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जिंदगी जीने के लिए ...
Steve Jobs Apple CEO

Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

ब मैं 17 साल का था. मैंने एक उद्धरण पढ़ा था, जो कुछ ऐसा था, “अगर आप हर दिन को इस तरह जिए कि मानो वह आपका आखिरी दिन है तो आप एक दिन बिल्कुल सही जगह होंगे। इसने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला और उसके बाद से यह मेरा नियम बन गया कि मैं हर दिन अपना चेहरा आईने में देखता हूं और अपने आप से पूछता हूं, अगर आज मेरी जिंदगी का आखिरी दिन हो तो क्या मैं वह करना चाहूंगा जो मैं आज करने वाला हूं और जब लगातार कई दिनों तक इसका जवाब नहीं होता है, तो मैं समझ जाता हूं कि मुझे कुछ बदलने की जरूरत है।” पैन्क्रियाज के कैंसर से लड़ाई में जीत हासिल करके लौटने के तुरंत बाद स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सन 2005 में कहे गए एप्पल इंक के सीईओ स्टीव जॉब्स (Steve Jobs Apple CEO) के ये शब्द सिर्फ कार्यक्रम का श्रीगणेश करने के लिए तैयार किया गया भाषण नहीं था, बल्कि उनके अपने अन्तदंद पर विजय का सार था, जिसकी बदौलत गर्मी की छुट्टियों में सेव के बाग में सेव बटोरने का काम करने वाला यह साधारण लड़का हर पीढ़ी का नेतृत्व कर्ता बन सका।

उन्होंने अपने सम्बोधन में आगे कहा  “कोई भी मरना नहीं चाहता। यहां तक कि जिन लोगों को पता है कि वे स्वर्ग में जाएंगे, वे भी नहीं। फिर भी मृत्यु वह गन्तव्य है, जो हम सभी हिस्से में आती है। कोई कभी इससे बच नहीं सका है। यह सब वैसा ही है, जैसा उसे होना चाहिए क्योंकि मृत्यु जीवन का एकमात्र सर्वोत्तम आविष्कार है। यह जीवन को बदलने वाला तत्व है। यह नए के लिए रास्ता बनाने के लिए पुराने को साफ करता है। जैसे अभी आप नए हैं, लेकिन वह दिन आज से बहुत दूर नहीं है, जब एक दिन आप अपने आप पुराने हो जाएंगे और साफ कर दिए जाएंगे। मैं बेहद नाटकीय होने के लिए क्षमा चाहता हूं, लेकिन यह बिल्कुल सच है। आपका समय बहुत सीमित है, इसलिए किसी दूसरे की जिंदगी जीने में उसे बर्बाद न करें। मान्यताओं के शिकजे में न फंसें- जिसमें आप उन परिणामों के साथ जीते हैं, जिसके बारे में दूसरे सोचते हैं। दूसरों के मत और विचारों के शोर को अपने अंदर की आवाज को दबाने न दें और सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने दिल और पूर्वाभासों का अनुसरण करने का साहस रखें। ये दोनों किसी तरह पहले से ही जानते हैं कि आप सच में क्या बनना चाहते हैं। बाकी सब बातें अप्रधान हैं। ” इस लेकज में हम जानते हैं।                                                                                          Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

दी नो एस्सहोल रूलः बिल्डिंग ए सिविलाइज्ड वर्कप्लेस एड सर्वाइविंग वन दैट इज न्ट के लेखक रॉबर्ट सुट्टन स्टीव जॉब्स पर लिखी अपनी बेस्टरोलिंग किताब के अनुभव के बारे में कुछ इस तरह बताते हैं Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक के बारे में ।

स्टीव जॉब्स का प्रारंभिक जीवन 

1955 में सिलिकॉन वैली का सिलिकॉन अब तक सिर्फ रेत था और सन बेक्ड वैली की जमीन अब तक एप्रिकॉट ऑर्किड और चैरी ग्रूव से ढंकी हुई थो। कैलिफोर्निया के दो बड़े शहरों सैन फ्रांसिस्को और सैन जोंस के बीच बसा यह खूबसरत मैदानी क्षेत्र अब तक विश्व की उच्च तकनीकी की राजधानी नहीं बना था। यह अक्रिय, शान्त, ग्रामीण क्षेत्र ईडन (एप्पल से पहले) जन्नत जैसी एक सुकून देय जगह थी, जिसे आगे बढ़ना था। खासतौर पर अगर आप फल खाना पसंद करते हैं। स्टीवेन जॉब्स Steve Jobs Apple CEO इसी घाटी के हृदय में 1955 में जन्मा और उसे फल पसंद थे चेरी, प्लम और सेब उसे रेत भी पसंद थी। खाने के लिए नहीं बल्कि सिलिकॉन बनाने के लिए एक ऐसी सामग्री जिसने तकनीकी क्रांति की रफ्तार देने के रास्ते की जमीन तैयार की। उसकी अपनी क्रांति ।

और किसी भी दूसरी क्रांति की तरह यहां भी कुछ चीजें थीं, जिन्हें आप हासिल करते हैं और जिन्हें आप खो देते हैं। सैंट क्लैरा वैली के साथ भी यही हुआ। उसने एक आकर्षक नाम, मीलों लम्बा औद्योगिक आहाता, कॉम्पलेक्स और डामर, ढेरों रुपए और दुनियाभर में प्रसिद्धि पाई। इसने फल के रूप में एप्पल कम्प्यूटर को पाया, लेकिन अपने ऑर्किड और ज्यादातर दूसरे फलों को खो दिया।                                                                                                       Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

24 फरवरी, 1955 में अविवाहित और उसे पालने में अक्षम माता-पिता ने जन्म के तुरंत बाद स्टीव को कैलिफोर्निया के माउंटेन न्यू के पॉल और क्लैरा जॉब्स को गोद दे दिया। जॉब्स के दत्तक पिता एक कंपनी के लिए मैकेनिक का काम करता थे, जो लेज़र बनाती थी और उसकी मां स्कूल सेक्रेटरी थी। उसके माता-पिता बहुत मेहनती थे, लेकिन जॉब्स परिवार के पास जरूरतों को पूरा करने के बाद अतिरिक्त पैसा नहीं बचता था।

जॉब्स के पिता के हाथों में प्रतिभा थी। पॉल जॉब्स जंक यार्ड से इस्तेमाल की हुई कारें लाते, उन्हें जोड़ते और मुनाफे पर बेच देते। यह स्टीव का कॉलेज फंड होता था। स्टीव ने बचपन के कई घंटे अपने पिता के साथ जंकयार्ड से पुरानी कारों के पार्ट्स खोजने और दुबारा आने वाले खजाने को खोजने में बिताया।

जॉब्स के पड़ोस में लैरी लैंग नाम का व्यक्ति रहता था, जो ह्यूलेट पैकार्ड कंपनी में इंजीनियर था और वह जीनियस था। उसे स्टीव पसंद था। यही वजह थी कि उसने स्टीव को अपने काम में ताका झांकी करने की छूट दे रखी थी। भले ही वह अन्तर्मुखी बच्चा था, लेकिन वह कभी सवाल पूछने से नहीं घबराया और इसी बात ने उसे न सिर्फ इस विषय में पारंगत बना दिया, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए जीवन भर का सम्मोहन भी दे दिया।

