिज्ञासु लोग, जो लाल किताब को पढ़ने की कोशिश करते हैं वह लाल किताब में एक ही ग्रह की नेक (शुभ) और मंदी (अशुभ) हालत को पढ़कर निराश हो जाते हैं, क्योंकि स्पष्ट तौर पर उनकी समझ में कुछ नहीं आता। असल में लाल किताब इस ढंग से लिखी गई है कि इसके अधिकांश विषय  किसी अध्याय में पूरी तरह से संपूर्ण नहीं हैं। एक अध्याय का संबंध, किताब के अंतिम अध्याय से भी हो सकता है। जब एक ग्रह का जिक्र आएगा तो जो उसके कारक हैं वो कहीं और होंगे। इस तरह इसमें जो विषय है, वह कई अध्यायों में बिखरा हुआ है।

लाल किताब में लाल रंग का मतलब

कुछ लोगों में ये भ्रांतियां हैं कि लाल किताब शायद अरब देश की कोई पुस्तक है। इस पर सवाल ये पैदा होता है कि मुस्लिम संस्कृति में जो शुभ रंग है वो हरा है। उन रेगिस्तानों में हरियाली कुदरत की सबसे बड़ी देन समझी जाती है। भारतीय परंपराओं में लाल रंग जीवन के विकास का शुभ रंग है। उत्तर भारत में और भारत के दूसरे हिस्सों में भी पहले चौकीदार ही सरकार के प्रतिनिधि हुआ करते थे। उनके पास दो रजिस्टर हुआ करते थे, एक काले रंग का और एक लाल रंग का। काले रजिस्टर पर गांव में हुई मृत्यु दर्ज की जाती थी और लाल रजिस्टर में नए जन्मे बच्चों को दर्ज किया जाता था। चूंकि लाल किताब जीवन से संबंधित है, संभवतः इसलिए इसका नाम लाल-किताब है। लाल रंग मंगल ग्रह का रंग है। खुशी के मौके पर मंगलाचरण गाया जाता है।                                                                                                              (लाल किताब किसे कहते हैं ?)

लाल किताब के बारे में भ्रांतियां

लाल किताब के बारे में और भी दूसरी किस्म की भ्रांतियां हैं। अभी लाल किताब के बारे में  एक है। उसके प्राक्कथन में लिखा है कि असल में सूर्य देवता के सारथी अरुण ने यह किताब लिखी और फिर इस किताब को लंकापति रावण लंका ले गए। फिर वहां से यह किताब अरब देश में पहुंची। वहां इसका अरबी और फारसी भाषा में अनुवाद हुआ। और यह किताब फारसी में अब भी उपलब्ध है।  कुछ लोग जो अरब देश में काम करते हैं वहां रहते हैं और ज्योतिष का कुछ ज्ञान भी रखते हैं, लेकिन उन्होंने वहां कभी लाल किताब का जिक्र नहीं सुना।

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लाल किताब के लेखक कौन है

कहा जाता है कि जिसने लाल किताब लिखी, वह पंडित रूपचंद जोशी थे, जो फरवाला (पंजाब) गांव के निवासी थे।  कुछ लोगों  के आधार पर पंडित रूपचंद जोशी ने लाल किताब लिखी। इनके परिवार में ज्योतिष की कोई परंपरा नहीं थी। प्रारंभ में इनकी खुद भी ज्योतिष में कोई रुचि नहीं थी। एक बार इनकी नियुक्ति हिमाचल प्रदेश में हुई। वहां आर्मी में एक जवान था। उसने एक अंग्रेज अफसर को इस सिद्धांत के अनुसार कुछ बातें बताईं। लाल किताब की एक खास बात यह है कि अगर किसी की जन्म कुंडली न भी हो और जो इसके बारे में अच्छा ज्ञान रखता है वह कुंडली के बगैर भी कुछ बातें बता सकता है। इसके पीछे वो कारक हैं जो लाल किताब की जान हैं। इस हिसाब से दुनिया की प्रत्येक वस्तु लाल किताब के कारकों के अंतर्गत आती है।

