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कभी झूठ भी अच्छा होता है

कभी झूठ भी अच्छा होता है – झूठ बोलना सही है या गलत ?

झूठ बोलना अक्सर खराब माना जाता है। हालांकि यह सच नहीं है। सच की तरह ही झूठ भी हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा है और कई बार यह सच से भी बढ़कर काम करता है। अक्सर जटिल बीमारियों में लोग डॉक्टर को बंधाई गई झूठी उम्मीद के सहारे लंबा जीवन गुजार जाते हैं। कभी रिश्तों को बचाने के लिए तो कभी दूसरों को खुश करने के लिए बोले गए झूठ सुख का कारण बनते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानते हैं कि कैसे कभी झूठ भी अच्छा होता है और  झूठ बोलना सही है या गलत ?

झूठ के कुछ उदाहरण

ए मिलियन लिटिल पीसेज के नाम से अमेरिकी लेखक जेम्स क्रिस्टोफर फ्रे ने अपनी आत्मकथा लिखी। उनकी यह पुस्तक बेस्ट सेलर बनी लेकिन ओपेरा विनफ्रे के शो में यह बात उजागर हुई कि किताब के मुख्य भाग मनगढ़ंत थे। झूठे तथ्यों के आधार पर जेम्स ने उनकी रचना की थी। मशहूर पत्रकार स्टीफन ग्लास ने अमेरिकी जर्नल दी न्यू रिपब्लिक के लिए काम करते वक्त अपनी कहानियों के लिए झूठे तथ्य खुद तैयार किए थे 2003 में पकड़े गए। न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकार जेसन ब्लेयर भी अपने लेखों के लिए झूठे किस्से बनाते थे। पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता जेनेट कुक ने इस पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए झूठ का सहारा लिया था। कुक ने जिमीज़ वर्ल्ड नाम की कहानी में हेरोइन व्यसनी आठ साल के लड़के का जिक्र किया, जो चाहता था कि बड़ा होकर वह ड्रग डीलर बने और इस आधार पर पूरी कहानी लिख डाली जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था।

हालांकि जब यह सच्चाई उजागर हुई तो कुक ने पुलित्ज़र लौटा दिया। इसके अलावा कुक ने नौकरी पाने के लिए झूठा शैक्षणिक रिकॉर्ड भी प्रस्तुत किया था। इसी प्रकार यूएसए टुडे के पत्रकार जैक कैली पर भी झूठी कहानियां रचने का आरोप लगा। 42वें अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर जब उनकी प्रेमिका मोनिका लेविंस्की के साथ संबंधों का आरोप लगा तो क्लिंटन ने अपने बचाव में साफ झूठ बोल दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के अवैध गतिविधियों में लिप्त होने का खुलासा हुआ तो वे भी साफ मुकर गए। ये महत्वाकांक्षाओं और स्थापित मूल्यों से विचलन के खेल थे। जर्मन सामंत मनचाउसेन का मामला तो और भी रोचक था।                             कभी झूठ भी अच्छा होता है 

मनचाउसेन मिलिट्री में काम करता था, जब वह अपने कार्यकाल के बाद घर लौटा तो उसने अपने साहसिक कारनामों के बारे लोगों को कहानियां सुनाना शुरू किया। उसने लोगों को बताया कि वह चांद पर जा चुका है, उसने तोप के गोलों पर समारो की है यहां तक कि दल-दल में फंस जाने पर उसने अपने बालों से स्वयं को खींचकर बाहर निकाल लिया था। मनचाउसेन के. ये काल्पनिक कारनामे लोगों का भरोसा प्राप्त कर रहे थे और उसके सभी झूठ भी सच की शक्ल अख्तियार कर रहे थे। इन्हीं कारनामों पर कई किताबें लिखी गईं। बच्चों में उसकी कहानियों ने उसे साहसिक नायक के रूप में लोकप्रिय बना दिया। 1998 में फिल्म निर्माता टेरी गिलियम ने उसकी कुछ कहानियों को लेकर दी एडवेंचर ऑफ बैरन मनचाउसेन नाम की एक फिल्म भी बनाई। यहां तक कि आगे चलकर उसके नाम पर दो मनोरोग मनचाउसेन सिंड्रोम और मनचाउसेन सिंड्रोम बाय प्रोक्सी भी विकसित हुए। इन सभी चीजों का श्रेय जाता था मनचाउसेन की कमाल की झूठ कला को ।                            कभी झूठ भी अच्छा होता है 