स्टीव जॉब्स का पहला सबक 

13 साल की उम्र में जॉब्स की इलेक्ट्रॉनिक्स में रुचि ने फलना-फूलना शुरू कर दिया। एक दिन वह इलेक्ट्रॉनिक गणना मशीन बना रहा था और उसे कुछ पुरज़ों की जरूरत थी । वह जानता था कि यह पुरज़े उसे विशाल इलेक्ट्रॉनिक कंपनी ह्यूलेट-पैकार्ड में मिल जाएंगे, जो उसके घर से बहुत दूर नहीं थी। जॉब्स ह्यूलेटपैकार्ड के सह-संस्थापक बिल यूलेट का नम्बर खोजने लगा। बहुत से बच्चे कैलिफोर्निया के सबसे अमीर और महत्वपूर्ण व्यक्ति का नम्बर डायल करने में घबराते, लेकिन स्टीव जॉब्स के साथ ऐसा नहीं था। उसने निधड़क बिल यूलेट से बीस मिनट तक बात की। ह्यूलेट न सिर्फ प्रभावित हुआ बल्कि इस लड़के के आत्मविश्वास को देखकर आश्चर्यचकित भी था। उसने स्टीव को मशीन बनाने के लिए पुरजे दिए और साथ ही उसके सामने समर जॉब का प्रस्ताव रखा। यह फोन कॉल स्टीव के लिए पहला शुरुआती सबक था, आप जो चाहते हैं, अगर उसके लिए प्रयास करें, तो आपको अक्सर वह मिल जाता है।

दो स्टीव और ब्लू बॉक्स

एक और लड़का, स्टीव से कुछ साल बड़ा, सन्नी वैले में रहता था। उसकी भी इलेक्ट्रॉनिक्स में रुचि थी और उसका भी नाम स्टीव (स्टीव वॉज़निएक) था, जिसे दोस्त ‘वॉज़’ कहकर पुकारते थे। एक जैसी पसंद रखने वाले जल्दी दोस्त बन जाते हैं। यह बात स्टीव जॉब्स और स्टीव वॉज के मामले में भी सही साबित हुई। स्टीव वॉज़निक और स्टीव जॉब्स दोस्त बन गए। वॉज़ वह पहला लड़का था, जिससे मिलकर जॉब्स को एहसास हुआ कि वह इलेक्ट्रॉनिक्स के बारे में उससे कहीं अधिक जानता था। हालांकि वॉज़ बर्कले के कॉलेज में जाता था और जॉब्स होमस्टीड हाई स्कूल में पढ़ता था, लेकिन दोनों मिलकर शरारती योजनाओं पर काम करते थे। दोनों ने मिलकर ‘ब्लू बॉक्स’ बनाए और बेचे, यह घर में बना विशेष तरह का यंत्र था जिसकी बदौलत दुनिया में कहीं भी मुफ्त में लम्बी दूरी के टेलिफोन कॉल किए जा सकते थे। ब्लू बॉक्स की बदौलत ही वॉज़ ने एक बार स्टेट हेनरी किसिंगर का सेक्रेटरी बनकर वेटिकन के पोप को फोन किया। वह भी टॉल फ्री । यह शरारत भरा व्यापार खतरनाक भी था और गैर कानूनी भी, लेकिन इसके बाद दोनों स्टीव को समझने में देर नहीं लगी कि वे बेहतरीन टीम बन सकते हैं, जिसमें वॉज़ इंजीनियर होगा और जॉब्स प्रेरक और सेल्समैन ।                                                                      Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

पैसा बनाने की उनकी यह एक मात्र अनूठी योजना नहीं थी। थोड़े समय के लिए दोनों ने लैविस कॉरल की किताब एलिस इन वंडरलैंड के चरित्रों की तरह वेशभूषा बनाकर शॉपिंग मॉल के बाहर बच्चों का मनोरंजन किया। वे व्हाइट रेबिट और मैड हैटेर बनकर सामान बेचते। जॉब्स को यह काम बिल्कुल पसंद नहीं आया। 1972 में जॉब्स हाईस्कूल ग्रेजुएट हो गया और पोर्टलैंड के रोड कॉलेज में एन्रॉल हो गया। वह यहां भी खुश नहीं था। वह साल का ज्यादातर समय क्लासरूम के बाहर बिताता, हालांकि वह कैम्पस के चारों ओर घूमता रहता, एप्लाइड रिसर्च पर काम करता और 1970 के शुरुआती युवा संस्कृति को आत्मसात करने की कोशिश करता या कैलिग्राफी सीखता था।

स्टीव जॉब्स की भारत यात्रा 

कॉलेज के बाहर तफरीह करने के अलावा भी जॉब्स के दिमाग में बहुत कुछ था। वह अपने क्षितिज और दिशा का विस्तार करना चाहता था। उसने भारत की यात्रा की ताकि एक गुरु खोज सके। वह आश्रम में रुका और उसने हिन्दू धर्म के बारे में पढ़ा। वह शाकाहारी, पर्यावरणविद् और हिप्पी बन गया। उसने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली और बाल भी लंबे रखने शुरू कर दिए। जितना संभव हो, वह नंगे पैर यात्रा करता। वह केवल फल खाता था। उसने स्नान करना भी छोड़ दिया था। भारत की यात्रा ने उसकी समझ को विस्तार दिया, लेकिन उस तरह नहीं जैसा कि उसने सोचा था। भारत में गरीबी, बीमारी और जीवन बिताने की अपरिष्कृत परिस्थितियां देखकर, जॉब ने कहना शुरू कर दिया कि “थॉमस एडिसन ने मानव परिस्थिति में सुधार लाने के लिए किसी भी गुरु से कहीं ज्यादा किया है।”                                                                                              Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

स्टीव जॉब्स का पहल आविष्कार  

यह घर लौटने का समय था, अपने पूर्व चिंतन इलेक्ट्रॉनिक्स पर लौटने का भी। अपने घर लौटते हुए, जॉब्स को अटारी में नौकरी मिल गई। यह वही कंपनी थी, जिसने पॉन्ग नाम का पहला वीडियो गेम बनाया था। पॉन्ग घर में पिंग-पॉन्ग का इलेक्ट्रॉनिक वर्जन था, जिसे घर में बैठकर टीवी सेट पर खेला जा सकता था। जॉब्स का पुराना मित्र वॉज़ इस समय ह्यूवेट-पैकार्ड (एचपी) में जूनियर इंजीनियर था। शाम को घर लौटते वक्त वॉज़ जॉब्स से मिलने अटारी जरूर जाता था। दोनों पूरी रात मुफ्त में गेम खेलने में बिता देते। एक बार अटारी के संस्थापक नोलैन बुशनेल ने दोनों दोस्तों से कहा कि वह पॉन्ग का ऐसा वर्जन चाहते हैं, जिसे व्यक्ति अकेला भी खेल सके। जॉब्स ने नोलैन से कहा कि वह यह काम कर सकता है और दोनों दोस्तों ने लगातार चार रात तक जागकर काम किया। दोनों ने कड़ी मेहनत की, जिसकी वजह से दोनों बीमार भी पड़ गए, लेकिन आखिर में वे सफल रहे। उन्होंने ब्रेकआउट नाम का खेल बनाया। वॉज़ की अतुल्य क्षमता की बदौलत, दोनों ने बेहद कम हिस्सों की बदौलत वह काम किया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