उस फौजी जवान ने कुछ बातें अंग्रेज अफसर को बताई थीं। इस बात से वह अंग्रेज अफसर प्रभावित हो गया। उसने उस जवान से पूछा कि ‘तुमने यह सीखा कहां से?’ उस जवान का जवाब था, ‘मैं हिमाचल प्रदेश का रहने वाला हूं हमारे खानदान में पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्योतिष की यह परंपरा चलती आ रही है। और समय के साथ इसमें बहुत से सुधार भी होते रहे हैं। छोटे-छोटे पहाड़ी राजाओं ने इस विद्या को जीवित रखने में एक अहम भूमिका निभाई है।’ इससे यह साफ हो जाता है कि ज्योतिष की यह पद्धति हिमाचल से लेकर कश्मीर के हिम शिखरों तक फैली हुई थी।

मैं यह भी नहीं कहता कि उस वक्त केवल मात्र यही प्रणाली थी। भविष्य में झांकने की और बहुत सी पद्धतियां प्रचलित रही होंगी। जैसे पूरे हिमाचल प्रदेश में योगिनी दशा प्रणाली बहुत प्रचलित थी। जो लाल-किताब की पद्धति है, उसके बारे में उस जवान ने बताया कि ‘यह तो कई पीढ़ियों से चला आ रहा है। इसको चलते हुए पता नहीं कितने हजार साल हो गए हैं।’ तो उस अंग्रेज अफसर ने उससे कहा कि ‘यह बहुत अच्छी बात होगी, यदि तुम ज्योतिष के इन सिद्धांतों को लिख दो, जिससे यह विद्या जीवित रहे और समाज के काम आ सके।’ तो उस जवान ने परिश्रम करके लाल किताब के उन सिद्धांतों को एक रजिस्टर पर लिख दिया।                                                                           (लाल किताब किसे कहते हैं ?)

लेकिन उसका वह लिखना सिल सिलेवार नहीं था। यानी उसके लिखने में शुरू की कुछ चीजे अंतिम अध्यायों में लिखी गईं और अंतिम अध्यायों की बातें बीच में या शुरू में लिखी गईं। उस जवान को जो सिद्धांत याद आते गए वह लिखता गया। मगर लिखते समय उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि जो लिखा जा रहा है वो सिल सिलेवार है या नहीं। फिर उसने वो रजिस्टर अंग्रेज अफसर को दे दिया और अंग्रेज अफसर ने वह रजिस्टर रूपचंद जोशी को पढ़ने के लिए दिया। रूपचंद जोशी ने ज्योतिष के उन सिद्धांतों को चार बड़े रजिस्टरों पर हू-ब-हू उतार लिया, लेकिन वे समझे कुछ नहीं। उसके बाद जब वो महीने-दो महीने की छुट्टियों में अपने गांव फरवाला गए (फरवाला पंजाब राज्य में लुधियाना से आगे फगवाड़ा शहर से काफी अंदर जाकर ग्रामीण क्षेत्र में एक गांव है) जब वो गांव में आए तो वहां उन्होंने अपने एक मित्र से इसका जिक्र किया जो बाद में जाकर व्यावसायिक ज्योतिषी बने। रूपचंद जोशी ने अपने मित्र को बताया कि कहीं से मैंने ज्योतिष के कुछ सिद्धांतों की नकल उतारी है, मगर बड़े ऊल-जलूल से सिद्धांत हैं, कुछ समझ में नहीं आता।’

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लाल किताब के सिध्दांत

पं. रूपचंद जोशी ने धीरे-धीरे अपने प्रयास से उन सिद्धांतों के बारे में बाद में कुछ समझा। उन चार रजिस्टरों से उन्होंने जितना कुछ समझा, वर्ष 1939 में लाल किताब के उन थोड़े से सिद्धांतों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जो कलकत्ता फोटो हाउस, अमृतसर (पंजाब) से छपी थी और उस पुस्तक के कुल 383 पृष्ठ थे।  इधर जितनी भी लाल किताब के नाम से पुस्तकें हिंदी में छप रही हैं, उन पुस्तकों में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि यह कौन-सी लाल किताब है, यानी कि यह 1939 का संस्करण है, जिसमें कुल 383 पृष्ठ थे या यह 1952 का संस्करण है, जिसमें कुल 1171 पृष्ठ थे, जो नरेंद्रा प्रेस, दिल्ली से छपी थी।                                                                                               (लाल किताब किसे कहते हैं ?)