अगर वर्तमान में बात भारत  की करें तो भारतीय राजनीती में झूठ आम हो चला है। अक्सर  हमारे प्रधान मंत्री मोदी को कई बार लोगों ने सफेद झूठ बोलते देखा है। इसके आलावा आपको बहुत से उदहारण मिल जायेंगे ।

झूठ जीवन का अहम हिस्सा है

उपरोक्त उदाहरणों पर गौर करें तो यही तथ्य सामने आता है कि झूठ दरअसल हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है । चाहे वह किसी भी कारण से प्रेरित क्यों न हो और उसका परिणाम भी अच्छा या बुरा कुछ भी क्यों न रहे? यह भी ज़िंदगी में उतना ही जरूरी है जितना कि सच बोलना। साइकाइट्रिस्ट ऑरनोल्ड गोल्डबर्ग के अनुसार झूठ बोलना जीवन का एक सामान्य पहलू है और झूठ बोलने की क्षमता इंसान की ऐसी काबिलियत है जो उसे अन्य जीवों से अलग करती है। बैंड्रीज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लिओनार्ड सक्स के अनुसार रोजाना की ज़िंदगी में झूठ भी एक हिस्सा है।  हम बिना झूठ बोले पूरा दिन नहीं बिता सकते। हालांकि पहले लंबे समय तक उपयोगी झूठ को उपेक्षा ही मिली, लेकिन इसके गहरे अध्ययन ने इसका महत्व सिद्ध कर दिया है।

झूठ बोलने पर किये गए रिसर्च

2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स में मनोविज्ञान के प्रोफेसर रॉबट फील्डमैन ने एक शोध किया जिसमें उन्होंने गुप्त रूप से अजनबियों के साथ विद्यार्थियों की बातचीत को टेप किया। विद्यार्थी प्रत्येक 10 मिनट में औसतन तीन बार झूठ बोलते पाए गए। वाय वी लाई पुस्तक के लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू इंग्लैंड में न्यू इंग्लैंड इंस्टीटयूट के निदेशक डेविड स्मिथ के अनुसार दरअसल हम इतनी जल्दी-जल्दी झूठ बोलते हैं कि बेइमानी ऑटोमैटिक हो जाती है। अधिकांश समय हमें पता ही नहीं होता कि हम झूठ बोल रहे हैं। डेविड कहते हैं, उसी वक्त हम बेहतरीन झूठ बोल पाते है। क्योंकि हम उस वक्त सच्चाई उजागर होने के भय और बेचैनी से रहित होते हैं।                                                कभी झूठ भी अच्छा होता है 

लेकिन ऐसा क्यों होता है कि हम अक्सर इतना झूठ बोलते हैं, जबकि ईमानदारी को हमेशा सर्वश्रेष्ठ नीति माना गया है। दरअसल कोई भी अपने बारे में कुछ गलत या कटु बात नहीं सुनना चाहता। वहीं सच उन लोगों के हिस्से में आता है, जो मुंहफट और असामाजिक होने के लिए तैयार होते हैं। एक शोध में पाया गया कि वही छात्र अपनी कक्षा में सबसे अधिक लोकप्रिय होते हैं, जो धोखा देने में बेहतरीन साबित होते हैं। मनोवैज्ञानिक गैलेज़र लेवी के अनुसार हर व्यक्ति झूठ बोलता है। रिसर्च भी बताती हैं कि हम अपनी सामाजिक बातचीत में 1/4 झूठ का इस्तेमाल करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ अलबाम स्कूल ऑफ मेडिसिन में मनोरोग के प्रोफेसर चार्ल्स फोर्ड के अनुसार लोग अक्सर उन्हीं चीजों के बारे में झूठ बोलते हैं, जिनसे वे अच्छा करना चाहते हैं ।