होमबू में माइक्रोकम्प्यूटर

जॉब्स और वॉज़ थोड़ा वक्त होमब्रू कम्प्यूटर क्लब की मीटिंग के लिए भी देते थे। गजेट प्रेमियों का समूह था, जो हर बुधवार की रात मिलता काम के बाद मिले खाली वक्त में बनाए कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के बारे में बातें किया करता था। जनवरी 1975 में मैग्ज़ीन पॉपुलर इलेक्ट्रॉनिक्स ने पहले पर्सनल कम्प्यूटर अल्टेअॅ 8800 के आगमन की घोषणा की। दी अल्टेअॅ एक मेल-ऑर्डर किट था, जिसके पुरजे खुद ही जोड़े जा सकते थे। न्यू मैक्सिको के सबसे बड़े शहर अल्बुकर्क की एमआईटी कंपनी ने इसे बनाया था। इसमें न कीबोर्ड था, न मॉनिटर और यह केवल 250 बाइट्स मेमोरी का था।                                                                               

दी अल्टेअॅ ने बाज़ार में बहुत बड़ा करिश्मा नहीं दिखाया। बाद में किशोर उम्र के युवा हैकर्स बिल गेट्स और पॉल एलन ने जब उसके लिए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज बनाई तब यह थोड़ा प्रचलित हुआ, लेकिन होमब्रू कम्प्यूटर क्लब रोमांचित था। दो अल्टेों पहला कम्प्यूटर था जिसे व्यक्ति खरीद सकता था और इस्तेमाल कर सकता था। से पहले कम्प्यूटर दैत्यकार मेनफ्रेम वाले होते थे। विशाल और विश्वविद्यालय विशेष एयर कंडीशंड कमरे की करते हैं। यह पूरे कमरे की जगह घेरता था। दैत्याकार वाले अधिकतर कम्प्यूटर आईबीएम कंपनी बनाती थी। इन्हें में लाखों डॉलर खर्च हो जाते थे, फिर भी इनका इस्तेमाल वैज्ञानिक और इंजीनियर्स ही कर पाते। घर या ऑफिस की पर रखे जाने वाले कम्प्यूटर जैसा कुछ नही था

होमब्रू के ज्यादातर सदस्यों के लिए अल्टेअॅ एक लुभावनी अभिरुचि था। वाज़ को उस कम्प्यूटर का डिजाइन पसंद था, लेकिन स्टीव की नज़र में इसमें काफी कुछ छिपा था। वह चाहता था ऐसा कम्प्यूटर बनाया जाए जो छोटा, उपयोगी और इतना आसान हो कि दुनिया का हर व्यक्ति उसे खरीदना चाहे। उसने कल्पना की कि जिन लोगों को इलेक्ट्रॉनिक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता वे भी उसका इस्तेमाल लिखने, गणित के सवाल हल करने, प्रयोग करने और गेम्स खेलने के लिए करें। उसे यकीन था कि अगर ऐसा कम्प्यूटर बना लिया जाए तो वह लोगों की जिंदगी बदल सकता है।                                                                                                 Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

दूसरी ओर वाज़ का उद्देश्य केवल अल्टेों से बेहतर कम्प्यूटर वनाकर होमवू क्लव के सदस्यों के बीच अपनी धाक जमाना था। वॉज़ इस काम में सफल भी रहा। इसमें माइक्रोप्रोसेसर इस्तेमाल किया गया था, जिसे वॉज़ कम्प्यूटर शो से 20 डॉलर में खरीदकर लाया था। होमब्रू के सदस्यों ने उसके माइक्रो कम्प्यूटर की खूब प्रशंसा की। वॉज के बनाए कम्प्यूटर को देखकर जॉब्स को अपना सपना हकीकत में तब्दील होता दिखा। उसने वॉज से कहा कि हम इसे 20 डॉलर में बनाएंगे, 40 में बेचेंगे!

जॉब्स की महत्वाकांक्षा पर विश्वास करते हुए वॉज साझेदारी के लिए तैयार हो गया। पैसे इकट्ठा करने के लिए जॉब्स ने अपनी वॉक्सवैगेन माइक्रोबस बेच दी, जबकि वॉज ने एचपी के प्रोग्रामेबल कैल्कुलेटर को बेच दिया। साथ ही उन्होंने अपने बनाए बहुत सारे गजेट बेच दिए ताकि अपना पहला कम्प्यूटर बनाने के लिए पैसे जुटा सकें।

एप्पल कम्प्यूटर (The Apple)

1 अप्रैल 1976 में, स्टीव जॉब्स और स्टीव वॉज़निएक ने कैलिफोर्निया के लॉस आल्टोस में जॉब्स के पारिवारिक घर में बने गैराज में दुकान खोली। बहुत सारे उत्साह और थोड़े रुपयों के साथ दोनों दोस्तों ने कम्प्यूटर बनाना शुरू किया। उन्होंने अपनी बहुत छोटी सी कंपनी को एप्पल कम्प्यूटर नाम दिया और अपनी पहली मशीन दी एप्पल The Apple बनाई। अल्टेों की तरह ही आपको एप्पल I को अपने मॉनिटर और कीबोर्ड से जोड़ना होता है, लेकिन यह अल्टेों से कहीं आसान और कार्यक्षम था।

‘एप्पल’ कम्पनी का नामकरण

एप्पल नाम के बारे में भी अनेक कहानियां लोकप्रिय हैं। एक कहानी के मुताबिक बीटल्स स्टीव जॉब्स का पसंदीदा म्यूजिक बैंड था और उसने बोटल्स के एप्पल रिकॉर्ड लेवल के नाम पर अपनी कंपनी का नाम रखा। दूसरी कहानी के मुताबिक जॉब्स ने ऑरेगॉन में रहते हुए अपना ज्यादातर वक्त सेब इकट्ठे करने में बिताया था। अपनी कंपनी का नाम एप्पल रखना अपने पसंदीदा फल के प्रति सम्मान था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह कंपनी को ऐसा नाम देना चाहता था, जो परिचित लगे और जटिल भी न हो। आम आदमी को नई वह तकनीकी से डराना नहीं चाहता था। एपल के लोगों को देखने पर मालूम पड़ता है कि उसका एक हिस्सा काटा हुआ है। इसका कारण था कि वह नहीं चाहता था कि यह चेरी जैसा दिखे।