इन दोनों संस्करणों के बीच सन् 1940 में उन्होंने एक किताब और प्रकाशित की जिसका नाम था- ‘लाल किताब के अरमान।’ और सभी किताबों में ‘फरमान’ शब्द प्रयोग हुआ है मगर इस किताब में शब्द आया ‘अरमान’ । फरमान’ शब्द का अर्थ होता है  एक ऐसा आदेश या वक्तव्य जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता, यानी वह अंतिम है और ‘अरमान’ शब्द का अर्थ है  इच्छाएं। ‘लाल किताब के अरमान’ जो सन् 1940 में छपी थी, इसके कुल पृष्ठ 156 थे। एक साल बाद ही इसे छपवाने की आवश्यकता संभवतः इसलिए पड़ी कि कुछ अस्पष्ट सिद्धांतों को सुधारा जा सके।

लाल किताब में लेखक का नाम क्यों नहीं ?

यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि किसी भी किताब में लेखक का नाम क्यों नहीं आया? शायद इसलिए कि वह अंग्रेजों की हुकूमत का समय था और वह किताब एक अंग्रेज अफसर ने उसको दी थी। संभवतः रूपचंद जोशी के मन में यह बात रही होगी कि कहीं कोई कानूनी पचड़ा न खड़ा हो जाए और किसी तरह की परेशानी न हो जाए, क्योंकि वह अंग्रेज अफसर हकीकत जानता था, इसलिए रूपचंद जोशी ने हर लाल किताब, पर लेखक के नाम के स्थान पर मुद्रक और प्रकाशक का नाम लिखवा दिया गिरधारी लाल शर्मा और साथ में उनका फोटो भी दे दिया। फोटो के नीचे लिख दिया प्रकाशक और मुद्रक। किसी भी किताब में प्रकाशक का व्यक्तिगत फोटो नहीं होता।

खासतौर पर मैं इन सब बातों पर जोर इसलिए दे रहा हूं कि आप इस किताब को कोई ‘दैविक-किताब’ न समझ लें। क्योंकि, उस अवस्था में ही आप इस पुस्तक को ठीक-ठीक समझते हुए इसका विश्लेषण कर पाएंगे। यदि एक ग्रह का किसी भाव में जाने का रास्ता हो, तभी उस ग्रह को उसकी कारक चीज द्वारा उस भाव में पहुंचाया जा सकता है। आजकल लाल किताब के नाम पर प्रकाशित होने वाली कुछ पुस्तकों में इस बुनियादी उसूल को बिल्कुल नजरंदाज किया जा रहा है।

कुछ समय पहले लाल किताब के उपायों पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई हैं जो काफी संख्या में बिक भी चुकी है। उसमें ग्रहों को वांछित घरों में पहुंचाने की विधि पर एक अध्याय है, जिसके अनुसार जिस ग्रह को आप जिस भाव में पहुंचाना चाहते हैं उसकी विधि बताई गई है। जैसे किसी घर के ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह की चीजें अपने घर की छत पर रखें। इसी तरह बारह भावों में हर ही ग्रह को पहुंचाने के फॉर्मूले बताए गए हैं। यह तरीका लाल किताब, के उसूलों से किसी भी तरह से मेल नहीं खाता है।

लाल किताब के उपाय

लाल-किताब के उपाय किसी एक ही अध्याय में नहीं लिखे गए और न ही उपायों का तर्क या हेतु लिखा गया है, इसलिए उपायों के पीछे जो विशेष हेतु है, उसको समझना काफी मुश्किल है। मेरे विचार में हर उपाय के पीछे छुपे भेद को इन हिस्सों में बांटा जा सकता है।
💙  उपाय से ग्रह को नष्ट कर देना या मार देना।

💙 ग्रह के असर को अपने से दूर करना ।
💙 ग्रह को न तो मारा जाए, न ही नष्ट किया जाए, बल्कि उसके अशुभ स्वभाव को शुभ में बदल दिया जाए

💙 शुभ ग्रह को स्थापित करना।

💙 दो अशुभ ग्रहों के झगड़े को खत्म करवाने के लिए किसी और ग्रह को स्थापित करना।

💙ग्रह से उसके अपने ही कान पकड़वा कर उसको शुभ कर देना।

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