डेविड स्मिथ के अनुसार जितने हम ईमानदारी के प्रशंसक हैं उतना ही बेईमानी को भी पसंद करते हैं। वैसे यह भी सच हमें झूठ बोलने का प्रशिक्षण बचपन से ही मिलता है, लेकिन इसे झूठ नहीं पुकारा जाता, इसे व्यवहार कुशलता या फिर सामाजिक शिष्टाचार का नाम दिया जाता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह इंसानी स्वभाव होता है कि हमारे अंदर हमेशा दूसरों द्वारा पसंद किए जाने और उनसे सम्मान प्राप्त किए जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। कुछ लोग अपने बचपन के क्रूर अनुभवों से अपने अंदर अपर्याप्तता का भाव उत्पन्न कर लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए। वे सोचते हैं कि उनका जीवन नीरस है और उनकी ज़िंदगी को ग्लैमर और उत्साह उमंग की बेहद जरूरत है। ऐसे में जिसे भी वे प्रभावित करना चाहते हैं या जिससे अपने बारे में स्वीकृति चाहते हैं उसके सामने झूठ बोलते यदि इस  बात पर यकीन किया जाए तो फिर सवाल यह भी उठ खड़ा होता है कि जो लोग पहले से लोकप्रिय और सफल होते हैं, वे क्यों झूठ बोलते हैं?                                                                      कभी झूठ भी अच्छा होता है 

प्रसिद्ध इतिहासकार जोसफ जे इलीस ने वियतनाम में अपनी शौर्य पूर्ण गाथा के लिए झूठ बोला। पॉप आर्टिस्ट एंडी वॉरहोल ने अपनी उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की कहानियां गढ़ी थी । अमेरिकी राजदूत लैरी लारेंस भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी भूमिका के लिए साफ मुकर गए थे। यहां तक कि उन्होंने तो झूठी कहानी भी गढ़ ली थी कि किस प्रकार उन्होंने बर्फीले पानी में संघर्ष किया था। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार लोग ऐसा प्रशंसा पाने के लिए करते हैं। क्योंकि उन्हें प्रशंसा पाने की लत लग चुकी होती है, जबकि कुछ लोग सहानुभूति पाने के लिए त्रासदी की कहानियां बनाते हैं।

झूठ बोलने के प्रमुख कारण

लालच, भय, स्वीकृति और आदत चार ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति के झूठ का कारण बनते हैं। हम में से ज्यादातर लोग खुद को खुश करने के लिए झूठ बोलते हैं। जब भी हम अपनी सुनाई कहानियों या अपने कारनामों को बढ़ा-चढ़ा कर बोल रहे होते हैं तो उस वक्त हम झूठ बोल रहे होते हैं और ऐसा करके हम अपने आप को बेहतर महसूस करने के लिए प्रेरित करते हैं। मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट फील्डमैन के अनुसार यह हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है। जैसे ही लोगों के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है, वे ऊंचे स्तर पर झूठ बोलना शुरू कर देते हैं।

समाज में इतने बड़े स्तर पर झूठ बोला जाता है, लेकिन उसे कभी वह मान्यता नहीं मिली जो सच को मिली जबकि कई बार झूठ सच से भी बढ़कर काम करता है। मनोवैज्ञानिक लेसी रोज के अनुसार झूठ बोलना बहुत बार फायदेमंद होता है। उदाहरण के लिए विभिन्न अध्ययनों में ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण पाए गए हैं। जो दर्शाते हैं कि तनाव में रहने वाले लोग स्वयं से ज्यादा ईमानदार  होते हैं, बजाय उनके जो तनाव मुक्त पाए जाते हैं। झूठ बोलने वाले ऐसे लोग मानसिक रूप से ज्यादा स्वस्थ होते हैं। इसी शो में यह भी पाया गया कि जब लोग तनाव से उबरने लगते हैं तो वे कम ईमानदार होने लगते हैं।                                                                 कभी झूठ भी अच्छा होता है 

झूठ बोलने के फायदे noble lie

यकीन नहीं होगा, लेकिन झूठ भी संभ्रांत होता है। ऐसे झूठ रिश्तों को बचाने के लिए तो कभी दूसरों को खुश करने के लिए बोले जाते हैं। हालांकि यह झूठ सुख का कारण बनते हैं और उसे नोबल लाई कहा जाता है। यह नुकसान रहित और मासूम होता है। किसी उचित कारण के लिए किसी व्यक्ति की गढ़ी गई कहानी को मजबूत बनाने के लिए हमारे द्वारा बोला गया झूठ उसके पक्ष में काम करता है। किसी ऐसे गलत काम की जिम्मेदारी लेना जो आपने किया ही न हो ताकि उस व्यक्ति को सजा न मिले, नोबल लाई की श्रेणी में आता है।