स्टीव जॉब्स के संघर्ष का जीवन 

1976 में जॉब्स और वॉज़निएक ने स्थानीय कम्प्यूटर स्टोर बाइट शॉट को 500 डॉलर के हिसाब से 50 एप्पल कम्प्यूटर बेचे। जहां उनका प्रति कम्प्यूटर 666.66 डॉलर में बिका। फिर भी उनका व्यापार उतार-चढ़ाव से गुजर रहा था। बाइट शॉट ने और 50 एप्पल के ऑर्डर दिए। प्रत्येक एप्पल को बनाने की कीमत लगभग 100 डॉलर थी, लेकिन उनके पास इतने पुरजे खरीदने के लिए पर्याप्त रुपए नहीं थे। जॉब्स ने यॉज़ के साथ यूलेट पैकार्ड में काम करने वाले दो कर्मियों से 5,000 डॉलर का ऋण लिया, फिर उन्होंने स्थानीय पार्ट सप्लायर को इस बात के लिए राजी किया कि वह उन्हें 30 दिन की शुद्ध साख पर 15,000 डॉलर के पुरजे दें। तीनों ने मिलकर गैराज में एप्पल का निर्माण किया और दस दिनों के अन्दर एप्पल का ऑर्डर पूरा कर दिया।

बहरहाल दबाव और बढ़ गया था। एप्पल के सफल होने और उसका ऑर्डर पूरा करने के बावजूद एक महीने तक वॉज ने भी एचपी की चिप डिजाइनिंग की नौकरी नहीं छोड़ी। इस दौरान अकेला जॉब्स एप्पल को बड़ा व्यापार बनाने की कोशिश में जुटे थे ताकि कम्प्यूटर बनाने के लिए पुरजे और उपकरण खरीदने में पैसों की दिक्कत न आए। जॉब्स ने बैंक और निवेशकों के दरवाजों के चक्कर काटे, लेकिन अधिकतर व्यापारियों ने इन दोनों हिप्पो पर यकीन नहीं किया जॉब्स जहां भी गए, उन्हें यही जवाब मिला ‘सवाल ही नहीं उठता’ ‘क्या तुम मजाक कर रहे हो।

जॉब्स हार मानने वालों में से नहीं थे। उनकी इस लगन को देखते हुए वॉज़ ने भी प्रयास तेज कर दिए। वॉज ने एचपी की नौकरी छोड़ने की अर्जी लगा दी। 5 मई को एचपी ने वॉज़ की अर्जी स्वीकार कर ली। जॉब्स और वॉज़ दोनों अब मैदान में थे। हालांकि इस वक्त तक कोई नहीं, यहां तक कि जॉब्स भी नहीं जानते थे कि आगे क्या होगा।

1976 के पतझड़ तक वॉज़ ने एप्पल । नमूना तैयार कर लियाऔर वॉज़ को लगा कि यह बड़ी सफलता बन सकती है। हालांकि में कम्प्यूटर बनाने के लिए उनके पास अब भी पर्याप्त पैसा नहीं इसीलिए उन्होंने कॉमोडोर को इसका प्रस्ताव दिया, जो उस दौरान एमओएस (मॉस) टेक्नोलॉजी साथ लाया था। यही कंपनी थी, जिसने एप्पल ।। में इस्तेमाल होने वाला सीपीयू बनाया। हालांकि वे एक बार फिर असफल हो गए।                                                              Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

एप्पल की सफलता की कहानी

आखिरकार, एक चमत्कार हुआ। जॉब्स रुपयों की व्यवस्था के सिलसिले में अटारी के बॉस नॉलैन से मिले जिसने उन्हें कैपिटल फर्म के प्रमुख डॉन वैलेन्टाइन से मिलवाया। उस वक्त वैलेन्टाइन की जॉब्स के प्रोजेक्ट में कोई रुचि नहीं थी, इसलिए उसने जॉब्स को टालते हुए अरमास क्लिफोर्ड ‘माइक’ मारक्कुला जूनियर से मिलने की सलाह दी। मारक्कुला इंटेल के लिए काम करता था, जो विश्व की सबसे बड़ी चिप मैन्युफैक्चरिंग कंपनी थी और लाखों डॉलर कमा रही थी। हालांकि वह उम्र के केवल तीसवें साल में था, फिर भी उसने रिटायरमेंट ले लिया था। जब वह इन दोनों हिप्पी लड़कों से मिला और एप्पल II को देखा तो वह जानता था कि ये दोनों लड़के कुछ बड़ा कर दिखाने का माद्दा रखते हैं। उसने दोनों को अपने कमाए 91,000 डॉलर दिए, जिसकी बदौलत बैंक ऑफ अमेरिका से उन्हें 2,50,000 का क्रेडिट मिला और वह एप्पल कम्प्यूटर्स का तीसरा साझेदार बन गया।

एप्पल 2 (Apple 2)

वाज़ और जॉब्स बेहतर कम्प्यूटर एप्पल बनाने के काम में पहले ही जुट किट की तरह बेचे जाने वाले अन्य पर्सनल कम्प्यूटर्स की जगह एप्पल 2 प्लास्टिक केस में आता था और टाइपराइटर की तरह दिखता था। यह पहला कम्प्यूटर था, जिसमें की बोर्ड पहले ही जुड़ा हुआ था। इसमें पहली बार कलर ग्राफिक की खासियत जोड़ी गई थी। यह जॉब्स और बॉज़ की एक और उपलब्धि थी। इसके अलावा वॉज ने ऐसी तकनीकी विकसित की, जिसकी बदौलत टीवी माइक्रोप्रोसेसर को रन कर सकता था। इंजीनियरिंग की इस युक्ति ने सोच के सभी बंधनों को तोड़ दिया, जो पर्सनल कम्प्यूटर को पुराने जमाने के मेनफ्रेम से जोड़कर देखता है। उसके बाद से, पर्सनल कम्प्यूटर्स बेबी मेनफ्रेम नहीं रह गए। एप्पल के लिए बॉज़ ने पर्सनल कम्प्यूटर के लिए फ्लॉपी डिस्क ड्राइव भी डिजाइन किया ताकि यूजर आसानी से सूचनाएं सुरक्षित कर सकें और उसे एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में ले जा सकें। एप्पल 2 अपने पिछले संस्करण से कहीं परिष्कृत था।

एप्पल 2 कम्प्यूटर की दुनिया में सफल था। अपने पहले साल में इसने 2.7 मिलियन डॉलर की प्रभावी विक्री की। तीन वर्षों में कंपनी की बिक्री 200 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई। अमेरिकी इतिहास में यह व्यापारिक वृद्धि का अपूर्व मामला था। जॉब्स और वॉज़ ने पर्सनल कम्प्यूटर के नए बाजार के दरवाजे खोल दिए थे। पर्सनल कम्प्यूटर सूचनाओं को तैयार करने का नया साधन बन गया था।                                                                                            Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

एप्पल 3 (Apple 3)

1980 तक पर्सनल कम्प्यूटर का युग प्रगति पर था। एप्पल पर लगातार दबाव था कि वह अपने उत्पादों में सुधार लाए क्योंकि बाजार में प्रतियोगियों की गिनती बढ़ रही थी। मई 1980 में एप्पल III आया, लेकिन जॉब्स की अपेक्षाओं के उलट यह कम्प्यूटर असफल रहा। इसकी सबसे बड़ी समस्या थी कि आधुनिक बनने के फेर में यह कहीं अधिक तकनीकी हो गया और मार्केटिंग समस्याओं से ग्रस्त हो गया। उसे बाज़ार से हटा लिया गया और उस पर फिर से काम करके एक बार फिर प्रस्तुत किया गया। हालांकि एप्पल श्रृंखला का यह तीसरा कम्प्यूटर उसके बावजूद कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा पाया, लेकिन एप्पल को बाज़ार की ओर से एक तोहफा जरूर मिला। इसी साल एप्पल कम्प्यूटर कंपनी सफलतापूर्वक स्टॉक मार्केट में पब्लिक ट्रेडेड कंपनी बन गई।

स्टीव जॉब्स का एप्पल के सीईओ बनने का सफर

एप्पल विकास कर रहा था। जॉब्स एप्पल को मार्केटिंग की ताकत थे, लेकिन उन्हें मदद के लिए कॉर्पोरेट प्रबंधन प्रतिभा की जरूरत थी ताकि वह चिंतामुक्त होकर एप्पल का विस्तार कर सकें। 1983 में जॉब्स पेप्सी-कोला के एग्जीक्यूटिव जॉन स्कूली से मिले। उन्हें जॉन में संभावनाएं नजर आई। उन्होंने जॉन को एप्पल का सीईओ बनने का प्रस्ताव दिया। जॉन ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और एप्पल का सीईओ बन गया। 1983 में जॉब्स ने लीज़ा कम्प्यूटर बाज़ार में उतारा। यह उन लोगों के लिए डिजाइन किया गया था, जिन्हें कम्प्यूटर का न्यूनतम ज्ञान था। लीज़ा बाजार में बहुत कम बिका क्योंकि यह बाज़ार में मिलने वाले दूसरी कंपनियों के पर्सनल कम्प्यूटर की तुलना में बेहद महंगा था। एप्पल का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्द्धा आईबीएम था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि 1983 तक एप्पल ने अपना आधा मार्केट शेयर आईबीएम को गंवा दिया

उत्पादों के विकास के प्रति जॉब्स की सनक एप्पल के लिए समस्याएं पैदा कर रही थी। लगातार कंपनी के रुपए नए उत्पादों के विकास पर खर्च हो रहे थे, लेकिन मुनाफा हाथ नहीं आ रहा था। लोगों को महसूस हो रहा था कि जॉब्स केवल अपनी सनक को तवज्जो दे रहे हैं। स्टीव के खिलाफ अभी कंपनी में कुलबुलाहट शुरू हुई ही थी कि 1984 में एप्पल ने नया क्रांतिकारी मॉडल मैकिनटोश बाज़ार में उतारा। यह पहला कम्प्यूटर था जिसमें ग्राफिकल यूजर इंटरफेस थे। इसने मैकिनटोश को इस्तेमाल में बेहद आसान बना दिया, लेकिन यह बहुत अच्छा व्यापार नहीं कर पाया। साथ ही यह एप्पल में जॉब्स के उतार का संकेत दे रहा था।                                                       Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

स्टीव जॉब्स और नेक्स्ट कम्पनी

जॉब्स एप्पल के लिए करिश्माई प्रबंधक था, साथ ही वह अनिश्चित और मिजाज़ वाला व्यक्ति था और 1985 में जॉन और जॉब्स के बीच कंपनी की आंतरिक शक्ति को लेकर संघर्ष की चिंगारियां दिखाई देने लगीं। शक्ति संघर्ष का अंत कुछ इस तरह हुआ कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टरर्स के रूप में जॉब्स के अधिकारों में कमी ला दी गई। उनकी जिम्मेदारियां भी घटा दी गईं। अधिकार शून्य जॉब्स रबर स्टैम्प बनकर नहीं रहना चाहते थे। उन्होंने एप्पल से इस्तीफा दे दिया और अपने सारे शेयर्स बेच दिए, हालांकि वह इसके बावजूद कुछ समय के लिए एप्पल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के चेयरमैन रहे।

लोग समझते थे कि जॉस एप्पल से निकलने के बाद अपनी पहचान खो देंगे और धीरे-धीरे गर्त में पहुंच जाएंगे। न्यूजवीक को सितम्बर 1985 में दिए साक्षात्कार में जॉब्स ने बताया कि जब उन्होंने एप्पल छोड़ा तो उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनकी कमी किसी को महसूस नहीं हो रही थी। इस घटना ने उन्हें तोड़ दिया। वह छुट्टियों पर निकल गए। उन्होंने पेरिस, ट्सकैनी, स्वीडन और यूएसएसआर की यात्रा की। अपनी यात्रा के दौरान वह नोबेल विजेता और स्टेनफोर्ड के बायोकेमिस्ट पॉल वर्ग से मिले। बातों-बातों में स्टीव ने बर्ग से पूछा कि वैज्ञानिक डीएनए को उद्दीपन करने के लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल क्यों नहीं करते। बर्ग इसका स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए, लेकिन स्टीव को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था।

अब तक साझा रूप से सफलता हासिल करने वाले जॉब्स ने फैसला कर लिया कि वे अपने बलबूते पर खड़े होकर दिखाएंगे। उन्होंने अपने पुराने कर्मचारियों को इकट्ठा किया और नेक्स्ट के नाम से एक कंपनी शुरू कर दी। नेक्स्ट ने शिक्षण बाज़ार को लक्ष्य बनाते हुए सेन फ्रांसिस्को में भव्य आयोजन किया और आधुनिक विशेषताओं से युक्त कम्प्यूटर बाजार में उतारा और उसे नेक्स्ट क्यूब का नाम दिया, लेकिन अपनी महंगी कीमत की वजह से यह कम्प्यूटर असफल रहा।

आखिरकार नेक्स्ट को अपने कदम पीछे खींचने पड़े और वह सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के काम तक सिमट कर रह गई। इस बार फिर जॉब्स को असफल मानने वालों की सूची और लम्बी हो गई। लेकिन जॉब्स को लोगों की परवाह नहीं थी। जॉब्स और नेक्स्ट साथ मिलकर भविष्य की दो बड़ी योजनाओं पर काम कर रहे थे। पहली योजना थी, नेक्स्ट का सॉफ्टवेयर इंटरफेस बिल्डर। दूसरी योजना यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम थी।                                                                         Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