उदाहरण के लिए कैमिस्ट्री लैब में एक बच्चे से कोई महंगा उपकरण टूट जाता है। जब प्रोजेक्ट लीडर को पता चलता है तो वह बेहद गुस्सा होता है क्योंकि उस बच्चे में सामने आने का साहस नहीं है जिसने उपकरण तोड़ा है। चूंकि अब आरोप पूरी कक्षा पर लगना है तो एक बच्चा (हालांकि गलती उसकी नहीं है) आगे बढ़कर उपकरण के टूटने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। प्रोजेक्ट लीडर उसे दोषी मानकर बेहद लताड़ता है, लेकिन वह बच्चा उसे जता देना चाहता था कि ईमानदारी उनकी कक्षा में खत्म नहीं हुई है। उसने स्वयं पर आरोप लेकर बाकी बच्चों को बचा लिया। ऐसे में झूठ सदैव सकारात्मक रूप से काम करता है। ऐसे लोगों में जिम्मेदारी और त्याग का भाव होता है। जहां वे दूसरों को बचाने और किसी के भी अपराध को न स्वीकार करने पर जिम्मेदारी का रवैया अपनाते हैं। इसी प्रकार किसी छोटे बच्चे के मां-बाप की मृत्यु हो जाने पर उसे बहलाने के लिए बोला जाने वाला झूठ भी सकारात्मक रूप से कारगर साबित होता है।

एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में मनोरोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर चार्ल्स एल राईसन के अनसार सच बोलना अच्छा होता है, लेकिन कभी-कभी सच उजागर नहीं करना भी बेहद फायदेमंद साबित होता है। कई जटिल बीमारियों में लोग डॉक्टर की बंधाई गई झूठी उम्मीद के सहारे लंबा जीवन गुजार लेते हैं। शोधकर्ता शैले टेलर ने अपने अध्ययन में पाया कि अपने आप को धोखा देना या स्वयं से कुछ मात्रा में झूठ बोलना मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है।                                         कभी झूठ भी अच्छा होता है 

अंग्रेजी साहित्यकार वर्जीनिया वुल्फ के अनुसार बिना दूसरों की भावनाओं की परवाह किए सच का अनुसरण मानवीय शिष्टाचार का उल्लंघन है। बिना झूठ के सामाजिक परंपराओं को निभाना बेहद मुश्किल हो जाता है। ज्यादातर लोग इस तरह के आवरण वाले झूठ को कूटनीतिक झूठ मानकर तर्कसंगत ठहराते हैं। हममें से अधिकांश लोग सच नहीं बोल पाते हैं। जब हमसे कोई राय प्रकट करने को कहा जाता है। उस वक्त हमें पता होता है कि सामने वाला व्यक्ति क्या सुनना चाहता है और हो सकता है ऐसा बोलना हमारी व्यक्तिगत राय न हो, लेकिन हम वही बात बोलते हैं जो उसे पसंद हो ।

बच्चों को भी शुरू से ही सिखाया जाता है, जब भी किसी से उपहार मिले तो उसे धन्यवाद दें और कहें यह मुझे बेहद पसंद आया । चाहे वह उपहार उसे नापसंद ही क्यों न हो? ऐसी शिक्षा इसलिए दी जाती है ताकि बच्चे में शिष्टाचार और विनम्रता का भाव उत्पन्न हो। ऐसे में झूठ को गलत कैसे माना जाएगा। इस प्रकार के झूठ रिश्ते बनाए रखने के लिए बोले जाते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इस प्रकार के झूठ में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि इससे किसी को चोट नहीं पहुंचती। दूसरी तरफ कुछ मनोवैज्ञानिक इसे ठीक नहीं मानते। गलत राय  देना उस व्यक्ति को अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाना है क्योंकि हम वह नहीं बता रहे होते हैं जो सच है बल्कि हम वह बता रहे होते हैं जो वह व्यक्ति सुनना चाहता है, लेकिन कुछ शोध कर्ताओं की राय में कई बार द्वेष या दुर्भावनापूर्ण स्थितियों से बचने के लिए झूठ सबसे बेहतर तरीका साबित होता है।

झूठ अच्छा है या बुरा इसे लेकर लंबी मनोवैज्ञानिक बहस है, लेकिन यह भी हकीकत है कि सच और झूठ दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं जिनसे किनारा नहीं किया जा सकता। मनोवैज्ञानिक फील्डमैन का मानना है कि लोगों को अपनी उस सीमा के प्रति सतर्क होना चाहिए जहां तक झूठ किसी को चोट न पहुंचाए और ईमानदारी भी उसी सीमा तक निभानी चाहिए, जहां तक वह रिश्तों को बचाए रख पाने में सफल हो और गीता भी यही ज्ञान देती है ।।

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