स्टीव जॉब्स का वैवाहिक जीवन

इसी दौरान, 18 मार्च 1991 में जॉब्स ने स्टेनफोर्ट में एमबीए की छात्रा लगिनी पवित से शादी कर ली। योसेमाइट नेशनल पार्क में आयोजित यह शादी बहुत साधारण समारोह में हुई, जिसे स्टीव के गुरु जैन बौद्ध त कॉबिन थिनी ने सम्पन्न करवाया। यही वह गुरु थे, जिन्होंने स्टीव को जैन संत बनने की जगह एप्पल शुरू करने की सलाह दी थी। इसी वर्ष पॉवेल ने स्टीव के पहले बेटे रोव परत को जन्म दिया। पांच साल बाद पविल ने एरिन सिएना और तीन साल बाद ईव को जन्म दिया। लॉरिनी से मिलने से पहले किस बेन्नन की जिंदगी में आई, लेकिन दोनों ने शादी नहीं की। हालांकि क्रिस और जॉब्स की एक बेटी हुई जिसका नाम लीसा बेन्नन जॉब्स था। इसी के नाम पर जॉब्स ने अपने कंप्यूटर का नाम रखा था। बाद में पॉवेल और स्टीव के परिवार में लीना भी शामिल हो गई।

दी सैकंड कमिंग ऑफ स्टीव जॉब्स के लेखक एलन उशमैन के अनुसार जॉब्स ने एक बार जोन बैज के साथ डेटिंग की थी। रोड कॉलेज में जॉब्स की दोस्त रह चुकी एलिजावेथ होम्स को लगता था कि जॉब्स एक दिन जोन का प्रेमी बनेगा क्योंकि वह गायक बॉब डायलेन की प्रेमिका रह चुकी थी, जिसकी नकल स्टीव अपनी युवावस्था में करता था। आईकॉन स्टीव जॉब्स के लेखक जेफ्रे एस यंग और विलियम एल सिमॉन के अनुसार, अगर 41 की उम्र पार कर चुकी जोन बच्चों को जन्म देने की संभावना से इनकार नहीं करती तो जॉब्स उससे शादी जरूर कर लेता। बहरहाल औपचारिक तौर पर लॉरिनी जीवनसाथी के रूप में जॉब्स का आखिरी पड़ाव थी।                                  Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

स्टीव और पिक्सर (Pixar)

लेकिन कैरियर के मामले में नेक्स्ट स्टीव जाब्स का आखिरी पड़ाव नहीं था। 1986 में जॉब्स ने फिल्म निर्माता जॉर्ज करिअर के मामले में नेक्स्ट स्टीव जॉब्स का आखिरी पड़ाव से लुकसफिल्म्स नाम की एक छोटी कंपनी 10 मिलियन डॉलर देकर खरीद ली और उसका नाम पिक्सर रखा। पिक्सर की कम्प्यूटर एनिमेशन में विशेषज्ञता थी, लेकिन नौ सालों से इसने एक भी फिल्म नहीं बनाई थी। जॉब्स के कमान संभालते ही पिक्सर ने अपनी पहली फिल्म के रूप में टॉय स्टोरी प्रदर्शित की, जो बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। इस फिल्म ने उस साल प्रदर्शित फिल्मों से कहीं अधिक कमाया और एनिमेशन फिल्मों के इतिहास में सबसे सफल रही। गोल्डन ग्लोब और एकेडमी अवॉर्ड में भी यह फिल्म नामांकित हुई। उस वक्त पिक्सर पर केन्द्रित होने के कारण जॉब्स ने दिसम्बर 1996 में नेक्स्ट को 402 मिलियन डॉलर में एप्पल को बेच दिया। इस खरीद ने जॉब्स की एप्पल में वापसी पुख्ता कर दी, लेकिन पिक्सर में व्यस्त रहने की वजह से जॉन्स ने सीईओ के पार्ट टाइम कंसल्टेंट के रूप में वापसी की शर्त रखी।

स्टीव और डिज्नी (Disney)

उधर पिक्सर ने टॉय स्टोरी 2, ए बग्स लाइफ भी बनाई, मॉनस्टर, इंक, फाइंडिंग नीमो भी बनाई। ये सभी फिल्में बेहद सफल रहीं। 2003 में जॉब्स और डिज्नी के सीईओ माइकल इजनर ने पिक्सर और डिज्नी की नई संविदा पर हस्ताक्षर किए। दस महीने बाद ही, 2004 की शुरुआत में दोनों कंपनियों ने अपनी सौदेबाजी को बिना किसी समझौते के खत्म कर दिया, जो दी इंक्रिडिक्ल्स के साथ खत्म होता नज़र आया| जॉब्स ने फिल्म की आय में बेहतर प्रतिशत की मांग की, लेकिन डिज्नी ने इसके लिए मना कर दिया। जॉब्स दूसरे वितरकों की खोज करने लगे। जॉब्स की पिछली सफलताओं को देखते हुए उन्हें सभी अपनी ओर खींचना चाहते थे। 2005 में डिज्नी ने पिक्सर के सभी स्टॉक ट्रांजेक्शन 7.4 विलियन देकर खरीद लिए जिसने 7 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ जॉब्स को डिज्नी के सबसे बड़े हिस्सेदार के रूप में खड़ा कर दिया। वे डिज्नी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल हो गए।

स्टीव जाब्स की एप्पल में वापसी

1990 के दौर में जहां स्टीव लगातार आगे बढ़ रहे थे, वहीं उनकी बनाई कंपनी संघर्ष कर रही थी। एप्पल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की नज़र में तत्कालीन सीईओ गिल एमेलियो एप्पल कंपनी की कमान नहीं संभाल पा रहे थे, जिसके कारण 1997 में जॉब्स एप्पल के अंतरिम सीईओ बन गए। जॉब्स ने इस बार एप्पल के नेतृत्व की बागडोर आईसीईओ शीर्षक के साथ संभाली। मार्च 1997 में उन्होंने अनेक योजनाओं जैसे न्यूटन, साइवरडॉग और ओपेनडॉक पर कुल्हाड़ी चलाई ताकि कंपनी के लिए मुनाफा हासिल किया जा सके। एप्पल के सुस्त पड़े कर्मचारी गेटिंग स्टीव के डर से एक बार फिर सक्रिय हो गए, जिसका मतलब था, स्टीव की अपेक्षाओं के मुताबिक काम न करने का मतलब है कि अगर स्टीव से सामना हुआ तो उसी जगह, उसी वक्त नौकरी से निकाल दिया जाएगा।                                                                                        Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

एप्पल की सफलता

तीन साल बाद स्टीव कम्पनी के स्थायी सीईओ बन गए। जॉब्स के कड़े नियंत्रण और आईमैक श्रृंखला के कम्प्यूटर की बदौलत एप्पल एक बार फिर मुनाफा कमाने लगा। पहले छह सप्ताहों में 2,78,000 आईमैक बिके। आईमैक श्रृंखला के चमकदार और आकर्षक डिजाइन ने एप्पल के लिए अच्छा काम किया, इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी इसने अपनी दस्तक दी। एप्पल वायरलेस तकनीकी एयरपोर्ट का अगुवा बना, जिसने यूजर्स को इंटरनेट सर्फ करने और बिना किसी उपकरण में प्लग किए सीधे कम्प्यूटर से प्रिंट पाने में सक्षम बनाया। इसके अलावा अनेक कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आईबुक और पॉवरमैक, पोर्टेबल म्यूजिक प्लेयर यानी आईपॉड और डिजिटल म्यूजिक सॉफ्टवेयर जैसे आईट्यून शामिल था, बड़ी सफलता साबित हुए।

जिंदगी से जंग

बडे  सफल सौदों और सीईओ या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पद के अलावा कुछ और भी था, जो स्टीव का इंतजार कर रहा था। एक बार फिर उनके लिए परिस्थितियां भयानक बन गईं। जून 2004 की एक सुबह 7.30 बजे उनका बॉडी स्कैन किया गया और यह स्पष्ट हो गया कि स्टीव को पैन्क्रियाज कैंसर है। स्टीव ने पहले कभी इस तरह के कैंसर के बारे में नहीं सुना था। डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि यह बहुत असामान्य प्रकार का कैंसर है, जिसका इलाज संभव नहीं है। डॉक्टर ने जवाब दे दिया कि उनकी ज़िंदगी के तीन से छह महीने ही बचे हैं। डॉक्टर ने जॉब्स को घर जाने और अपने सभी काम निपटाने की सलाह दी। स्टीव के शब्दों में इसका मतलब था कि मुझे मरने की तैयारी कर लेनी चाहिए। अपने बच्चों को कुछ महीनों के अंदर वह सब कहना जो मैं अगले दस साल में कहता। इसका मतलब था कि सबकुछ शांत हो जाए ताकि आपका परिवार जितना अधिक संभव हो उसे सह सके। इसका मतलब था आपकी तरफ से अलविदा कहना।

स्टीव का अगला दिन डायग्नॉसिस के साथ बीता। उसके बाद बायोप्सी हुई, जिसमें डॉक्टर ने उनके गले के जरिए एंडोस्कोप को पेट के जरिए आंत तक पहुंचाया, फिर पैन्क्रियाज़ में सुई लगाई ताकि ट्यूमर से कुछ कोशिकाएं निकाल सकें। जब उन्होंने स्टीव की कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप में देखा तो वे हैरान रह गए। यह अपनी तरह का दुर्लभ कैंसर था, जिसकी सर्जरी की जा सकती थी। 31 जुलाई, 2004 को स्टीव की सर्जरी की गई और उन्होंने इस घातक रोग से लड़ाई जीत ली।

आईफोन (iphone)

इधर स्टीव को लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म था। स्टीव के नाम एक के बाद एक अप्रमाणित जीवनियां प्रकाशित होने लगीं। उधर खुद को बाज़ार विशेषज्ञ मानने वाले दावा करने लगे कि स्टीव के साथ एप्पल भी खत्म हो जाएगा, लेकिन स्टीव की शानदार वापसी ने इन अटकलों और जीवनियों को विराम दे दिया। इसके बाद वे पिक्सर और एप्पल के काम से नए उत्साह के साथ जुड़ गए। 2007 में स्टीव ने आईफोन के जरिए लोगों को एहसास दिलवाया कि वे अपनी बीमारी से उबर चुके हैं। साथ ही उन्होंने एप्पल कम्प्यूटर को औपचारिक रूप से एप्पल इंक में तब्दील कर दिया।

दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति

27 नवम्बर, 2007 में फॉर्च्यून मैग्जीन ने जॉब्स को मोस्ट पावरफुल पर्सन घोषित किया। कैलिफोर्निया के हॉल ऑफ फेम में उन्हें सम्मानित करने के लिए कैलिफोर्निया के गवर्नर अरनॉल्ड श्वार्ज़नेगर और फर्स्ट लेडी मारिया श्रीवर आए। इतना ही नहीं फोर्स की बिलिनियर्स 2008 की सूची ने जाहिर किया कि वे 5.4 बिलियन डॉलर के साथ विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में शामिल हैं लेकिन स्टीव की यह खुशियां भी स्थायी नहीं रहीं।

स्टीव जाब्स का अंतिम जीवन

जून 2008 में अचानक एप्पल के एक समारोह में स्टीव बहुत ज्यादा दुबले नज़र आए। उनकी तबीयत फिर बिगड़ने लगी थी। उन्होंने 5 जनवरी, 2009 को घोषणा की कि ‘वे हॉर्मोन असंतुलन से गुजर रहे हैं, जिसकी वजह से उनके शरीर में प्रोटीन की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। इस पोषण समस्या का इलाज बहुत सरल और सीधा है और वे अपना उपचार शुरू कर चुके हैं और ठीक होने की अवधि के दौरान वे एप्पल के सीईओ बनें रहेंगे। इसी बीच 14 जनवरी को एप्पल के आंतरिक मेमो में स्टीव जॉब्स ने लिखा, ‘]मुझे मालूम हुआ है कि मैं सच में जितना सोचता था, मेरे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे उससे कहीं ज्यादा जटिल है।” और इसी के साथ जॉब्स ने जून 2009 के अंत तक यानी 6 महीने तक की छुट्टी की अर्जी लगा दी ताकि वे अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे सकें।                                                                               Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

पहले भी स्टीव की अनुपस्थिति में सीईओ का पद संभाल चुके चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर टिम कुक ने एक बार फिर कंपनी के कार्यकारी सीईओ का पद संभाल लिया है। टिम के अलावा एप्पल में वर्ल्डवाइड प्रोडक्ट मार्केटिंग के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट फिल शिलर, इंडस्ट्री डिजाइन के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट जॉनथन आईव, रिटेल एक्सपीरिएंस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट रॉन जॉनसन और सीनियर एप्पल डायरेक्टर बिल कैम्पबेल जैसे बड़े नाम भी हैं, जो इस सिंहासन को संभाल सकते हैं। फिर भी इंटरनेट से लेकर अखबारों तक यह खबर विशेषज्ञों के माथे पर शिकन लाने और बहस की चिंगारी को तूल देने के लिए काफी है कि एप्पल के आईगॉड के नाम से लोकप्रिय स्टीव की जगह लेने वाला कौन होगा या क्या उसके बाद कंपनी पहचान बनाए रख पाएगी या पूरी तरह खत्म हो जाएगी।

स्टीव जाब्स की निधन

सन् २००३ में  स्टीव जाब्स कोपैनक्रियाटिक कैन्सर की बीमारी हुई थी जिसके चलते  उन्होने इस बीमारी का इलाज ठीक से नहीं करवाया। जॉब्स की ५ अक्टूबर २०११ को ३ बजे के आसपास पालो अल्टो, कैलिफोर्निया के घर में निधन हो गया। उनका अन्तिम सन्स्कार अक्तूबर २०११ को हुआ। उनके निधन के मौके पर माइक्रोसाफ्ट और् डिज्नी जैसी बडी बडी कम्पनियों ने शोक मनाया। सारे अमेंरीका में शोक मनाया गया। वे निधन के बाद अपनी पत्नी और तीन बच्चों को पीछे छोड़ गये थे ।

आईगॉड एप्पल

पहचान और अस्तित्व का यह सवाल लोगों के दिमाग में इसलिए उठ रहा था क्योंकि संभवतया एप्पल स्टीव के नाम से शुरू होकर स्टीव पर ही खत्म होता था । उनकी सुई इस बात पर आकर अटक गई थी कि स्टीव खत्म तो एप्पल खत्म। दरअसल पूरे एप्पल ब्रांड ने अपने आपको सीईओ जॉब्स से अभेद्य रूप से इस तरह बांध रखा था  कि एक के बिना दूसरे की कल्पना करना भी मुश्किल है। हालांकि, 21वीं सदी के एप्पल की खासियतों, खूबसूरत डिजाइन के लिए वे अकेले जिम्मेदार नहीं थे । यह हजारों कुशल डिजाइनर और इंजीनियर का कमाल था, लेकिन यह भी सच है कि जॉब्स एप्पल के दर्शनदृष्टा थे , वे पूर्णतावादी थे ।

किसी भी उत्पाद के प्रति उनकी और बेहतर की चाह जो कभी खत्म नहीं होती, केवल उनकी अटल कार्य नीति से मेल खाती थी । उनके अंदर अपने कर्मचारियों को प्रेरित करने की अनोखी क्षमता थी। जब उनसे कर्मचारी कहते थे  कि यह काम नहीं हो सकता तो वे उनकी आत्मा को झकझोर देते हैं और उस असंभव को संभव बनाते थे। स्टीव किसी भी उत्पाद के बनने से लेकर लॉन्च होने तक उस काम में खुद को झोंक देते थे। उनकी इन्हीं खासियतों की वजह से लोग मानते हैं कि यह आईगॉड एप्पल का अवतार है। लोग इस अवतार के लौटने का इन्तज़ार कर रहे हैं। बेशक भविष्य में नए स्टीव पैदा हो सकते हैं, लेकिन जॉब्स की मौलिकता का पुर्नजन्म नहीं हो सकता। आज एप्पल टीम कुक  (Tim Cook) के नेतृत्व में दुनिया की अग्रणी कम्पनी के रूप में कार्य कर रही है।

स्टीव जाब्स के दो रूप

फरवरी 2009 में शोध संस्थान ग्लासडोर ने अपने सर्वे में खोजने की कोशिश की कि किस  कंपनी के कर्मचारी अपने बॉस और अपने उत्पाद को कितना पसंद करते हैं। इस अध्ययन में मुकाबला माइक्रोसॉफ्ट के स्टीव बॉलमर, पाम के ईड कॉलिंगन, रिम के को-सीईओ और एप्पल के स्टीव जॉब्स के बीच था । जब परिणाम आया तो सभी आश्चर्यचकित थे। बॉलमर को 44 प्रतिशत, ईड को 36 प्रतिशत, रिम को 70 प्रतिशत जबकि मोटोरोला को सबसे कम 10 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 91 प्रतिशत कर्मचारियों ने माना कि वे स्टीव जॉब्स को पसंद करते हैं और उनके साथ काम करना उन्हें अच्छा लगता है।

इस अध्ययन के उलट स्टीव के पूर्व सहयोगी के अनुसार वह अक्खड़, उत्साही, आक्रामक और मुश्किल व्यक्तित्व वाला व्यक्ति हैं। जीवनी कार एलन डचमैन ने अच्छे और बुरे स्टीव के भावों की खोज की ताकि स्टीव के चरित्र की दोहरी प्रकृति को दर्शा सकें। उन्होंने पाया कि स्टीव नायक बनाने और अपमानित करने में भी दक्ष है। नेक्स्ट के दौरान उसका यह रूप नज़र आया। अपने कर्मचारियों से सर्वश्रेष्ठ पाने के लिए, स्टीव बारी-बारी से उनकी प्रशंसा करके उन्हें नायक बना देता करता ताकि अगर वह कभी किसी कर्मचारी के काम में कमी निकालते हुए उसे और कभी अपमानित ए बोज़ो या ब्रेन-डेड स्टुपिड कहे तो वह उसे सुधार कर फिर नायक बनने के लिए कुछ भी कर गुजरे।

स्टीव के प्रशंसकों की राय में यह गलत दृष्टिकोण है। उनका कहना है कि स्टीव परफेक्शनिस्ट हैं और अगर काम उनके मुताबिक हो तो उसकी प्रशंसा करने का अवसर वे हाथ से नहीं जाने देते, लेकिन अगर काम में कमी हो तो वे उसे बर्दाश्त नहीं करते। हालांकि स्टीव ने कभी अपनी कुछ बुरी आदतों में सुधार लाने की कोशिश नहीं की जैसे हैंडीकैप पार्किंग स्पॉट में अपनी कार पार्क करना और लोगों के सामने आते वक्त अपने कपड़ों, बालों पर ध्यान न देना। एक बार किसी ने स्टीव से इसकी वजह जानने की कोशिश की तो उन्होंने जवाब दिया ”मैं अपनी हर सुबह इस बात के लिए बर्बाद नहीं कर सकता कि मैं क्या पहनने जा रहा हूं”। सैन जोस के स्थानीय अखबार में लेखक डेविड प्लॉटनिक ऑफ के अनुसार जॉब्स यह नहीं कहते कि वे सही हैं और सामने वाला गलत हैं। उनका रवैया कुछ इस तरह रहता है कि मैं इस मुद्दे पर सही हूं और सामने वाला व्यक्ति मूर्ख, लेकिन उनकी इस खासियत को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता कि वह चरम आत्मविश्वास के साथ जन्मे थे ।                                                      Steve Jobs Apple CEO – स्टीव जॉब्स एप्पल के जनक

स्टीव जाब्स के आदर्श और मूर्तियां

स्टीव जाब्स अपनी युवावस्था में स्टीव बॉब डायलैन के पोस्टर को मूर्ति की तरह पूजते थे। अपने घर के पिछले हिस्से में घंटों बैठकर वह डायलेन की धुनों को अपने गिटार पर बजाते। आज भी वह डायलैन के बड़े प्रशंसक हैं। वह हेनरी फोर्ड, थॉमस एडिसन और एडविन लैंड को अपना आदर्श मानते हैं। पोष्य बालक रहे स्टीव ने हमेशा एक पिता की खोज की और उनकी जिंदगी और करिअर ऐसे पिता तुल्य चरित्रो से परिपूर्ण रही जिनमें पहला नाम आध्यात्मिक ज्ञेन गुरु कोबिन चिनो रोशी का आता है। व्यापार की दुनिया में, स्टीव के पिता तुल्य चेहरों में इंटेल के अध्यक्ष और संस्थापक एंडी ग्रूव, के जॉर्ज फिशर, एडोब के जॉन वॉरलॉक और यूनिवर्सिटी ऑफ कानेंगी-मेलान के पैट केसिन रहे ।

इस लेख के माध्यम से  zindagiblog.com की पूरी टीम, तरंगों की क्रान्ति के जनक स्टीव जाब्स (Steve Jobs Apple CEO) को अपनी श्रद्दांजली अर्पित करती है ।।

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